Friday, May 31, 2013

हास्‍य–व्‍यंग जापान के प्रधान मन्‍त्री करेंगे भारत का अनुसरण

हास्‍यव्‍यंग
जापान के प्रधान मन्‍त्री करेंगे भारत का अनुसरण

बेटा:     पिताजी।
पिता:    हां, बेटा।
बेटा:     हमारे प्रधान मन्‍त्री डा0 मनमोहन सिंह का जापान
दौरा तो बहुत सफल रहा।
पिता:    यह तो हमारे देश के लिये तो अच्‍छा ही है न।
बेटा:     पिताजी, जापान के प्रधान मन्‍त्री तो डा0 मनमोहन सिंह से इतने प्रभावित हुये कि उन्‍होंने कह दिया कि मैं तो डा0 सिंह का अनुसरण करना चाहूंगा।
पिता:    यह तो बेटा भारत के लिये गर्व की ही बात है यदि  जापान के प्रधान मन्‍त्री हमारा अनुसरण करें।
बेटा:     पर पिताजी, जापान तो बहुत विकसित देश है न\
पिता:    इसमें तो कोई शक नहीं, बेटा। दूसरे विश्‍व युद्ध में अमरीका को जापान पर अणुबम ही फैंकना पड़ा था और तभी जापान ने हथियार डाले थे।
बेटा:     पर जापान फिर भी बम के ढेर से निकल कर एक विकसित देश बन गया। उसका विश्‍व में दबदबा है।
पिता:    यह तो सच्‍चाई ही है।
बेटा:     तो फिर जापान किस बात में मनमोहनजी का अनुसरण करेगा\
पिता:    बेटा, भारत एक बड़ा देश है। उससे दूसरे देशों को कई कुछ सीखने और अनुसरण करने की बात होती है।
बेटा:     पर पिताजी, जापान की विकास दर तो बहुत अधिक है। भारत की तो विकास दर पिछले वर्ष केवल 5 प्रतिशत ही रह गई।
पिता:    बेटा, और भी कई क्षेत्र हैं जहां जापान अनुसरण कर सकता होगा। जापान के प्रधान मन्‍त्री ने यूं ही तो नहीं कह दिया होगा न।
बेटा:     पिताजी, जापान को तो मनरेगा, सूचना के अधिकार जैसे कानून की तो आवश्‍यकता होगी नहीं। न ही उसे चाहिये होगा हमारा खाद्य सुरक्षा बिल जो संसद के पिछले सत्र में पास नहीं हो सका।
पिता:    बेटा, कई और मामले भी हो सकते हैं जहां वहां के प्रधान मन्‍त्री भारत का अनुसरण करना चाहते होंगे।
बेटा:     पिताजी, जापान में भ्रष्‍टाचार है\
पिता:    बेटा, भ्रष्‍टाचार तो किस देश में नहीं है\ वहां भी है।
कई बार वहां के प्रधान मन्त्रियों ने किसी मामले में संल्लिप्‍त होने के कारण त्‍यागपत्र दिये हैं। पर इतना नहीं जितना कि इस बार भारत में उजागर हुआ है।
बेटा:     तब तो पिताजी, जापान के प्रधान मन्‍त्री केव इस क्षेत्र
        में ही वर्तमान सरकार व प्रधान मन्‍त्री का अनुसरण
        कर सकते हैं। उनके पास वरन् अनुसरण करने के
        लिये है ही क्‍या\
पिता:    बेटा, यह तू उनसे ही पूछ। मुझे नहीं पता।



आज की फुहार ज़ैहर के लिये पैसे मैं दे दूंगा (31-05-2013)

आज की फुहार                                                                 
ज़ैहर के लिये पैसे मैं दे दूंगा
            (31-05-2013)

अपने एक कंजूस मित्र को एक व्‍यक्ति ने कहा, ''भइय्या, खुशी का मौका है, कोई पार्टी-दावत हो जाये''।

''कहां यार'', कंजूस दोस्‍त ने उत्‍तर दिया, ''मेरे पास तो ज़हर खाने के लिये भी पैसे नहीं हैं''।


''कोई बात नहीं'', उस व्‍यक्ति ने भी तपाक से कह दिया, ''तू पार्टी पर खर्च कर दे। ज़हर खाने के लिये पैसे मैं दे दूंगा''। 

Sunday, May 26, 2013

फुहार तुम्‍हारे बचने की उम्‍मीद शत-प्रतशित (27-05-2013)


फुहार
तुम्‍हारे बचने की उम्‍मीद शत-प्रतशित
(27-05-2013)

एक व्‍यक्ति बड़े दिन से बीमार चल रहा था। कई अस्‍पतालों व डाक्‍टरों के चक्‍कर काट चुका था। अन्‍त में किसी ने सुझाया कि अमुक डाक्‍टर के पास जा और वह तुम्‍हें ठीक कर देगा। उसने ऐसा ही किया।

उस व्‍यक्ति ने अपनी सारी बीमारी डाक्‍टर को समझा दी। फिर बड़ी उम्‍मेद भरे शब्‍दों में उसने डाक्‍टर को पूछा, ‘’डाक्‍टर साहिब, मैं सचमुच बच आऊंगा?’’

डाक्‍टर ने बड़े उत्‍साहित होकर आश्‍वासन दिया, ‘’तुम्‍हारे बचने की तो शत-प्रतिशत सम्‍भावना है’’।

उस मरीज़ व्‍यक्ति ने खुश होकर बड़ी आशा के स्‍वर में पूछा, ‘’कैसे, डाक्‍टर साहिब?’’

’’तुम्‍हारी इस नामुराद बीमारी के दस में से केबल एक ही मरीज़  बचता है’’, डाक्‍टर ने समझाया ‘’और इस बीमारी के अब तक मेरे नौ मरीज़ मर चुके हैं’’।

(टाइम्‍स आफ इण्डिया में पढ़ा था)   



Wednesday, May 22, 2013

आज की फुहार धनिये पर साग की ड्रैसिंग (22-05-2013)


आज की फुहार                                                                 
धनिये पर साग की ड्रैसिंग
            (22-05-2013)
एक पत्नि ने अपने पति को कहा कि जब वह दफतर से घर लौटे तो एक किलो साग और दस पैसे का हरा धनिया ले आये।
याद से वह सब्‍ज़ी ले आया। पर जब पत्नि ने सामान देखा तो माथा फोड़ लिया। बोली, ''मैंने तुम्‍हें एक किलो साग और दस पैसे का धनिया लाने का कहा था और तुम उल्‍टे एक किलो हरा धनिया और दस पैसे का साग ले आये\ अब मैं इस का क्‍या करूं\''

पति ने सहज व शान्‍त भाव से कहा, ''भाग्‍यवान्, इतना परेशान होने की क्‍या बात है\ तुम हरे धनिये की सब्‍ज़ी बना लो और ऊपर से साग की ड्रैसिंग कर देना।''

(किसी ने सुनाया या कहीं पढ़ा था)

विचारणीय पिताजी, टोकरी मत फैंको, कल को मुझे चाहिये





विचारणीय
       पिताजी, टोकरी मत फैंको, कल को मुझे चाहिये

एक व्‍यक्ति का पिता बड़ा बूढ़ा हो गया था। लगातार बीमार भी रह रहा था। बस बिस्‍तर पर ही सिमट कर रह गया था। बेटा तंग आ गया। उसने अपने पिता को एक टोकरी में डाला और उसे नदी में फेंकने के लिये रवाना हो गया। आगे उसे उसका अपना पुत्र मिल गया जो साथ जाने की जि़द्द करने लगा। वह व्‍यक्ति उसे भी साथ ले गया। वह नदी में काफी गहराई तक घुस गया ताकि पिता बच न जाये और उसकी मुसीबत पुन: लौट न आये।

ज्‍योंहि वह व्‍यक्ति उस टोकरी को फैंकने लगा जिसमें उसका पिता था तो नदी किनारे खड़े बच्‍चा चिल्‍लाया, ''पिताजी, टोकरी मत फैंको।''

व्‍यक्ति ने मुड़ कर अपने बच्‍चे से पूछा, ''क्‍यों\''

बच्‍चे ने सहज भाव से उस व्‍यक्ति को समझाया, ''पिताजी, कल को मुझे भी तो आपको ऐसे ही फैंकना होगा। तब मैं टोकरी कहां से ढू़ंढूंगा\''

वह व्‍यक्ति उल्‍टे पांव बापस आ गया। उसने अपने पिता को नदी में नहीं फैंका।

(यह कहानी आम सुनाई जाती है)



Tuesday, May 21, 2013

आज की फुहार एक कंजूस की समझदार पत्नि (21-05-2013)


आज की फुहार                                                                 
एक कंजूस की समझदार पत्नि
            (21-05-2013)

एक पत्नि अपनी सहेली को बता रही थी कि उसका पति बहुत कंजूस है और उसे पैसे ही नहीं देता। सहेली को विश्‍वास नहीं आया। उसने कहा कि तुम अच्‍छा खाती-पीती और पहनती हो तो फिर उस के लिये पैसा कहां से आता है।

''वह तो मैं उससे अपने ढंग से ऐंठ लेती हूं,'' पत्नि ने बताया।

''वह कैसे\'' सहेली ने कौतूहलता से पूछा।

''मुझे जब-जब पैसे की ज़रूरत पड़ती है'', पत्नि ने बताया, ''मैं अपने पति को कहती हूं कि मैं अपने मायके जा रही हूं, मुझे कुछ पैसे दे दो। उस पर खुश होकर वह मुझे दिल खोल कर पैसे दे देता है पर मैं मायके जाती ही नहीं।''
(किसी ने सुनाया या कहीं पढ़ा था)

Sunday, May 19, 2013

आज की फुहार मेरी पत्नि बहुत अच्‍छी है (19-05-2013)


आज की फुहार                                                                 
मेरी पत्नि बहुत अच्‍छी है
                        (19-05-2013)

एक व्‍यक्ति अपने दोस्‍त से अपनी पत्नि की तारीफ के पुल बांध रहा था। उसने कहा कि मेरी पत्नि बहुत अच्‍छी है।

दोस्‍त ने पूछा, ''क्‍यों उसमें क्‍या खास बात है\''

''मैं चाहे रात को 11-12 कितनी भी देर से पहुंचूं वह मुझे सदा पानी गर्म कर के देती है,'' उस व्‍यक्ति ने बताया।
''पर क्‍यों\'' कौतूहल में दोस्‍त ने पूछा।
''क्‍योंकि मैं ठण्‍डे पानी से बर्तन साफ नहीं कर सकता,'' व्‍यक्ति ने अपने दोस्‍त को समझाया।
(कहीं सुना या पढ़ा था)

Wednesday, May 15, 2013

Are we heading towards a Christian India?


Here is a very interesting article from a well-known writer which may be of interest to our benign readers:
Are we heading towards a Christian India?


Authour:  François Gautier

I am a westerner and a born Christian. I was mainly brought up in catholic schools, my uncle, Father Guy Gautier, a gem of a man, was the parish head of the beautiful Saint Jean de Montmartre church in Paris ; my father, Jacques Gautier, a famous artist in France, and a truly good person if there ever was one, was a fervent catholic all his life, went to church nearly every day and lived by his Christian values. There are certain concepts in Christianity I am proud of : charity for others, the equality of system in many western countries, Christ’s message of love and compassion….
Yet, I am a little uneasy when I see how much Christianity is taking over India under the reign of Sonia Gandhi : according to a 2001 census, there are about 2.34 million Christians in India ; not even 2,5% of the nation, a negligible amountYet there are today five Christian chief ministers in Nagaland, Mizoram, Meghalaya, Kerala and Andhra Pradesh.
One should add that the majority of politicians in Sonia Gandhi’s closed circle are either Christians or Muslims. She seems to have no confidence in Hindus. Ambika Soni, a Christian, is General Secretary of the Congress and a very powerful person, with close access to Sonia Gandhi. Oscar Fernandes is Union Programme Implementation Minister. Margaret Alwa is the eminence grise of Maharasthra.Karnataka is virtually controlled by AK Anthony, whose secretaries are all from the Southern Christian association. Valson Thampu, a Hindu hater, is Chairman NCERT curriculum Review Committee, John Dayal, another known Hindu baiter, has been named by Sonia Gandhi in the National Integration Council ; and Kancha Ilaya, who hates Hindus, is being allowed by the Indian Government to lobby with the UN and US Congress so that caste discrimination in India is taken-up by these bodies. ( One can also add to list Ajit jogi, and Digvijay Singh both christian converts & also Pranoy Roy, his niece Arundhati ‘suzanna’ roy )          …………

Source: http://satyameva-jayate.org

Monday, May 13, 2013

SUNDAY SELECTIVE READING


SUNDAY SELECTIVE READING

Ladakh incursion: China scores bloodless victory over India, more intrusions may come
12 May, 2013          The Economic Times                                            Pagre 15
By Brahma Chellaney

In a classic replay of its old game, China intruded stealthily into a strategic border area in Ladakha and then disingenuously played conciliator by counseling "passion", "wisdom" and "negotiations".                    

Operation Clean Up: UPA's Do or Die Phase

                     By C. L. Manoj

The Economic Times on Sunday May 12   Page 03
This May not only marks the beginning of another harsh summer in Delhi but also signals the crisis-torn UPA-II entering the last year of its mandate with elections scheduled for March-April 2014 even as speculations are rife about advancing the hustings to this year-end itself.

MAIL TODAY     SUNDAY     May 12, 2012
www.mailtoday.in/www.mailonline.in
Page 14
Comment       PM the loser in Ministers row
                        BJP can't afford to take it easy
Articles           Hydra headed monster                     By Shiv Vishvanathan
                        The crown has lost its sheen           By Sourish Bhattacharya
Page 15
Articles       DOUBLE WHAMMY STRIKES ICARUS        By Sandeep Bamzai
                   The PM's unimpeachable integrity is called into question
                                      by Radhika Saraf
Page 22
INSIDE STORY                Bansal's web of corruption    by SPS Pannu

TheSundayGuardian
May 12, 2013

Page 05      Report        Probe against Gadkari starts to crumble
Page 06      IDEOLOGY, POLICY DIVIDE DEBATE ON THE FOOD SECURITY BILL
                    'Food bill has too many loopholes'

Page 10      COMMENT & ANALYSIS
          No country for confusion        by M. J. Akbar
Editorial:    PAK'S POLITICIANS AVOID INDIA BASHING
Page 11      An Indian sprint of discontent        By RAM JETHMALANI

THE SUNDAY TIMES      May 12

Page 12      Report        Would love to live in Beijing, says Khurshid

THE SUNDAY TRIBUNE           May 12

Page 11      Interview with Nawaz Sharif                      Big challenge ahead for Pakistan

INDIA TODAY       May 13, 2013

Page 03                FROM THE EDITOR-IN-CHIEF
Page 08                HOW UPA LOST THE NEW INDIA       By Vir Sanghvi
Page 17                THE TUGHLAQ COMPLEX                By Kaveree Bamzai
Page 19                Cover Story          FROM ASSET TO LIABILITY














Saturday, May 11, 2013

Criminals tell a lie in defence So do our politicians


Criminals tell a lie in defence
So do our politicians

In ancient times our rulers/kings were worshipped as incarnation of the Divine, gods.  Their words were sacrosanct and sacred directions to be followed obediently.  Their actions were pious; nobody entertained any doubts. All the energies of our rulers were concentrated on promoting the welfare of their people and the nation.

But that is past history, a distant one. This is not true today  and, to a great extent, contrary to that belief and concept although today's rulers are not hereditary born out of the wombs of the queens but democrats who ooze out of the ballot box.

The present Congress-led UPA government seems to represent the present generation of our rulers with a distinct dissect between their words and actions. They seem to be working on a well-defined course with a definite political design tinged with electoral overtones.
Take the case of the unprecedented scams that have surfaced during the present UPA-II tenure. It is a record of sorts. But the usual strategy is to initially deny altogether any wrongdoing when facts surface. When 2G spectrum scam was unfolding, our Prime Minister Dr. Manmohan Singh and Congress President Mrs. Sonia Gandhi were giving certificates of innocence to the then telecom minister A. Raja.  No wrong has been committed by him , they repeated in a parrot-like fashion, and he acted as per the policy of the government keeping the prime minister informed of it. But, on the eve of the presentation of the CAG report on the issue, it was the same PM and Congress president who made Raja to resign.  If Raja was "innocent" why was he made to resign and if he was guilty, why was he allowed to continue in office that long?

Later, on the intervention of the Supreme Court, the investigation was entrusted to CBI. Raja was arrested and had to cool his heels in jail for a number of months. Some others too were arrested. But when the heat of the scam started tormenting both the PM and Congress, they staged an about turn.  Now they have put the onus for all the wrongdoings entirely on Raja and declared that the PM did not know what wrong was going on in telecom ministry. On the political front they claimed credit that they did not compromise with corruption and made Raja to resign.

The same story repeated when CWG scam erupted. They defended Suresh Kalmadi initially. Later, he too had a stint in jail.

Latest is the case of the Railway Minister Pawan Kumar Bansal and Law Minister Ashwani Kumar. Bansal's nephew (sister's son) was arrested for allegedly receiving a bribe of `90 lakhs for helping a General Manager of the Railways for a plum posting of his choice and the total deal struck was `10 crores – perhaps the highest ever bribery scandal so far. It is a common cliché with our politicians to boldly declare their innocence and claim that they will come out clean ultimately. The same was Bansal's stand. He declared that he had nothing to do with his nephew's dealings. To presume that a deal of such a high amount could be struck without the implicit or explicit understanding with the railway minister was nothing short of shutting one's eyes to the hard realities.

The Law Minister Ashwani Kumar in his over-zeal to protect the Prime Minister went out of his way to pressurize the CBI into making it show the status report in the Coalgate which the Supreme Court (SC) had demanded from CBI and, at the same time, directed it not to share it with anybody else, including the government. Not only he, but two Joint Secretaries of the Prime Minister's office too tinkered with it. First, it was  claimed that it had not been shared with government. When the news leaked out, the SC asked the CBI to file an affidavit in this behalf. CBI admitted that it had been shared. The SC then made scathing comments including that the very "heart" of the report was changed by Government. Although SC did not directly indict the Law Minister yet it did say that the Government had no right to interfere with the investigation of the case. And the Law Minister's action amounted to that.
When the Opposition demanded that both the ministers should be made to resign or dismissed, Manmohan government stoutly refused. The opposition, particularly the BJP, Congress leaders and ministers said, are in the habit of demanding resignations at the drop of a hat. They are suffering from a resignation disease, they touted.

As a result the post-recess budget session of Parliament was washed away with the opposition adamant on its stand and the government stoutly opposing it. Two days before the session was scheduled to end on May 10, the two houses of Parliament were adjourned sine die in view of this logjam.

But, on the evening of May 10 when the Congress thought the continuance of these two ministers was going to harm it politically, suddenly both the ministers were made to resign after Congress President Mrs. Sonia Gandhi had a meeting with the Prime Minister.
One of the reasons circulating in the media and political circles was that Prime Minister was standing in the way of Ashwani Kumar's resignation because whatever the latter did or did not was not for himself but to prevent the heat from tormenting the Prime Minister in the Coalgate scam. There was a feeling that after Ashwani Kumar's resignation the direct target would be the Prime Minister himself. That has now proved to be true also.

Now the question arises: Is there any sanctity in the words coming out of the mouth of the Prime Minister, ministers and Congress President? Be it A. Raja, or Pawan Bansal or Ashwani Kumar, their first reaction is to deny that they have done anything wrong. But later, they have to go. If they are 'innocent', why have they been made to resign? If they were 'guilty', why did the Congress and UPA let them continue on their plum jobs for that longer leading to a historic disruption of Parliament? They should have been out the moment something appeared against them. Have the words of the Prime Minister and Congress President not lost their sanctity after these honourable ministers had to resign ultimately?
It is hypocritical that Congress first protects the guilty to the hilt and when under public pressure and court orders it is left with no alternative but to make them quit, it takes political courage saying that there is zero tolerance to corruption in Congress. Does it mean that to play politics, particularly the electoral variety of it, our politicians have the license to tell lies and befool the people?

In our criminal jurisprudence a person accused of a crime has the right to tell a lie in his defence. He is punished for the crime but not for telling a lie in the court. That seems to be true of our politicians today. But is telling a lie to the people not a crime in our kind of democracy? Our politicians have no answer.                                                                      ***

आज की फुहार तुम्‍हारी खामोशी परेशान करती थी (11-05-2013)


 आज की फुहार                                                                 
तुम्‍हारी खामोशी परेशान करती थी
            (11-05-2013)



''डैडी'', बेटी ने कहा, ''रात जब मेरा दोस्‍त मुझे मिलने आया और हम आपस में बड़े ज़ोर-ज़ोर से बातें कर रहे थे, हंस-खेल रहे थे तो आप परेशान तो नहीं हो रहे थे\''

''नहीं बेटी, तब नहीं'' पिता ने स्‍पष्‍ट किया, ''पर तब अवश्‍य जब तुम्‍हारे कमरे से काफी समय तक कोई आवाज़ नहीं आती थी। तब तुम्‍हारी खामोशी मुझे अवश्‍य परेशान करती थी कि कुछ गड़बड़ तो नहीं है''।
(बहुत पहले टाइम्‍स आफ इण्डिया में पढ़ा था)

Wednesday, May 8, 2013

हास्‍य–व्‍यंग मुझे कोई रिश्‍वत क्‍यों नहीं देता तू उनसे ही पूछ


हास्‍य–व्‍यंग
मुझे कोई रिश्‍वत क्‍यों नहीं देता\
 तू उनसे ही पूछ

बेटा:     पिताजी।
पिता:    हां बेटा।
बेटा:     रेल मन्‍त्री पवन बांसल जी का भान्‍जा रिश्‍वत के
मामले में गिरफतार हो गया है।
पिता:    यह तो बेटा बहुत बुरा हुआ। बांसलजी तो बहुत नेक इन्‍सान हैं और बड़े सुलझे हुये वकील।
बेटा:     तो क्‍या उनके भान्‍जे ने भी उनसे इस बारे कानूनी सलाह ली होगी\
पिता:    बेटा, वह उनका भान्‍जा है, इसलिये सलाह तो ले ही
सकता है। पर इतना अवश्‍य है कि वह कभी किसी को गलत सलाह नहीं देंगे।
बेटा:     पर पिताजी वकील का तो पेशा ही ऐसा है कि वह
गुनाहगार को कानूनी दावपेच सिखाता है कि वह कैसे गुनाह कर कर भी बच सकता है और निर्दोष को भी सलाह देता है।
पिता:    यह तो बेटा है ही। इस कानून का यही तो गोरखधन्‍धा है।
बेटा:     पर पिताजी, बांसल साहिब ने कहा है कि मुझे उससे कुछ लेना-देना नहीं है। यदि उसने कुछ ग़लत किया है तो उसके लिये वह जि़म्‍मेवार नहीं हैं।
पिता:    यह बात तो बेटा है। रिश्‍वत ली या न ली वह तो उनके भान्‍जे ने न। तो उसके लिये वह कैसे कसूरवार\
बेटा:     पर पिताजी रिश्‍वत उसे ही क्‍यों दी गई\ कोई मुझे क्‍यों नहीं दे जाता\
पिता:    तू बड़ा मूर्ख है। भला तेरे को कोई क्‍यों रिश्‍वत देगा\ तू कोई मन्‍त्री है या कि तेरा बाप या दादा कोई बड़ा सरकारी नेता\
बेटा:     इसका मतलब तो यह हुआ कि उसे भी रिश्‍वत इस लिये दी गई क्‍योंकि वह एक मन्‍त्री का भान्‍जा है।
पिता:    बेटा, इन टेढ़े-मेड़े सवालों में मुझे मत फंसाया कर। मैं कुछ नहीं जानता। तू उनसे ही पूछ।




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