नाम में कुच्छ नहीं
—
अम्बा
चरण वशिष्ठ
किसी भवन, किसी
सड़क, किसी संस्था का नाम किसी राजनेता या अन्य के नाम से रखने या न रखने या
वर्तमान नाम बदल कर कोई और नाम रख देने का कोई महत्व ही नहीं बचा है। आजकल हर नाम को संक्षिप्त (abreviate) करने की होड़ लगी रहती है।
अब व्यक्ति के नाम
की ही बात लीजिये। किसी का नाम बुद्धू राम है। तो वह बिना नाम बदले बी0 आर0 शर्मा
बन कर गर्व करने लगता है।
सड़कों का नाम
लीजिये। अनेक बड़े शहरों में महात्मा गांधी रोड हैं पर सब जगह यह एम0 जी0 रोड
बनकर रह गई हैं। दिल्ली में एक सड़क का नाम बदल कर अन्तिम मुग़ल बादशाह बहादुर
शाह ज़फर मार्ग कर दिया गया। पर हुआ क्या? अब वह बीऐसज़ैड
मार्ग बन कर रह गया।
दिल्ली का इन्दिरा
गांधी इन्टरनैशल एयरपोर्ट अब केवल आईजीआईए ही हो गया है। शिमला में मैडिकल कालिज
का नाम बदल कर इन्दिरा गांधी मैडिकल कालिज कर उनकी याद को सम्मानित किया गया था।
पर आज वह आईजीएमसी ही रह गया है। इन्दिरा गांधी नैशनल ओपन यूनिवर्सिटी इगनू बन कर
मशहूर हो गई है। कहां हैं इन्दिरा गांधी?
दिल्ली की जवाहरलाल
नैहरू यूनिवर्सिटी अपने असली नाम से नहीं जेएनयू के नाम से विश्वविख्यात हो गई
है। पंजाब सरकार ने चण्डीगढ़ से सटे शहर मोहाली का नाम बदल 'साहिबज़ादा अजीत सिंह
नगर' रख दिया कोई 20 साल पहले। पर लोग इस शहर को अभी भी मोहाली के नाम से पहचानते
हैं और वैसे भी यह ऐसएऐस नगर ही बन कर रह गया है।
मनरेगा में महात्मा
गांधी का नाम किस को दिखता है?
तो फिर हमारे नाम
रखने या बदलने पर झगड़े का क्या तुक रह गया है? ***