Saturday, November 12, 2016

हास्‍य-व्‍यंग हाये, यह कैसे हो गया पेशाब

हास्‍य-व्‍यंग
      कानोंकान नारदजी के  
हाये, यह कैसे हो गया पेशाब   

मुझे बड़े ज़ोर से पेशाब आ गया। पर नज़दीक कोई पेशाबघर दिखाई नहीं दे रहा था। मैं बड़ी देर इधर-उधर ढूंढता रहा। कुछ पी भी रखी थी जिस कारण मेरे पांव भी लड़खड़ा रहे थे। शराब की बोतल खरीदी और उससे जेब भी खाली हो गई थी। अब चारा केवल लोकल बस लेने का ही रह गया था। आये पेशाब के कारण मैं इतना परेशान था कि मुझे लग रहा था कि अब तो कहीं मेरा ब्‍लैडर ही न फट जायेगा। हार कर मैं सड़क के एक कोने पर गया जहां अंधेरा था। मैंने वहीं पेशाब करना शुरू कर दिया। शुरू तो हो गया पर अब बन्‍द होने में ही नहीं आ रहा था।अभी मैं अपनी पैंट की जि़प्‍प बन्‍द ही कर रहा था कि मुझे किसी ने पीछे से धक्‍का दे दिया। मैं मुंह के बल गिर गया। उसने पांव से मेरी पैंट खींच ली। मैं नंगा हो गया। ग़लती से उस दिन मैंने अंडरवीयर भी नहीं पहन रखा था। ऊपर से उसने और साथियों ने मुझे जूतों से पीटना शुरू कर दिया। यह पेशाब करने की जगह है? वह चिल्‍ला रहे थे। तू तो शहर को गन्‍दा कर रहा है।
इतने में राह चलते कुछ लोग इकठ्ठा हो गये और पूछने लगे कि क्‍या हुआ? मैं इन हितैषियों की बातें व सहानुभूति को दरकिनार कर उन लोगों के पीछे नंगा ही भागने लगा जो मेरी पैंट को लेकर भाग रहे थे। मैं उनसे माफी मांग रहा था और पैंट देने केलिये गिड़गिड़ा रहा था। बहुत दूर भागने के बाद वह मेरी पैंट फेंक कर भाग गये। मैंने पैंट पहनी और थोड़ी देर सुस्‍ताने बैठ गया। इस बीच मेरा नशा भी उतर गया।
लोग इकट्ठा हो गये। मुझ से मेरी दास्‍तान पूछने लगे। मैंने सब कुछ बता दिया। उन्‍हें मेरे साथ सहानुभूति हो गई। कुछ नारे लगाने लगे – यह गुण्‍डागर्दी नहीं चलेगी, नहीं चलेगी। उन्‍होने मुझे घर छोड़ दिया।
पिताजी ने जब मेरी हालत देखी तो मुझे पूछा कि हुआ क्‍या? जब मैंने सब कुछ बता दिया तो उल्‍टा वह मुझ पर ही नाराज़ होने लगे। शराब पियेगा, सार्वजनिक स्‍थानों पर कुत्‍तों की तरह पेशाब करेगा तो ऐसा ही होगा।
थोड़ी देर बाद मैंने देखा कि मेरे घर को पुलिस वालों ने घेर लिया है। मैं और मेरा परिवार घबरा गये। मैंने सोचा पुलिस मुझे पकड़ने आ गई। उधर मैंने नारे सुने – लल्‍लू को इन्‍साफ दो। गुण्‍डों को पकड़ो। जेल में डालो। गुण्‍डागर्दी नहीं चलेगी, नहीं चलेगी।
फिर क्‍या था। धड़ाधड़ लोग मेरे घर आने लगे। सहानुभूति प्रकट करने लगे।  मुझे ढारस बंधाने लगे कि तुझे न्‍याय दिला कर रहेंगे। तुम मत घबराओ। तुम्‍हारी लड़ाई हम लड़ेंगे। तुम अकेले नहीं हो। हम तुम्‍हारे साथ हैं। मुझे समझ न आये कि गलती मुझ से हुई थी या किसी और से। खैर, मेरे पास तो अब समय न था सोच पाने का जब घर में इतने लोग आ गये हों। इतने लोग तो मेरी शादी में भी नहीं आये थे। मैंने अपनी बीवी को सब को चाय पिलाने केलिये कहा। चार जायें तो छ: आयें। यह सिलसिला चलता रहा। घर में बैठने की जगह कम हो गई। लोगों को खाट पर बिठाना पड़ा। जनता इतनी हो गई कि दो तो मेरी खाटें ही टूट गईं। मेरी परेशानी देख एक नेता ने ढारस बंधाई। घबराओ नहीं। एक राजनीतिक रैली से मैं चार खाटें उठा लाया था। दो तुम्‍हें भेज देता हूं।
हर राजनीतिक पार्टी के लोग अपने नेताओं और वर्करों के साथ आने लगे। सभी इस घृणित घटना में अपने विरोधियों का हाथ बताने लगे।
मैंने उन महानुभावों को बताया कि ग़लती मुझ से ही हुई थी। मैाने शराब भी पी थी और खुले में पेशाब भी कर दिया था। वह मेरी पीठ थपथपा कर कहते – तो क्‍या हो गया? आजकल कौन शरीफ आदमा शराब नहीं पीता? खुले में पेशाब कर दिया तो क्‍या? किसे पेशाब नहीं आता? फिर सरकार ने कौनसे चप्‍पे-चप्‍पे पर पेशाबघर बना रखे हैं?
दूसरा बोला – यदि कोई कुत्‍ता खुले में शौच कर दे तो कोई जुर्म नहीं। किसी की गाड़ी, दीवार पर पेशाब कर दे तो कोई बात नहीं। यही काम मानव कर दे तो अपराध। उसे जूतों से पीट डालो। कहां का इन्‍साफ है यह?
यह तो सरासर मानवों द्वारा ही मानवों के विरूद्ध भेदभाव की मिसाल है – तीसरा बोला।
भाई साहब, चौथा बोला – आप घबराओ मत। मानव के प्रति इस भेदभाव के मामले को तो मैं राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष उठाऊंगा।
अभी बात चल ही रही थी कि पुलिसवाले आ धमके। सबको कहने लगे कि उठो, हो गया। जगह खाली करो। सीएम साहब, आ रहे हैं। 
मुझे विश्‍वास नहीं हुआ। मैंने कहा – आप क्‍यों मज़ाक कर रहे हैं? मैं जब परेशान था और उन्‍हें मिलने गया था। तब तो उन्‍होंने मुझे मिलने से इनकार कर दिया था। अब वह मेरे घर खुद ही कैसे आयेंगे?
इसलिये कि तुम्‍हारे साथ अन्‍याय हुआ है। हमारे सीएम साहब अन्‍याय कभी बर्दाश्‍त नहीं करते। 
सीएम साहब पहुंचे। मैं उनके अभिवादन के लिये उठने ही लगा कि उन्‍होंने मुझे कंधे से पकड़ कर बिठा दिया – बैठे रहिये। आपको उठने की ज़रूरत नहीं। आप औपचारिकता में मत पडि़ये। आपको तो बहुत चोट आई है। आपको आराम की ज़रूरत है।
अपने एक अधिकारी को इशारा कर उससे एक चैक लिया और मेरे हाथ थमा दिया। बड़ी विनम्रता से बोले – यह हमारी ओर से थोड़ी सी सहायता। वैसे वह आदमी कौन थे?
मैं उनके विनम्र व्‍यवहार से भावुक हो उठा। रूंधे गले से कहा – सरकार, मैं तो उनकी शक्‍ल भी न देख सका। वह भाग गये।
वह कड़क होकर बोले – देखो यह प्रधान मन्‍त्री मोदी की साजि़श है। वह आम आदमी विरोधी हैं। सब पर अत्‍याचार करवा रहे हैं। हम आम आदमी हैं। उन अपराधियों को पाताल से भी ढूंढ कर लायेंगे।
फिर साथ खड़े एक व्‍यक्ति को बोले जो शायद कोई अधिकारी   था या मन्‍त्री – इनके बेटे को नौकरी भी दे दो। उसने उत्‍तर में कहा – जैसा आपका आदेश, सरकार।
मैं बीच में ही बोल बैठा – सरकार, वह तो छोटा है और पढ़ा भी कम।
जिस व्‍यक्ति को उन्‍होंने आदेश दिया था उसने बड़े प्‍यार से मुझे डांटते हुये समझाया – चुप, सरकार के आगे नहीं बोलते। सरकार के लिये कुछ मुश्‍किल नहीं है। वह सब कुछ कर सकते हैं।
इतनी देर में एक और दल आ गया। वह नारे लगा रहे थे कि दलितों का शोषण नहीं होने देंगे, नहीं सहेंगे। मैंने उनके नेता को बताया कि मैं और मेरा परिवार दलित वर्ग से नहीं हैं। उसे गुस्‍सा आ गया। उसने कहा यही तो कारण है कि हम दलितों का शोषण रूक नही पा रहा। हम दलित तो हैं पर मानने को तैय्यार नहीं। हमें शर्म आती है। यही कारण है कि उच्‍च जाति के लोग हम पर ज़ुल्‍म भी ढाते हैं पर हम उफ नहीं करते। चुप रहते हैं और हमारा बराबर शोषण होता जा रहा है। तुम दलित थे इसीलिये तो तुम सड़क पर चल रहे थे और तुमने एक किनारे पेशाब किया। तुम भी बड़ी जाति के होते तो न तुम पैदल चलते और न सार्वजनिक स्‍थल पर मूत्र ही करते। हम तुम्‍हारे साथ हुये अन्‍याय के विरूद्ध ऊंची आवाज़ उठायेंगे।
इतने में कुछ लोग मेरे कमरे में आ धमके। ज्‍़यादातर युवक थे। बोले – देश के महान् नेता जो प्रधान मन्‍त्री होते यदि जनता ने विश्‍वासघात न किया होता। लोग उनके चुकटले बहुत सुनाते हैं। यही उनकी लोकप्रियता की निशानी है। जिन्‍हें अभी तक उनके दर्शन करने का सौभाग्‍य प्राप्‍त नहीं हुआ, वह भी उन्‍हें जानते और पहचानते हैं क्‍योंकि वह सब के दिल में बस्‍ते हैं। इतनी देर में वह आ ही गये। मुस्‍कराते हुये बोले – भैय्या, मैं अब आ गया हूं। तुम्‍हें घबराने की कोई बात नहीं है। अब समझो कि तुम्‍हें न्‍याय मिल ही गया। सरकार को जब पता चलेगा कि मैं आपका हालचाल पूछने गया था, वह तो यह सुनकर ही डर जायेंगे और तुम्‍हें इन्‍साफ मिल जायेगा। उनके साथ आये सभी ने अपना सिर हिलाकर अनुमोदन किया और ज़ोर से तालियां बजा दीं।                   
वह एकदम उठ खड़े हुये और जाने लगे। फिर मुड़े और एक साथी की ओर इशारा करते हुये मुझे कहा – ये कल आपको सहायता का एक चैक पहुंचा देंगे। और ज़रूरत होगी तो बता देना। हम पूरी सहायता करेंगे।
कुछ पार्टी के नेता तो मुझे कह गये कि हम तुम्‍हें अपनी पार्टी के टिकट पर विधान सभा या लोक सभा का चुनाव लड़ायेंगे। तुम डटे रहना।
मैंने पिताजी का कहा कि मकान की बत्तियां बुझा दो ताकि कोई और न आये। मैं बहुत थक गया हूं। मार भी बहुत खाई है।
पिताजी ने सहानुभूति तो क्‍या दिखानी, मुझे एक ज़ोर का झापड़ मार दिया। मैं रो पड़ा। बोला – मैं पहले ही मार खा कर आया हूं। अब आपसे मार खानी बाकी थी।
पिताजी बोले – पाजी, तूने कोई काम समय पर नहीं किया। जो जूते व मार आज खाई अगर पहले खाई होती तो हमारी ग़रीबी तो बहुत पहले खत्‍म हो हो गई होती और आज तक रोटी के लिये न तरसते। 
ओह, यह क्‍या हुआ? मेरी तो पैंट गीली हो गई है। मैंने हाथ लगाया तो गीला हो गया। सूंघा तो पेशाब की बदबू आ रही थी। बिस्‍तर से भी दुर्गन्‍ध आ रही थी। हाय, हाय यह क्‍या हुआ? मुझसे पेशाब हो गया? मैं दहाड़-दहाड़ कर रोने लगा। तो क्‍या यह सब सपना था?
घर के सब इकट्ठे हो गये। बच्‍चे ताली बजा कर हंसने लगे – बापू ने बिस्‍तर में ही पेशाब कर दिया।            
***
Courtesy: Uday India Weekly (Hindi)

हास्‍य-व्‍यंग सर्जिकल स्‍ट्राइक पाकिस्‍तान पर, दर्द कुछ भारतीय नेताओं के पेट में

हास्‍य-व्‍यंग              
         कानोंकान नारदजी के
सर्जिकल स्‍ट्राइक पाकिस्‍तान पर, दर्द कुछ भारतीय नेताओं के पेट में


बेटा:   पिताजी।
पिता:  हां बेटा।
बेटा:   आपको पता है कि भारतीय सेना ने पाक अधिकृत कश्‍मीर में घुस कर पाकिस्‍तान द्वारा चलाये जा रहे आतंकियों के अड्डों पर चुपचाप धावा बोल दिया और आतंकियों के लगभग 8-9 ठिकानों को तबाह कर दिया। इस आप्रेशन में लगभग 50 आतंकवादियों को मारकर ऊरी पर उनके हमले का बदला भी ले लिया है।  
पिता:  बेटा, यह तो देश के बच्‍चे-बच्‍चे को पता चल गया है। सब का सीना गर्व से तन गया है। सब को अपनी सेना की बहादुरी पर नाज़ है। सब अपने प्रधान मन्‍त्री मोदीजी पर भी गर्व कर रहे हैं कि उन्‍होंने पहली बार सेना को ऐसा कर देने के लिये झण्डी दिखाने की हिम्‍मत दिखाई।    
बेटा:   हां पिताजी, मोदीजी ने दिखा दिया कि उनकासीना कहने को ही 56 इंच का नहीं है, करने की हिम्‍मत दिखाने को भी है।
पिता:  बेटा, ऐसा पहली बार हुआ है। अब तक तो पाकिस्‍तान यही समझता फिरता था कि भारत धमकी देने में तो बड़ा दिलेर है पर कुछ कर दिखाने में नहीं। उन्‍हें तो यक़ीन हो गया था कि जो बादल बरसते हैं वह बरसते नहीं।  
बेटा:   पर मोदीजी ने पाकिस्‍तान का यह भ्रम तोड़ दिया। अब वह सकते में है। उसे यह समझ नहीं आ रहा कि वह क्‍या करे और क्‍या न करे।
पिता:  उल्‍टे इस विपदा की घड़ी में उसके मित्र देश भी उसके साथ खड़े नहीं हो रहे। वह अलग-थलग पड़ गया है।
बेटा:   पर पिताजी, पाकिस्‍तान के प्रधान मन्‍त्री नवाज़ शरीफ तो कह रहे हैं कि भारत ने कोई सर्जीकल धावा बोला ही नहीं। केवल सीमा पर एक छोटी सी फाइरिंग हुई है जिसमें उसके दो सिपाही ज़खमी हुये।  
पिता:  बेटा, झूठ ही तो पाकिस्‍तान की फितरत है, उसकी शक्ति। उसने तो कभी माना ही नहीं कि उसकी हार हुई है न 1965 में, न 1971 में और न कारगिल युद्ध में। जब उसकी फौजें पीछे हट रही होती हैं तो वह रेडियो और टीवी पर बड़े ज़ोर से दावा करता है कि उसकी फौजें विजय ही राह पर बड़ी तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं।   
बेटा:   यह तो पिताजी मेरे को भी पता है कि पाकिस्‍तान इन तीनों लड़ाइयों में हारा है।
पिता:  फिर तू पाकिस्‍तान के इस झूठ पर क्‍यों वियश्‍वास कर रहा है?
बेटा:   पिताजी, मैं विश्‍वास नहीं कर रहा हूं। यह तो कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता संजय निरूत्‍तम, पी चिदम्‍बरम व दिगविजय सिंह बोल रहे हैं। उन्‍होंने मांग की है कि पाकिस्‍तान के प्रापेगण्‍डा को झूठा साबित करने के लिये सेना सबूत पेश करें। 
पिता:  तू फिज़ूल की बातें मत करा कर ग़ैरजि़म्‍मेदाराना। तभी मुझे तेरे पर ग़ुस्‍सा आता है। यह तो हो ही नहीं सकता। कांग्रेस तो सदा ही एक देशभक्‍त पार्टी रही है। उसके नेता तो ऐसी भाषा बोल ही नहीं सकते। तूने पाकिस्‍तान के नेता को ऐसा बोलता देखा होगा और तू मुझे बता रहा है कि कांग्रेस के ये महान् नेता कह रहे थे।
बेटा:   पिताजी, आप मुझ पर फिज़ूल में नाराज़ हो रहे हैं। आप मुझे इतना बुद्धू समझते हैं कि मैं भारतीय और पाकिस्‍तानी नेताओं में फर्क नहीं समझता। मैंने कांग्रेस के इन सम्‍माननीय नेताओं को टीवी पर और अखबार में छपे उनके ब्‍यानों और फोटो को एक बार नहीं हज़ार बार देखा है। जो मैं कह रहा हूं वह सब उन्‍होंने ही कहा है। मैं टीवी लगा देता हूं। आप अपनी आंख से देख लो और अपने कान से सुन लो। 
पिता:  पर बेटा, मुझे तो यह सब देख और सुनकर अब भी विश्‍वास नहीं हो रहा।
बेटा:   विश्‍वास तो पिताजी मुझे भी नहीं हो रहा था। मैंने पहले सोचा कि यह कोई पाकिस्‍तानी होंगे क्‍योंकि पाकिस्‍तान के शासक और नेता ऐसा ही कुछ बोल रहे हैं। पर मैंने जब अपनी आंखें फाड़-फाड़ कर देखा और कान खरोद कर सुना तो मैं भी हैरान रह गया। ये हमारे देशभक्‍त किसकी भाषा बोल रहे हैं?
पिता:  बेटा, ऐसा तो किसी देश के नेता नहीं करते। न ऐसा अमरीका में हुआ, न इंगलैण्‍ड में और न फ्रांस में जहां ऐसी घटनायें हुईं। 
बेटा:   इसी कारण तो मैं परेशान हूं।
पिता:  हमारे देश में भी बेटा, कभी ऐसा नहीं हुआ। 1965 और 1971 के युद्धों में भी पाकिस्‍तान रेडियो रोज़ दावा करता जा रहा था कि उसने भारत के मीलों इलाकों पर भारत की सेना को खदेढ़ कर कब्‍ज़ा कर लिया है। पर भारत के हर नेता व नागरिक ने वही माना जो हमारी सरकार या सेना कह रही थी। श्री अटल बिहारी वाजपायी ने तो 1971 के युद्ध के दौरान यहां तक कह दिया था कि आज देश में और कोई नेता नहीं है। केवल एक नेता है और वह हैं श्रीमति इन्दिरा गांधी और सारा देश उनके पीछे है।      
बेटा:   पिताजी, तब भी विपक्ष ने मांग की थी कि पाकिस्‍तान के प्रापेगण्‍डा को झूठा साबित करने के लिये तत्‍कालीन प्रधान मन्‍त्री शास्‍त्रीजी या इन्दिराजी भारत की विजय के सबूत पेश करें? 
पिता:  नहीं बेटा। तब तो ऐसी घटिया बात कोई पार्टी या नागरिक सोच भी नहीं सकता था।  
बेटा:   यही नहीं पिताजी। हमारे दिल्‍ली के मुख्‍य मन्‍त्री केजरीवाल भी कांग्रेसियों से पीछे नहीं हैं। उनकी भाषा भी यही है।
पिता:  बेटा, उनकी तो बात ही छोड़ो। 
बेटा:   क्‍यों पिताजी? आखिर वह हमारे सम्‍माननीय मुख्‍य मन्‍त्री हैं।
पिता:  वह दिल्‍ली को तो सम्‍भाल नहीं पाते पर सारे देशों, सारे विश्‍व का बोझ उनके कन्‍धे पर है। लगता है जैसे सारी दुनिया की चिन्‍ता केवल उनको ही है। वह तो ऐसा दिखाना चाहते हैं मानो सारे विश्‍व की राजनीति व कूटनीति पर केवल इनका ही अधिकार है। वह सारी दुनिया व विश्व के सारे नेताओं को नासमझ समझते हैं।    
बेटा:   पिताजी, उन्‍होंने एमटैक कर रखी है।
पिता:  जहां तक मेरी छोटी सी जानकारी है एमटैक में राजनीति व विश्व कूटनीति नहीं पढ़ाई जाती।
बेटा:   पिताजी, कांग्रेसी नेताओं की तरह उनकी भाषा भी वही लगती थी जो पाकिस्‍तान बोल रहा है। वह भी वहीं मांग कर रहे थे जो पाकिस्‍तान कर रहा था।
पिता:  केजरीवालजी एक बहुत बड़े महत्‍वाकांक्षी नेता हैं। वह अपनी पार्टी का विस्‍तार बड़ी तेज़ी से करना चाहते हैं।
बेटा:   तो क्‍या वह अपनी पार्टी को एक अन्‍तर्राष्‍ट्रीय दल बना देंगे और उनकी पार्टी वहां चुनाव भी लड़ेगी?
पिता:  बेटा,  उनके नेतृत्‍व में सब कुछ सम्‍भव है। 
बेटा:   पर अब तो कुछ समाचार चैनलों ने पाकिस्‍तान के विरूद्ध की गई कार्रवाई की वीडियो भी जारी कर दी है। अब ये आप और कांग्रेस वाले क्‍या कहेंगे?
पिता:  वह इतनी जल्‍दी सन्‍तुष्‍ट होने वाले नहीं हैं, बेटा। वरन् उन्‍हें तो जनता से क्षमा मांगनी पड़ेगी। वह तो कह सकते हैं कि तसवीरों से यह साबित नहीं होता कि वह क्षेत्र पाकिस्‍तान था और फौज हमारी थी।
बेटा:   तब तो इसका कोई अन्‍त नहीं हो सकता। ‘’मैं न मानूं’’ पालिसी तो कहीं तक भी जा सकती है।  
पिता:  हमारी राजनीति की यही तो खासियत है।
बेटा:   यह तो है पिताजी। यदि कोई नेता मुझे कहे कि तू यह साबित कर कि तेरा नाम यही है तो मैं यह कैसे साबित कर सकता हूं?
पिता:  तू अपना प्रमाणपत्र दिखा देना।
बेटा:   पिताजी जब मैं अपना व आपका नाम बताऊंगा तो वह कह देंगे कि इन दोनों नामों के कई व्‍यक्ति हैं। तू साबित कर कि तू यही है।
पिता:  बेटा, तब तू अपना करैक्‍टर सर्टिफिकेट दिखा देना।
बेटा:   तब वह बोल देंगे कि स्‍कूल वाले तो हर एक को सर्टिफिकेट दे देते हैं कि इसका चालचलन बड़ा उच्‍च व आदर्श है पर बाद में निकलते हैं बहुत सारे बदमाश ही। 
पिता:  तो फिर बेटा ऐसा शक तो हर पर ही किया जा सकता है। यही प्रश्‍न तो उस प्रश्‍नकर्ता व हर नेता से भी किया जा सकता है। 
बेटा:   तब वह इसे बेहूदा और अपमानजनक प्रश्‍न बता कर शोर मचा देंगे।
पिता:  वैसे तो दावा कांग्रेस ने भी कर दिया है कि यूपीए शासनकाल में भी सर्जिकल स्‍ट्राईक कई बार की गई थीं। 
बेटा:   पर उन्‍होंने वह साक्ष्‍य प्रस्‍तुत नहीं किये जो आज वह मोदी सरकार से मांग रहे हैं। सेना ने तो इसका खण्‍डन कर दिया है।
पिता:  तो क्‍या हुआ? वह बड़ी आसानी से मोदी सरकार पर आरोप लगा देंगे कि वह सेना को साक्ष्‍य प्रस्‍तुत करने से रोक रही है। 
बेटा:   तब तो कांग्रेस ने एक बड़ा राजनैतिक खेल खेल दिया है। हींग लगे न फटकरी, रंग चोखा होय।
पिता:  बेटा, इसे ही तो राजनीति कहते हैं।      ***  

Courtesy: UdaiIndia Weekly (Hindi)

Thursday, October 13, 2016

A Miracle: Kejriwal plays ducks & drakes with public money without "power to buy a pen"

Analysis
A Miracle: Kejriwal plays ducks & drakes with public money without "power to buy a pen"

By Amba Charan Vashishth

A few days back the Delhi Chief Minister who blames the Prime Minister Narendra Modi even if a tree gets uprooted in the NCR because of heavy rain and howling wind, tweeted, ""The CM and ministers are left with no power now, even to buy a pen. LG and PM enjoy all powers".
That was a statement demeaning the office of a chief minister Kejriwal holds. Kejriwal represents the aam aadmi, his morals, ethos, hopes and aspirations. Those who took Kejriwal at his words, felt pained at this situation. But one can believe Kejriwal at the risk of one's own credibility. It is a different matter if the self-proclaimed "anarchist" in him is not worried about such political decencies and niceties.
Immediately on taking oath Kejriwal had declared that the State exchequer was people's money and each penny shall be spent on the aam aadmi. A month after the first "Swaraj" budget of AAP government was passed Kejriwal set aside 526 crores in the annual budget for publicity and advertisements which was opposed by the opposition and even an AAP MLA as just self-promotion.
This very chief minister, according to an RTI revelation, could yet manipulate "power" to spend aam aadmi's 100 crores for self-promotion between February 10 and May 10, 2016. This amount, it is said, pertained to newspaper advertisements only; money spent on TV, radio ads and publicity hoardings was in addition.
This financially 'powerless' Kejriwal government has reportedly been pulled up by the Comptroller and Auditor General (CAG) for spending 28 crore on advertisements and publicity campaign outside of Delhi at places as far off as Bengaluru, Chennai and Kerala. Kejriwal, obviously, was not promoting his government but his party for political and electoral purposes there.
Although Arvind Kejriwal had "no power to buy a pen" yet he could still afford to pay an electricity bill of about ₹91,000 for the two months of April and May at his Civil Lines residence, according to an RTI reply.
Further, Kejriwal could still exercise powers to appoint 21 of his MLAs as Parliamentary Secretaries with hefty perks.
Kejriwal Government appointed Women Commission Chairman Swati Maliwal could recruit hundreds of people and give them financial benefits illegally without observing the rules. Delhi Anti-Corruption Branch (ACB) has registered "a case under Sections 13(D) of Prevention of Corruption Act, 409 (criminal breach of trust) and 120-B (punishment of criminal conspiracy) of the IPC against Maliwal," said a senior ACB officer.  There are allegations that 90 percent of persons selected by her are AAP workers.
This aam aadmi Chief Minister wanted to undertake in royal splendour his yatra to Vatican City to be present at Mother Teressa's canonisation accompanies by his  OSD, his Chief Secretary, his Health Minister Satyendra Jain and his OSD. But Lt. Governor put his foot down and allowed only the CM, his OSD and Satyendra Jain and none else. Lakhs of rupees out of public funds were spent. 
All said and done, Kejriwal government yet had the “power” to get the Delhi assembly pass the Members of the Legislative Assembly of the Government of NCT of Delhi (Salaries, Allowances, Pension) Amendment Bill raising the pay and perks of the chief minister, ministers and MLAs by 400 percent. It raised the monthly package of MLAs from ₹88,000 to ₹2.5 lakh per month while their annual travelling allowance has been raised from ₹50,000 to ₹3 lakh per year, with other perks. A Delhi MLA would get a basic salary of ₹50,000, constituency allowance of ₹50,000, conveyance allowance of ₹30,000, communication allowance of ₹10,000 and secretarial allowance of ₹70,000. The basic salary of ministers has been increased from ₹20,000 to ₹80,000 and their constituency allowance to ₹50,000 from ₹18,000. This has been done with a view not to "deny the need for money (to legislators) when it comes to serving the people". During discussion on the Bill some AAP MLAs claimed that "with their current salaries, they could not attend weddings as they didn't have enough money to buy gifts". They want public money to buy gifts to their electorate.
If "with no power now, even to buy a pen" CM Kejriwal and his ministers could play havoc with the public funds, what would have they done if they had all the "powers"? 

Thursday, September 15, 2016

हास्‍य-व्‍यंग शादी तो प्रेम की कैंची है

हास्‍य-व्‍यंग
        कानोंकान नारदजी के
शादी तो प्रेम की कैंची है

मैं प्‍यार करता हूं, बस प्‍यार। और कुछ नहीं। कर भी नहीं सकता। यदि मैं करूं तो इसका मतलब है कि मेरा प्‍यार सच्‍चा नहीं है। मैं इतना मशहूर हो गया हूं कि मेरी गली, मुहल्‍ले व गांव के लोग मेरा नाम ही भूल गये हैं। कोई मुझे मजनूं कहता है, तो कोई शीरीं का फरहाद। मैं इतना मशहूर गया हूं कि मेरे प्‍यार के चर्चे हर ज़ुबान पर चढ़ने लगे हैं। कइयों को तो इतनी जलन व ईर्षा होने लगी कि वह कहने लगे कि मैं तो प्‍यार में बदनाम हो गया हूं। उन नासमझों को यह भी नहीं पता कि प्‍यार से नाम होता है बदनाम नहीं। खैर, मैं उन पर गुस्‍सा नहीं करता। मैं उनपर तरस ही खाता हूं। बेचारे करें भी क्‍या, स्‍वयं तो प्‍यार कर नहीं सके, सफल हो नहीं सके, इसलिये अपनी नालायिकी से सुलगी जलन की भड़ास वह इन शब्‍दों से निकालते हैं।
मेरी प्रसिद्धि दूर-दूर तक होने लगी। लोग मुझे देखने आने लगे। मुझे मिलने आने लगे। कइयों के हावभाव से तो ऐसा लगता था कि वह मेरे दर्शन कर धन्‍य होने लगे। मैं भी किसी को निराश नहीं करता था। कई तो मुझ से प्‍यार में सफलता के गुर, टोटके पूछने व समझने लगे। मैं भी इस में कोई कंजूसी नहीं बरतता। इससे किसी का भला हो जाये तो मेरा क्‍या जाता है।
बात तो यहां तक पहुंच गई कि देश व विदेश से पत्रकार मुझ से साक्षात्‍कार के लिये गिड़गिड़ाने लगे। मैं सब से बड़े विनम्र भाव से कहता कि मेरे पास समय नहीं है। मैं अपने प्‍यार में इतना व्‍यस्‍त हूं, मस्‍त हूं कि  साक्षात्‍कार के लिये कोई वक्‍़त नहीं निकाल सकता। वह मेरे साथ सहमत होते। मानते कि मैं समय कहां से निकाल सकता हूं। पर वह इसरार करते कि प्‍यार की खातिर अवश्‍य समय निकालिये। लाखों-करोड़ों का भला होगा। अपने प्‍यार में असफल रहने पर देश व विश्‍व में हज़ारों-लाखों आत्‍महत्‍यायें कर रहे हैं। प्‍यार के क्षेत्र में आपके अनुभवों, खोजों व आविष्‍कारों से अनेक त्रस्‍त प्रेमियों का भला हो जायेगा। उनके त्रस्‍त मन को सान्‍त्‍वना मिलेगी। उन्‍हें राहते मिलेगी, उन्‍हें रास्‍ता मिल जायेगा। वह भटकने से बच जायेंगे। आप उन पर तर्स करो। वह भी आपके ही भाई-बन्‍धू हैं। आखिर मैं मान ही गया। यदि मेरे कारण प्रेमियों का भला होता है तो मुझे खुशी ही होगी क्‍योंकि मैं भी तो प्‍यार का पैग़ाम घर-घर पहुंचाना चाहता हूं। मैं तो प्‍यार का मसीहा हूं आखिर। इसी से तो भाईचारा बढ़ेगा, प्रेम फैलेगा और विश्‍व में शान्ति का राज होगा। हिंसा और असहिष्‍णुता दूर होगी।
वह एक बड़ा पत्रकार निकला, एक बहुत बड़े समाचार समूह का प्रतिनिधि। मैं तो समझा था कि वह एक बड़े चैनल का प्रतिनिधि है जो देश में ही नहीं विदेशों में भी मेरी छवि बना देगा। प्‍यार का सन्‍देश घर-घर पहुंचा देगा। जब उसके पास कोई टीवी कैमरा नहीं था, तो मैं उससे थोड़ा मायूस तो हुआ पर मैंने कहा छोड़ो, बेचारा आ गया है तो उसे भी मायूस मत करो।
पर वह तो हमारे गांव के एक पत्रकार से भी गया गुज़रा निकला। बड़े अटपटे सवाल पूछने लगा। मझे पूछा कि तुम्‍हारा नाम क्‍या है। जब मैंने कहा कि कृष्‍ण तो पूछने लगा कि यह आपका असली नाम है। मैंने बताया कि माता-पिता ने तो मेरा कुछ और नाम रखा था पर मैंने स्‍वयं कृष्‍ण रख लिया। पूछने लगा कि माता-पिता द्वारा रखा नाम क्‍या था। मैंने कहा जो तुम्‍हें ही बताना होता तो मैं बदलता क्‍यों। कहने लगा कि बताने में बुरा क्‍या है। मैंने कहा मैं अपने दो नाम बता कर लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा नहीं करना चाहता।
मुझे तो लगा कि वह मेरा साक्षात्‍कार नहीं ले रहा था बल्कि मेरे से जिरह कर रहा हो जैसे कि मैं कोई अपराधी हूं या अदालत में गवाही दे रहा हूं। पूछता कि जब आपने नाम बदला तो कृष्‍ण ही क्‍यों रखा, कुछ और क्‍यों नहीं। ग़ुस्‍सा तो मुझे आया पर कंट्रोल कर गया।
फिर पूछने लगा कि आपकी उम्र क्‍या है।  मैंने कहा कि तुम ने मेरी उम्र से क्‍या लेना है। उसने कहा कि बताने में हर्ज़ ही क्‍या है। तब मैंने उसे समझाया कि भैय्या, प्‍यार की कोई उम्र नहीं होती। प्‍यार कोई भी कर सकता है – बच्‍चा, बूढ़ा और जवान। प्‍यार कभी भी हो सकता है, किसी को भी हो सकता है, किसी समय भी हो सकता है।
मेरे को पूछता कि तुम्‍हारी ऊंचाई कितनी है। मैंने कहा तुम खुद ही देख लो मुझे तो नापने का न कभी समय लगा और न कभी ज़रूरत ही समझी। तुम्‍हारी उसकी ऊंचाई कितनी होगी। मैं ने उसे अपना वही जवाब दोहरा दिया। वह लम्‍बाई में तो आपसे छोटी ही होगी। मैंने कहा वह छोटी हो या लम्‍बी, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मुझे तो उससे प्‍यार करना है, मैंने उसके कपड़े नहीं सिलने हैं जो मैं उसकी लम्‍बाई-चौड़ाई का हिसाब रखूं।                     
          
पूछने लगा कि उसकी उम्र कितनी है। मैंने कहा कि मैंने उससे प्‍यार किया है। मैंने उसे नौकरी देने के लिये इन्‍टर्व्‍यू नहीं लिया जो मैं उसकी उम्र पूछता कि कहीं उसकी उम्र निधार्रित आयु से कम या ज्‍यादा तो नहीं है। पूछता कि आपकी उम्र से तो कम ही है ना। मैंने कड़क सा जवाब दिया – जब मुझे उससे प्‍यार हो गया तो वह मुझ से बड़ी हो या छोटी, कोई फर्क नहीं पड़ता।
वह देखने में कैसी हैमुझे हंसी आ गई। मैंने कहा, सुन्‍दर, अति सुन्‍दर। बोला – होनी ही चाहिये। मैंने कहा, मैं आपसे एक बात पूछूं। उसने कहा, हां-हां, बड़ी खुशी से। मैंने पूछा, आपकी शादी हो चुकी है? कहता – हां। मैंने पूछा कि तुमने कभी अपनी बीवी को कहा है कि वह सुन्‍दर नहीं है? बोला – तुम मुझे जूते मरवाना चाहते हो? मैंने कहा कि एक पते की बात मुझ से भी सुन लो। जूते शादी के बाद चलते हैं, शादी से पहले नहीं। बोला – तुम तो यार बड़े नजुर्बेकार लगते हो। मैंने कहा -- भैय्या, तभी तो तुम मेरा साक्षात्‍कार लेने पहुचे हो।
पूछता कि तुम पढ़े क्‍या हो? मैंने कहा – प्‍यार। उसने कहा – मैं पूछ रहा हूं कि तुमने पढ़ाई कहां तक की है। मैने कहा – अढ़ाई अक्षर प्रेम का। उसने पूछा – उससे आगे?
मुझे फिर हंसी आ गई। कहा – भैय्या, प्रेम के मामले में कुछ नादान लगते हो। सच्‍चे प्रेमी के पास स्‍कूल-कालिज की पढ़ाई करने का समय ही कहां होता है। फिर तुम ने कहीं पढ़ा है या किसी ने पूछा है कि शीरीं-फरहाद या लैला-मजनूं कितने पढ़े थे। जो प्‍यार करता है वह पढ़ नहीं सकता और जो पढ़ता है वह प्‍यार नहीं कर सकता। यदि कोई पढता भी है और दावा करता है कि वह प्रेम भी करता है तो वह पाखण्डी है, झूठा है।
तो तुम बड़े होकर क्‍या करोगे जब तुम्‍हारे लिये काला अक्षर भैंस बराबर होगा। नहीं, मैंने ज़ोर देकर कहा, मेरे लिये काला अक्षर भैंस बराबर नहीं, प्‍यार के बराबर होगा।
तो फिर तुम घर-गृहस्‍थ कैसे चलाओगे क्‍योंकि कोई नौकरी तो तुम्‍हें मिलेगी नहीं क्‍योंकि तुम्‍हारे पास कोई डिग्री तो होगी नहीं?
मैंने कहा – मुझे प्‍यार करना है, नौकरी नहीं। यदि मैं किसी की नौकरी करूंगा तो प्‍यार कहां से कर पाऊंगा? उसके लिये तो मेरे पास समय ही नहीं बचेगा। फिर मैंने अभी कौनसी गृहस्‍थी बसा ली है?
तो तुम शादी कब करोगे? उसने पूछा तो मैंने उत्‍तर दिया — भैय्या, तुम खबर बनाने की जल्‍दी के चक्‍कर में लगते हो। सुन लो, मैंने तो अभी उसे प्रोपोज़ भी नहीं किया।
तो कब करोगे? उसने आगे पूछा। मैंने कहा, तुझे क्‍या जल्‍दी है? यह निर्णय तो मैंने करना है, तुमने या तुम्‍हारी अखबार ने तो नहीं। मैंने आगे कहा – लगता है कि तुम्‍हारा सामान्‍य ज्ञान भी बहुत कमज़ोर है। किस किताब में लिखा है कि उन महान् प्रेमियों ने कभी प्रोपोज़ किया हो। उसने अपनी अज्ञानता जताई पर आगे एक और सबाल कर दिया – तो तुम्‍हारी शादी कब और कैसे होगी?
मैंने कहा – भैय्या मैंने तुम्‍हें पहले ही बता दिया है कि हम प्‍यार करते हैं। मैंने शादी की बात कब की?
पर प्‍यार का अन्तिम पड़ाव तो शादी ही है ना – उसने कहा। मैंने भी पट से उत्‍तर दे दिया – ट्रैजडी भी तो है। मेरे उत्‍तर से वह हतप्रभ रह गया। बोला – यह तो है।
फिर मैंने उसको ही पूछ लिया – बता, शीरीं-फरहाद व लैला-मजनूं की शादी हुई थी?
उसने कहा – नहीं।
तो मैंने कठोर व स्‍पष्‍ट शब्‍दों में कहा – सुनो, हम सभी अनन्‍त प्रेमियों से आगे निकलेंगे। इतिहास रचायेंगे। हम शादी नहीं करेंगे। केवल प्रेम करेंगे सदा, सदा सैंकड़े जन्‍मों तक। शादी तो प्रेम की कैंची होती है। हम अपना प्रेम अमर बनायेंगे।                   ***    
Courtesy: Uday India (Hindi) weekly

Tuesday, September 6, 2016

हास्‍य-व्‍यंग केजरीवालजी को कदम-कदम पर परेशान करते मोदीजी

हास्‍य-व्‍यंग
        कानोंकान नारदजी के
केजरीवालजी को कदम-कदम पर परेशान करते मोदीजी  
बेटा:   पिताजी।
पिता:  हां, बेटा।    
बेटा:   पिताजी, दिल्‍ली में सरकार मोदीजी की है?
पिता:  बेटा, तेरे को पता नहीं कि पिछले दो वर्ष के अधिक समय से दिल्‍ली में केन्‍द्र की भाजपानीत सरकार सत्‍ता में है?
बेटा:   पिताजी, केन्‍द्र में तो मोदीजी की सरकार है, यह तो मैं जानता हूं। मैं तो दिल्‍ली प्रदेश की बात कर रहा हूं।
पिता:  कमाल कर रहा है, तेरे को यह भी नहीं पता कि दिल्‍ली में अरविन्‍द केजरीवालजी की सरकार है?
बेटा:   पिताजी, मुझे तो यह भी पता है। मैं तो यह जानना चाहता हूं कि यदि सरकार केजरीवालजी की है तो दिल्‍ली में हर सफलता का श्रेय केजरीवालजी को जाता है और हर असफलता के लिये भी वह ही जि़म्‍मेवार हैं। फिर वह हर बात के लिये मोदीजी को क्‍यों दोषी ठहराते हैं?
पिता:  बेटा, देश में अभिव्‍यक्ति की पूर्ण स्‍वतन्‍त्रता है। केजरीवालजी भी स्‍वतन्‍त्र हैं। वह जो चाहे कह सकते हैं।
बेटा:   पर पिताजी, केजरीवालजी तो कहते फिरते हैं कि देश में अभिव्‍यक्ति की स्‍वतन्‍त्रता का अभाव है। इस बात का ढिंढोरा तो वह जेएनयू और हैदराबाद यूनिवर्सिटी मामलों पर टिप्‍पणी करते समय कई बार पीट चुके हैं। 
पिता:  बेटा, यह तो केजरीवालजी को ही निणर्य करना है कि उन्‍हें क्‍या कहना है और क्‍या नहीं।  
बेटा:   तो पिताजी, जब सरकार केजरीवालजी की है तो हर काम के लिये मोदीजी कैसे उत्‍तरदायी हैं?
पिता:  बेटा, इतना मत भूलना कि वह हर  उपलब्धि का श्रेय तो स्‍वयं लेते हैं पर जहां वह विफल होते हैं उसके लिये दोष मोदीजी के नाम मढ़ देते हैं।
बेटा:   पिताजी, केजरीवालजी स्‍वयं व उनके मन्‍त्री स्‍वयं कुछ नहीं करते?
पिता:  यह कैसे हो सकता है? मन्‍त्री हैं, वेतन-भत्‍ते लेते हैं तो काम करना तो उनका कर्तव्‍य बनता है।
बेटा:   तो फिर पिताजी, स्‍वयं केजरीवालजी व उनके मन्‍त्री क्‍यों कहते फिरते हैं कि मोदीजी उनको काम नहीं करने देते?
पिता:  सुना तो मैंने भी है पर समझ नहीं आता।
बेटा:   पिताजी, केजरीवाल सरकार ने विज्ञापन जारी किये हैं और भाषणों में कहते फिरते हैं कि वह अमुक कार्य करना चाहते थे, योजना चलाना चाहते थे पर मोदीजी ने उस काम को कर रहे अफसर ही बदल दिये।
पिता:  हां, यह विज्ञापन तो मैंने भी पढ़ा है।
बेटा:   पिताजी, जब एक अफसर बदल जाता है तो उसके स्‍थान पर दूसरा अधिकारी भी तो लगा दिया जाता है। फिर क्‍या दूसरा अधिकारी काम नहीं करता?
बेटा:   यह कैसे हो सकता है? सरकार सब को बराबर का वेतन देती है। यदि काम न करे तो उसके विरूद्ध कार्रवाई भी तो की जा सकती है। केजरीवाल सरकार ने तब उनके विरूद्ध कुछ किया क्‍यों नहीं? 
पिता:  यह तो बेटा वही ही जानें।
बेटा:   इसका मतलब यह तो नहीं कि वह स्‍वयं ही नहीं चाहते कि वह काम हो पर उसका दोष मोदी सरकार पर डाल देने से वह एक तीर से दो शिकार साध लेते हैं। अपना उद्देश्‍य भी पूरा हो गया और दोष भी मोदीजी के सिर लग गया। जनता में बुरे बने तो मोदीजी। 
पिता:  बेटा, यह पालिटिक्‍स बड़ी टेढ़ी खीर है।
बेटा:   पर पिताजी, केजरीवालजी तो बड़े-बड़े दावे करते फिरते हैं कि उनकी सरकार ने तो इतना काम कर दिखाया है जितना कि अब तक की कोई सरकार नहीं कर पाई है। तो फिर यह सब कुछ मोदीजी के सहयोग के बिना कैसे सम्‍भव हो गया?
पिता:  बेटा, यही तो समझ नहीं आ रहा कि यदि मोदीजी केजरीवाल सरकार को काम ही नहीं करने देते तो जो काम का वह दावा कर रहे हैं, वह कैसे हो रहे हैं?
बेटा:   पिताजी, जब दिल्‍ली में मोदीजी काम नहीं होने दे रहे पर फिर भी होते जा रहे हैं। तो क्‍या यह ईश्‍वर की देन है?
पिता:  यह तो हो सकता है बेटा। ईश्‍वर तो महान् है।
बेटा:   पिताजी, मुझे याद आया कि केजरीवालजी तो कहते थे कि वह ईश्‍वर में विश्‍वास नहीं करते।
पिता:  बेटा तू भूल गया कि बाद में केजरीवालजी ने कह दिया था कि अब उन्‍हें विश्‍वास हो गया है कि ईश्‍वर का भी अस्तित्‍व है। 
बेटा:   उसके बाद जब उन्‍होने देखा कि काम तो दिल्‍ली सरकार में अपने आप ही होते जा रहे हैं?
पिता:  अब तो बेटा, पंजाब में वह दरबार साहिब के दर्शन भी कर आये और मॅाफी भी मांग ली है। 
बेटा:   तब तो पिताजी, आपकी बात ही सच हो गई कि पालिटिक्‍स में आदमी को कई धंधे करने पड़ते हैं।
पिता:  यही नहीं बेटा, आवश्‍यकता पड़ने पर तो गधे को भी बाप बनाना पड़ता है।
बेटा:   आपके कहने का क्‍या मतलब यह है कि केजरीवालजी के मोदीजी पर यह आक्रमण भी पालिटिक्‍स ही है और कुछ नहीं?  
पिता:  यही नहीं तो और क्‍या है? मोदीजी केजरीवालजी के कोई रिश्‍तेदार तो हैं नहीं जो उन्‍होंने आपस में कोई ज़मीन-जायदाद बांटनी है जिसके लिये वह लड़ रहे हैं।   
बेटा:   पर उनकी लड़ाई से तो ऐसा ही आभास मिलता है। 
पिता:  बेटा, सत्‍ता भी तो एक जायदाद ही है जिसको हथियाने के लिये लड़-मर रहे हैं।
बेटा:   अब समझा पिताजी कि क्‍यों लोगों ने पार्टी को ही परिवार में बदल दिया है ताकि सत्‍ता की जायदाद का बंटवारा न हो और परिवार में ही बनी रहे।
पिता:  सीधी सी बात है। नेहरूजी ने सत्‍ता की जायदाद इन्दिराजी को सौंपी। इन्दिराजी ने अपना उत्‍तराधिकारी पहले संजय गांधी को बनाया। उसकी अकस्‍मात् दु:खद मृत्‍यु के बाद अपने बड़े बेटे राजीव को उत्‍तराधिकारी बना दिया।  
बेटा:   पर 1991 में राजीवजी की मृत्‍यु के बाद तो यह श्रंखला टूट गई।
पिता:  कहां टूटी? सोनियाजी ने पांच वर्ष तो लोगों को भ्रम में अवश्‍य रखा पर ज्‍योंहि उन्‍हें मौका मिला तो 1996 में कांग्रेस अध्‍यक्ष की गद्दी सम्‍भाल ली। जब 2004 में अवसर मिला, पहले तो वह प्रधान मन्‍त्री बनने केलिये तैयार थीं पर पता नहीं क्‍या हुआ कि उन्‍होंने गद्दी त्‍याग कर डा0 मनमोहन सिंह को प्रधान मन्‍त्री बना दिया पर सत्‍ता की कूंजी अपने हाथ में रखी ठीक उसी तरह जैसे एक पारम्‍परिक सास बहू कों कहती है कि घर की मालकिन तो अब तू ही है पर किसी चीज़ को हाथ मत लगाना।
बेटा:   पिताजी ठीक उसी तरह जैसे आजकल दिल्‍ली में केजरीवाल सरकार चल रही है। मनमोहन सरकार ने घेटाले और भ्रष्‍टाचार करने में रिकार्ड कायम कर दिया और केजरीवाल सरकार भी कुछ कम नहीं रही। उसके लगभग एक-तिहाई विधायक या तो जेल में हैं या उन पर बदालतों में आपराधिक मामले चल रहे हैं। 
पिता:  हां, यह तो ठीक है। मैंने तो सोशल मीडिया पर यह भी पढ़ा कि एक ने लिखा है कि तिहाड़ जेल के मुखिया ने सरकार बनाने का दावा ठोक दिया है। उसका कहना है कि जो विधायक उसकी जेल में प्रवास कर चुके हैं उन सभी ने उसे समर्थन देने का विश्‍वास दिलाया है।
बेटा:   पर पिताजी केजरीवालजी की एक बात तो सराहनीय है कि उन्‍होंने परिवारवाद को बढ़ावा नहीं दिया।
पिता:  पर तूने यह समाचार नहीं पढ़ा कि केजरीवालजी की धर्मपत्नि ने भी समय पूर्व सेवानिवृति केलिये प्रार्थनापत्र दे दिया है?
बेटा:   तो क्‍या हो गया? वह भी अब जनसेवा करना चाहती होंगी।
पिता:  हां, ठीक उसी तरह जैसे उनके पति कर रहे हैं।
बेटा:   बात तो आपकी ठीक है। चारा घेटाले में जेल चले जाने पर लालूजी ने भी अपनी पत्नि राबड़ीजी को मुख्‍य मन्‍त्री बना कर प्रदेश की सेवा करने का मौका ही तो दिया था।   
पिता:  बेटा, कुछ भी कहो, राबड़ीजी ने सरकार तो बुरी नहीं चलाई थी। 
बेटा:   पिताजी, सरकार केजरीवालजी कौनसी बुरी चला रहे हैं?
पिता:  बात तो तेरी ठीक है। जो ठीक हो जाता है उसे कहते हैं मैंने किया और जहां वह फेल रहते हैं तो कह देते हैं कि मोदीजी नहीं करने दे रहे।
बेटा:   पिताजी, केजरीवालजी तो गला फाड़-फाड़ कर कह रहे हैं कि उनके मन्‍त्री व विधायक निर्दोष व शरीफ हैं। उन्‍होंने कोई अपराध नहीं किया। मोदीजी उन्‍हें बदले की भावना व राजनीतिक प्रतशिोध से उन्‍हें फंसा रहे हैं।
पिता:  बेटा, राजनीति में आने से पूर्व केजरीवालजी को जज तो थे?
बेटा: नहीं। वह तो एक इनकमटैक्‍स अधिकारी थे।
पिता:  तो वह अपने विधयाकें के निर्दोष होने का फैसला कैसे सुना रहे हैं?
बेटा: पिताजी,  ठीक उसी तरह जैसे हर पिता अपने बच्‍चे के निर्दोष होने की दुहाई देता है।   
पिता:  तब अपराध किसने किया?
बेटा: पर यहां उन्‍होंने मोदीजी पर बड़ी कृपा की है। उन्‍होंने यह नहीं कहा है कि अपराध भी मोदीजी ने किया है और फंसा उनके आदमियों को दिया गया है।
पिता:  हां इतनी महानता तो केजरीवालजी ने अवश्‍य दिखाई हैं।
बेटा:   पिताजी, मौसम विभाग ने भविष्‍यवाणी की थी कि इस बार मानसून पहले से अधिक होगी। पर दिल्‍ली में तो यह सच नहीं हो रहा।
पिता:  बेटा, मुझे तो लगता है कि इसमें भी मोदीजी की ही शरारत है। मौसम विभाग केन्‍द्र के अधीन है। मोदीजी दिल्‍ली में वर्षा ही नहीं होने दे रहे जबकि भाजपा शासित प्रदेशों में इन्‍द्रदेव बहुत मेहरबान हैं।
बेटा:   पर पिताजी जब हो रही है तो उससे सारी दिल्‍ली में सड़कों पर पानी इकट्ठा हो जा रहा है जिससे जनता बहुत परेशान हो रही है।            
पिता:  बेटा, यह भी मोदीजी की है शरारत है। वह हर मोड़ पर केजरीवालजी को बदनाम करना चाहते हैं।
बेटा:   पर पितजी, यह तो केजरीवालजी ने कहीं नहीं कहा है।
पिता:  बेटा, वह हमारे मुख्य मन्‍त्री हैं, हमारे नेता हैं। क्‍या हम उनका इतना भी मन नहीं पढ़ सकते? हम उनकी कुछ अनकही बातें भी समझ सकते हैं।
Courtesy: Uday India (Hindi)