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Thursday, September 17, 2015

उन्‍होंने कहा, मैंने सुना और किया

उन्‍होंने कहा, मैंने सुना और किया
मैं फायदे में ही रहा
यह मेरी तारीफ कहिये या कमज़ोरी, पर सच्‍च यह है कि मुझे किसी ने कोई सलाह दी तो मैंने मान ली। मैंने सोचा कि इसमें यदि मुझे कोई लाभ नहीं होगा तो नुक्‍सान भी नहीं होगा।
आज 45 साल से भी अधिक समय से मैं भोजनोपरान्‍त तुरन्‍त पेशाब जाता हूं। मेरे एक बड़े हितैषी आईएऐस बॉस थे। उनकी धर्मपत्नि डाक्‍टर थीं। उन्‍होंने मुझे सलाह दी कि भोजनोपरान्‍त तुरन्‍त पेशाब कर लेना चाहिये। मेरी पत्नि कहती है कि इससे पत्‍थरी होने की सम्‍भावना कम हो जाती है।
मैंने सोचा इसमें बुरा भी क्‍या है
? इसमें मेरा तो कुच्‍छ लगता नहीं है। आज मुझे आदत सी बन गई है। यदि भोजन से पूर्व मैं पेशाब गया भी हूं, मुझे भोजन के बाद अपने आप ही पेशाब आ जाता है। यह मेरी आदत सी बन गई है।
खड़े-खड़े पानी मत पीना
मेरे माता-पिता मुझे सदा टोकते थे कि खड़े-खड़े कभी पानी न पीना। मैंने इसे अपनी गांठ बांध लिया। अब तो कुच्‍छ डाक्‍टर भी यह सलाह देने लगे हैं। यदि इस आदत का कोई फायदा नहीं तो नुक्‍सान भी क्‍या है?
इसी प्रकार मुझे एक रिश्‍तेदार ने कहा कि पेशाब जाने व शौच के तुरन्‍त बाद पानी नहीं पीना चाहिये। मैंने यह भी शुरू कर दिया। अब तो यदि मुझे प्‍यास लगी हो और मुझे पेशाब या शौच भी जाना हो तो मैं पहले पानी पीता हूं और बाकी उसके बाद। मुझे यह पता नहीं कि इसका लाभ क्‍या है पर मैं इतना अवश्‍य जानता हूं कि इसका कोई नुक्‍सान नहीं है। 
गले की चिन्‍ता
मैं सर्दियों में गर्म पानी ही पीता था विशेषकर खाना खाने के बाद। एक बार मुझे याद आया कि मेरे पिताजी भोजन के समय एक लोटा और ग्‍लास पानी का अपने साथ रख कर बैठ स ्‍यास होती है उतना एक-इा ते थे। प्रथम ग्रास मुंह में डालने से पूर्व एक मन्‍त्र बोलते थे। फिर अपनी अंजली में पानी डालकर मन्‍त्र बोलते हुये अपने हा‍थ से अपनी थाली पर घुमा कर अंजलि का पानी पी जाते थे। वह प्रथम ग्रास उसके बाद ही लेते थे। मैंने सोचा यह क्‍यों न मैं भी कर लूं? पर मैंने केवल दो घूंट पानी ही पीना और उसके बाद प्रथम ग्रास लेना शुरू कर दिया।
यह करने के बाद मैंने गर्म पानी पीना बंद कर दिया। अब मैं सर्दियों में भी ठण्‍डा ही पानी पीता हूं। हां, इतना अवश्‍य करता हूं कि जब सर्दी बहुत हो जाये तो पानी को थोड़ा सा गर्म कर लेता हूं, पर इतना ठण्‍डा फिर भी रहने देता हूं जितना ठण्‍डा पानी हम गर्मी के दिनों में पी जाते हैं। अब हालत यह है कि मैं सर्दियों में भी तेल-घी में तली कोई भी चीज़ खाने के बाद ठण्‍डा पानी पी लेता हूं। मेरा गला बहुत ही कम खराब होता है।
इसका मैंने एक वैज्ञानिक आधार व तर्क भी देखा। हमारा गला पानी के बिना सूखा होता है। जब कुछ खाने से पहले हम इसे दो घू्ंट पानी पी कर तर कर देते हैं तो घी-तेल हमारे गले में नहीं टिक पाता और सीधा पेट में जाता है। आप एक प्रयोग कीजिये। फर्श पर एक बूंद तेल या घी फैंक दीजिये। उस पर सूखा कपड़ा रगडि़ये। घी-तेल तो नहीं रहेगा पर उसका दाग़ रह जायेगा। आप जान पायेंगे कि यहां पर तेल-घी गिरा था। फिर उसी सूखे फर्श को पानी से गीला कर दीजिये। उस पर भी एक बूंद घी या तेल फैंक दीजिये। उस स्‍थान को भी सूखे कपड़े से साफ कर लीजिये। फर्श पूरी तरह साफ हो जायेगा और आप यह पहचान भी न कर पायेंगे कि घी-तेल की बूंद आपने कहां गिराई थी। यही होता है जब हम खाना खाने से पहले दो घूंट पानी से अपने गले को तर कर लेते हैं।

मैं एक और सावधानी बर्तता हूं। गर्मियों में बाहर से आओ तो बड़ी प्‍यास लगी होती है। एकदम ठण्‍डा पानी चाहिये फ्रिज के अन्‍दर से। हम गटागट एक-दो ग्‍लास पानी पी कर अपनी प्‍यास शान्‍त कर लेते हैं पर इस चक्‍कर में हमारा गला पकड़ा जाता है। ऐसे समय में मैं पहले दो-तीन घूंट एक-एक कर बारी-बारी 15/20 सैकिंड के लिये अपने मुंह में रख कर उस ठण्‍डे पानी का तापमान बढ़ा देता हूं। फिर बारी-बारी एक-एक कर दो-तीन घूंट पीता हूं। उसके बाद में जितनी प्‍यास होती है उतना एक-दो ग्‍लास गटक जाता हूं। ऐसा करने से मेरे गले को काफी राहत रहती है।