Monday, August 27, 2018

हास्य-व्यंग — आओ हम भी बैंक से मोटा उधर लें



हास्य-व्यंग
        
आओ हम भी बैंक से मोटा उधर लें
बेटा:   पिताजी.
पिता:   हाँ बेटा.
बेटा:    पिताजीआपने मुझे कभी आगे बढ़ने का मौका लेने नहीं दिया. सदा मुझे रोका और  टोका ही.
पिता:   अब क्या हो गया?
बेटा:     मैंने जब कुछ करना चाहाबड़ा बनना चाहा तो आपने सदा अपनी टांग अड़ा दी. मुझे कुछ करने ही नहीं दिया. कभी नहीं चाहा कि आपका बेटा आगे बढेअपना नाम कमाए और परिवार का नाम भी रोशन करे.
पिता:   तू सीधी बात कर. इधर-उधर की बातें कर मुझे वर्गला मत.
बेटा:    पिताजीमैंने आप से बात की थी कि मैं अपना कोई काम करने की लिए बैंक से 50  लाख रुपये उधार लेना चाहता हूँ. पर आपने मुझे तुरंत रोक दिया. टोका कि तू इतने पैसे से करेगा  क्या?
पिता:   बेटाजब तूने इतना बड़ा ऋण लेना था तो तुम्हारे पास उससे क्या करना है उसकी तो कोई रूपरेखा होनी चाहिए न. यह कहना कि पैसा जेब में होगा तो कुछ भी कर लेंगे यह सोच ग़लत है. यही उल्टा काम तुम सदा करते आ रहे हो और विफल रहते हो. 
बेटा:   पिताजीमन में लगन होजेब में पैसा हो और मेहनत करने की कसक हो तो सब काम सफल होता है. पर आप तो करने ही नहीं देते.     
बेटा:   बेटाऋण पर ब्याज की सुई तो घड़ी की सुई की तरह है जो तुम्हारे हाथ में पैसा आने के साथ ही चलनी शुरू हो जाती है. तुमने अभी काम शुरू नहीं कियापर ब्याज की देनदारी तो दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती है. यही कारण है कि तुम्हारी तरह के बहुत से युवक ब्याज का बोझ उठा पाने से पहले ही गिर जाते हैं. मैं ने तो तुम्हें केवल चेतावनी दी थी कि सोच-समझ कर काम करो वरन न तो काम चलेगा और न तुम्हारी योजना  ही कार्यान्वित हो सकेगी.  
बेटा:   यही तो अंतर है कि जो सफल रहे हैं और आगे बढे हैं उनके पिताओं ने आपकी तरह अपने बेटे को काम शुरू करने से पहले ही डराया नहीं. उनका मनोबल नहीं गिराया आप जैसी बातें कर.

पिता:  चल तू ऋण ले भी लेतातो क्या कर लेता

बेटा:   तब मेरा नाम विजय मल्ल्यानीरव मोदीमेहुल चोकसी, ललित मोदी की तरह आज देश के सभी अख़बारों और मीडिया चैनलों में फोटो की साथ छाया होता. आप भी मेरी इस उपलब्धी पर गर्व कर रहे होते. पर आपने मुझे कोई मौका ही लेने नहीं दिया कि मैं भी आपका नाम रौशन कर सकूँ.
पिता:   मुझे तो तेरी बातें समझ ही नहीं आ रहीं. ये लोग तो करोड़ो-अरबों में खेलने वाले व्यक्ति है. तेरा इनसे क्या मुकाबला?
बेटा:   पिताजीमैं भी उनकी तरह ऋण पर ऋण लेता जाता. बैंको को कहता कि मुझे और ऋण दो ताकि मैं आपका पिछला ऋण लौटा सकूं.
पिता:   तेरे कहने का मतलब है कि बैंक आँख मीटे तेरे को भी उनकी तरह ऋण पर ऋण देते जाते और वापसी के कोई बात न करते?
बेटा:   यही तो हुआ है.
पिता:   बैंक इतने मूर्ख हैं कि ऋण वापसी की चिंता किये बग़ैर ऋण पर ऋण देते जाते हैं?
बेटा:    मेरी को क्या पूछते हैंदेखो ललित मोदीनीरव मोदी और अनेकों अन्य के बारे क्या कियाअगर उन्होंने और ऋण देने से पहले यह निश्चित किया होता कि वह पहले के ऋणों की ब्याज सहित वापसी करें तो ये महानुभाव हज़ारों करोड़ ले कर देश के बाहर न भाग पाते बैंकों को ठेंगा दिखा कर?
पिता:   पर तेरे को कैसे सैंकड़े-हज़ारों करोड़ ऋण देते जाते और पहले के ऋणों के मूल तो क्या ब्याज की भी चिंता न करते?
बेटा:   अगर इसकी चिंता करते तो इन बड़े लोगों के पास हज़ारों-करोड़ों ऋण कैसे बकाया हो जातेइसी तरह मे्रे को भी ऋण पर ऋण मिलते जाते.
पिता:   वह तो बड़े लोग हैं बेटा. उनका तू अपने साथ कैसे मुकाबला कर रहा है?
बेटा:   आपको पता है देश में जनतंत्र है. सरकार सबको एक नज़र से देखती है. वह एक नागरिक व दूसरे में भेदभाव नहीं करती और न कर ही सकती है. मैं इन महानुभावों का उदाहरण लेकर बैंकों को अदालत में घसीट कर ले जाता. उनको जवाब देना मुश्किल हो जाता.
पिता: पर तेरे और उन में तो अंतर है.
बेटा:   पिताजीये महानुभाव पहले से ही बड़े नहीं थे. उनके बाप-दादा उनकी तरह महान भी नहीं थे. ये तो इन बैंकों की मेहरबानी है कि आज वह इतने बड़े महानुभाव बन गए. सारे अखबारों और समाचार चैनलों में उनकी बड़ी-बड़ी फोटो के साथ उनका समाचार आता है और उनके कारनामों पर चर्चा होती है. अगर आप मुझे भी ज्यादा नहीं तो एक-आधा करोड़ का उधार उठा लेने देते तो आज मैं भी उनकी उच्च श्रेणी में गिना जाने लगता. पत्रकार बंधू आप से, मेरी माँ से, भाई-बहनों से अपने समाचार पत्रों व मीडिया चैनलों के लिए साक्षात्कार की फरयाद लेकर तुम्हारा दरवाज़ा खडखडाते. आप लोग भी समाचारों की सुर्खियाँ बनते.
पिता:   बेटा, मेरी तो समझ में यह नहीं आ रहा है कि तू कैसे इस ग़लतफैह्मी में जी रहा है कि बैंक तुझ पर भी इसी तरह मेहरबान रहते जितने कि इन सुखियों में आने वाले लोगों पर रहे हैं.
बेटा:   ठीक उसी तरह जैसे वह उन पर रहे हैं. मैंने भी वही हथकंडे अपनाने थे जो उन लोगों ने अपनाये.
पिता:   चलो, मान लिया कि तुझे इतने पैसे किसी तरह मिल ही जाते तो उस धन से तू क्या कर लेता जिसके लिए तूने उनसे उधार लिया था?
बेटा:   वही कुछ जो औरों ने किया है. मैं भी लन्दन, दुबई, पैरिस जैसे अच्छे स्थानों पर आलीशान बंगले, माल आदि खरीद लेता. वहाँ से मुझे अलग आय प्राप्त होती. मैं ऋण के धन को उन्हीं स्थानों पर वहां के बैंकों में जमा करवा देता जैसे औरों ने किया है. एक अकाउंट मैं स्विस बैंक में भी खोल देता जहाँ पैसा सुरक्षित रहता है और किसी को पता भी नहीं चलता.
पिता:  पर जब बैंक तुमसे तकाज़ा करते कि ऋण ब्याज सहित वापस करो तो?
बेटा:   तो मैं वही करता जो मेरे आदर्श नीरव मोदी आदि ने किया है.  
पिता:  मतलब?
बेटा:   मैं चुपचाप भारत ऐसे छोड़ चला जाता जैसे किसी को डसने के बाद सांप सांप अपने बिल में घुस जाता है और लाख ढूँढने पर भी उसका पता नहीं चलता कि वह कहाँ चला गया है.  
पिता:   और हम?
बेटा: मैं आप सबको छोड़ सकता हूँ? मैं आपको, माताजी को और सारे बहन-भाइयों को साथ लेकर जाता. आपको छोड़ जाता तो पुलिसवाले आपको और परिवार को दुखी करते. हम सब लंदन में, अबू धाबी में या फ़्रांस में मौज उड़ाते जबकि पुलिस, प्रवर्तन निदेशालय, व आयकर वाले हमें ढूँढने में जगह-जगह झक मारते फिरते.    
पिता:   बेटा, सरकार के हाथ बहुत लम्बे होते हैं. वह तुझे एक दम दबोच लेंगे. 
बेटा:   पिताजी, जो अफसर बहुत मशहूर ललित-नीरव मोदी और मल्ल्या तक को पिछले कई महीनों में नहीं पकड सके, वह मुझ जैसे अनजान को कैसे ढूंढ सकेंगे?
पिता:   पर बेटा सब से पहले गाज ग़रीब और असहाय पर ही गिरती है. ग़रीब और असहाय तो जेलों में सड़ते है और उन्हें ज़मानत नहीं मिलती जबकि श्री शशि थरूर जी जैसे महान व्यक्ति को मिल जाती है जबकि आरोप दोनों के विरुद्ध एक सामान लगाये होते हैं.
बेटा:   मेरे बारे पिताजी यह बात सच्च नहीं हो पायेगी क्योंकि जांच ऐजेंसियों को मेरे से बड़े मगरमच्छों को पहले पकड़ना है. आखिर में जब मैं विदेश में ढूंढ लिया जाऊँगा और सरकार मेरे प्रत्यर्पण की याचना करेगी तो मैं अपने आदर्श महान व्यक्तियों की तर्ज़ पर आरोप लगाऊँगा कि मुझे भारत में न्याय नहीं मिलेगा.
पिता:  पर आखिर एक दिन पकडे तो जाओगे ही न.
बेटा:   तो क्या? अंत में मैं ही बैंकों को आफर दूंगा कि मुझ से फैसला कर लो. देनदारी होगी 100 करोड़ और उस पर ब्याज ऊपर. में उन्हें कहूँगा कि मैं केवल 80 करोड़ ही दे सकूंगा. मेरे साथ समझौता कर लो. वे मान जायेंगा. कहते हैं न कि भागते चोर की लंगोटी ही सही. समझदार तो यह भी कहते है कि सारा जाता देखिये तो आधा दीजिये बाँट. मेरा क्या गया? सब बैंकों का ही तो था. फायिदे में तो में ही रहूँगा.
पिता:   यह मायाजाल तो मेरी समझ से बाहर है.    
बेटा:   वैसे पिताजी, में तो इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि अपने जीवन में व्यक्ति को कोई बड़ा गड़बड़ घोटाला अवश्य ही कर लेना चाहिए.
पिता:   क्यों?
बेटा:   पिताजी, आजकल जब सत्ता परिवर्तन होता है तो नए शासक सत्ता गंवाए नेताओं के पीछे पड़ जाते हैं उन्हें बहुत प्रताड़ित करते हैं. मुकद्दमे पर मुकद्दमा. सारा परिवार दुखी हो उठता है. यही कारण है कि बहुत से नेता विदेश भाग जाते हैं.
पिता:   भारत के ही नहीं, पाकिस्तान के नेता भी कई सालों तक बाहर रहे और वहीँ से अपनी पालिटिक्स चलते रहे -- स्वर्गीय बेनजीर भुट्टो, उनके पति आसिफ अली ज़रदारी, मुशर्रफ, नवाज़ शरिफ आदि.
बेटा:   इसी लिए तो आजकल बहुत से नेता इसी राह पर चल रहे हैं. वरन वह या भूखे मर जाते या जेलों में सड़ते. अब मैं आपकी कुछ नहीं सुनूंगा. अब मुझे मत रोकना.
पिता:   तू जो चाहे कर, पर मेरे को अंतिम दिनों में जेल में मत सडाना. हमारा पुश्तैनी घर मत बिकवा देना. ***

Saturday, August 25, 2018

हास्य-व्यंग — व्यथा एक नेता की



हास्य-व्यंग
                        व्यथा एक नेता की

मैं  एक नेता हूँ। लोग समझते हैं कि मैं बड़ी मौज में हूँ| ऐश करता हूँ| सरकारी मकान है जिसके लिए मुझ कुछ देना नहीं पड़ता — न किरायान बिजली-पानी का बिल। इस घर में हर सुविधा की वस्तुयें मौजूद हैं मेरे पास — टीवीटेलीफोनमोबाइल फ़ोनफ्रिजगीज़रऔर क्या नहीं — सब सरकार के खर्चे परमतलब जनता के खर्चे पर। आखिर मुझे वोट भी तो जनता ने ही दिए हैं । मैं सेवक भी तो उनका ही हूँ। जनता मेरे लिए सब कुछ करती है और उनके लिए सब कुछ।
आखिर मैं हूँ तो जनता मेरे पास आती है बड़ी उम्मीदें लेकर। मुझे उनसे बड़ी आशाएं हैं। हम सब एक दूसरे से उम्मीदें लेकर जीते हैं। वह मेरा ख्याल रखते हैंमैं उनका। मैं दिन-रात काम भी तो उनके लिए ही करता हूँ। मैं जब जनता के पास जाता हूँतो जनता मेरी बहुत सेवा करती है। मेरे सम्मान में बढ़िया पकवान बनाते हैं। उन्हें पता है कि खाने में मुझे क्या चीज़ बहुत पसंद है। वह वही पकवान बनाती/बनवाती है। पीने के लिए भी वह मेरा बड़ा ध्यान रखती है। सारा मेरी पसंद का ही आता है। सामान लोकल न मिले तो वह दूसरे स्थान से मंगवा लेती है।
जब वह किसी काम के लिए मेरे पास आते हैं तो वह भी मुझ पर बड़ा हक़ जमाते हैं। यह उनका अधिकार भी है। वह मेरे पास ही रुकेंगे और खाये-पिएंगे भी मेरे घर पर । मैं भी उनका ख्याल करता हूँ। कई तो बहुत समझदार होते हैं। वह राशन-पानी भी साथ लेकर आते हैं। वह इतने तो समझदार ही होते हैं कि मेरे घर में जो लंगर-पानी चलता हैउसके लिए वह भी कुछ योगदान  कर देते हैं । एक फायदा उनको भी होता है । वह अपनी पसंद का खाना बनवा लेते हैं । वह भी उसका मज़ा लेते हैं और हम सब भी।
मुझे खाना बनाने के लिएबर्तन साफ़ करने के लिए और घर की सफाई के लिए आदमी रखने पड़े । अगर यह न करता तो मेरी पत्नी तो एक नौकर बन कर ही रह जाती । आखिर वह भी तो एक जन प्रतिनिधी की पत्नी है। हाँ कभी-कभी जब जनता मेरी पत्नी के हाथों से कुछ बढ़िया खाने की फर्याद करते हैं तो हम उनके मन को भी रख लेते हैं। उन्हें आहत नहीं करते और न करना ही चाहिए। फिर दिन रात में 14घंटे के करीब लगातार लंगर चलाये रखने के लिए बहुत इंतज़ाम करना पड़ता है|उसके लिए व्यक्ति भी चाहिए और साधन व कैश भी| ईश्वर सब इंतज़ाम स्वयं भी प्रबंध कर देता है नियत साफ़ होनी चाहिएवह सब हो जाती हैजब बड़े लोग मेरे घर आएंगे और यह सब देखते हैं और लंगर चखते हैं तो उनको अपने आप ही प्रेरणा स्वयं मिल जाती है कि हम भी उसके लिए अपना योगदान करते रहें|
मेरे लिए तो एक और परेशानी खड़ी हो जाती है|  मेरे इन हितैषियों के सामने यदि कभी ग़लती से छींक भी आ जाए तो वह इतने परेशान हो जाते हैं कि भाग कर मेरे लिए दवाई लेकर खड़े हो जाते हैं और ज़ोर डालते हैं कि मैं उनके द्वारा इतने  प्यार और चिंता से लाई गयी दवाई का सेवन अवश्य करेंन खाऊं तो वह बुरा मना जाते हैं कि उन्हों ने इतने स्नेह से मेरा ध्यान किया पर मैंने उनकी इज़्ज़त न की| उनके मन को ठेस पहुँच जाती हैउनका मन मैं भी नहीं टालताखाता जाता हूँ चाहे उससे उल्टे  मुझे ही कोई और बीमारी खड़ी  हो जाये|
पर असल मुसीबत तो तब खड़ी हो जाती है जब मैं गांव और शहर की गलियों में जन संपर्क के लिए घूमता हूँतब तो सब चाहते हैं कि मैं सब के घर को अपने चरणों से पवित्र कर दूँ और जो रूखा-सूखा मैं दूँ मैं सहर्ष कबूल करता जाऊं चाहे अगले दिन मैं बीमार ही क्यों न पड़ जाऊंसब चाहते हैं कि वह जो भी ठंडा-गर्म पेश करें मैं पीता जाऊंयह अलग बात है कि मैं उस कारण सचमुच बीमार ही क्यों न पड़ जाऊंअगर मैंने किसी का मन नहीं रखा तो समझो वह नाराज़ और चुनाव में मुझे वोट नहीं देंगेइसलिए मैं सब कुछ सहर्ष करता जाता हूँ|
यही कारण है कि मैं पदयात्रा के स्थान पर गाँव में जनसभा कर निकल जाता हूँ| पर एक मुसीबत खड़ी हो जाती हैआखिर भाषण के बाद समय अनुसार मुझे कुछ तो खाना-पीना होता हैजिस के घर मैंने खाना खा लिया या ठंडा-गर्म पी लिया तो अन्य मेरे भक्त नाराज़ हो जाते हैंतब मुझे उनको आश्वासन देना पड़ता है कि अगली बार केवल आपके घर ही आऊंगा|
ऐसा नहीं कि जो लोग मुझे मिलना चाहते है मैं उन से मिल लेता हूँकई बार समय की कमी के कारण मुझे दोनों हाथ जोड़ कर क्षमा मांगनी पड़ती हैआखिर मतदाता ही तो सब कुछ हैवह मुझे कुर्सी भी दिला सकता है और खो भी सकता हैइसलिए मैं मतदाता को तो ईश्वर से भी ऊपर समझता हूँ|
ऐसा ही संकट मेरे लिए तब भी खड़ा हो जाता है जब मैं अपने स्वार्थ के लिए किसी बड़े को मिलने जाता हूँमेरे विरुद्ध किसी ने चुनाव याचिका दर्ज कर दी थीउसकी पैरवी केलिए मैंने एक बड़े वकील को कर रखा थाअपने केस की प्रगति का पता करने मुझे अपने वकील के पास जाना पड़ता थामुझे देखते ही वह वकील कह देता था कि मैं अभी व्यस्त हूँफिर आनामैंने भी कच्ची गोलियां नहीं खेल रखीं थींमैं वकील को कह देता था कि मेरे मामले की ओर तो आपका पूरा ध्यान है पर मैं कुछ फीस की और रकम लेकर आया थातब वकील के पास एक दम समय निकल जाता|कहता दो मिनट रुको मैं अभी आप से बात करता हूँ|
मेरी तबीयत खराब थीमैं अस्पताल में भर्ती थाकुछ मेरे प्रशंसक और चिंता करने वाले आये और कहने लगे कि उनके काम के लिए मंत्री के पास चलोमैंने कहा मैं तो बीमार हूँकल ही मुख्य मंत्री व मंत्री मेरे स्वास्थय का हाल चाल पूछने आये थे|इसलिए मैं नहीं जा पाऊँगा वरन वह समझेंगे कि मैं बीमार नहीं कोई ढोंग ही कर रहा हूँदूसरे मैंने कहा कि यह तो देखो कि मैं बीमार हूँवह कहने लगे कि तेरे को कुछ नहीं होगा| हमारी दुआएं आपके साथ हैंईश्वर भी जानता है कि तुम परोपकार के लिए जा रहे होवह आपकी रक्षा करेगामरता क्या न करताचला गयाहुआ वही जिसका मुझे डर थामंत्री ने कहा कि तुम तो बीमार थे इस हालत में कैसे आ गए?मैंने सब बता दिया| वह हंसने लगे और मेरा काम कर दियातब मेरे हितैषी खुश होकर कहने लगे — हम कहते थे न आपको कुछ नहीं होगाऔर मेरा धन्यवाद भी किया कि इस हालत में भी आप चले गए उसके काम के लिए| उन्होंने ने ईश्वर से प्रार्थना की कि मैं शीघ्र ही स्वस्थ हो जाऊं और जनता की सेवा करें|
जब मैं अस्पताल से घर आ गया और डाक्टरों ने मुझे पूरे आराम के सलाह दी तब मेरा हाल-चाल पूछने वालों का तांता  मेरे घर पर लगने लगापहले तो ऐसे आते कि जैसे उन्हें बहुत चिंता हो गयी थीपर जब चाय-नाश्ता हो जाता तो कहते कि मेरे से अपने काम के लिए इस वक्त कहना तो अच्छा नहीं लगता पर फिर देरी हो जाएगी और आप ही कहेंगे कि तूने पहले क्यों नहीं बतायामेरा वह काम अभी नहीं हुआ है|यदि आप एक बार और कह देंगे तो हो जाएगा| हम आपके जल्दी स्वस्थ हो जाने की दुआ करेंगे|
जनता की दुआओं से जीने का अभ्यास तो मुझे हो ही चूका हैअब तो मैं समझता हूँ कि जब मैं ईश्वर को प्यारा हो जाऊँगा तो लोग प्रशंसा में यही कहेंगे कि मुझ जैसे अच्छे आदमी की तो ईश्वर को भी ज़रुरत होती हैमेरी शवयात्रा में शामिल हो कर एक ओर तो राम नाम सत है का नारा लगाएंगे और दूसरी ओर नेता हो तो मुझ जैसा हो के नारे लगाएंगेसाथ ही कुछ यह भी कहने से न चूकेंगे कि मैं मर गया और उसका काम रह गयामैंने कई बार याद कराया पर आज और कल ही करता रहादो दिन बाद मरता तो मेरा काम भी हो जातादूसरा कहता कि राम नाम तो सात है पर मैं ने सोचा कि यह ठीक हो जायेगा तो मैं अपने बेटे की नौकरी लगवा लूँगापर मुझे क्या पता था कि साला इतनी जल्दी मर जायेगाराम नाम तो सात है पर इसको तो भी ध्यान रखने चाहिए था कि हम जैसे उसके भक्तों का काम तो करवा जाताअगर दो दिन बाद मरता तो कौनसा आसमान गिर जाता?  इतना ही बहुत हैऔर क्या सुनाऊँ?
Courtesy: UdayIndia (Hindi) weekly

Tuesday, August 7, 2018

हास्य-व्यंग करिश्में अपराध में राजनीती के


हास्य-व्यंग
       
करिश्में अपराध में राजनीती के

बेटा:  पिताजी.
पिता:  हाँ बेटा.
बेटा:   पिताजी, यह आम धारणा है कि हमारे देश में क़ानून सब केलिए बराबर है. इस में कोई छोटे-बड़े का भेद नहीं रखा जाता है.
पिता:   इसमें तो बेटा कोई शक नहीं है.
बेटा:   फिर यह कैसे है कि कुछ बड़े लोगों को तो अंतरिम ज़मानत एक दम मिल जाती है और कुछ को नहीं?
पिता:   जैसे?
बेटा:   पूर्व वित्त मंत्री पी चिदम्बरम जी को अदालत ने तीन जुलाई तक गिरफ्तार करने से मना कर दिया है. इसी प्रकार सामाजिक कार्यकरता तीस्ता सीतलवाद व उनके सहयोगियों को भी अदालत ने गिरफ्तार करने से मना कर रखा है. पर दूसरी ओर दक्कन हेराल्ड के मालिक व संपादक को पुलिस ने तुरंत गिरफ्तार कर लिया था हालांकि उन पर भी लगभग वही आपराधिक आरोप थे जो तीस्ता पर थे. ऐसे और कई उदहारण बताये जा सकते हैं.
पिता: बेटा, ऐसे तो कई उदाहरण हैं जहाँ अदालत तो उनको ज़मानत देने को तैयार हैं पर उनके पास इतने रुपये या दोस्त-रिश्तेदार नहीं हैं जो उनकी ज़मानत दे सकें. इसी कारण वह आज कई सालों से जेल में सड़ रहे हैं.
बेटा:   मामले ऐसे भी हैं जहां लोगों के पास धन और साधन नहीं हैं अपनी अपील उच्च या सर्वोच्च न्यायलय तक पहुंचाने के लिए.
पिता:  बेटा, यह तो जीवन का यथार्थ है। समानता तो जीवन में न कभी हुई है और न हो ही सकती है। किसी मां और बाप के  बेटे व बे‍टियां न समान हुई हैं और न हो ही सकती हैं। माता-पिता अपने बच्‍चों में भेदभाव नहीं रखते पर फिर भी समानता रह नहीं पाती। असमानता ही तो जीवन का एक यथार्थ है।  फिर कानून की धारा तो एक हो सकती है पर हालात एक नहीं होते। इसी कारण एक मामले में तो सज़ा हो जाती है और दूसरे में अपराधी बरी हो जाता है।
बेटा: यह कैसे?
पिता: यही तो कानून की पेचीदगियां हैं जो आम आदमी की समझ समझ से बाहर हैं। इसी कारण तो बड़े से बड़े, अमीर से अमीर, ग़रीब से ग़रीब और पढ़े या अनपढ़ को भी अदालत में जाने केलिये वकील की सहायता अवश्‍य लेनी पड़ती है।     
बेटा:   और मुंह मांगी फीस भी देनी पड़ती है।
पिता: बेटा, कई लोग तो अपराध करने के लिए इस कारण भी प्रोत्साहित रहते हैं कि उनको अपने वकीलों की योग्यत पर विश्वास रहता है कि अंत में उनके वकील कोर्ट में उन्हें दोषमुक्त साबित कर देंगे और वह ससम्मान बरी हो जायेंगे.
बेटा:   हाँ, तब ऐसे वकीलों को फीस भी मोटी देनी पड़ती है.
पिता:   अब तो एक और प्रचलन शुरू हो गया है. पहले तो किसी के घर पर कोई वर्दी धारक पुलिसवाला यदि आ जाता था तो अडोसी-पडोसी शक करने लगते थे कि उसने क्या किया होगा जो पुलिस उसके घर आ गयी. पर अब तो लोग जब थाने बुलाये जाते हैं, या उन्हें हथकड़ी लगा दी जाती है तो वह ऐसे बर्ताव करते हैं मानो बड़ा भारी कोई काम कर आये हैं जिसका उन्हें इनाम मिलने वाला है. मीडिया कर्मियों के सामने वह दो उँगलियाँ दिखते हैं अपनी जीत की. जो लोग पॉलिटिक्स करते हैं उन्हें जब पुलिस पकड़ कर ले जाती है तो वह तो जनता को ऐसा आभास देते हैं कि उनके राजनीतिक सफर में उनके सिर पर कोई और नया मुकुट सज गया है. अब तो यह भी धारणा बनने लगी है कि जो गिरफ्तार नहीं हुआ उसका तो राजनीतिक जीवन ही व्यर्थ है.
बेटा:  बात तो आपकी ठीक है. जो राजनेता पकड़ा जाता है. अदालत जिसे सज़ा देकर जेल भेज देती है वह तो पॉलिटिक्स में हीरो बन जाता है.   
पिता:    हमारे अनेक विधायक और सांसद जेल से ही चुनाव लड़ते हैं और जीत जाते हैं. वह वहीं जेल से ही जनता की सेवा करते हैं. वहीं से अपनी राजनीती चलाते हैं. बड़े-बड़े दिग्गज नेता तो उन्हें जेल में मिलने आते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. राजनीती और चुनाव की रणनीति और गठजोड़ तय करते हैं. उन्हें तो महसूस ही नहीं होता कि वह जेल में हैं. वह तो समझते हैं कि वह अपने ही घर में हैं.
बेटा:  यह तो ठीक है. राजनितिक लोग तो चुनाव को जनता की अदालत मानते हैं, अगर वह जीत गए तो इसे जनता का उनके उनके निर्दोष होने का फतवा मानते हैं.
पिता:   बेटा, कानून में तो कई और पेचीदगियां भी हैं. मन और कर्म से अपराध में संलिप्त दिग्गज्जो को तो कानून की भी बड़ी जानकारी होती है. अपराध के एक पुराने खिलाड़ी को पता था कि जिस अपराध में उस पर मुकदद्मा चल रहा है उस में ज़्यादा से ज़्यादा सजा छ: मास की ही हो सकती है. जब न्यायाधीश ने उसे छ: मास की सजा सुनायी तो उसने न्यायाधीश पर ही चुटकी ले मारी. बोलै - सर, बस आपकी इतनी ही शक्ति है, उससे ज़्यादा कुछ नहीं?
बेटा:   ऐसी तो एक और घटना है. एक लड़का नया-नया वकील बना था. मैजिस्ट्रेट पर अपने ज्ञान की धाक जमाने के लिए वह बच्चों की तरह फुदक-फुदक कर बात-बात पर खड़ा हो कर बोलता जा रहा था. अंततः मैजिस्ट्रेट ने उसे कहा: बेटा, धैर्य रखो. You are just a child in law. ( तुम अभी कानून में बच्चे ही हो). जवान वकील ने नतमस्तक होकर कहा: Yes,  my  father  in  law.
पिता: इसी तरह एक अनपढ़ गाँव का आदमी अपने गवाही दे रहा था. वकील ने पूछा - आपका नाम? उसने बता दिया. फिर पूछा: पिता का नाम? बोला मेरे पिता का?   मजिस्ट्रेट बोला - अपने बाप का नहीं तो क्या मेरे बाप का नाम बताएगा?
बेटा:   ऐसे ही एक पुरानी सुनाते हैं, पता नहीं सच्च है कि झूठ. कहते हैं कि एक नौजवान नया-नया मजिस्ट्रेट बन गया. पर वह बड़ा परेशान था कि जो भी मुकदद्मा उसके पास आये उसे अंत में रिहा करना पड़े और वह सजा न दे पाए. एक दिन उसे गुस्सा आ गया. उसने कहा कि अपराधी निर्दोष है और उसे रिहा किया जाये और थानेदार को छ: मास की कैद. थानेदार हाथ जोड़ कर बोला: सरकार, मैंने तो कोई अपराध नहीं किया. मजिस्ट्रेट ने फरमाया - अगर तुम अपराध न करो तो इसका क्या मतलब कि मैं अपनी पावर का इस्तेमाल ही न करूँ? ***
Courtesy: UdayIndia (Hindi)
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