हास्य-व्यंग
आओ हम भी बैंक से मोटा उधर लें
बेटा: पिताजी.
पिता: हाँ बेटा.
बेटा: पिताजी, आपने मुझे कभी आगे बढ़ने का मौका लेने नहीं दिया. सदा मुझे रोका और टोका ही.
पिता: अब क्या हो गया?
बेटा: मैंने जब कुछ करना चाहा, बड़ा बनना चाहा तो आपने सदा अपनी टांग अड़ा दी. मुझे कुछ करने ही नहीं दिया. कभी नहीं चाहा कि आपका बेटा आगे बढे, अपना नाम कमाए और परिवार का नाम भी रोशन करे.
पिता: तू सीधी बात कर. इधर-उधर की बातें कर मुझे वर्गला मत.
बेटा: पिताजी, मैंने आप से बात की थी कि मैं अपना कोई काम करने की लिए बैंक से 50 लाख रुपये उधार लेना चाहता हूँ. पर आपने मुझे तुरंत रोक दिया. टोका कि तू इतने पैसे से करेगा क्या?
पिता: बेटा, जब तूने इतना बड़ा ऋण लेना था तो तुम्हारे पास उससे क्या करना है उसकी तो कोई रूपरेखा होनी चाहिए न. यह कहना कि पैसा जेब में होगा तो कुछ भी कर लेंगे यह सोच ग़लत है. यही उल्टा काम तुम सदा करते आ रहे हो और विफल रहते हो.
बेटा: पिताजी, मन में लगन हो, जेब में पैसा हो और मेहनत करने की कसक हो तो सब काम सफल होता है. पर आप तो करने ही नहीं देते.
बेटा: बेटा, ऋण पर ब्याज की सुई तो घड़ी की सुई की तरह है जो तुम्हारे हाथ में पैसा आने के साथ ही चलनी शुरू हो जाती है. तुमने अभी काम शुरू नहीं किया, पर ब्याज की देनदारी तो दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती है. यही कारण है कि तुम्हारी तरह के बहुत से युवक ब्याज का बोझ उठा पाने से पहले ही गिर जाते हैं. मैं ने तो तुम्हें केवल चेतावनी दी थी कि सोच-समझ कर काम करो वरन न तो काम चलेगा और न तुम्हारी योजना ही कार्यान्वित हो सकेगी.
बेटा: यही तो अंतर है कि जो सफल रहे हैं और आगे बढे हैं उनके पिताओं ने आपकी तरह अपने बेटे को काम शुरू करने से पहले ही डराया नहीं. उनका मनोबल नहीं गिराया आप जैसी बातें कर.
पिता: चल तू ऋण ले भी लेता, तो क्या कर लेता?
बेटा: तब मेरा नाम विजय मल्ल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, ललित मोदी की तरह आज देश के सभी अख़बारों और मीडिया चैनलों में फोटो की साथ छाया होता. आप भी मेरी इस उपलब्धी पर गर्व कर रहे होते. पर आपने मुझे कोई मौका ही लेने नहीं दिया कि मैं भी आपका नाम रौशन कर सकूँ.
पिता: मुझे तो तेरी बातें समझ ही नहीं आ रहीं. ये लोग तो करोड़ो-अरबों में खेलने वाले व्यक्ति है. तेरा इनसे क्या मुकाबला?
बेटा: पिताजी, मैं भी उनकी तरह ऋण पर ऋण लेता जाता. बैंको को कहता कि मुझे और ऋण दो ताकि मैं आपका पिछला ऋण लौटा सकूं.
पिता: तेरे कहने का मतलब है कि बैंक आँख मीटे तेरे को भी उनकी तरह ऋण पर ऋण देते जाते और वापसी के कोई बात न करते?
बेटा: यही तो हुआ है.
पिता: बैंक इतने मूर्ख हैं कि ऋण वापसी की चिंता किये बग़ैर ऋण पर ऋण देते जाते हैं?
बेटा: मेरी को क्या पूछते हैं? देखो ललित मोदी, नीरव मोदी और अनेकों अन्य के बारे क्या किया? अगर उन्होंने और ऋण देने से पहले यह निश्चित किया होता कि वह पहले के ऋणों की ब्याज सहित वापसी करें तो ये महानुभाव हज़ारों करोड़ ले कर देश के बाहर न भाग पाते बैंकों को ठेंगा दिखा कर?
पिता: पर तेरे को कैसे सैंकड़े-हज़ारों करोड़ ऋण देते जाते और पहले के ऋणों के मूल तो क्या ब्याज की भी चिंता न करते?
बेटा: अगर इसकी चिंता करते तो इन बड़े लोगों के पास हज़ारों-करोड़ों ऋण कैसे बकाया हो जाते? इसी तरह मे्रे को भी ऋण पर ऋण मिलते जाते.
पिता: वह तो बड़े लोग हैं बेटा. उनका तू अपने साथ कैसे मुकाबला कर रहा है?
बेटा: आपको पता है देश में जनतंत्र है. सरकार सबको एक नज़र से देखती है. वह एक नागरिक व दूसरे में भेदभाव नहीं करती और न कर ही सकती है. मैं इन महानुभावों का उदाहरण लेकर बैंकों को अदालत में घसीट कर ले जाता. उनको जवाब देना मुश्किल हो जाता.
पिता: पर तेरे और उन में तो अंतर है.
बेटा: पिताजी, ये महानुभाव पहले से ही बड़े नहीं थे. उनके बाप-दादा उनकी तरह महान भी नहीं थे. ये तो इन बैंकों की मेहरबानी है कि आज वह इतने बड़े महानुभाव बन गए. सारे अखबारों और समाचार चैनलों में उनकी बड़ी-बड़ी फोटो के साथ उनका समाचार आता है और उनके कारनामों पर चर्चा होती है. अगर आप मुझे भी ज्यादा नहीं तो एक-आधा करोड़ का उधार उठा लेने देते तो आज मैं भी उनकी उच्च श्रेणी में गिना जाने लगता. पत्रकार बंधू आप से, मेरी माँ से, भाई-बहनों से अपने समाचार पत्रों व मीडिया चैनलों के लिए साक्षात्कार की फरयाद लेकर तुम्हारा दरवाज़ा खडखडाते. आप लोग भी समाचारों की सुर्खियाँ बनते.
पिता: बेटा, मेरी तो समझ में यह नहीं आ रहा है कि तू कैसे इस ग़लतफैह्मी में जी रहा है कि बैंक तुझ पर भी इसी तरह मेहरबान रहते जितने कि इन सुखियों में आने वाले लोगों पर रहे हैं.
बेटा: ठीक उसी तरह जैसे वह उन पर रहे हैं. मैंने भी वही हथकंडे अपनाने थे जो उन लोगों ने अपनाये.
पिता: चलो, मान लिया कि तुझे इतने पैसे किसी तरह मिल ही जाते तो उस धन से तू क्या कर लेता जिसके लिए तूने उनसे उधार लिया था?
बेटा: वही कुछ जो औरों ने किया है. मैं भी लन्दन, दुबई, पैरिस जैसे अच्छे स्थानों पर आलीशान बंगले, माल आदि खरीद लेता. वहाँ से मुझे अलग आय प्राप्त होती. मैं ऋण के धन को उन्हीं स्थानों पर वहां के बैंकों में जमा करवा देता जैसे औरों ने किया है. एक अकाउंट मैं स्विस बैंक में भी खोल देता जहाँ पैसा सुरक्षित रहता है और किसी को पता भी नहीं चलता.
पिता: पर जब बैंक तुमसे तकाज़ा करते कि ऋण ब्याज सहित वापस करो तो?
बेटा: तो मैं वही करता जो मेरे आदर्श नीरव मोदी आदि ने किया है.
पिता: मतलब?
बेटा: मैं चुपचाप भारत ऐसे छोड़ चला जाता जैसे किसी को डसने के बाद सांप सांप अपने बिल में घुस जाता है और लाख ढूँढने पर भी उसका पता नहीं चलता कि वह कहाँ चला गया है.
पिता: और हम?
बेटा: मैं आप सबको छोड़ सकता हूँ? मैं आपको, माताजी को और सारे बहन-भाइयों को साथ लेकर जाता. आपको छोड़ जाता तो पुलिसवाले आपको और परिवार को दुखी करते. हम सब लंदन में, अबू धाबी में या फ़्रांस में मौज उड़ाते जबकि पुलिस, प्रवर्तन निदेशालय, व आयकर वाले हमें ढूँढने में जगह-जगह झक मारते फिरते.
पिता: बेटा, सरकार के हाथ बहुत लम्बे होते हैं. वह तुझे एक दम दबोच लेंगे.
बेटा: पिताजी, जो अफसर बहुत मशहूर ललित-नीरव मोदी और मल्ल्या तक को पिछले कई महीनों में नहीं पकड सके, वह मुझ जैसे अनजान को कैसे ढूंढ सकेंगे?
पिता: पर बेटा सब से पहले गाज ग़रीब और असहाय पर ही गिरती है. ग़रीब और असहाय तो जेलों में सड़ते है और उन्हें ज़मानत नहीं मिलती जबकि श्री शशि थरूर जी जैसे महान व्यक्ति को मिल जाती है जबकि आरोप दोनों के विरुद्ध एक सामान लगाये होते हैं.
बेटा: मेरे बारे पिताजी यह बात सच्च नहीं हो पायेगी क्योंकि जांच ऐजेंसियों को मेरे से बड़े मगरमच्छों को पहले पकड़ना है. आखिर में जब मैं विदेश में ढूंढ लिया जाऊँगा और सरकार मेरे प्रत्यर्पण की याचना करेगी तो मैं अपने आदर्श महान व्यक्तियों की तर्ज़ पर आरोप लगाऊँगा कि मुझे भारत में न्याय नहीं मिलेगा.
पिता: पर आखिर एक दिन पकडे तो जाओगे ही न.
बेटा: तो क्या? अंत में मैं ही बैंकों को आफर दूंगा कि मुझ से फैसला कर लो. देनदारी होगी 100 करोड़ और उस पर ब्याज ऊपर. में उन्हें कहूँगा कि मैं केवल 80 करोड़ ही दे सकूंगा. मेरे साथ समझौता कर लो. वे मान जायेंगा. कहते हैं न कि भागते चोर की लंगोटी ही सही. समझदार तो यह भी कहते है कि सारा जाता देखिये तो आधा दीजिये बाँट. मेरा क्या गया? सब बैंकों का ही तो था. फायिदे में तो में ही रहूँगा.
पिता: यह मायाजाल तो मेरी समझ से बाहर है.
बेटा: वैसे पिताजी, में तो इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि अपने जीवन में व्यक्ति को कोई बड़ा गड़बड़ घोटाला अवश्य ही कर लेना चाहिए.
पिता: क्यों?
बेटा: पिताजी, आजकल जब सत्ता परिवर्तन होता है तो नए शासक सत्ता गंवाए नेताओं के पीछे पड़ जाते हैं उन्हें बहुत प्रताड़ित करते हैं. मुकद्दमे पर मुकद्दमा. सारा परिवार दुखी हो उठता है. यही कारण है कि बहुत से नेता विदेश भाग जाते हैं.
पिता: भारत के ही नहीं, पाकिस्तान के नेता भी कई सालों तक बाहर रहे और वहीँ से अपनी पालिटिक्स चलते रहे -- स्वर्गीय बेनजीर भुट्टो, उनके पति आसिफ अली ज़रदारी, मुशर्रफ, नवाज़ शरिफ आदि.
बेटा: इसी लिए तो आजकल बहुत से नेता इसी राह पर चल रहे हैं. वरन वह या भूखे मर जाते या जेलों में सड़ते. अब मैं आपकी कुछ नहीं सुनूंगा. अब मुझे मत रोकना.
पिता: तू जो चाहे कर, पर मेरे को अंतिम दिनों में जेल में मत सडाना. हमारा पुश्तैनी घर मत बिकवा देना. ***