Sunday, April 30, 2017

हास्‍य-व्‍यंग --- जीते तो हम स्‍वयं, हारे तो हराये ईवीएम ने

हास्‍य-व्‍यंग
         कानोंकान नारदजी के
जीते तो हम स्‍वयं, हारे तो हराये ईवीएम ने

बेटा:   पिताजी।
पिता:  हां, बेटा।
बेटा:   पिताजी, मैंने अपने एक दोस्‍त से सुना है कि हिमाचल के एक मन्‍त्री कहते थे कि ईश्‍वर से बड़ा कोई सियासतदान नहीं है।
पिता:  बेटा, इसमें नई बात क्‍या है? सियासत तो क्‍या किसी भी विधा में ईश्‍वर से बड़ा कोई हो ही नहीं सकता।
बेटा:   यह बात तो है, पिताजी।
पिता:  पर यह उन्‍होंने कहा क्‍यों और किस सन्‍दर्भ में?
बेटा:   उनका कहना था कि जब कोई व्‍यक्ति मरता है तो सभी कह देते हैं कि उसकी दुर्घटना हो गई, उसकी हृदयगति बन्‍द हो गई, उसे कैंसर हो गया था, आदि आदि।
पिता:  हां, यह तो कहते हैं। पर इसमें नया क्‍या है?
बेटा:   उनका तर्क यह था कि जब ईश्‍वर की मर्जी से पत्‍ता नहीं हिल सकता तो कोई व्‍यक्ति उसकी इच्‍छा के बिना मर कैसे सकता है? लोग क्‍यों नहीं कहते कि इसे ईश्‍वर ने मारा है?
पिता:  बेटा, यही विधान हज़ारों सालों से चला आ रहा है। यह ऐसे ही चलेगा।
बेटा:   पिताजी, फिर लोग दिल्‍ली के मुख्‍य मन्‍त्री केजरीवालजी के उस कथन की क्‍यों खिल्‍ली उड़ा रहें हैं जिस में उन्‍होंने कहा कि उनकी आप पार्टी को पंजाब व गोवा के हाल के चुनावों में जनता ने नहीं मोदीजी की ईवीएम मशीनों ने हराया? 
पिता:  यदि ऐसा है तो बेटा, पंजाब में उनके बीस विधायक कैसे जीत गये?
बेटा:   यह तो वह ही जानें। यह प्रश्‍न तो मेरी समझ से बाहर है।
पिता:  वोट किसने डाले --- जनता ने या मशीन ने?
बेटा:   पिताजी, वोट तो जनता ने ही डाले।
पिता:  तो मशीन ने कैसे हराया?
बेटा:   क्‍योंकि वहां एनडीए की सरकार थी।
पिता:  तेरा मतलब वहां की और केन्‍द्र की एनडीए सरकारों दोनों ने मिलकर अपनी ही सरकार को हरा दिया।
बेटा:   पिताजी, मुझे यह समझाइये कि आप कैसे हार गई जब जनता जानती थी कि केजरीवालजी पंजाब को भी दिल्‍ली की तरह नशामुक्‍त स्‍वर्ग बना कर रख देंगे?
पिता:  तेरा मतलब दिल्‍ली नशामुक्‍त स्‍वर्ग है?
बेटा:   हां, पिताजी हां।
पिता:  कैसे?
बेटा:   केजरीवालजी कहते हैं।
पिता:  क्‍योंकि केजरीवालजी ने कह दिया तो दिल्‍ली नशामुक्‍त और ड्रगमुक्‍त हो गया।
बेटा:   पिताजी, केजरीवालजी कोई साधारण व्‍यक्ति नहीं हैं। वह आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा हैं और राष्‍ट्रीय राजधानी दिल्‍ली के मुख्‍य मन्‍त्री।
पिता:  मेरे को दिल्‍ली के उस गली-मुहल्‍ले का नाम बता जहां शराबी-नशेड़ी नहीं हैं। फिर अब तो केजरीवालजी दिल्‍लीवासियों पर और भी मेहरबान हो गये हैं। अभी तक यह आदेश तो वह दे नहीं पाये कि राजधानी में पानी की कमी नहीं होनी चाहिये पर यह आदेश अब पिछले दिनों जारी कर दिये है कि दिल्‍ली में शराब की कमी नहीं होनी चाहिये। सचमुच ही केजरीवालजी दिल्‍ली को नशामुक्‍त कर के ही सांस लेंगे।
बेटा:   पर पिताजी, यह भी तो सत्‍य है कि पंजाब की जनता तो चाहती थी कि वहां केजरीवालजी की आप पार्टी ही की सरकार बने। जनता ने तो वोट डाले पर ईवीएम मशीनों ने नतीजे कुछ और ही निकाले।   
पिता:  यही भाषा और दावा तो हर उस पार्टी और हर उस प्रत्‍याशी का होता है जो चुनाव में खड़ा होता है। सभी कहते हैं कि मैं अपने विरोधियों की ज़मानत ज़ब्‍त करवा दूंगा। कोई नहीं कहता कि मैं हार जाऊंगा। पर क्‍या सब के सब ही जीत जाते हैं?   
बेटा:   पर पिताजी, केजरीवालजी तो देश के सब से लोकप्रिय नेता हैं। सारा देश उनको सिर-आंखों पर बिठाता है।
पिता:  तभी वाराणसी में पिछले लोक सभा चुनाव में उनकी ज़मानत ज़ब्‍त हो गई थी। दिल्‍ली की राजौरी गार्डन विधान सभा सीट से त्‍यागपत्र दिल्‍वाकर जिसे पंजाब में तत्‍कालीन मुख्‍य मन्‍त्री प्रकाश सिंह बादलजी के विरूद्ध चुनाव लड़ाया उसकी ज़मानत ज़ब्‍त हो गई। जब बाद में राजौरी गार्डन में उपचुनाव हुआ तो भी आप उम्‍मीदवार की ज़मानत ज़ब्‍त हो गई।   
बेटा:   पिताजी, उसका स्‍पष्‍टीकरण तो पार्टी दे ही चुकी है। जिस व्‍यक्ति को पंजाब से चुनाव लड़वाया वह विधायक दिल्‍ली के राजौरी गार्डन क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय था। इस लिये जनता में आक्रोश था कि उसे पंजाब क्‍यों ले जाया गया और आप प्रत्‍याशी को हरा दिया।   
पिता:  अच्‍छा, तो अब केजरीवालजी मानने लगे हैं कि जनता वोट उनको नहीं पार्टी के प्रत्‍याशियों को देती है।
बेटा:   पिताजी, आपकी बाल की खाल उतारने वाली आदत गई नहीं।
पिता:  चल उसे छोड़। तुझे याद है कि जब केजरीवालजी ने आम आदमी पार्टी बनाई थी तो शुरू-शुरू में जनता के पास डींगें मारते थे कि यह भाजपा, कांग्रेस व अन्‍य पार्टियां नहीं, यह आपकी अपनी पार्टी है जिसमें निणर्य हम नहीं, आम जनता लेगी। जनता फैसला करेगी कि विधान सभा व लोक सभा के लिये पार्टी का प्रत्‍याशी कौन होगा।
बेटा:   हां, यह तो मुझे भी याद है।
पिता:  अब तो उनकी पार्टी यह दावा कर रही है कि राजौरी गार्डन की जनता में आक्रोश था कि उनके विधायक से त्‍यागपत्र दिलवा कर उसे पंजाब में चुनाव क्‍यों लड़वा दिया। तो केजरीवालजी बतायें कि क्‍या पार्टी ने उस आदर्श को तिलांजलि दे दी है और वह भी दो साल के भीतर ही और अब वह भी एक तानाशाह सर्वेसर्वा बन बैठे हैं जो जनता की भावनाओं का आंकलन नहीं करते और जनभावना का आदर किये बग़ैर स्‍वयं ही निर्णय लेते हैं?       
बेटा:   पिताजी, आपको तो पता पालिटिक्‍स में कई पापड़ बेलने पड़ते हैं।  उनकी लोकप्रियता का कोई सानी नहीं है।
पिता:  हां, केजरीवालजी भी अब राहुलजी की श्रेणी में आ गये हैं। दोनों की लोकप्रियता अपरमपार है पर उनके कहने पर कोई वोट नहीं देता।
बेटा:   पिताजी, वोट तो केजरीवालजी की पार्टी को बहुत पड़े। पंजाब की जनता तो उन्‍हें वहां का मुख्‍य मन्‍त्री भी देखना चाहती थी।     
पिता:  दिल्‍ली के लोग उनसे ऊब चुके हैं?
बेटा:   नहीं, पिताजी वह तो दिल्‍ली की जनता की तो आंख के तारे हैं। उन्‍होंने ही तो उन्‍हें सीधे मुख्‍य मन्‍त्री बनाया।
पिता:  यदि वह पंजाब में जीत जाते तब तो वह स्‍वतन्‍त्र भारत के इतिहास में दो राज्‍यों का एक साथ मुख्‍य मन्‍त्री होने का इतिहास रच देते क्‍योंकि वह तो इतने लोकप्रिय हैं कि न उन्‍हें दिल्‍ली वाले छोड़ने को तैया‍र होते और न पंजाब वाले।
बेटा:   पिताजी, आप केजरीवालजी का मज़ाक उडाने का प्रयास मत करो। वह जन-जन के नेता हैं। कल को आप ही पछताओगे।
पिता:  तू मेरे को धमकी दे रहा है?
बेटा:   पिताजी, मैं आपको कभी धमकी दे सकता हूं? आप ऐसा कैसे सोच लेते हैं? मैं तो साधारण सी बात कर रहा था।
पिता:  चल, अब बता एमसीडी चुनाव में क्‍या हुआ? वहां तो आप को भाजपा से एक-चौथाई सीटे भी नहीं मिलीं।
बेटा:   पिताजी, केजरीवालजी तो भविष्‍यद्रष्‍टा हैं इसीलिये उन्‍होंने एक दिन पहले ही कह दिया था कि चुनाव में अभूतपूर्व रिग्गिंग ही गई है। यदि आप जीती तो यह जनता ने जताया और यदि विजय हुई भाजपा की तो यह ईवीएम का कमाल है। और यही हुआ। आप नेता गोपाल राय ने तो कह ही दिया है कि यह भाजपा के पक्ष में ईवीएम की लहर है।
पिता:  तो ईवीएम ने सारी की सारी सीटें भाजपा की झोली में क्‍यों न डाल दीं?
बेटा:   यह भी गहरी चाल थी। यदि ऐसा कर दिया जाता तब तो भाजपा का सारा षड़यन्‍त्र ही नंगा हो जाता।
पिता: इसका अभिप्राय तो यह हुआ कि आप को जी भी सीटें मिली हैं वह अपने और जनता के समर्थन से नहीं, मोदीजी और ईवीएम की मेहरबानी से मिलीं।
बेटा:   जो भी अर्थ निकालो पर सच्‍चाई तो सच्‍चाई ही है।
पिता:  आप पार्टी ने तो इस चुनाव परिणाम को नकार दिया है। वह इसे स्‍वीकार ही नहीं करती। तो ऐसी स्थ्‍िाति में वह पार्टी के उन पार्षदों की जीत को कैसे स्‍वीकार करेगी जिनको ईवीएम ने विजयी घोषित कर दिया है?
बेटा:   यह तो अवश्‍य सोचने की बात है। केजरीवालजी ज़रूर इस पर गम्‍भीरता से विचार कर रहे होंगे।
पिता:  यह तो मैं मानता हूं कि केजरीवालजी अपने आदर्शें और असूलों के बहुत पक्‍के आदमी हैं। जब उन्‍होंने ईवीएम मशीनों द्वारा पहले पंजाब, गोवा और अब जब दिल्‍ली के एमसीडी के चुनाव परणिामों को मानने से इनकार कर दिया है तो वह दिल्‍ली और पंजाब में थोड़ी से जीत को स्‍वीकार नहीं करेंगे और अपने विधायकों और पार्षदों की जीत को भी स्‍वीकार नहीं करेंगे।    
बेटा:   यह तो पिताजी ठीक है। यह तो नहीं हो सकता ना कि जीत हमारी और हार तुम्‍हारी।
पिता:  बेटा, केजरीवालजी व पार्टी भी तो 2015 में ईवीएम की कोख से पैदा हुये थे और दिल्‍ली विधान सभा की 70 में से 67 सीटें जीते थे। क्‍या वह उसे भी नकार देंगे?
बेटा:   वह पिताजी, कुछ भी कर सकते हैं। उन्‍होंने पहले भी तो मुख्य मन्‍त्री पद से त्‍यागपत्र दे दिया था। सत्‍ता से उनका कोई लगाव नहीं है और वह उसे हाथ की मैल समझते हैं जिसे वह जब चाहें धो डालें।

पिता:  चलो देखते हैं। पर अब तो लगता है कि हमारे सांइंदानों को किसी ऐसी गोली का आविष्‍कार करना होगा जिसे खाकर हमारे चुनाव प्रत्‍याशी हार को पचा सकें। नामांकन के समय इसका सेवन करना चुनाव आयोग को भी आवश्‍यक बनाना होगा।       ***  

Friday, April 14, 2017

EVMs:The Last straw for drowning Kejri-Mayawati


 


EVMs: The last straw for drowning Kejri-Mayawati

By Amba Charan Vashishth

It is travesty of Indian politics that if a person wins an election, he gives credit to his popularity. If he loses, he puts the blame on opponents.
 Most our political parties seem to have developed allergy to digest electoral defeat. Not many possess sportsman spirit to accept the reality of defeat. EVMs are handy scapegoats.
The just concluded assembly elections in Punjab and UP have thrown up two leaders — BSP supremo Ms Mayawati in UP and AAP supremo and Delhi CM Kejriwal in Punjab — who are not willing to open their eyes to the glaze of the drubbing.
It looks Kejriwal had the premonition of his party not being favoured for power by the Punjab electorate. That is why immediately after polling he started making ground by alleging lack of security of EVMs. The Election Commission (EC) made spot inspections and declared that these were safe. The AAP leaders, according to Press reports, had also put their own volunteers round-the-clock to keep a watch if any attempt from outside was made to tamper with EVMs.
Kejriwal has earned the distinction of being a leader who can make any allegations without taking the trouble of collecting proof.  Before counting for Delhi assembly elections in 2015, he had alleged massive rigging to defeat his party. When he won 37 of 40 seats, he forgot his own words. Does Kejriwal owe his party’s unprecedented majority to the “rigging” he alleged?
Mayawati and Kejriwal are the product of EVMs which threw them into power — Ms Mayawati in 2007 and Kejriwal in 2015. When the results were favourable, these very EVMs, to them, reflected the true will of the people. When the outcome was opposite, these looked tampered and defective to them.
          Their action is akin to that of a spoiled child for whom his mother is a goddess incarnate as long as she continues to dote on him ignoring and hiding all his faults, failures and misdemeanours. But the moment she starts scolding and threatening him for all his shortcomings, she turns a dayan(witch).
In the past, when elections were conducted using paper ballots, there were allegations of mass rigging, booth capturing and preventing certain sections of people from exercising their right to franchise. It was to overcome these problems that the EC gradually replaced paper ballots with EVMs. In the past and recently too, doubts have been raised on the efficacy and reliability of these machines. These were got inspected by experts who certified these as tamper-proof.
Law and investigations proceed on the strength of proof and not on the basis of suspicions and hearsay using words like “may” and “could have been”. Both Ms Mayawati and Kejriwal have not come out with specific allegations regarding EVMs in a particular booth or constituency. Their allegations are general, of the nature anyone can make. They should have come out with concrete allegations and proof.
Needless to mention that just within a week of hurling such wild allegations, Kejriwal on March 18 told his party workers in Delhi: "We are not Napoleon to win election after election, cover territories". Is he not contradicting himself?
Our leaders definitely need to take steps to keep high the morale of party workers but not at the cost of defaming a machinery and institution. It is certainly not a moral and healthy politics. It is dangerous to the institution of elections and democracy which we, otherwise, swear to protect at all costs.   *** 
The writer is a political analyst.
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Saturday, April 8, 2017

Sidhu in a comedy show -- How much Money does a Punjab Minister need?


Sidhu in a comedy show
How much Money does a Punjab Minister need?

By Amba Charan Vashishth


Noted Russian novelist Leo Tolstoy in one of his famous short stories posed the question: How Much Land does a Man Need? On that analogy arises the query:  How much money does a Punjab Minister, including the new Minister Navjot Singh Sidhu, need to make both ends meet?
This question gained currency because of the decision of Sidhu that to continue to work for his popular ‘The Kapil Sharma Show’ on television, claiming it was “not office of profit”. He added, “Sometimes I work all 7 days from early morning till 6 pm. So, what I do after 6 pm is nobody's business.”
A jurist has rightly opined that what Sidhu continues to do even after being a minister holding a constitutional office may not be a crime but it certainly militates against the canons of morality.
Courts have repeatedly declared ministers to be public servants. They can be called for duty any time of the day and night depending upon the exigencies. If a bus or train accident, a terror strike or a murder takes place at the dead of night or even later, the administration including minister in charge have to be on their toes even at that odd hour.  So, the Sidhu doctrine “what I do after 6 pm is nobody's business” hardly holds water. Can – and should – Sidhu refuse to perform his duty at odd hours in such an emergent situation?
That is also a far-fetched argument. Why has, then, new Punjab government not withdrawn the ban on private practice by doctors? They also do it after their normal duty hours.
In that case, if a minister or official visits a brother, accepts bribe at his residence, takes part in gambling or other criminal or immoral activities, it is “nobody’s business.
He justifies his TV escapades saying “I do TV appearances to earn money to support my family and run my home."   He said do his critics mean that he “should stop earning?"
Supporting Sidhu’s arguments, Chief Minister Capt. Amrinder Singh said,
"How does one live without adequate income? Do they (those opposing Sidhu's appearance on the TV show) want to make ministers corrupt (by stopping them from earning their livelihood)?"
Do the Punjab CM and his minister mean that the Cabinet ministers are so poorly paid that they cannot make their two ends meet with their ‘meagre’ salary and perks?
``        In Punjab a cabinet minister gets a salary of Rs. 50,000 per month plus a luxury of a fully furnished and provided government bungalow, staff, government vehicle, free water and electricity, no income tax and much more.

Our minister’s claim themselves to be the “servants of the people” whose per capita income according to 2013-14 statistics is Rs 92,638 in Punjab.  If a minister drawing a salary of Rs. 6 lakhs a month plus perks, in the opinion of Punjab CM, needs to raise money for “their livelihood” from other sources, what should the people of Punjab, class IV to Class I officers earning  much less salary do to earn “their livelihood” to run their households?  
What other means will those Punjab ministers adopt to earn their "living" who are not appearing in comedy shows?                                                             ***
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