Monday, July 18, 2022
अग्निपथ पर अग्नि -- बेरोज़गार युवकों को नहीं चाहिए रोज़गार?
अग्निपथ पर अग्नि
बेरोज़गार युवकों को नहीं चाहिए रोज़गार?
— अम्बा चरण वशिष्ठ
अग्निपथ योजना पर भड़की अग्नि का औचित्य समझ नहीं आ रहा । एक ओर तो हमारे बेरोज़गार नवयुवक नौकरी के लिए बेताब है। उन्हें दर-दर की ठोकरें खानी पड़ती है । बहुतों के हाथ मायूसी ही लगती है। समय-समय पर प्रदर्शन कर वह सरकार को चेताते भी रहते हैं कि वह उनके लिए कुछ कर दिखाए। विरोधी दल भी इस विषय पर सरकार के कान खींचते रहते हैं, मानों कि जब केंद्र व राज्यों में उनकी सरकारें थीं तब देश और प्रदेशों में न बेरोज़गारी थी और न निर्धनता | उनके कार्यकाल में महंगाई नाम की कोई चीज़ थी ही नहीं ।
1971 के चुनाव में तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने देश में "गरीबी हटाओ" का नारा दिया था। इस नारे पर उन्हें केंद्र और प्रदेशों के चुनाव में भारी जीत मिली . उसके बाद 13 वर्ष तक सत्ता में रहीं पर इस दौरान ग़रीब और ग़रीब होते गए और अमीर और अमीर होते गए।
कई बार ऐसे समाचार भी छपते रहते हैं कि एक चपड़ासी की नौकरी पाने केलिए एम् ए तक की डिग्री प्राप्त युवक भी इस पद को पाने के लिए मारे फिरते है। उन्हें अपनी डिग्री की परवाह नहीं। उन्हें तो बस कोई भी नौकरी मिलनी चाहिए ताकि उनको बेरोज़गारी के अभिशाप से मुक्ति मिल सके। उन्हें तो सब कुछ कबूल है जिस से कि वह अपना जीवन यापन कर सकें और अपने माता-पिता पर से अपनी बेरोज़गारी का बोझ उतार सकें चाहे कुछ समय केलिए ही हो।
दूसरी ओर, सबने पिछले कुछ दिनों में अजीब घटनाएं देखी होंगी । सरकार ने एक अग्निपथ योजना की घोषणा की जिसके अनुसार बेरोज़गार युुवाओं को भारत की सेना के तीनों अंगों में चार वर्ष के लिए रोज़गार का प्रावधान किया गया है । यही नहीं, चार वर्ष के बाद सेना के तीनों अंगों में उनके लिए रोज़गार उपलब्ध करवाने के लिए आरक्षण का प्रावधान भी रखा गया है। इतना सब कुछ होने के बावजूद ये कौन से बेरोज़गार थे जिन्हें अपनी नौकरी नहीं, सड़कों पर वाहनों, रेल गाड़ियों तथा अन्य सरकारी और ग़ैर-सरकारी संपत्ति को अग्नि को समर्पित करने का काम मिल गय जिसमें उन्हें कोई पगार नहीं मिली। ये कौनसे बेरोज़गार प्राणी थे जिन्हें रोज़गार का अवसर नहीं, हुड़दंग मचाने का काम चाहिए था। इसका मतलब तो यह निकला है कि हमारे इन युवकों को अपने हाथों केलिए काम नहीं आग फैलाने केलिए साधन चाहिए। रोज़गार तो उनके लिए एक हॉबी होगी।
प्रश्न तो यह भी उठता है कि क्या सरकारी व निजी संपत्ति की होली जलाकर उपद्रवियों केलिए रोज़गार उत्पन्न हो गए? ऐसे काम से उन्हें क्या मिला? मिला तो उन राजनीतिक दलों को भी कुछ नहीं जो इस विषय पर भड़की आग को हवा दे रहे हैं। तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने तो अब साफ़ कर दिया है कि जो भी लोग भर्ती के लिए अपने प्रार्थनापत्र भेजेंगे उन्हें साथ में एक शपथपत्र भी संलग्न करना होगा कि उन्होंने इन उपद्रवी घटनाओं में किसी प्रकार से भी भाग नहीं लिया था। उन युवाओं केलिए तो अब 'घर फूँक तमाशा देखने" वाली स्तिथि बन गयी है । ऐसी अवस्था में नुक्सान किसका हुआ — न उन्हें उकसाने वाले किसी व्यक्ति का, न किसी राजनीतिक दल का और न किसी समाजविरोधी संगठन का। यदि नुक्सान में कोई रहा तो बेचारा वह युवक जिसकी भावनाओं को भड़काकर इन अनैतिक लोगों ने बेरोज़गारों के कंधे पर निशाना रख कर आग के शोले भड़का कर अपने स्वार्थ का उल्लू सीधा करने का प्रयास किया। सब से बड़ा नुक्सान तो देश का हुआ जब सरकारी और निजी संपत्ति को आग के हवाले कर दिया गया .
एक और बात समझ ने नहीं आ रही है। जहाँ तक आम व्यक्ति की सोच है, यथार्थ तो यह है कि बेरोज़गार जिसको चार क्या, एक-दो मॉस केलिए भी काम मिल जाये तो वह न नहीं करता। कई बार अल्पसमय का रोज़ग़ार भी जीवन में उनके भविष्य केलिए वरदान बन जाता है। यही नही, बेरोज़गार रहने के स्थान पर कुछ समय केलिए रोज़गार किसको कड़वा लगता है ? कहते हैं कि ज़बरदस्ती किसी के मुंह में डाला मीठा पताशा किसीको कैसे कड़वा लग सकता है ?
यदि यह अग्निपथ योजना किसी को नहीं भाति तो यह योजना किसी पर ज़बरदस्ती तो थोपी जा नहीं रही है . किसी को अच्छी नहीं लगती तो वह इसमें भर्ती न हो . हिंसक विरोध प्रदर्शन की क्या आवश्यकता है?
जो कुछ आगज़नी के मामले सामने आये, उसके सूत्रधार बेरोज़गार नहीं, उनको भड़काने वाले लोग हैं जो बेरोज़गारों की हथेलियों पर अपनी राजनीतिक व चुनावी रोटियां सेक रहे हैं । अग्निपथ पर उठा विवाद सरकार और बेरोज़गार युवाओं के बीच है। वह सुलझा लेंगे। इस में राजनीति कहाँ से आ टपकी ?
यही नहीं, अब तो नरेश टिकैत के नेतृत्व वाले किसान संगठन भी अग्निपथ योजना के विरुद्ध खड़े हो गए हैं। क्यूँ, कैसे ? यह स्पष्ट करना मुश्किल है। उन्हें तो सरकार का विरोध करना है .
और जो कुछ भी हो, एक ही बात सच्च है। विरोधी दलों का स्टैंड बड़ा स्वार्थी है । उन्हें तो सत्ताधारी सरकार के हर अच्छे और बुरे काम की भर्त्स्ना ही करनी है। सरकार के किसी कार्यक्रम और योजना पर सकारात्मक टिप्पणी करना उनके राजनितिक धर्म के अनुसार एक घोर पाप है। वह ऐसा कर किसी का भला नहीं कर रहे — न अपना, न बेरोज़गारों का और न ही देश का। और जो कुछ भी हो, सच्ची बात तो एक ही है। विरोधी दलों का स्टैंड बड़ा स्वार्थी है । उन्हें तो सत्ताधारी सरकार के हर अच्छे और बुरे काम की भर्त्स्ना ही करनी है। सरकार के किसी कार्यक्रम और योजना पर सकारात्मक टिप्पणी करना उनके राजनितिक धर्म के अनुसार एक घोर पाप है। वह ऐसा कर किसी का भी भला नहीं कर रहे — न अपना, न बेरोज़गारों का और न ही देश का। जो ठन्डे मस्तिष्क से विचार करेंगे उन्हें अग्निपथ योजना में थोड़ा-बहुत भला ही दिखेगा, किसी का बुरा बिलकुल नहीं। ***
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