कांग्रेस ने बनाया नरेन्द्र मोदी को धर्मराज
राजनीति वस्तुत: एक अखाड़ा ही बन गई है जहां राजनीति के पहलवान बुद्धि से
नहीं दाव-पेच से जीतते हैं। पर कई बार यह दावपेच उल्टे भी पड़ जाते हैं। इसका
नवीनतम् उदाहरण है कांग्रेस पार्टी की वह प्रतिक्रिया जो उसने तब दी जब गुजरात के मुख्य मन्त्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि
गुजरात के बाद अब उनको देश की सेवा कर राष्ट्र का ऋण चुकाना है।
इस कथन पर कांग्रेस प्रतिक्रिया की तो कोई आवश्यकता नहीं थी, खास कर इतनी
तीब्र व कटु कि कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अलवी ने तो नरेन्द्र मोदी की तुलना
यमराज से ही कर डाली। पर जो यमराज की अवधारणा को जानते हैं वह तो समझते हैं कि ऐसा
कह कर तो अलवी ने मोदी की आलोचना नहीं उल्टे स्तुति ही कर डाली है। कांग्रेस के
यह नेता शायद नहीं जानते कि यमराज को तो धर्मराज माना जाता है क्योंकि वह किसी से
अन्याय नहीं करते। मृत्यु के बाद जो प्राणी उनके पास लाया जाता है वह उसके भले
और बुरे कर्मों के आधार पर उसे स्वर्ग या नर्क भेज देते हैं। हमारी सरकार के पास
तो यह अधिकार है कि वह अपने विवेक के आधार पर किसी घोर अपराधी को भी बक्ष्श दे पर
यमराज ऐसा कुछ नहीं करते क्योंकि वह तो धर्मराज हैं और उन्हें तो बस व्यक्ति के
कर्म के अनुसार अपना धर्म ही निभाना है। वह न पक्षपात करते हैं और न द्वेश ही। न
पापी को स्वर्ग भेजते हैं और न पवित्र आत्मा को नर्क।
दूसरे, यमराज मृत्यु देते नहीं हैं। वह तो व्यक्ति को उसके भाग्य व कर्मों
के अनुसार अपनी जीवनलीला पूरी कर लेने पर अपने पास बुला लेते हैं। प्राणी को अपने
कर्मों के अनुसार दण्ड भोगना पड़ता है। इस प्रकार यमराज तो हमारे राजनीतिक शासकों
से तो कहीं अच्छे हैं जो दुष्ट व अपराधी को राजनीतिक कारणों से संरक्षण देते हैं
और सज़ा से बचाते हैं और निर्दोष की रक्षा करने में विफल साबित होते हैं।
कांग्रेस ने तो यह कह कर कि उन्हें आशा है कि मोदी देश के बाकी हिस्सों में
वह कुछ नहीं करेंगे जो उन्होंने गुजरात में किया है, यह आभास दे दिया कि कांग्रेस
अब यह मानकर चल रही है कि मोदी का तो प्रधान मन्त्री बनना तय ही है। कांग्रेस भूल
जाती है कि सांप्रदायिक दंगों के मामले में कांग्रेस के हाथ मोदी से भी ज़्यादा
रंगे पड़े हैं। जनता ने 2002 के दंगों के बाद गुजरात विधान सभा चुनाव में मोदी को
लगातार तीसरी बार विजय दी है। जो और जितनी विजय उन्होंने भाजपा को दिलाई है वह
अल्पसंख्यक समर्थन के बिना सम्भव नहीं हो सकती।
उधर यह भी एक सत्य है कि 2002 के दंगों के बाद मोदी के राज में गुजरात में
सांप्रदायिक सौहार्द है और कोई दंगा नहीं हुआ जब कि कांग्रेस शासित प्रदेशों,
विशेषकर राजस्थान, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र व असम में तो पिछले दो-तीन साल में
कई बार हो चुके हैं और आजकल भी हो रहे हैं।