Wednesday, June 29, 2016

हास्‍य-व्‍यंग — भविष्‍यवाणी आपकी किस्‍मत की

हास्‍य-व्‍यंग
कानोंकान नारदजी के

भविष्‍यवाणी आपकी किस्‍मत की

मैं भविष्‍यवक्‍ता हूं, अकेला आपका नहीं, सबका। आज तक मेरी कोई भविष्‍यवाणी ग़लत नहीं निकली। आप कहेंगे कि मैं अपने ही मुंह मिंया मिटठू बन रहा हूं। पर सच तो सच है। सच बोलना तो पाप नहीं है और न हो ही सकता है। क्‍या आप मुझ से अपेक्षा रखते हैं कि मैं झूठ बोलूंफिर झूठ बोलना तो पाप है। मुझे पूरी आशा है कि आप मुझसे झूठ बोलने की न उम्‍मीद रखते हैं और न कहेंगे ही क्‍योंकि आप भी तो सच्‍चे-सुच्‍चे इन्‍सान हैं जिन्‍होंने अपने जन्‍म में झूठ बोलने का पाप नहीं कमाया। मुझे पता है कि आप मुझसे झूठ बोलने की आशा कभी नहीं रखेंगे। सो मैं सच ही बोल रहा हूं। यदि सच — और वह भी बराबर सच बोलना अपने मुंह मिंयां मिट्ठू बनना माना जाये तो मैं क्‍या कर सकता हूं?

मैं तो आपकी किस्मत पढ़ता हूंबनाता नहीं। मैं तो वही बताता हूं जो विधाता ने आपके लिये
लिखा हैनिर्धारित किया है। आपका शनि या मंगल आपकी जन्‍मकुण्‍डली में ऐसे स्‍थान पर
विराजमान है कि वह आपका नुक्‍सान ही पहुंचायेगा तो मैं कुछ नहीं कर सकता। आखिर मैं ईश्‍वर से बड़ा तो हूं नहीं जिसने आपका जीवन निर्धारित किया है। मैं तो वही पढ़ूंगा जो भगवान् ने आपके लिये नियत किया है, लिखा है।
मैं जन्‍मकुण्‍डली देखता हूं। आपकी हस्‍तरंखायें भी पढ़ सकता हूं। आपके माथे पर क्‍या लिखा हैउसकी भी व्‍याख्‍या कर देता हूं। न हो तो मैं प्रश्‍न भी लगा देता हूं। आपको अपनी पसन्‍द का कोई फल या फूल लाने को भी कह देता हूं। जब आप उसे लेकर मेरे पास आते हैं तो उससे भी मैं आपके अतीतवर्तमान और भविष्‍य का ब्‍यौरा दे सकता हूं।
आप पूछेंगे कि जब मैंने आपको देखा नहींपहचाना नहींआपकी कुण्‍डली देखी नहींआपके हाथ की लकीरें पढ़ी नहीं तो आपका भविष्‍य केसे जान लेता हूंमेरे मेहरबानइसे ही तो हुनर कहते हैं। अगर यह न होता तो लाखों लोगदेश-विदेश से भीलाइन में घंटों-घंटों मेरे दरबार में खड़े न रहते। मेरे पर जनता की आस्‍था हैविश्‍वास है तभी वह दूर-दूर से इतने पैसे खर्च कर मेरे पास आते हैं। मैं यहां बैठकर भी आप माथे पर जो लिखा हैउसे पढ़ सकता हूं। आपकी कुण्‍डली भी मैं यहीं बैठकर पढ़ सकता हूं। मैं आपको चुनौति देता हूं कि आप सब मेरी एक भी भवष्‍यवाणी गलत साबित कर दिखाइये।

आप एक बहुत सच्‍चे-सुच्‍चे इनसान हैं — बेहद ईमानदार, बहुत मेहनती। झूठ तो आप बोल ही नहीं सकते। आपके मुंह पर भी वही है जो आपके मन में है। आप कभी किसी का बुरा नहीं कर सकते, कोई करवाना चाहे तब भी नहीं। आप जो भी हैं स्‍वयं बने हैंअपने बल और परिश्रम से — किसी के ऐहसान से नहीं। आपको अभी बहुत आगे जाना है। आपके पास घोड़ा-गाड़ी सब कुछ होगा। यदि अभी नहीं है तो आप जल्‍दी ही एक गाड़ी खरीदेंगे। यदि आपके पास आगे ही एक गाड़ी है तो आप उससे बढि़या एक गाड़ी लेने की सोच रहे हैं और वह आपको अवश्‍य प्राप्‍त होगी।
यदि आप अविवाहित हैं तो शीघ्र ही आपकी शादी हो जायेगी। आपके घर एक सुन्‍दर-सुशील गृहलक्षमी आयेगी जो आपके घर को स्‍वर्ग बनाकर रख देगी और आप महसूस करेंगे कि आप इसी जन्‍म में स्‍वर्ग के वासी हो गये हैं। आपके कम से कम एक लड़का और एक लड़की होगी जो आपका और आपके परिवार का नाम रौशन करेंगे। यदि आपकी धर्मपन्ति गर्भवती हैं तो मैं दावे से कह सकता हूं कि वह या तो पुत्ररत्‍न को या भाग्‍यवती सुपुत्री को जन्‍म देगी।
आप अपना एक घर बनाने की कोशिश कर रहे हैं। आप निश्चिंत रहिये। आपकी यह मनोकामना
भी समय से पूर्व पूर्ण होगी।
आपने किसी से कुछ लिया नहीं है। आपने तो बस दिया ही है। आप उदार व खुले मन के हैं पर किसी को उधार मत दीजिये। यदि आप देंगे तो पैसा आपको वापस नहीं मिलेगा और उल्‍टे दोस्‍ती दुश्‍मनी में बदल जायेगी। इस बात से सावधान रहें। आप तो जानते ही हैं कि उधार एक ऐसी कैंची है जो दोस्‍ती व रिश्‍ते को काट कर रख देती है।
आप बहुत सफल व्‍यक्ति हैं इसलिये आप से कुछ लोग ईर्षा रखते हैं। वह कोई और नहीं आपके बहुत करीबी रिश्‍तेदार व दोस्‍त ही हैं। उनसे सावधान रहें। उनमें से एक महिला या पुरूष है।
आप बहुत भोले हैं। आपको धोखा-फरेब नहीं आता। आप अपने मन की बात सब को बता देते हैं। इसका लोग लाभ उठाते हैं। वह आपके विरूद्ध षड़यन्‍त्र भी रच देते हैं जिस कारण आपकी योजनायें धरी की धरी रह जाती हैं। इस आदत से अपने-आप को बचायें।
आपके पास जो भी आता है आप उस पर विश्‍वास कर बैठते हैं। आप उसकी हर सम्‍भव सहायता करने का पूरा प्रयास करते हैं। आपकी ज़ुबान पर नां तो है ही नहीं। इस कारण लोग
आप को उल्‍लू बना लेते हैं और अपना उल्‍लू सीधा कर लेते हैं। ऐसे चापलूसों से बचें।
आपके माता-पिता तो साक्षात् भगवान् हैं। उनका आप पर बड़ा आशीर्वाद है। आप उन्‍हें सदा
प्रसन्‍न रखें। उनकी सेवा में कोई कमी न होनें दें। आपको सब सुख-सुविधा प्राप्‍त होगी। यदि वह
स्‍वर्ग सिधार गये हैं तो उनका ध्‍यान करते रहिये। उन्‍हें समय-समय पर याद करते रहें।
आप अपनी और अपने परिवार के बारे अपनी योजनायें किसी से सांझा न करें। जिन्‍हें आप
अपना सब से नज़दीकी व हितैषी मानते हैं वह ही आपकी इन सब योजनाओं को विफल करने वाले सिद्ध होंगे।
आप सब पर विश्‍वास कर लेते हैं। आप सबको अपनी ही तरह सरल और निष्‍कपट समझते हैं।
वास्‍तव में ऐसा नहीं है। सभी आपकी तरह सरल और ईमानदार नहीं होते। आप किसी पर तब
तक विश्‍वास न करें जब तक कि आपके प्रति उसकी निष्‍ठा पर आपको पूरा विश्‍वास न हो
जाये। समय-समय पर इस विश्‍वास की परख अवश्‍य करते रहें। ऐसा न हो कि किसी पर
आपका अति विश्‍वास ही आपके लिये परेशानी का कारण बन बैठे।
आपका व्‍यक्तित्‍व अति सुन्‍दर व सबको आकर्षित करने वाला है। सब आपके समीप आना चाहते हैं,विशेषकर महिलायें। आप तो नटखट कृष्‍णजी की तरह सबको प्रिय हैंसब के चहेते। आप उनकी ही तरह छैल-छबीले हैं। सब आपकी ओर आकृष्‍ठ होकर रह जाती हैं। पर इतना अवश्‍य याद रखिये कि न तो आप स्‍वयं भगवान् कृष्‍ण हैं और न आपकी महिला मित्र उस काल की गोपियां।
आप अपने बच्‍चों के बारे कुछ परेशान रहते हैं। यह आजकल के वातावरण की देन है। आप
निश्चिन्‍त रहिये। समय बड़ा बलवान है। समय पर स्‍वयं इसका समाधान‍ निकल आयेगा। जिस समस्‍या का आप हल नहीं निकाल सकते या जिस स्थिति को आप बदल नहीं सकते उसे
ईश्‍वर पर छोड़ दो। वह स्‍वयं इसे सम्‍भाल लेंगे।
ईश्‍वर पर विश्‍वास रखें। वह सब भला करेंगे। आपका कल्‍याण होगा। यही मेरी आशा और प्रार्थना है।
मेरे विचार में बहुत कुछ इतना ही है जो आप अपने भूतवर्तमान व भविष्‍य के बारे जानना
चाहते हैं। मैं आपके बारे में और भी बहुत कुछ जानता हूं और बता सकता हूं पर आप जानते हैं
कि सब का अपना-अपना जीवन होता है वैयक्तिक। उसे सार्वजनिक कर देना मैं अपने पावन
कर्तव्‍य के विरूद्ध समझता हूं। कुछ चीज़ें ढकी की ढकी रह जायें तो इसी में सब की भलाई है। हां, आप मुझ से मिलना चाहें और अपने बारे कुछ और जानना चाहें तो उदय इण्डिया के माध्‍यम से सम्‍पर्क कर सकते हैं। मैं हर समय तैयार हूं।
यदि आपको लगे कि आप — जैसाकि मैंने लिखा है — एक सुशील, समझदार, ईमानदार व निष्‍कपट सज्‍जन नहीं हैं, तो मुझे अवश्‍य सूचित करें।

ईश्‍वर आपका कल्‍याण करे। ओम् शान्तिशान्ति।                          ***
Courtesy: Udayindia (Hindi) weekly

Tuesday, June 21, 2016

Ignorance can't be bliss for Arvind & Nitish

Ignorance can't be bliss for Arvind & Nitish


The way the self-confessed "anarchist" Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal is behaving and blurring, it provides justification for denial of Statehood to Delhi, not at least under a maverick politician like him. Instances of his words and actions which do not behove a chief minister are unending. Sufficient to question his latest soundbite. Mahesh Giri MP "should be arrested n interrogated by Modi Police" for NDMC official MM Khan's "murder", Kejriwal tweeted, charging that "Modi Police was shielding him".
On the other hand, the beleaguered and bereaved family of Khan has pleaded with politicians not to play politics with their family loss but help get them justice.
Granting statehood to Delhi, in these circumstances, shall be like handing over a loaded gun to a child. The Delhi chief minister seems to be ignorant that under the law a chief minister — or, for that matter, even a prime minister — have no constitutional authority to order the arrest of an individual however heinous the crime of an accused may be.  It is for the police to register a case on receiving a complaint and investigate it. Going by his conduct, had Kejriwal been the chief minister of a full-fledged State of Delhi, he would certainly have ordered "Kejriwal" police to "arrest and interrogate" Giri for the alleged murder.
Similarly, we have another chief minister, Nitish Kumar of Bihar, displaying ignorance of law and the reality. While the world was celebrating the second Yoga International Day on June 21, it goes to the credit of Nitish Kumar to decide not to observe it, apparently taking offence at the BJP-led central government cold shouldering his call for countrywide prohibition.
Ignorance of law and the constitution may be bliss for the ignorant but not for a chief minister like Nitish or Kejriwal who share a common wish, at one time or the other, to be the country's prime minister. The home truth is that in his own State Nitish Kumar's Grand 'Secular' Alliance may have won 178 seats in a 243-member house but only with 41.9 percent votes against NDA's 34.1 percent votes with just 58 seats.
Further, he needs to understand that prohibition is a State specific policy and the Modi government has no authority to impose Nitish's will on the rest of the country. If NDA did, it would be the likes of Nitish and Kejriwal who will be the first to shout from the housetops that Modi government was transgressing on the rights of the States and arbitrarily imposing its will on the unwilling States for which it has no authority. They will then further allege that the States were not consulted and no effort was made to find a consensus.
Or is Nitish Kumar trying to build a ground to put the blame on the Centre if he fails to effectively enforce prohibition policy in the State?

Saturday, June 11, 2016

हास्‍य-व्‍यंग — नाम में रखा क्‍या है?

हास्‍य-व्‍यंग  
कानोंकान नारदजी के
नाम में रखा क्‍या है?
बेटा:    पिताजी।
पिता:   हां, बेटा।
बेटा:    पिताजी, नाम में क्‍या है?
पिता:   बेटा, नाम में कुछ भी नहीं है और बहुत कुछ है भी।
बेटा:    कैसे?
पिता: यह इसलिये कि मेरा नाम ऊंकार है, तेरा ओमप्रकाश और तेरी बहन का ओमवती। यही हम सब की
पहचान है।
बेटा:    पर पिताजी, यही तो परेशानी खड़ी कर दी आपने। आपका नाम तो हमारे दादाजी ने रखा होगा, पर आपने हम दोनों भाई-बहन का नाम भी ओम से शु्रू कर तो ठीक नहीं किया।  
पिता:   तेरा मतलब कि मुझे तेरा नाम तुझसे पूछ कर रखना चाहिये था क्‍या? अब मां-बाप उनका नाम भी बच्‍चों से पूछ कर रखेंगे और वह भी तब जब न उनकी ज़ुबान खुली होती है और न अक्‍ल?
बेटा:    नहीं पिताजी, मेरा यह मतलब नहीं है। आप फि़ज़ूल ही मुझपर नाराज़ हो रहे हैं। मैं एक और परेशानी की बात कर रहा हूं। मुझे इसपर कोई इतराज़ नहीं है कि आपने हमारा यह नाम रखा है। 
पिता:   तो फिर क्‍या है?
बेटा:   पिताजी, आपको पता है ना कि 21 जून को भारत समेत सारे विश्‍व में योग दिवस मनाया जा रहा है?
पिता:   हां, मुझे पता है।
बेटा:    पर उसमें तो एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है।
पिता:   क्‍या?
बेटा:    कुछ लोग कहते हैं कि योगाभ्‍यास के समय ओम् का उच्‍चारण उनके धर्म की मान्‍यताओं के विरूद्ध है।
पिता:   यह तर्क तो बेतुका लगता है। वैसे सरकार ने तो स्‍पष्‍ट कर दिया है कि योगाभ्‍यास के समय ओम् का उच्‍चारण अनिवार्य नहीं, ऐच्छिक है।
बेटा:    वैसे पिताजी, हमारे महामहिम उपराष्‍ट्रपति महोदय की धर्मपन्ति श्रीमती अंसारी इस दकियानूसी तर्क से सहमत नहीं हैं। उन्‍होंने कहा है कि ओम् के उच्‍चारण में कोई बुराई नहीं है।
पिता:   बेटा, उन्‍होंने बड़ी समझदारी की बात की है। उससे सौहार्द ही बढ़ेगा।
बेटा:    पिताजी, कुछ लोगों के इस हठधर्मी तर्क से तो कई समस्‍यायें ही पैदा हो जायेंगी।
पिता:   कैसे?
बेटा:    पिताजी, तब तो हमारे को अपना नाम भी बदलना पड़ेगा।
पिता:   क्‍यों?
बेटा:    इसलिये कि आपके नाम के साथ ओम् है, मेरे नाम के साथ भी और मेरी बहिन के साथ भी। जब कुछ कट्टरवादियों को ओम् के उच्‍चारण में धर्म आड़े आ जाता है तो वह हमारा नाम भी वह कैसे लेंगे? फिर वह हमें कैसे पुकारेंगे?
पिता:   तेरा मतलब हम उनके लिये अपना नाम ही बदल लें? यह कैसे सम्‍भव है?
बेटा:    पिताजी, यदि वह योगाभ्‍यास के समय ओम् शब्‍द का उच्‍चारण नहीं कर सकते तो वह हमारा नाम कैसे लेंगे?
पिता:   इस समस्‍या का हल तो मेरे पास नहीं है और न मैं उनके कारण अपना या तुम्‍हारा नाम ही बदलने वाला हूं।
बेटा:    पिताजी, हमारे प्रधान व उपप्रधान मन्‍त्री उन देशों के दौरे पर भी जाते रहे हैं जहां शरिया कानून लागू है। ऐसी सूरत में वहां के राष्‍ट्रपति व प्रधान मन्‍त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी, नरासिम्‍हा राव व लाल कृष्‍ण आडवानी जी के नाम कैसे लेते होंगे क्‍योंकि उनके नाम भी तो हिन्‍दू धर्म के देवी-देवताओं के ही नाम हैं।
पिता:   बेटा, वह तो मुझे पता नहीं कि वह कैसे ले पाते थे पर मैं इतना अवश्‍य जानता हूं कि वह लेते अवश्‍य थे।
बेटा:    पर इस समस्‍या का हल क्‍या है?
पिता:   यह तो वह ही जानें।
बेटा:    पर पिताजी, आप कुछ भी बोलो नाम से समस्‍या तो पैदा हो ही जाती है।     
पिता:   कैसे?
बेटा:    एक बार किसी कार्यक्रम में कोई विवाद खड़ा हो गया। सभागृह में बड़ी गर्मागर्मी हो गई। एक आयोजक ने हाथ जोड़कर उपस्थित जनसमूह को सम्‍बोधित करना शुरू किया — ''शान्ति, शान्ति''। एक महिला खड़ी होकर बोली — ''हांजी, हांजी''। आयोजक बोला, ''महोदया, मुआफ करना मैंने आपको नहीं पुकारा।''  
पिता:   फिर क्‍या हुआ?
बेटा:    हंगामा फिर भी न थमा। बड़ा हो-हल्‍ला होता जा रहा था। तब आयोजक फिर उठा और पुन: हाथ जोड़कर बोला, ''मैं आपसे विनम्र प्रार्थना करता हूं कि आप शान्ति के साथ बैठें और कार्यक्रम को सुचारू ढंग से आगे बढ़ने दें।'' उसका यह बोलना ही था कि दर्शकों में से एक आदमी गुस्‍से से आग-बबूला होकर उठकर बोला, ''आप कौन होते हैं लोगों को मेरी बीवी के साथ बिठाने वाले?'' आयोजक ने फिर विनम्र होकर कहा, ''महोदय, आपको गलतफहमी हो रही है। मैंने आपकी बीवी के साथ नहीं, शान्ति के साथ बैठने का आग्रह किया है''। उत्‍तेजित व्‍यक्ति बोला, ''शान्ति ही तो मेरी बीवी है''। इस पर सब ठहाका मारकर हंस पड़े और माहौल शान्‍त हो गया।
पिता:   बेटा, ऐसा तो कई बार हो जाता है।
बेटा:    आपके साथ भी हुआ कभी ऐसा?
पिता:   हां। एक बार ऐसा हुआ कि मेरा एक दोस्‍त था जिसका नाम कमलेश था। वह मुझे बाज़ार में दिखाई दे गया। मैंने उसे ज़ोर से आवाज़ दी, ''कमलेश, कमलेश''। इसपर एक महिला मेरे पास आ गई, ''आप मुझे क्‍यों बुला रहे हैं? मैं तो आपकी जानती नहीं।'' मैंने बड़े विनम्रभाव से मुआफी मांगते हुये कहा, ''मैडम, मैंने आपको नहीं, अपने मित्र 'कमलेश' को पुकारा है जो देखो सामने आ रहा है।'' महिला शर्मिन्‍दा होकर चलती बनी।
बेटा:    पिताजी, ऐसी घटनायें कई बार हो जाती हैं। एक बार ऐसा हुआ कि एक व्‍यक्ति को उसका अपना पुराना दोस्‍त मिल गया। औपचारिक नमस्‍कार-नमस्‍ते के बाद दोस्‍त ने कहा, ''आपकी दया हो जाये तो मेरी तो जि़न्‍दगी ही सफल हो जायेगी। साथ में खड़ा व्‍यक्ति गुस्‍से से बोल उठा, ''दया इनकी कैसे हो सकती है? उसका तो विवाह मेरे साथ हो चुका है।'' संयोग से उसकी बीवी का नाम दया था।
पिता:       नाम केलिये तो बेटा, लोग कई कुछ करते हैं। मेरे एक सहपाठी था। माता-पिता ने उसका नाम रूल्दू राम रख दिया था। जब वह बड़ा हो गया तो उसे अपना नाम बतलाने में भी झेंप होती थी। कई बार तो उसने अपना नाम ही बदलने की सोची। अन्‍त में अंग्रेज़ी भाषाने उसकी मदद की। उसने अपना नाम आर0 आर0 शर्मा बना दिया। सब उसे रूल्‍दू राम की जगह आरआर के नाम से पुकारने लगे और वह आरआर बनकर ही रह गया।
बेटा:    कई लागों का संयोगवश एक ही नाम हो जाता है। ऐसे ही मेरे एक दोस्‍त की तो किस्‍मत ही खराब हो गई। उसके पिताजी के एक दोस्‍त अफसर थे। उनके पास मेरे दोस्‍त का एक नौकरी केलिये साक्षात्‍कार आ गया। पिताजी ने कहा, बेटा अब तेरी किस्‍मत खुल गई। मैं उन्‍हें कह दूंगा और तेरा चयन पक्‍का। उसने कह भी दिया। जब चयनित व्‍यक्तियों की सूची निकली तो उसका नाम तो था पर पिता का नाम कोई और था। वह उस अफसर को मिलने गया तो अफसर ने उसे वधाई दी। उसने कहा सर, चयन जिसका हुआ है नाम तो उसका मेरा है पर उसके पिताजी का नाम कोई और है। उसने कहा सॉरी, अब तो मैं कुछ नहीं कर सकता। मैंने तो अपनी ओर से तुझे ही पास किया था। मुझे क्‍या पता कि इस नाम के दो प्रार्थी हैं। मैंने पिताके नाम की ओर ध्‍यान नहीं किया।
पिता:   कई व्‍यक्ति अजीब ही निकलते हैं। एक बार एक व्‍यक्ति पर पांच-छ: आदमी टूट पड़े।  वह कहते जा रहे थे, ''लखन, तेरी ऐसी-तैसी''। वह उसका नाम लेकर उसकी मां और बहन को गालियां निकालते हुये उसकी पिटाई करते जा रहे थे। उन्‍होंने उसे वहीं पर ढेर कर दिया। पर पिटने वाले की हास्‍य प्रतिभा जि़न्‍दा रही। वह जब उसे अधमरा छोड़ कर जा रहे थे तो उसने उनका मज़ाक उड़ाते हुये कहा, ''देखा, मैंने बना दिया ना तुम्‍हारा बेवकूफ। मेरा नाम तो लखन है ही नहीं।
बेटा:    यह बात पंजाब की है पिताजी। वहां एक आदमी सड़क पर जा रहा था कि सामने से आते व्‍यक्ति ने उसके साथ तपाक से हाथ मिलाया और बहुत खुश होकर उसे गले लगाते हुये बोला, ''सोहनया तू बहुत दिनों बाद मिला। मेरे को तो तेरी बहुत याद आती थी। तू ठीक तो है ना। आज तेरे को मिलकर बहुत खुशी हुई। आ चाये पीते हैं इस ढाबे पर।'' दूसरा व्‍यक्ति बड़ा हैरान था। उसने कहा, ''महाशय, मैं तो आपको जानता ही नहीं। मेरा नाम सोहना नहीं है।'' दूसरे व्‍यक्ति ने अपना बड़ा दिल दिखाते हुये तपाक से कहा, ''ओये सुन, तू सोहना है या मोहना। इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता। है तो तू इनसान ही ना। आ, चाय पीते हैं।'' वह उसका बाज़ू पकड़ कर पास के ढाबे पर ले गया।                 ***
Courtesy: UdayIndia (Hindi)