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Friday, January 1, 2016

When 'tolerant' Sonia-Rahul promote 'intolerance'

When 'tolerant' Sonia-Rahul promote 'intolerance'

In November 2015 Congress party led by its President Mrs. Sonia Gandhi and Vice-President Rahul Gandhi led a deputation of prominent Congress leaders to the President of India protesting against the atmosphere of "intolerance" in the country. Congress also generated a great din within the Parliament, too, on the issue.
Later, for three-four days during the last week Congress MPs led by the Sonia-Rahul duo have not allowed the Parliament to function in protest against the summons issued to Mrs. Sonia Gandhi, Rahul and other senior Congress leaders by a Delhi court on a private complaint by Dr. Subramaniam Swamy. The summons were issued following scrutiny by the court of documents and the evidence after it found a prima facie case against the accused under section 403 (dishonest misappropriation of property), 406 (criminal breach of trust) and 420 (cheating) read with section 120B (criminal conspiracy) of IPC." The Congress has called the summons a "political vendetta".
All the accused went in appeal to the Delhi High Court (HC)against the order of the court for summoning them as accused.  Observing that the conduct of Congress office-bearers named in the National Herald case “smacks of criminality”, the Delhi High Court dismissed the appeals filed by Congress president Sonia Gandhi, vice president Rahul Gandhi and five others against summons to face trial.
On the one hand, Congress was quick to say that they will file appeal against the HC order in the Supreme Court and, on the other, a defiant Sonia Gandhi went bold to declare: “I am the daughter-in-law of Indira Gandhi. I am not scared of anyone. I am not disturbed.”But who is this "anyone" she is not scared of — the court, the law or the people?
With this defiance are the Congress and Mrs. Sonia Gandhi not generating in the minds of the general public a sense of intolerance against the judiciary and the rule of law? Does it also not amount to promoting infidelity against the system by law established — and that too within the "Temple of Democracy" by a section of the law-makers themselves —a negation of what the Congress is fighting against?                                                                                        ***  
P.S. Later both Mrs. Gandhi and Rahul alongwith others appeared in the court and were released on bail.

Friday, December 4, 2015

हास्‍य-व्‍यंग — कानों-कान नारदजी के : विफलताओं की बाढ़ में उम्‍मीद के तिनके पर राजपरिवार

हास्‍य-व्‍यंग
कानों-कान नारदजी के
विफलताओं की बाढ़ में उम्‍मीद के तिनके पर राजपरिवार

बेटा:   पिताजी1
पिता:  हां बेटा।
बेटा:   पिताजी, राहुल गांधी किसी राज परिवार से हैं
पिता:  बेटा, वह किसी राज परिवार से नहीं हैं। वह तो एक ऐसे महान् परिवार से हैं जिसने देश की आज़ादी की लड़ाई में बहुत कुर्बानियां दी हैं।
बेटा:   तो क्‍या वह महात्‍मा गांधी के वंशज हैं?
पिता:  नहीं बेटा, वह तो स्‍वर्गीय फिरोज़ गांधी के सुपौत्र हैं।
बेटा:   तो क्‍या फिरोज़ गांधी महात्‍मा गांधी के परिवार से थे?
पिता:  नहीं बेटा, वह तो एक सम्‍भ्रान्‍त पार्सी परिवार से थे।
बेटा:   फिर वह गांधी कैसे हो गये?
पिता:  उनका पारिवारिक कुलनाम (सरनेम) Ghandhy था। जब श्रीमति इन्दिरा ने उनसे शादी
की मनशा बना ली तो बापू बीच में पड़े और पंडित नेहरू को उन्‍होंने मना लिया। साथ ही फिरोज़ जी को अपने कुलनाम के स्‍पैलिंग बदलने को कहा। इस प्रकार वह गांधी
(Gandhi)बन गये।
बेटा:   तो फिर राहुल को युवराज क्‍यों कहते हैं?
पिता: बेटा, राहुल का परिवार देश को आज़ादी मिलने के बाद से बहुत लम्‍बे समय से सरकार व
कांग्रेस संगठन में लगातार सत्‍ता में रहा है। श्रीमति सोनिया गांधी के बाद कांग्रेस भी उन्‍हें ही अपना सर्वेसर्वा बनाने पर तुला है । इस लिये गीडिया ने राहुल को कांग्रेस का युवराज बना दिया है।
बेटा:   पिताजी, पर भारत में तो प्रजातन्‍त्र है, राजशाही नहीं। तो यहां शाही परिवार तन्‍त्र कैसे
      चल सकता है?
पिता: तेरी बात तो ठीक है पर यह अब कांग्रेस पार्टी में एक अटूट परम्‍परा बन चुकी है। इसे अब कोई नहीं तोड़ सकता। कांग्रेसी स्‍वयं भी इस राजवंशी परम्‍परा को चालू रखना चाहते   हैं। यदि इक्‍का-दूक्‍का कोई व्‍यक्ति उसका विरोध करता है तो उसे पार्टी गद्दार करार   देकर राजवंशी प्रथा के आधार पर पार्टी उसे गद्दार मानकर देशा-निकाले की तर्ज़ पर पार्टी-निकाला देती है।

बेटा:   पिताजी, राजवंश में तो उत्‍तराधिकार अनुक्रमण बना होता है जैसे बरतानिया आदि में। पर क्‍या यह कांग्रेस परिवार में भी है?
पिता:  बिलकुल है। जब कभी लोग राहुल के विकल्‍प की बात सोचले हैं तो उनकी नज़र      किसी और पर न पड़ कर केवल उनकी बहन प्रियंका पर ही जाती है।
बेटा:   पर पिताजी, वंशीय परम्‍परा में तो अनुक्रमण में राहुल के बाद नम्‍बर तो उनके बच्‍चों का होना चाहिये।
पिता:  वह इसलिये कि राहुल अभी अविविहित हैं और उनके कोई सन्‍तान नहीं है।
बेटा:   पर पिताजी राहुल शादी क्‍यों नहीं करते?
पिता:  बेटा, यह तो व्‍यक्ति व परिवार का अपना मामला है, इसमें हम क्‍या कह सकते हैं?
बेटा:   फिर भी पिताजी, राहुल देश के नेता हैं, भविष्‍य। उनके हितैषियों को तो अपनों की चिन्‍ता सताती ही रहती ही है। याद है जब मेरी शादी नहीं हो रही थी तो आप कितनी चिन्‍ता करते थे?आपको रात को नीन्‍द नहीं आती थी? मेरी बहनें तो इस मामले में मेरे पीछे ही पड़ी रहती थीं।
पिता:  बेटा, वह बड़े आदमी हैं। अपना मुकाबला उनसे मत कर।
बेटा:   पर पिताजी, सोनियाजी भी तो एक भारतीय मां हैं। उन्‍हें और राहुल की बहन को उनकी शादी की चिन्‍ता क्‍यों नहीं होती?
पिता:  बेटा, सोनियाजी तो एक महान् नारी हैं। उन्‍हें चिन्‍ता केवल राहुल की नहीं, वह तो पूरे देश की चिन्‍ता करती हैं। देश की चिन्‍ता के आगे उनके मन में राहुल की चिन्‍ता नगन्‍य हो जाती है।
बेटा:   पिताजी कुच्‍छ भी हो। सोनियाजी को राहुल की चिन्‍ता करनी चाहिये। प्रियंका उनसे छोटी है। उसकी शादी हुये कई साल हो गये और उसके दो बच्‍चे भी हो चुके हैं। पिताजी, राहुल की उम्र कितनी है?
पिता:  यही कोई 45-46।
बेटा:   पिताजी, आप तो सहज भाव से ऐसे बोल रहे हैं मानों राहुल अभी बच्‍चे हैं और उनकी अभी शादी की उम्र नहीं हुई है।
पिता:  ऐसी बात नहीं, पर जब वह ही चिन्‍ता नहीं करते तो हमें भी अपना मग़ज़ खपाने की क्‍या आवश्‍यकता है?
बेटा:   पिताजी, ऐसा नहीं। जब राहुल और सोनियाजी हमारी और देश की इतनी चिन्‍ता करते हैं तो हमारा भी कर्तव्‍य है कि हम भी उनकी चिन्‍ता करें।
पिता:  तू तो ऐसे बात कर रहा है जैसे कि तू बिचौला बनना चाहता है और तेरी नज़र में उनके योग्‍य कोई लड़की है।
बेटा:   पिताजी, मेरे पास तो उनके लायक लड़की कहां हो सकती है, पर चिन्‍ता मुझे ज़रूर है क्‍योंकि उनकी पार्टी के लोग ही कहते हैं कि वह पार्टी और देश का भविष्‍य हैं। मैं उनके आगे के भविष्‍य की सोच रहा हूं और चिन्‍ता कर रहा हूं।
पिता:  बेटा, काम चिन्‍ता से नहीं बनता, कुछ करने से बनता है।
बेटा:   पिताजी, राहुल बाबा कई बार अचानक गुम हो जाते हैं। किसी को पता नहीं होता कि वह देश में हैं, विदेश में। उनके साथ उनकी माताजी व बहन भी नहीं होते। वह कहां जाते हैं?
पिता:  बेटा, यह हम जैसे आम आदमियों की समझ के बाहर की बाते हैं। हर बड़ा आदमी काम कर कर थक जाता है और उसे एकान्‍त और आराम की आवश्‍यकता होती है। उस फुर्सत के समय ही तो उन्‍हें ठण्‍डे दिमाग से देश के बारे सोचने का समय मिलता हैं। राहुल भी कहीं जाकर सकून पाते होंगे।
बेटा:   पिताजी, कहीं ऐसा तो नहीं कि राहुल प्रधान मन्‍त्री बनने के बाद ही विवाह करना चाहते हों।
पिता:  यह तो मैं नहीं कह सकता पर इतना सच्‍च अवश्‍य है कि अभी चार साल तो उनके प्रधान मन्‍त्री बन पाने की कोई सम्‍भावना नहीं है। ऐसे तो वह बूढ़े हो जायेंगे।
बेटा:   पर यह तो अवश्‍य लगता है कि वह पहले कांग्रेस अध्‍यक्ष बनना चाहते हैं और शादी बाद में करना चाहते हैं।
पिता:  उनके कांग्रेस अध्‍यक्ष बनने की सम्‍भावना के समाचार तो तब से आ रहे हैं जब वह पिछले संसद सत्र के दौरान दो मास केलिये अज्ञातवास पर चले गये थे। तब तो समाचार आ रहे थे कि वह इस बात से नाराज़ हैं कि उन्‍हें अध्‍यक्ष नहीं बनाया जा रहा। फिर मीडिया में तो यह भी अटकलें लगाई जाने लगी थीं कि कांग्रेस अध्‍यक्ष के रूप में उनकी ताजपोशी अप्रैल में हो जायेगी। उसके बाद तो अफवाहें कई प्रकार की छपती रहीं।
बेटा:   पर पिताजी, यह समझ नहीं आता कि उन्‍हें अध्‍यक्ष क्‍यों नहीं बनाया जा रहा है। यह तो घर का ही मामला है। पद और कुर्सी तो घर में ही रहेगी चाहे उस पर मां बैठे या बेटा।
पिता:  यह तो बेटा सोनियाजी ही जानें कि वह क्‍यों राहुल के लिये गद्दी खाली नहीं कर रहीं। उसके पीछे भी कोई कारण होगा, कोई राज़ होगा, उनकी कोई सोच होगी। इसके विपरीत तत्‍कालीन प्रधान मन्‍त्री डा0 मनमोहन सिंह तो राहुल में एक अच्‍छा व सफल प्रधान मन्‍त्री होने के सभी गुण व लक्षण देखते थे और कहते थे कि पार्टी जब भी कहे मैं उनके लिये कुर्सी खाली करने के लिये तैय्यार हूं। इस ताजपोशी में तों मुझे ब्रिटेन की महारानी और यहां भारत में सोनिया जी में एक समानता दीखती है। ब्रिटेन की महारानी की आयु अब 90 वर्ष के लगभग हो चुकी है। गद्दी के प्रथम हकदार युवराज चार्ल्‍स स्‍वयं बूढ़े हो गये हैं पर उन्‍हें गद्दी तो तभी मिलेगी जब महारानी स्‍वयं ही राजपाट छोड़ दें। पर वह ऐसा नहीं कर रहीं। उसके पीछे भी कोई कारण होगा, कोई सोच होगी। वह सब कुछ अपने राष्‍ट्र के हित में ही कर रही हैं। यही समानता मुझे यहां भारत में कांग्रेस पार्टी में दिख रही है। ब्रिटेन में राजकुमार चार्ल्‍स बड़े धैर्य से प्रतीक्षा का रहे हैं। उन के चेहरे पर इस बात पर कोई रोष या चिन्‍ता नज़र नहीं आती। न ही वह किसी प्रकार का कोई ऐसा आभास देते हैं जैसा राहुल कर रहे हैं।
बेटा:   पर पिताजी, कौन माता-पिता अपनी आंखों के सामने ही अपने बेटे की ताजपोशी नहीं देखना चाहते?
पिता:  बेटा, बहुत ही कम राज परिवार ऐसे हुये हैं जिन्‍होंने अपने जीवनकाल में ही अपने युवराज की स्‍वयं ताजपोशी कर दी हो। पर कांग्रेस में शायद यह भी हो जाये।
बेटा:   पर पिताजी, कांग्रेस संगठन को सत्‍ता-परिवर्तन की आवश्‍यकता क्‍या है?
पिता:  यह तो हमारे कांग्रेसी भाई ही जाने पर इतना अवश्‍य माना जाता है कि बदलाव सदा स्‍वागत योग्‍य होता है।
बेटा:   पिताजी, अज्ञातवास के बाद तो अब राहुल गांधी बहुत ही आक्रमणकारी हो गये हैं। वह तो रोज़ प्रधान मन्‍त्री नरेन्‍द्र मोदी पर ताबड़तोड़ हमने बोलते जा रहे हैं।
पिता:  इसका बेटा कांगेस को कोई फायदा तो अभी तक हुआ नज़र नहीं आता। बिहार के विधान परिषद व मघ्‍य प्रदेश व राजस्‍थान के नगर निकाय चुनाव में तो कांगेस को इन आक्रमणों से हार का मुंह ही देचाना पड़ा।
बेटा:   अब तो सोनियाजी के भी तेवर सख्‍त हो गये हैं। उन्‍होंने भी कमान सीधे अपने हाथ में ले जी है। वह भी अब अपनी बात दूसरों से न बुलवाकर वाणी के तीर स्‍वयं साध रही हैं। अब तो ऐसा लग रहा है कि उनकी बढ़ती उम्र उनकी राजनीति को कमज़ार नहीं कर रही है।
पिता:  यह तो है।
बेटा:   आखिर पिताजी, राहुल के पास युवा का उबलता हुआ खून है। कुच्‍छ कर बैठने का जनून है।
पिता:  और सोनियाजी के पास तो इतना लम्‍बा अनुभव है। 125 वर्ष से अधिक कांग्रेस के इतने लम्‍बे इतिहास में इतने लम्‍बे समय तक लगातार कोई एक व्‍यक्ति, विशेषकर कोई महिला कांग्रेस अध्‍यक्ष नहीं रहीं। यह सौभाग्‍य व गौरव तो न पंडित नेहरू, न उनकी सास इन्दिराजी और न उनके पति राजीव प्राप्‍त कर सके।
बेटा:   साथ ही यह भी ठीक है  कि अब तक के चुनावों में कांग्रेस की इतनी बड़ी हार भी कभी नहीं हुई जितनी कि राहुल के युवा व सोनियाजी के इतने लम्‍बे अनुभव के अन्‍तर्गत हुई।  
पिता:  मुझे तो लगता है कि कांग्रेस की यह बुरी हार इस दोहरे नेतृत्‍व के कारण हुई। चुनाव तो एक संग्राम होता है जब इसकी बागडोर एक हाथ में होनी चाहिये।
बेटा:   मुझे तो लगता है कि सोनियाजी भी सचिन की तरह राजनीति में इतनी लम्‍बी पारी खेलना चाहती हैं कि लिट्टल मास्‍टर की तरह उनके रिकार्ड भी कोई तोड़ न सके।
पिता:  तेरी इस बात में दम लगता है। वह प्रधान मन्‍त्री न बन पाईं तो इतिहास में यही मील पत्‍थर ही सही।
बेटा:   फिर यह भी तो एक मील पत्‍थर ही है कि नेहरू-गांधी परिवार ने इतना लम्‍बे समय आज़ादी की लड़ाई नहीं लड़ी जितना लम्‍बा समय वह प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष रूप में सत्‍ता का सुख प्राप्‍त कर सके हैं।
पिता:  जो भी हो बेटा, सोनियाजी राहुल को प्रधान मन्‍त्री अवश्‍य देखना चाहती हैं।
पिता:  उम्‍मीद पर ही तो दुनिया खड़ी है। एक यह उम्‍मीद भी सही। विफलताओं की बाढ़ में उम्‍मीद के तिनके के सहारे परिवार।                                       ***  
Courtesy: UdayIndia (Hindi)

Tuesday, April 14, 2015

TUESDAY TEASER 'No Indian proof : Tobacco causes cancer' & Vadra "glad"

TUESDAY TEASER
'No Indian proof : Tobacco causes cancer'

By Amba Charan Vashishth


One great quality of democracy in India is the true freedom of opinion and expression enjoyed by individuals. One latest example is the assertion by a public representative that "there was no Indian study to confirm that use of tobacco products leads to cancer". His comments came  "strongly" urging the government to keep on hold its proposal to increase the size of pictorial warnings on tobacco packets from 40 per cent to 85 per cent.

He certainly has a right to his opinion and to express it. But we cannot ignore the fact that the allopathic treatment that is given in India in government and private hospitals is also based on experiments, studies and discoveries abroad. Similarly, the drugs and medicines we consume in India for various ailments too are the product of foreign studies even if many are now being produced within the country.

Those who are not inclined to studies made by others are very well at liberty to undertake their own study and experiment. They can start chewing tobacco and be chain smokers themselves. They can see for themselves whether tobacco is harmful or not. Haath kangan ko aarsi kya? Truth needs no proof. They can then enlighten the people.

'SAD' VADRA IS NOW  "GLAD" AFTER A DECADE

For more than a decade Congress President and UPA chairperson Mrs. Sonia Gandhi's son-in-law Robert Vadra now stands relieved of his 'sadness'. The UPA government granted him a very special privilege of not being frisked at airports when he was to travel by air. This had created a heart burning among many VIPs who did not enjoy this privilege. But now that the present government has withdrawn this privilege from Vadra, he reacted saying, "I am glad that this formality is going to be removed, as this was created without my consent".

It certainly is wrong and a great injustice on the part of the then Manmohan government to extend such a privilege without the concerned person's "consent".  It was so gracious on Vadra's part that he continued to suffer "this formality" in silence for over a decade without a grudge. Now that he is "glad", that means he was sad because of this privilege 'forced' on him. Governments should refrain from imposing privileges that render persons sad. Government's intention should be to promote happiness and not sadness. This instance should also serve as a good lesson for future governments.

Tailpiece

A teacher asked his pupil in the class: "What is the full name of Bapu"?

"Asa Ram Bapu, sir" proudly replied the so well-informed student. 

(In circulation in the social media)

Tuesday, March 24, 2015

तू आटा गूंधते हिलती क्‍यों है

तू आटा गूंधते हिलती क्‍यों है?
राहुल गांधी 'जासूसी' पर कांग्रेस का कुतर्क

        अम्‍बा चरण वशिष्‍ठ

तू आटा गूंधते हिलती क्‍यों है\ यह प्रश्‍न है उस सास का है जिसे अपनी बहू की बिना बात के आलोचना करनी होती है जबकि उसके पास कोई कारण नहीं होता। संयोग से अभी तक सास बनने का सौभाग्‍य तो प्राप्‍त नहीं कर पाई हैं पर आजकल कांग्रेस अध्‍यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी राजनीति में सास का रोल ही कर रही हैं। पिछले वर्ष से चुनावों में लगातार हार के हार पहनती कांग्रेस मुद्दों की कंगाल हो चुकी है। वह सरकार की आलोचना करने केलिये एक पारम्‍परिक सास की तरह बहाने ढूंढती रहती है।
पिछले एक मास से अधिक समय से कांग्रेस के युवराज व राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष छुट्टी लेकर अज्ञातवास पर चले गये हैं। लगता तो ऐसा हे जैसा कि उनकी माताश्री को भी उनके बारे पता नहीं हो। वह इस समय उस अज्ञात स्‍थान — भारत या भारत से बाहर — आत्‍मचिन्‍तन या आत्‍ममंथन कर रहे हैं, यह तो पता नहीं पर वह कांग्रेस को आत्‍म चिन्‍ता में अवश्‍य डाल गये हैं। मीडिया में अफवाहें तो यह भी हैं कि वह रूठ कर घर से भाग गये हैं कि माताश्री उनके लिये पद क्‍यों नहीं त्‍याग देतीं और अपने कर कमलों से उनका राजतिलक क्‍यों नहीं करतीं। खैर, यह तो घरेलू सच-झूठ का मामला है। जनता को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला कि अध्‍यक्ष माताश्री हैं या सुपुत्र। साथ ही समाचार यह भी छप रहे हैं कि वह शीघ्र ही उसी प्रकार अचानक स्‍वयं प्रकट हो जायेंगे जैसे कि वह लुप्‍त हुये थे। साथ में उनकी ताजपोशी अप्रैल में सुनिश्चित कर दी गई है। इसलिये अब उनकी छुट्टी और लुकाछिपी का कोई औचित्‍य नहीं बचा है।
राहुल के अचानक लुप्‍त हो जाने के कारण कांग्रेसपरेशान थी क्‍योंकि उसे हर दिन स्‍पष्‍टीकरण देना पड़ रहा था। इसलिये उसने भी ‘आटा गूंधते हिलती क्‍यों है’’ वाला बहाना ढूंढ लिया अपनी ओर से ध्‍यान हटा कर सरकार पर तोहमत लगाने का काम कर दिया। उसके हाथ आ गया किेसी पुलिस अधिकारी द्वारा राहुल गांधी के बारे कुछ सूचनाये प्राप्‍त करने का। बस उसने इस बात का बतंगड़ बना दिया और आरोप मढ़ दिया कि सरकार राहुल सरीखे विपक्ष के नेताओं पर निगरानी की आंख रख रही है। इसी से उसके पाखण्‍ड की पोल भी खुल गई।
सभी जानते है कि राहुल गांधी को एसपीजी सुरक्षा मिली हुई है। इसका स्‍पष्‍ट अभिप्राय है कि उनकी सुरक्षा की दृष्टि से उनपर हर प्रकार की नज़र रखी जानी अनिवार्य है। ऐसा न करना पुलिस की कोताही होगी और यह उनकी जान के लिये खतरा भी बन सकता है। वह कहां जाते हैं, किसको मिलते हैं, कितनी देर मिलते हैं – यह सब पूर्व सूचना पुलिस के पास होती है और होनी भी चाहिये। जिस क्षेत्र, जिस शहर व जिस प्रदेश में उन्‍हें जाना हो उसकी यथापूर्व सूचना पुलिस को भेजनी होती है ताकि वहां के सुरक्षा अधिकारी इसका यथापूर्व त्रुटिरहित प्रबन्‍ध कर लें। राहुल जैसे सुरक्षा प्राप्‍त व्‍यक्ति को तो यदि अपने किसी सम्‍बंधी या मित्र को भी मिलने जाना हो तो यह अनिवार्य है कि वह पहले ही बता दें कि उन्‍हें कब और किसके पास जाना है ताकि सुरक्षा कर्मी यह पहले ही सुनिश्‍चित कर लें कि वह स्‍थान जहां उन्‍हें जाना है उनकी सुरक्षा की दृष्टि से सुरक्षित है और यदि नहीं तो उसका पूर्व प्रबंध कर लिया जाये। पुलिस उस निजि घर व संस्‍थान का निरीक्षण भी करेगी और वहां रहने वालों का पूरा ब्‍यौरा भी प्राप्‍त करेगी। यदि राहुल यह गिला करें कि यह उनके या उनके मित्र-सम्‍बंधी की प्राइवेसी पर अतिक्रमण है तो यह सुरक्षा व्‍यवस्‍था व उसमें लगे कर्मियों के साथ अन्‍याय है।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये कि निगरानी और उनके बारे सूचना राष्‍ट्रपति, प्रधान मन्‍त्री और मन्त्रियों तक की इकट्ठी की जाती है और रखी जाती है।  
राज्‍य सभा में सदन के नेता व वित्‍त मन्‍त्री अरूण जेटली ने विपक्ष्‍ को सुरक्षा और जासूसी के बीच का फर्क समझाया। उन्‍होंने बताया कि जासूसी बिन बताये की जाती है और सरेआम सूचना प्राप्‍त करने को जासूसी की संज्ञा देना गलत है। फिर ऐसी सूचना केवल राहुल या कांग्रेस व अन्‍य विपक्षी दल के नेताओं से ही प्राप्‍त नहीं की गई है। भाजपा के नेताओं व मन्त्रियों से भी यही सूचना व सवाल पूछे गये हैं। सरकार के पास इस समय 526 सांसदों से इस बारे सूचना प्राप्‍त की जा चुकी है। उन्‍होंने बताया कि प्रोफार्मा पर सूचना एकत्रित करने का काम 1987 से चल रहा है। 1998ए 2004 व 2010 में इस प्रकार की सूचना श्रीमति सोनिया गांधी के घर जाकर भी प्राप्‍त की गई थह। उन्‍होंने यह भी याद दिलाया कि एक बम दुर्घना में एक पूर्व प्रधान मन्‍त्री की हत्‍या के बाद उनके शव की पहचान उनके जूते से ही सम्‍भव हो सकी थी जिसकी सूचना पुलिस के पास उपलब्‍ध थी।
व्‍यक्तियों पर निगरानी सरकार ही नहीं आम जीवन में बहुत से लोग करते व करवाते हैं और करनी भी चाहिये। जो नहीं करते वह बाद में पछताते हैं। नज़र परिवार अपने सदस्‍यों पर भी रखते है। लोग अपने बच्‍चों पर भी रखते हैं। पति पत्नि पर और पत्नि पति पर रखती है। अब तो लाइसैंस प्राप्‍त जासूसी एजैन्सियां भी बन गई हैं जो किसी पर भी यह काम करती हैं। फिर आज तो तकनालोजी इतनी विकसित हो गई है कि किसी चीज़ या बात को पर्दे में छुपा कर रखना सम्‍भव ही नहीं रह गया है।       
उधर मुश्किल यह भी है कि आज सरकारी सुरक्षा प्राप्‍त करना एक स्‍टेटस सिम्‍बल भी बन गया है। किसी की सुरक्षा कम कर दी जाये या हटा ली जाये तो भी बावेला खड़ा कर दिया जाता है। हम भूले नहीं हैं जब प्रियंका के पति रॉबर्ट वडरा की सुरक्षा या सुवधिायें कम करने य हटाने की बात होती है तो बहुत शोर मचाया जाता है। जब यह सब चाहिये तो जिस परेशानी पर व्‍यर्थ का बखेड़ा खड़ा किया जा रहा है वह भी सहना पड़ेगा। पुराने समय में ठीक ही कहते थे कि यदि नथ पहननी है तो नाक बिंधवाने की पीड़ा तो सहनी पड़ेगी ही। कुछ महानुभावों की सुरक्षा का दायित्‍व सरकार पर है। उन पर ग़रीब जनता की गाढ़ी कमाई का करोड़ों-अरबों रूपया भी खर्च किया जा रहा है। तो उन महानुभावों को उनकी सुरक्षा प्रदान करने के मामले में सरकार से भी पूरा सहयोग करना चाहिये। एक ओर तो राहुल को एसजीपी सुरक्षा प्रदान की गई है तो दूसरी ओर वह यह भी हक चाहते हैं कि वह जब चाहें तब चुपचाप गोल हो जायें और किसी के कान में खबर तक न लगे। ऐसी अवस्‍था में क्‍या वह अपने आप को असुरक्षित नहीं कर रहे और सुरक्षा एजैन्यिसों को उन्‍हें सुरक्षा प्रदान करने में असहाय नहीं बना रहे हैं\ इसमें कुछ भूल-चूक हो जाये तो कौन जि़म्‍मवार होगा\

उदय इण्डिया के 28 मार्च, 2015 अंक में भी प्रकाशित

Monday, March 16, 2015

EQUALITY BEFORE LAW — Myth on paper & unreal in practice

EQUALITY BEFORE LAW
Myth on paper, unreal in practice

By Amba Charan Vasishth


Congress rallies in support of ex-PM Dr. Manmohan Singh.

Biz honchos come out in support of (Kumar Mangalam) Birla.

Human rights and social activists rally behind Teesta Setalvad alleging she is victim of an administration out to harrass her for her espousing the cause of the Gujarat riot victims.

These are some of the highlights of the headlines that appeared in the media recently. With such averments and behaviour by the people who matter, are they slowly and steadily not displaying their lack of faith in the rule of law, the investigating agencies and criminal jurisprudence of the country? Inadvertently or otherwise, it looks they are.

What for does this "support" stand for — support for the person who allegedly committed a crime for which his/her conduct is under investigation and trial? Does this conduct behove a responsible, law-abiding citizen of a free and democratic India? Does it ennoble political parties and leaders — some of whom are law-makers themselves — who boast of doing their very best to usher in a civil society where peace and prosperity reigns supreme where justice prevails, innocent are protected and guilty get punished? A regime under which the people have no sense of security of life and property and criminals do not dread the rod of law is a jungle raj.

Whenever a politician is brought to book for a crime he committed, whether in the discharge of his official duties holding a public office or in the performance of his political activities, the instant — and stock — reaction is that the case is "false, baseless, unfounded, politically motivated, an instance of political vendetta, aimed at character assisination" and what not.

 Take note of just a few cases during the last some years. Whether it was the Commonwealth Games scam, 2G scam, Coalgate or others, the then Congress-led UPA government had rubbished the CAG and his reports. On the contrary, the then Prime Minister Dr. Manmohan Singh and Congress President Mrs. Sonia Gandhi are on record having defended that no wrong had been done in violation of the UPA government policy They even issued 'honesty' certificates to the accused A. Raja and others. When Dr. Manmohan Singh's name surfaced in the Coalgate scam, the whole party stood behind him.  As the investigation progressed and facts oozed out, the then CAG Vinod Rai appears now to have the last laugh. The likes of UPA ministers Kapil Sibal and P. Chidambaram now turn the laughing stock of the people for their funny statements and logic.

Now that Dr. Manmohan Singh has been sum named as one of the accused in the Coalgate scam by a CBI court, the Congress party is standing as a pillar of support behind him.  The industry has come out unanimously behind Kumar Mangalam citing various reasons. Protest demonstrations too are not an unheard of even.

A public display of affinity amounts to undermining the credibility of the judicial system and faith in the law to dispense justice by giving a free and fair trial. The judicial system provides for at least two ladders of appeal to higher and the highest courts of the country to ensure that everybody gets justice. A media trial does justice to no party. But the way verdicts, without trial, of "guilty" or "not guilty" by the interested parties and well-wishers, particularly politicians or socially aligned to the accused, can be most harmful.

The Constitution may provide equality before law for all without discrimination on any ground but these gestures by the higher echelons of society seem to be presenting a different spectrum — a spectrum of the practice of law one for the elite and different for the ordinary mortals. A law under which the latter are paraded handcuffed and denied bail even for petty crimes and if allowed bail, they do not have the financial and social resources to fulfill the conditions. They are condemned as "guilty" instantly without trial. On the other hand, the privileges class even when charged with heinous crimes like rape, murder, cheating flashes a broad smile merrily waving to the crowd as if in a battlefield making a great sacrifice fighting for the nation. Even when found guilty and sentenced to prison, the ordinary being rots in jail undergoing rigorous punishment. But the elite enjoy their sentences in the luxury of 5-star hospitals or have fun getting every comfort in the four walls of a prison.

In a civilized society a crime cannot be a  matter of pride for one to raise one's head high and matter of curse and shame for the less privileged.


It is time for all to do something to stem the rot and not allow this notion overwhelm the mind of the common man. That would be disastrous for the democracy and the nation. The people who  matter need to ponder before it is too late.                                           ***

Monday, January 19, 2015

India frustrates another 26/11
CONGRESS & PAK SING A DUET

By Amba Charan Vashishth

          What offended the Congress to get provoked to deny the Coast Guard
story of a terror boat emanating from Karachi having blown itself off
by terrorists themselves that it should refuse to believe it and
challenge the government to provide proof? Congress was in no way,
directly or indirectly, involved. Nobody even remotely alluded to any
Congress connection. Then, why did the Congress volunteer to refuse
to believe the Coast Guard and jump to the Pak boat to sing a duet with
Pakistan saying "there is no evidence"? That is baffling.

Congress lost power in 1996. Kargil war happened in 1999.  All through it was Mrs. Sonia Gandhi who called the shots in Congress — and in government when in power — as its president. It is a coincidence that both during Kargil war and the December 31. 2014 boat incident Nawaz Sharif was the Prime Minister of Pakistan.

During the Kargil military adventure by Pakistan the Congress then was less supportive and more critic of Atal Bihari Vajpayee's NDA government. It launched a political blitzkrieg against the government alleging ‘failure’ to keep a watchful eye on the enemy movements to frustrate such a mischief. It attributed the loss of lives of our valiant soldiers and unnecessary burden on the country's resources to this government lapse. Congress had at that time too attracted the charge of speaking the Pak language.

When ultimately the Government threw out every intruder, dead or live, and got back the last inch of India’s territory, Congress had no words of praise for facilitating  nation’s victory over Pakistan. Congress called it an army victory as if, in its opinion, army is not a part of government but a separate identity. It kept itself away from victory celebrations because for political — and electoral because elections were round the corner — reasons, it did not wish to allow the Vajpayee government to hog the credit.
Courtesy: Nai Duniya

Congress never reconciled to Kargil win. When in 2004 it returned to power, UPA government dispensed with Kargil victory celebrations at government level.

Kargil marked the first and the only decisive victory India scored over Pakistan. Kashmir in 1948 was only a partial success with one-third of the area remaining in illegal occupation of Pakistan.

In 1965 and 1971 war, too, both times India gifted on a platter at the negotiating table to Pakistan what she had won at a great sacrifice of men and material in war. India even handed over back to Pakistan the areas in Kashmir which the brave Indian army had got liberated from aggressor and which rightly and legally belonged to India.

When terrorists struck at Parliament House in 2001, all the terrorists were gunned down by bravehearts who instantly swung into defence of the temple of democracy frustrating all terror plans. Congress, on the contrary, raised the hype of this being   "a monumental security and intelligence failure" of the then NDA government. When Parliament attack culprit Afzal Guru was sentenced to death, it took more than five years for the Congress-led UPA government to take a decision on his mercy petition. The then J&K Congress chief minister Ghulam Nabi Azad and former NC chief minister Farooq Abdullah struck a duet that Kashmir would be on fire if Guru was hanged. As a mark of protest and in utter frustration caused by undue delay in executing Afzal, the bereaved families of those who sacrificed their life in defence of Parliament House surrendered the medals given to the bravehearts posthumously. Yet, the UPA remained unmoved of their hurt sentiments.

On December 31, 2014 night a boat taking off from Karachi port towards Gujarat was intercepted in the Indian waters about 350 miles from Porbandar by our vigilant Coast Guards. When cornered, they blew themselves and the boat off. Pakistan called the story a concoction. It sought proof. So did the Congress. Accusing the NDA government of sensationalizing the issue its spokesman Ajoy Kumar wanted the NDA government to "come clean on it" (as if it had committed some crime) as there is no evidence. How can you say that a terrorist attack was prevented?" he told reporters. This is exactly what  Pakistan was saying. It attracted BJP retort: "The Congress has time and again spoken in the same language that Pakistan has spoken. Today, we cannot differentiate between a Congress spokesperson and a Pakistani spokesperson."  The BJP national president Amit Shah said he feels "Congress doesn't know whether it would fight elections in Pakistan or India."  

It is also for the first time that a political organization which is neither a party to the dispute nor are there charges against whom has challenged a government agency and sought proof. Pak making such a demand is understandable, but why should the Congress?

In pursuit of its narrow political goals, Congress has ended up refusing to believe the brave Coast Guards whose only interest is to protect and secure the country's waters and coasts.


Comparison here with the stand taken by the ruling and opposition parties in USA during 9/11 stands starkly different. The US was taken by surprise by what happened then. But, strangely, no opposition leader or the media raised the question we in India do — total intelligence failure, alleging police, ambulances etc. not reaching in time and demand government resignation for failure to protect the life and property of its citizens. On the contrary, the whole country stood behind the US President as a rock and both houses of Congress and Senate had only praise on their lips to describe the way the then President Bush handled the situation. Do we in India wish to tell the world that we are more democratic and nationalist than all others?                                  ***  
Also published in UDAY INDIA.

Wednesday, December 3, 2014

Not 'Hramzade', it's 'Ramzade' that pinches 'secularists'

Not 'Hramzade', it's 'Ramzade' that pinches 'secularists'

By Amba Charan Vashishth

One should be discreet in the use of one's words. Think before you speak, is another good sermon. This is more apt for persons in politics. One's opponents are always prying for the slip of tongue to put one on the mat. They wish to milch the opponent's cow hard enough to squeeze out the blood of political mileage.

This is more true in the recent controversy that has erupted because of the utterings of Union Minister Sadhvi Niranjan Jyoti who while addressing a public meeting in Delhi is reported to have said that the Delhi voter has to make a choice between Ramzadon and Hramzadon. Later, clarifying on her remarks she is reported to have said that in India everyone is the child of Lord Ram and all others are those who changed their mode of worship. This created a great furore and functioning in both houses of Parliament was disrupted by the opposition. For obvious political reasons, her detractors remained unsatisfied even when the Sadhvi clarified in Parliament: "My intention was not to hurt anyone. If my speech outside the House has hurt anyone, I express my deep regrets".

But this didn't close the matter. The Opposition wants the head of the minister; she should resign or be dismissed. They — and the media — have gone to the extent of dubbing it as "hate speech" and against the Constitution of which she had taken oath. They further demanded that a criminal case be registered against her.

The hypocrisy of the opposition is not new. When Congress President Mrs. Sonia Gandhi in an election meeting in 2007 had described the then Gjujarat chief Minister Narendra Modi as maut ka saudagar, for our 'secularists' and 'liberal' media it did not amount to "hate speech" nor did it hurt the 'secular' psyche.
The opposition and the media stand on the same pedestal on the issue. The former wishes to fish political capital in the trouble waters and the latter, to thrive in grabbing a higher TRP by whipping up flames of controversy. In their heart they know they are only flagging a dead horse.

Zade is an Urdu word which has come to be used in Hindi too when one speaks of Shahzade (prince), Sahibzade (offsprings of a great ancestry), and conjoined with other words to give a particularly special meaning, like hramzade and the like. Ramzade means the off-springs of Lord Ram. He is a god to an overwhelming majority of Indians. Every religion, Hindus included, says that all human beings are the children of god, be it the Christians, Muslims and so on. Nobody challenges this claim. India is a land of Hindus where people have the unchallenged liberty to adopt whatever form of worship they like. Within Hindus there are numerous forms of worship, yet all remain one: Hindu. After the invasion by Muslim and Christian raiders, a section of the people adopted Christian and Muslim ways of worship. The Hindus respect it. Why, therefore, should the use of word Ramzade hurt any section of society? All Indians are the children of god whomever they worship or have faith in.

The dictionary meaning of the word hramzade is bastard, rascal, scoundrel, and ill-begotten. This is the word people use in their everyday life to describe certain individuals. Namakhraam is a word in common usage. By using the words Ramzade and hramzade the Sadhvi just tried to draw a distinction between men of god, gentlemen and civilized persons on the one hand and bastards, rascals and scoundrels, on the other. Do the media and opposition wish to make us believe that among we Indians there are no bastards, rascals and scoundrels at all? Is it, then, a crime to call upon people to choose between men of god and scoundrels?
Needless to call the famous quote of Pandit Jawaharlal Nehru: Aaraam hraam hai. Nobody has felt — and should — offended by these words.

Similarly, halaal is a common Urdu word. Everybody knows its meaning and connotation. When in rage, people are usually seen threatening others: Main tujhe halaal kar rakh doonga (Will slaughter you like a goat "in accordance with conventional prescription").

It is a political travesty of the democracy and 'secularism' that in India with a population of more than 80 percent Hindus the very word Ram pinches very hard the delicate heart of our so-called self-styled liberal-secularists. It is a 'crime' to take His name. Whoever does is branded a fundamentalist 'communal'. A Hindu doesn't have the right to proclaim that he is proud of being one while all other non-Hindus have this privilege.


The writer is a Delhi-based political analyst.
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