Tuesday, August 25, 2020

On China Congress under the shadow of its MoU? By Amba Charan Vas >

Saturday, August 8, 2020

राहुलजी का “सरेंडर मोदी” तंज पलटा “सरेंडर कांग्रेस” बन कर

राहुलजी का सरेंडर मोदीतंज पलटा  सरेंडर कांग्रेसबन कर

अम्बा चरण वशिष्ठ

          करने को तो कांग्रेस पूर्व अध्यक्ष राहुलजी ने  प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदीजी पर “सरेंडर मोदी” का व्यंगात्मक तंज तो अवश्य कस दिया पर ऐतिहासिक तथ्यों की अनदेखी कर दी लगती है या अनभिज्ञता है| यही कारण है कि ऐतिहासिक तथ्यों ने उनके ट्वीट को उल्टा कर “सरेंडर कांग्रेस” ही बना दिया| कांग्रेस द्वारा चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एक समझौता किया था 2007 में जिसका मसौदा आज तक सार्वजनिक नहीं किया गया| यह सर्वविदित है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी, चीन की लिब्रैशन आर्मी और चीन की सरकार के बीच कोई अंतर ढूंढ पाना एक टेढ़ी खीर है|

 

ऐसे समय जबकि देश की सेना चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर संरक्षण केलिए आमने-सामने खड़ी है,  कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधीजी ने एक व्यंगात्मक तंज कस कर प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी कोसर्रेंडर मोदी” (आत्मसमर्पि मोदी) कह डाला | फिर यह तो  स्वाभाविक ही है कि ऐसे समय में  भारत के राजनैतिक दलों के आचार और व्यवहार की तुलना का दृश्य सहज रूप में ही जनता की आँखों के सामने उभर पड़ता है|

एक: 1971 में जब भारत पाकिस्तान के साथ एक युद्ध में व्यस्त था, उस समय भारतीय जन संघ के अध्यक्ष श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि इस कठिन समय में भारत का केवल एक ही नेता है और वह हैं प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी| समूचा देश उनके साथ खड़ा है|   

दो: पिछले 49 वर्षों में अब तक पवित्र गंगा नदी में बहुत सा पानी बह चुका है| इस लम्बे समय में देश में बहुत उथल-पुथल हो चुकी है| जो कांग्रेस उस समय अविजित लगती थी वह आज विपक्ष में है और उतनी ही कमज़ोर जितनी कि सशक्त आश्वस्त है भाजपा-नीत राजग सरकार|

श्री अटल बिहारी वाजपेयी की राजग सरकार में रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडेज़ ने उस समय कह दिया था कि चीन भारत का शत्रु नंबर एक है| तब कईयों ने इसे अतिश्योक्ति कह कर अनसुना कर दिया था| तब बहुत से लोग पाकिस्तान को ही भारत का सब से बड़ा शत्रु मानते थे| पहले 2017 में डोक्लाम और अब गलवान (लद्दाख) में चीन ने जो अपना शत्रुभाव दिखाया  है उससे तो अब सबको जार्ज साहिब की  ही बात ठीक लगती है  हालांकि इस समय  पाकिस्तान भी चीन के हाथ में ही खेल रहा है|   

2014 में जब श्री नरेन्द्र मोदी ने पूर्ण बहुमत प्राप्त कर प्रधान मंत्री पद ग्रहण किया तो उन्होंने चीन समेत भारत के सारे पड़ोसी देशों से भारत के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण बनाने केलिए कुछ ठोस कदम उठाये| पर चीन और पाकिस्तान की रग-रग में दौड़ते शत्रुभाव और धोकाधड़ी की मानसिकता में कोई बदलाव सका| उन्होंने उलटे श्री मोदी के इस मैत्रीभाव को उनकी नई सरकार की कमजोरी ही समझ लिया|   

लगता है आज 2020 में भी चीन 1962 के दिवास्वप्न में ही जी रहा है| वह वर्तमान की सच्चाइयों की अनदेखी कर रहा है| वह यह नहीं समझ  रहा कि आज का 2020 किसी केलिए भी 1962 नहीं है चीन केलिए और भारत केलिए| आज चीन में चाऊ एन लाई प्रधान मंत्री हैं और भारत में प्रधान मंत्री जवाहरलाल जी ही हैं| तब और आज में जो समानता है वह केवल यही कि आजका चीन भी उतना ही अविश्वसनीय और पीछे से दोस्त की पीठ में छुरा घोम्पने वाला है जितना कि वह पहले था | वह भारत के साथ मित्र बन कर 1962 में यही कर चुका है और आज भी यही कर रहा है|  

पीछे जब भी चीन ने भारत को सीमाओं पर धमकाया तो उस समय केंद्र में  कांग्रेस सरकारें ही थीं| पर इस बार जब चीन ने भारत के खिलाफ वही हिमाक़त कर दी तब उसे पता चला कि उसने इस बार ग़लत जगह पर हाथ डाल दिया है| उसे तब समझ आई कि यह सरकार तो पिछली सरकारों से बहुत भिन्न है जो दोस्ती का हाथ भी बढाती है और अगर कोई दोस्ती की आड़ में दुश्मनी का प्रदर्शन करता है तो  वह उसी हाथ से मुंह तोड़ मुक्का भी जड़ देती  है ताकि उसके होश ठिकाने जाएँ| वर्तमान सरकार कोई मक्कारी भी बर्दाश्त नहीं करती| अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के शब्दों में, श्री मोदी बड़े सच्चे-पक्के मित्र हैं पर जब राष्ट्र के हित की बात जाती है तो  उसे सुरक्षित करने केलिए बड़े कड़क भी बन जाते  हैं| 

अब जबकि चीन ने दोस्ती का मार्ग छोड़ कर दुश्मनी और विस्तारवादी रुख अपनाया है तो  मोदी सरकार ने भी सेना को खुली छुट्टी दे रखी है   जैसा पहले कभी नहीं हुआ कि वह स्थिति के अनुसार देश की सीमा और पवित्र भूमि की रक्षा केलिए जो भी ठीक समझें अवश्य करे|  अब वह समय नहीं रहा जब सैनिकों को दिल्ली की ओर मुंह  करना पड़ता था यह पूछने केलिए कि उनके हाथ में जो बन्दूक है उसकी गोली देश की रक्षा केलिए वह चला सकते हैं या नहीं|

पर जब पाक समर्थित प्रेरित आतंकियों ने उरी पुलवामा पर धावा बोला तो उस पर भारत की सब से पुरानी राजनितिक पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के  तत्कालीन अध्यक्ष श्री राहुल गाँधी के स्टैंड ने तो सब को अचंभित उद्वेलित कर के रख दिया| यह भारत के जनमानस की भावनाओं से बिलकुल उलट था| उरी के बाद जब भारत ने पाकिस्तान के विरुद्ध सर्जिकल स्ट्राइक की तो पाकिस्तान ने तो इसे झूठ बताया ही, राहुलजी ने इसका सबूत माँग डाला | बाद में आतंकियों ने पुलवामा में सुरक्षा बलों  के हमारे 40 बहादुर सैनिको को शहीद कर दिया| मोदीजी ने घोषणा की कि पाकिस्तान को इस दुस्साहस का खम्याज़ा भुगतना पड़ेगा| फलस्वरूप भारतीय वायु सेना ने बालाकोट में अपने एक साहसिक आपरेशन में पाकिस्तान के भीतर घुस कर आतंकियों के ठिकानों को ध्वस्त कर 200 से अधिक आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया| झूठ बोलने की आदत के मुताबिक पाकिस्तान ने फिर इसे झूठ बता दिया| राहुलजी भी पीछे नहीं  रहे| उन्होंने भी इसका सबूत मांगने की देरी की| राहुलजी तथा अन्य विपक्षी नेताओं के भाषण पाकिस्तानी मीडिया में सुर्ख़ियों में छाये रहे| पाकिस्तान ने अपने झूठे प्रचार केलिए भारतीय नेताओं के कथनों को उद्धृत किया| बाद में पाकिस्तान ने सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट आपरेशन दोनों को स्वीकार कर लिया| किरकिरी किसकी हुई?

यह मोदीजी की राजनयिक सफलता का ही कमाल है कि आज पाकिस्तान विश्व के देशों में अलग-थलग पड़ गया है| अमरीका. बर्तानिया, फ्रांस, जर्मनी, जापान. इजराइल, और कई अन्य देशों ने भारत को अपनी सुरक्षा और आतंक के विरुद्ध लड़ाई में कुछ भी करने के लिए उसके अधिकार का समर्थन किया है|

यूपीए-1 के कार्यकाल के दौरान 2008 में कांग्रेस ने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एक समझौते ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये जिसमें दोनों ने एक दूसरे के साथ बड़ी महत्वपूर्ण जानकारी के आदान-प्रदान और सहयोग करने केलिए अपनी प्रतिबधता जताई|  इस ज्ञापन में दोनों ही दलों नेदोनों के हित के आपसी, क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय महत्वपूर्ण मामलों में एक-दूसरे से परामर्श करने की प्रतिवद्धता भी जताई”|

यह ज्ञापन तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गाँधी की उपस्थिति में उनके सुपुत्र तत्कालीन कांग्रेस महामंत्री राहुलजी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के तब के उपप्रधान श्री जी जिनपिंग ने हस्ताक्षर किये थे जो आजकल चीन के राष्ट्रपति हैं|

इस ज्ञापन में क्या लिखा है, यह आज तक रहस्य बना हुआ है| इस में क्या है या क्या नहीं है, यह तो कांग्रेसियों को भी नहीं बताया गया है| पर क्या कांग्रेसजन और भारत के लोगों को ज्ञापन  का मसौदा जानने का अधिकार नहीं है? कांग्रेस वैसे तो पारदर्शिता का ढिंढोरा पीटती है पर अपने बारे गुप्तता बनाये रखना चाहती है, चीन ही की तरह|

यह भी याद रखने की बात है कि 2017 में डोक्लाम विवाद के समय राहुलजी भारत में चीन के राजदूत को मिले थे| यह पता नहीं कि वह उस ज्ञापन के अनुपालानके अनुसार वहां गए थे|

2008 में चीन सरकार के आमंत्रण पर श्रीमती सोनिया गाँधी अपने परिवार राहुल गाँधी, पुत्र, प्रियंका गाँधी वडरा, और उनके दो बच्चों के साथ आलंपिक गेम्स के उदघाटन समारोह में चीन गयी थीं| हैरानी की बात यह है कि चीनने इस समारोह में तब के प्रधान मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह या उनके किसी मंत्री को नहीं बुलाया| लगता है कि चीन को भी अब समझ गया है कि कांग्रेस अब एक गाँधी-नेहरु परिवार तक ही सीमित हो कर रह गई है और अन्य का कोई अस्तित्व नहीं है|  

एक वर्ष पूर्व सोनिया गांधीजी अपने पुत्र राहुलजी  के साथ एक कांग्रेसी प्रतिनिधि मंडल के साथ चीन भी  गयी थीं |

15-16 जून, 2020 को चीन ने एक बार फिर लद्दाख में गलवान के स्थान पर अपनी विस्तारवादी नीति के अनुसार वहां एक बार फिर झगडा खड़ा कर दिया| वहां झड़प में भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए| चीन के 43 जवान भी इस झड़प में मारे गए थे| चीन सरकार ने तो इस तथ्य का खंडन किया पर उसके सरकारी दैनिक ग्लोबल टाइम्स  में माना कि एक अफसर समेत उसके काफी जवान मारे गए हैं| चीन का अमानवीय चेहरा भी उजागर हो गया  कि चीन सरकार ने दिवंगत सैनिकों के परिवारों को भी नहीं बताया और स्वयं ही उनका अंतिम संस्कार कर दिया| परिवारों को बताने पर सच्चाई उजागर हो जाती|

          प्रधान मंत्री मोदीजी , रक्षा मंत्री राजनाथ सिंहजी और विदेश मंत्री जैशंकरजी ने चीन   और साथ ही पाकिस्तान   को साफ़-साफ़ बता दिया कि भारत किसी भी सूरत में अपनी भूमि के इंच पर भी किसी प्रकार का समझौता नहीं करेगा और इसके लिए वह सब कुछ करने केलिए तैयार है| अमरीका, जापान, बर्तानिया और ऑस्ट्रेलिया जैसे अनेक देशों ने चीन की विस्तारवादी सोच के विरुद्ध भारत का साथ देने का आश्वासन दिया है| वैसे चीन ने वहां से दो किलोमीटर पीछे हट जाने का विश्वास दिलाया है पर फिर भी आज-कल करता जा रहा है|

यह सफलता भारत के ठीक स्टैंड की सफलता है| यह प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी के लद्दाख में सीमा स्थल पर अचानक दौरे का नतीजा भी  है| इससे सीमा पर डटे  सैनिकों के मनोबल को बड़ा बल मिला | इस दौरे में सेना प्रमुख भी उनके साथ थे| प्रधान मंत्री संघर्ष में घायल हुए जवानों को सेना अस्पताल में भी देखने गए| घायल सैनिकों ने प्रधान मंत्री जी को बताया कि वह शीघ्र स्वस्थ होकर फिर अपनी सीमा की सुरक्षा केलिए चीन से दो हाथ करने केलिए बेताब हैं|

मोदीजी के दौरे ने चीन और पाकिस्तान दोनों को ही स्पष्ट सन्देश दे दिया कि भारत किन्हीं भी गीदड़ भवकियों से विचलित होने वाला  नहीं है| पाकिस्तान के प्रधान मंत्री तो इतने परेशान हो गए कि उन्होंने उसी दिन अपनी सुरक्षा समिति की एक आपात बैठक बुला ली| 

          भाजपा-नीत राजग सरकार इस बात पर गौरव कर सकती है कि जब-जब भी उसकी सरकार रही है उसने अपने समय में कभी दुश्मन के साथ एक इंच भूमि पर भी समझौता नहीं किया है| यह तो स्वर्गीय प्रधान मंत्री श्री जवाहर लाल ही थे जिन्होंने 1962 में अपने कार्यकाल में अक्साई चिन में  38000 किलोमीटर से अधिक भारत की भूमि  चीन के हाथों गँवा दी| एक मीडिया रिपोर्ट (IANS) ने मई 2020 में समाचार दिया कि चीन ने यूपीए-2 के कार्यकाल में पूर्वी लद्दाख में 640 वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्ज़ा कर लिया है| 2013 में पूर्व विदेश सचिव श्याम सरन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के अध्यक्ष थे| लद्दाख क्षेत्र के दौरे के समय उन्होंने भी पाया कि चीन की पीपलज लिबरेशन आर्मी ने लद्दाख में 640 वर्ग किलोमीटर भारत की भूमि पर कब्ज़ा  कर लिया है| सरनजी ने भी मनमोहन सरकार को इसकी सूचना दी| पर यूपीए सरकार ने इसकी अनदेखी कर दी|  

 एक ट्वीट में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल के  प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी को सरेंडर मोदीकहने से  लगता ऐसा है कि नेहरु-गाँधी वंशज राहुलजी का भारत के इतिहास का ज्ञान काफी कमज़ोर है | लद्दाख के अक्साई चिन के 38000 किलोमीटर से अधिक का भूभाग चीन को उनके पड़नाना प्रधान मंत्री श्री जवाहरलाल नेहरु के समय सरेंडर हुआ था| 1972 में शिमला समझौते द्वारा राहुलजी की दादी प्रधान मंत्री इंदिरा गांधीजी ने पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध में हमारी सेना के बहादुर जवानों के अदभुत शौर्य क़ुरबानी के फलस्वरूप पाकिस्तान पर जीत को पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधान मंत्री जुल्फिकार भुट्टो को एक तश्तरी पर रखकर एक मुस्कान के माध्यम से दे डाला| अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पर जीती भूमि को तो लुटाया ही, पर उसके साथ पकिस्तान अधिकृत कश्मीर का वह इलाका भी बड़ी दरयादिली से पाकिस्तान को दान कर दिया| एक तरफ तो हम बार-बार कहते फिरते हैं कि सारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर हमारा है तो वह इलाके  क्यों पाकिस्तान को लौटा दिये? 1948 से ही भारत अनगिनित बार कहता फिरता है कि यदि पाकिस्तान से कोई मुद्दा सुलझाना है तो केवल पाक अधिकृत कश्मीर को भारत के साथ मिलाना है|  जीते हुए कश्मीर भाग को वापस पाकिस्तान को लौटा देने से क्या भारत का उस पर अधिकार कमजोर  नहीं पड़ा?

स्वतंत्र भारत में पिछले 73 वर्ष में यदि भारत ने सच्ची और वास्तविक जीत प्राप्त की है तो  वह केवल तब जब देश में भाजपा के नेतृत्व में राजग सरकार  थी| 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधान मंत्री थे जब पाकिस्तान ने कारगिल में आक्रमण किया था| तब इसी सरकार ने सभी उत्पादियों को देश की पवित्र भूमि  से मार भगाया था| यह देश की सच्ची-पक्की विजय थी|

2017 और 2020 में श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने चीन को डोकलाम से पीछे हटने केलिए मजबूर कर दिया था और देश की एक इंच भूमि पर भी उसके <span lang="HI" style="font-fam