Thursday, September 15, 2016

हास्‍य-व्‍यंग शादी तो प्रेम की कैंची है

हास्‍य-व्‍यंग
        कानोंकान नारदजी के
शादी तो प्रेम की कैंची है

मैं प्‍यार करता हूं, बस प्‍यार। और कुछ नहीं। कर भी नहीं सकता। यदि मैं करूं तो इसका मतलब है कि मेरा प्‍यार सच्‍चा नहीं है। मैं इतना मशहूर हो गया हूं कि मेरी गली, मुहल्‍ले व गांव के लोग मेरा नाम ही भूल गये हैं। कोई मुझे मजनूं कहता है, तो कोई शीरीं का फरहाद। मैं इतना मशहूर गया हूं कि मेरे प्‍यार के चर्चे हर ज़ुबान पर चढ़ने लगे हैं। कइयों को तो इतनी जलन व ईर्षा होने लगी कि वह कहने लगे कि मैं तो प्‍यार में बदनाम हो गया हूं। उन नासमझों को यह भी नहीं पता कि प्‍यार से नाम होता है बदनाम नहीं। खैर, मैं उन पर गुस्‍सा नहीं करता। मैं उनपर तरस ही खाता हूं। बेचारे करें भी क्‍या, स्‍वयं तो प्‍यार कर नहीं सके, सफल हो नहीं सके, इसलिये अपनी नालायिकी से सुलगी जलन की भड़ास वह इन शब्‍दों से निकालते हैं।
मेरी प्रसिद्धि दूर-दूर तक होने लगी। लोग मुझे देखने आने लगे। मुझे मिलने आने लगे। कइयों के हावभाव से तो ऐसा लगता था कि वह मेरे दर्शन कर धन्‍य होने लगे। मैं भी किसी को निराश नहीं करता था। कई तो मुझ से प्‍यार में सफलता के गुर, टोटके पूछने व समझने लगे। मैं भी इस में कोई कंजूसी नहीं बरतता। इससे किसी का भला हो जाये तो मेरा क्‍या जाता है।
बात तो यहां तक पहुंच गई कि देश व विदेश से पत्रकार मुझ से साक्षात्‍कार के लिये गिड़गिड़ाने लगे। मैं सब से बड़े विनम्र भाव से कहता कि मेरे पास समय नहीं है। मैं अपने प्‍यार में इतना व्‍यस्‍त हूं, मस्‍त हूं कि  साक्षात्‍कार के लिये कोई वक्‍़त नहीं निकाल सकता। वह मेरे साथ सहमत होते। मानते कि मैं समय कहां से निकाल सकता हूं। पर वह इसरार करते कि प्‍यार की खातिर अवश्‍य समय निकालिये। लाखों-करोड़ों का भला होगा। अपने प्‍यार में असफल रहने पर देश व विश्‍व में हज़ारों-लाखों आत्‍महत्‍यायें कर रहे हैं। प्‍यार के क्षेत्र में आपके अनुभवों, खोजों व आविष्‍कारों से अनेक त्रस्‍त प्रेमियों का भला हो जायेगा। उनके त्रस्‍त मन को सान्‍त्‍वना मिलेगी। उन्‍हें राहते मिलेगी, उन्‍हें रास्‍ता मिल जायेगा। वह भटकने से बच जायेंगे। आप उन पर तर्स करो। वह भी आपके ही भाई-बन्‍धू हैं। आखिर मैं मान ही गया। यदि मेरे कारण प्रेमियों का भला होता है तो मुझे खुशी ही होगी क्‍योंकि मैं भी तो प्‍यार का पैग़ाम घर-घर पहुंचाना चाहता हूं। मैं तो प्‍यार का मसीहा हूं आखिर। इसी से तो भाईचारा बढ़ेगा, प्रेम फैलेगा और विश्‍व में शान्ति का राज होगा। हिंसा और असहिष्‍णुता दूर होगी।
वह एक बड़ा पत्रकार निकला, एक बहुत बड़े समाचार समूह का प्रतिनिधि। मैं तो समझा था कि वह एक बड़े चैनल का प्रतिनिधि है जो देश में ही नहीं विदेशों में भी मेरी छवि बना देगा। प्‍यार का सन्‍देश घर-घर पहुंचा देगा। जब उसके पास कोई टीवी कैमरा नहीं था, तो मैं उससे थोड़ा मायूस तो हुआ पर मैंने कहा छोड़ो, बेचारा आ गया है तो उसे भी मायूस मत करो।
पर वह तो हमारे गांव के एक पत्रकार से भी गया गुज़रा निकला। बड़े अटपटे सवाल पूछने लगा। मझे पूछा कि तुम्‍हारा नाम क्‍या है। जब मैंने कहा कि कृष्‍ण तो पूछने लगा कि यह आपका असली नाम है। मैंने बताया कि माता-पिता ने तो मेरा कुछ और नाम रखा था पर मैंने स्‍वयं कृष्‍ण रख लिया। पूछने लगा कि माता-पिता द्वारा रखा नाम क्‍या था। मैंने कहा जो तुम्‍हें ही बताना होता तो मैं बदलता क्‍यों। कहने लगा कि बताने में बुरा क्‍या है। मैंने कहा मैं अपने दो नाम बता कर लोगों में भ्रम की स्थिति पैदा नहीं करना चाहता।
मुझे तो लगा कि वह मेरा साक्षात्‍कार नहीं ले रहा था बल्कि मेरे से जिरह कर रहा हो जैसे कि मैं कोई अपराधी हूं या अदालत में गवाही दे रहा हूं। पूछता कि जब आपने नाम बदला तो कृष्‍ण ही क्‍यों रखा, कुछ और क्‍यों नहीं। ग़ुस्‍सा तो मुझे आया पर कंट्रोल कर गया।
फिर पूछने लगा कि आपकी उम्र क्‍या है।  मैंने कहा कि तुम ने मेरी उम्र से क्‍या लेना है। उसने कहा कि बताने में हर्ज़ ही क्‍या है। तब मैंने उसे समझाया कि भैय्या, प्‍यार की कोई उम्र नहीं होती। प्‍यार कोई भी कर सकता है – बच्‍चा, बूढ़ा और जवान। प्‍यार कभी भी हो सकता है, किसी को भी हो सकता है, किसी समय भी हो सकता है।
मेरे को पूछता कि तुम्‍हारी ऊंचाई कितनी है। मैंने कहा तुम खुद ही देख लो मुझे तो नापने का न कभी समय लगा और न कभी ज़रूरत ही समझी। तुम्‍हारी उसकी ऊंचाई कितनी होगी। मैं ने उसे अपना वही जवाब दोहरा दिया। वह लम्‍बाई में तो आपसे छोटी ही होगी। मैंने कहा वह छोटी हो या लम्‍बी, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता। मुझे तो उससे प्‍यार करना है, मैंने उसके कपड़े नहीं सिलने हैं जो मैं उसकी लम्‍बाई-चौड़ाई का हिसाब रखूं।                     
          
पूछने लगा कि उसकी उम्र कितनी है। मैंने कहा कि मैंने उससे प्‍यार किया है। मैंने उसे नौकरी देने के लिये इन्‍टर्व्‍यू नहीं लिया जो मैं उसकी उम्र पूछता कि कहीं उसकी उम्र निधार्रित आयु से कम या ज्‍यादा तो नहीं है। पूछता कि आपकी उम्र से तो कम ही है ना। मैंने कड़क सा जवाब दिया – जब मुझे उससे प्‍यार हो गया तो वह मुझ से बड़ी हो या छोटी, कोई फर्क नहीं पड़ता।
वह देखने में कैसी हैमुझे हंसी आ गई। मैंने कहा, सुन्‍दर, अति सुन्‍दर। बोला – होनी ही चाहिये। मैंने कहा, मैं आपसे एक बात पूछूं। उसने कहा, हां-हां, बड़ी खुशी से। मैंने पूछा, आपकी शादी हो चुकी है? कहता – हां। मैंने पूछा कि तुमने कभी अपनी बीवी को कहा है कि वह सुन्‍दर नहीं है? बोला – तुम मुझे जूते मरवाना चाहते हो? मैंने कहा कि एक पते की बात मुझ से भी सुन लो। जूते शादी के बाद चलते हैं, शादी से पहले नहीं। बोला – तुम तो यार बड़े नजुर्बेकार लगते हो। मैंने कहा -- भैय्या, तभी तो तुम मेरा साक्षात्‍कार लेने पहुचे हो।
पूछता कि तुम पढ़े क्‍या हो? मैंने कहा – प्‍यार। उसने कहा – मैं पूछ रहा हूं कि तुमने पढ़ाई कहां तक की है। मैने कहा – अढ़ाई अक्षर प्रेम का। उसने पूछा – उससे आगे?
मुझे फिर हंसी आ गई। कहा – भैय्या, प्रेम के मामले में कुछ नादान लगते हो। सच्‍चे प्रेमी के पास स्‍कूल-कालिज की पढ़ाई करने का समय ही कहां होता है। फिर तुम ने कहीं पढ़ा है या किसी ने पूछा है कि शीरीं-फरहाद या लैला-मजनूं कितने पढ़े थे। जो प्‍यार करता है वह पढ़ नहीं सकता और जो पढ़ता है वह प्‍यार नहीं कर सकता। यदि कोई पढता भी है और दावा करता है कि वह प्रेम भी करता है तो वह पाखण्डी है, झूठा है।
तो तुम बड़े होकर क्‍या करोगे जब तुम्‍हारे लिये काला अक्षर भैंस बराबर होगा। नहीं, मैंने ज़ोर देकर कहा, मेरे लिये काला अक्षर भैंस बराबर नहीं, प्‍यार के बराबर होगा।
तो फिर तुम घर-गृहस्‍थ कैसे चलाओगे क्‍योंकि कोई नौकरी तो तुम्‍हें मिलेगी नहीं क्‍योंकि तुम्‍हारे पास कोई डिग्री तो होगी नहीं?
मैंने कहा – मुझे प्‍यार करना है, नौकरी नहीं। यदि मैं किसी की नौकरी करूंगा तो प्‍यार कहां से कर पाऊंगा? उसके लिये तो मेरे पास समय ही नहीं बचेगा। फिर मैंने अभी कौनसी गृहस्‍थी बसा ली है?
तो तुम शादी कब करोगे? उसने पूछा तो मैंने उत्‍तर दिया — भैय्या, तुम खबर बनाने की जल्‍दी के चक्‍कर में लगते हो। सुन लो, मैंने तो अभी उसे प्रोपोज़ भी नहीं किया।
तो कब करोगे? उसने आगे पूछा। मैंने कहा, तुझे क्‍या जल्‍दी है? यह निर्णय तो मैंने करना है, तुमने या तुम्‍हारी अखबार ने तो नहीं। मैंने आगे कहा – लगता है कि तुम्‍हारा सामान्‍य ज्ञान भी बहुत कमज़ोर है। किस किताब में लिखा है कि उन महान् प्रेमियों ने कभी प्रोपोज़ किया हो। उसने अपनी अज्ञानता जताई पर आगे एक और सबाल कर दिया – तो तुम्‍हारी शादी कब और कैसे होगी?
मैंने कहा – भैय्या मैंने तुम्‍हें पहले ही बता दिया है कि हम प्‍यार करते हैं। मैंने शादी की बात कब की?
पर प्‍यार का अन्तिम पड़ाव तो शादी ही है ना – उसने कहा। मैंने भी पट से उत्‍तर दे दिया – ट्रैजडी भी तो है। मेरे उत्‍तर से वह हतप्रभ रह गया। बोला – यह तो है।
फिर मैंने उसको ही पूछ लिया – बता, शीरीं-फरहाद व लैला-मजनूं की शादी हुई थी?
उसने कहा – नहीं।
तो मैंने कठोर व स्‍पष्‍ट शब्‍दों में कहा – सुनो, हम सभी अनन्‍त प्रेमियों से आगे निकलेंगे। इतिहास रचायेंगे। हम शादी नहीं करेंगे। केवल प्रेम करेंगे सदा, सदा सैंकड़े जन्‍मों तक। शादी तो प्रेम की कैंची होती है। हम अपना प्रेम अमर बनायेंगे।                   ***    
Courtesy: Uday India (Hindi) weekly

Tuesday, September 6, 2016

हास्‍य-व्‍यंग केजरीवालजी को कदम-कदम पर परेशान करते मोदीजी

हास्‍य-व्‍यंग
        कानोंकान नारदजी के
केजरीवालजी को कदम-कदम पर परेशान करते मोदीजी  
बेटा:   पिताजी।
पिता:  हां, बेटा।    
बेटा:   पिताजी, दिल्‍ली में सरकार मोदीजी की है?
पिता:  बेटा, तेरे को पता नहीं कि पिछले दो वर्ष के अधिक समय से दिल्‍ली में केन्‍द्र की भाजपानीत सरकार सत्‍ता में है?
बेटा:   पिताजी, केन्‍द्र में तो मोदीजी की सरकार है, यह तो मैं जानता हूं। मैं तो दिल्‍ली प्रदेश की बात कर रहा हूं।
पिता:  कमाल कर रहा है, तेरे को यह भी नहीं पता कि दिल्‍ली में अरविन्‍द केजरीवालजी की सरकार है?
बेटा:   पिताजी, मुझे तो यह भी पता है। मैं तो यह जानना चाहता हूं कि यदि सरकार केजरीवालजी की है तो दिल्‍ली में हर सफलता का श्रेय केजरीवालजी को जाता है और हर असफलता के लिये भी वह ही जि़म्‍मेवार हैं। फिर वह हर बात के लिये मोदीजी को क्‍यों दोषी ठहराते हैं?
पिता:  बेटा, देश में अभिव्‍यक्ति की पूर्ण स्‍वतन्‍त्रता है। केजरीवालजी भी स्‍वतन्‍त्र हैं। वह जो चाहे कह सकते हैं।
बेटा:   पर पिताजी, केजरीवालजी तो कहते फिरते हैं कि देश में अभिव्‍यक्ति की स्‍वतन्‍त्रता का अभाव है। इस बात का ढिंढोरा तो वह जेएनयू और हैदराबाद यूनिवर्सिटी मामलों पर टिप्‍पणी करते समय कई बार पीट चुके हैं। 
पिता:  बेटा, यह तो केजरीवालजी को ही निणर्य करना है कि उन्‍हें क्‍या कहना है और क्‍या नहीं।  
बेटा:   तो पिताजी, जब सरकार केजरीवालजी की है तो हर काम के लिये मोदीजी कैसे उत्‍तरदायी हैं?
पिता:  बेटा, इतना मत भूलना कि वह हर  उपलब्धि का श्रेय तो स्‍वयं लेते हैं पर जहां वह विफल होते हैं उसके लिये दोष मोदीजी के नाम मढ़ देते हैं।
बेटा:   पिताजी, केजरीवालजी स्‍वयं व उनके मन्‍त्री स्‍वयं कुछ नहीं करते?
पिता:  यह कैसे हो सकता है? मन्‍त्री हैं, वेतन-भत्‍ते लेते हैं तो काम करना तो उनका कर्तव्‍य बनता है।
बेटा:   तो फिर पिताजी, स्‍वयं केजरीवालजी व उनके मन्‍त्री क्‍यों कहते फिरते हैं कि मोदीजी उनको काम नहीं करने देते?
पिता:  सुना तो मैंने भी है पर समझ नहीं आता।
बेटा:   पिताजी, केजरीवाल सरकार ने विज्ञापन जारी किये हैं और भाषणों में कहते फिरते हैं कि वह अमुक कार्य करना चाहते थे, योजना चलाना चाहते थे पर मोदीजी ने उस काम को कर रहे अफसर ही बदल दिये।
पिता:  हां, यह विज्ञापन तो मैंने भी पढ़ा है।
बेटा:   पिताजी, जब एक अफसर बदल जाता है तो उसके स्‍थान पर दूसरा अधिकारी भी तो लगा दिया जाता है। फिर क्‍या दूसरा अधिकारी काम नहीं करता?
बेटा:   यह कैसे हो सकता है? सरकार सब को बराबर का वेतन देती है। यदि काम न करे तो उसके विरूद्ध कार्रवाई भी तो की जा सकती है। केजरीवाल सरकार ने तब उनके विरूद्ध कुछ किया क्‍यों नहीं? 
पिता:  यह तो बेटा वही ही जानें।
बेटा:   इसका मतलब यह तो नहीं कि वह स्‍वयं ही नहीं चाहते कि वह काम हो पर उसका दोष मोदी सरकार पर डाल देने से वह एक तीर से दो शिकार साध लेते हैं। अपना उद्देश्‍य भी पूरा हो गया और दोष भी मोदीजी के सिर लग गया। जनता में बुरे बने तो मोदीजी। 
पिता:  बेटा, यह पालिटिक्‍स बड़ी टेढ़ी खीर है।
बेटा:   पर पिताजी, केजरीवालजी तो बड़े-बड़े दावे करते फिरते हैं कि उनकी सरकार ने तो इतना काम कर दिखाया है जितना कि अब तक की कोई सरकार नहीं कर पाई है। तो फिर यह सब कुछ मोदीजी के सहयोग के बिना कैसे सम्‍भव हो गया?
पिता:  बेटा, यही तो समझ नहीं आ रहा कि यदि मोदीजी केजरीवाल सरकार को काम ही नहीं करने देते तो जो काम का वह दावा कर रहे हैं, वह कैसे हो रहे हैं?
बेटा:   पिताजी, जब दिल्‍ली में मोदीजी काम नहीं होने दे रहे पर फिर भी होते जा रहे हैं। तो क्‍या यह ईश्‍वर की देन है?
पिता:  यह तो हो सकता है बेटा। ईश्‍वर तो महान् है।
बेटा:   पिताजी, मुझे याद आया कि केजरीवालजी तो कहते थे कि वह ईश्‍वर में विश्‍वास नहीं करते।
पिता:  बेटा तू भूल गया कि बाद में केजरीवालजी ने कह दिया था कि अब उन्‍हें विश्‍वास हो गया है कि ईश्‍वर का भी अस्तित्‍व है। 
बेटा:   उसके बाद जब उन्‍होने देखा कि काम तो दिल्‍ली सरकार में अपने आप ही होते जा रहे हैं?
पिता:  अब तो बेटा, पंजाब में वह दरबार साहिब के दर्शन भी कर आये और मॅाफी भी मांग ली है। 
बेटा:   तब तो पिताजी, आपकी बात ही सच हो गई कि पालिटिक्‍स में आदमी को कई धंधे करने पड़ते हैं।
पिता:  यही नहीं बेटा, आवश्‍यकता पड़ने पर तो गधे को भी बाप बनाना पड़ता है।
बेटा:   आपके कहने का क्‍या मतलब यह है कि केजरीवालजी के मोदीजी पर यह आक्रमण भी पालिटिक्‍स ही है और कुछ नहीं?  
पिता:  यही नहीं तो और क्‍या है? मोदीजी केजरीवालजी के कोई रिश्‍तेदार तो हैं नहीं जो उन्‍होंने आपस में कोई ज़मीन-जायदाद बांटनी है जिसके लिये वह लड़ रहे हैं।   
बेटा:   पर उनकी लड़ाई से तो ऐसा ही आभास मिलता है। 
पिता:  बेटा, सत्‍ता भी तो एक जायदाद ही है जिसको हथियाने के लिये लड़-मर रहे हैं।
बेटा:   अब समझा पिताजी कि क्‍यों लोगों ने पार्टी को ही परिवार में बदल दिया है ताकि सत्‍ता की जायदाद का बंटवारा न हो और परिवार में ही बनी रहे।
पिता:  सीधी सी बात है। नेहरूजी ने सत्‍ता की जायदाद इन्दिराजी को सौंपी। इन्दिराजी ने अपना उत्‍तराधिकारी पहले संजय गांधी को बनाया। उसकी अकस्‍मात् दु:खद मृत्‍यु के बाद अपने बड़े बेटे राजीव को उत्‍तराधिकारी बना दिया।  
बेटा:   पर 1991 में राजीवजी की मृत्‍यु के बाद तो यह श्रंखला टूट गई।
पिता:  कहां टूटी? सोनियाजी ने पांच वर्ष तो लोगों को भ्रम में अवश्‍य रखा पर ज्‍योंहि उन्‍हें मौका मिला तो 1996 में कांग्रेस अध्‍यक्ष की गद्दी सम्‍भाल ली। जब 2004 में अवसर मिला, पहले तो वह प्रधान मन्‍त्री बनने केलिये तैयार थीं पर पता नहीं क्‍या हुआ कि उन्‍होंने गद्दी त्‍याग कर डा0 मनमोहन सिंह को प्रधान मन्‍त्री बना दिया पर सत्‍ता की कूंजी अपने हाथ में रखी ठीक उसी तरह जैसे एक पारम्‍परिक सास बहू कों कहती है कि घर की मालकिन तो अब तू ही है पर किसी चीज़ को हाथ मत लगाना।
बेटा:   पिताजी ठीक उसी तरह जैसे आजकल दिल्‍ली में केजरीवाल सरकार चल रही है। मनमोहन सरकार ने घेटाले और भ्रष्‍टाचार करने में रिकार्ड कायम कर दिया और केजरीवाल सरकार भी कुछ कम नहीं रही। उसके लगभग एक-तिहाई विधायक या तो जेल में हैं या उन पर बदालतों में आपराधिक मामले चल रहे हैं। 
पिता:  हां, यह तो ठीक है। मैंने तो सोशल मीडिया पर यह भी पढ़ा कि एक ने लिखा है कि तिहाड़ जेल के मुखिया ने सरकार बनाने का दावा ठोक दिया है। उसका कहना है कि जो विधायक उसकी जेल में प्रवास कर चुके हैं उन सभी ने उसे समर्थन देने का विश्‍वास दिलाया है।
बेटा:   पर पिताजी केजरीवालजी की एक बात तो सराहनीय है कि उन्‍होंने परिवारवाद को बढ़ावा नहीं दिया।
पिता:  पर तूने यह समाचार नहीं पढ़ा कि केजरीवालजी की धर्मपत्नि ने भी समय पूर्व सेवानिवृति केलिये प्रार्थनापत्र दे दिया है?
बेटा:   तो क्‍या हो गया? वह भी अब जनसेवा करना चाहती होंगी।
पिता:  हां, ठीक उसी तरह जैसे उनके पति कर रहे हैं।
बेटा:   बात तो आपकी ठीक है। चारा घेटाले में जेल चले जाने पर लालूजी ने भी अपनी पत्नि राबड़ीजी को मुख्‍य मन्‍त्री बना कर प्रदेश की सेवा करने का मौका ही तो दिया था।   
पिता:  बेटा, कुछ भी कहो, राबड़ीजी ने सरकार तो बुरी नहीं चलाई थी। 
बेटा:   पिताजी, सरकार केजरीवालजी कौनसी बुरी चला रहे हैं?
पिता:  बात तो तेरी ठीक है। जो ठीक हो जाता है उसे कहते हैं मैंने किया और जहां वह फेल रहते हैं तो कह देते हैं कि मोदीजी नहीं करने दे रहे।
बेटा:   पिताजी, केजरीवालजी तो गला फाड़-फाड़ कर कह रहे हैं कि उनके मन्‍त्री व विधायक निर्दोष व शरीफ हैं। उन्‍होंने कोई अपराध नहीं किया। मोदीजी उन्‍हें बदले की भावना व राजनीतिक प्रतशिोध से उन्‍हें फंसा रहे हैं।
पिता:  बेटा, राजनीति में आने से पूर्व केजरीवालजी को जज तो थे?
बेटा: नहीं। वह तो एक इनकमटैक्‍स अधिकारी थे।
पिता:  तो वह अपने विधयाकें के निर्दोष होने का फैसला कैसे सुना रहे हैं?
बेटा: पिताजी,  ठीक उसी तरह जैसे हर पिता अपने बच्‍चे के निर्दोष होने की दुहाई देता है।   
पिता:  तब अपराध किसने किया?
बेटा: पर यहां उन्‍होंने मोदीजी पर बड़ी कृपा की है। उन्‍होंने यह नहीं कहा है कि अपराध भी मोदीजी ने किया है और फंसा उनके आदमियों को दिया गया है।
पिता:  हां इतनी महानता तो केजरीवालजी ने अवश्‍य दिखाई हैं।
बेटा:   पिताजी, मौसम विभाग ने भविष्‍यवाणी की थी कि इस बार मानसून पहले से अधिक होगी। पर दिल्‍ली में तो यह सच नहीं हो रहा।
पिता:  बेटा, मुझे तो लगता है कि इसमें भी मोदीजी की ही शरारत है। मौसम विभाग केन्‍द्र के अधीन है। मोदीजी दिल्‍ली में वर्षा ही नहीं होने दे रहे जबकि भाजपा शासित प्रदेशों में इन्‍द्रदेव बहुत मेहरबान हैं।
बेटा:   पर पिताजी जब हो रही है तो उससे सारी दिल्‍ली में सड़कों पर पानी इकट्ठा हो जा रहा है जिससे जनता बहुत परेशान हो रही है।            
पिता:  बेटा, यह भी मोदीजी की है शरारत है। वह हर मोड़ पर केजरीवालजी को बदनाम करना चाहते हैं।
बेटा:   पर पितजी, यह तो केजरीवालजी ने कहीं नहीं कहा है।
पिता:  बेटा, वह हमारे मुख्य मन्‍त्री हैं, हमारे नेता हैं। क्‍या हम उनका इतना भी मन नहीं पढ़ सकते? हम उनकी कुछ अनकही बातें भी समझ सकते हैं।
Courtesy: Uday India (Hindi)