हास्य-व्यंग
कानोंकान नारदजी के
मानव कर्तव्य: पशु अधिकार संरक्षण
बेटा: पिताजी।
पिता: हां, बेटा।
बेटा: मानव सभ्यता ने
पिछली कई सदियों में बहुत क्रान्तिकारी विकास किया है।
पिता: बिलकुल ठीक। पहले तो बेटा, मानव अपने
घर पर ताला भी नहीं लगाता था। किवाड़ भी बन्द नहीं
करता था। न पुलिस थी न चौकीदार। फिर भी न चोरी होती थी और न व्यक्ति की जान को कोई खतरा।
बेटा: पर अब ऐसा क्यों नहीं है? पिताजी, क्या आज आप अपने
घर का दरवाज़ा खुला रखने की जोखिम उठा सकते
हैं? बाहर जाओ तो मोटा ताला भी
सम्पत्ति की सुरक्षा की गारंटी नहीं है।
पिता: बेटा, ठीक ही तो कहते हैं कि ताला तो साधों के लिये
होता है चोरों के लिये नहीं।
बेटा: तो फिर पिताजी, हम क्यों कहते फिरते हैं कि सभ्यता का बहुत विकास हुआ है?
पिता: बेटा, सब कहते हैं, इसलिये हम भी कह देते हैं।
बेटा: मतलब हम अपना दिमाग़ नहीं लगाते और यथार्थ की अनदेखी कर यूं
ही हां-में-हां मिला देते हैं।
पिता: ऐसा ही समझ लो बेटा। इस बात का तो मेरे पास कोई जवाब नहीं
है। पर अन्य कई विधाओं में मानव ने अवश्य ही बहुत विकास किया है।
बेटा: जैसे?
पिता: बहुत सारी सामाजिक कुरीतियां समाप्त हो गई हैं। जनतन्त्र आ गया है। विचार व अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता मिल गर्इ है।
महिलाओं को बहुत सारे अधिकार दे दिये गये
हैं।
बेटा: पिताजी, अधिकार तो अब पशुओं को भी मिल गये हैं।
पिता: यह तूने ठीक याद कराया। आखिर बेटा, सामाजिक शास्त्र भी तो मानव को एक
सामाजिक पशु ही मानता है। अधिकार तो इन बेज़ुबानों के भी होने चाहियें न।
बेटा: हां पिताजी। पशुओं में भी हमारी तरह जान होती है।
पिता: बेटा, पहले पशुओं पर बहुत अत्याचार होते थे। उसे
देखकर तो पत्थर से पत्थर दिल भी दहल
उठता था, पिघल जाता
था। पर अब शुक्र है कि मानव सभ्यता के विकास के साथ पशु जीवन भी जीने योग्य हो
उठा है। यही कारण है कि मानव तो आज भी किसी न किसी बात पर दु:खी हो कर आत्महत्या
कर बैठता है पर पशुओं का जीवन इतना सुलभ व सहज बना दिया गया है कि वह कभी ऐसा पाप
नहीं करते।
बेटा: सब से क्रान्तिकारी कायापलट तो कुत्ते के जीवन
में हुआ है। वह चाहे पालतू हो या आवारा। किसी भी व्यक्ति को देखकर उसपर भौंकना या
उसकी टांग पकड़ कर काट खाना, सब उसका मौलिक पशु अधिकार है। उसे कोई नहीं छीन सकता। सारे ब्रह्माण्ड में कोई चुनौति नहीं दे सकता। यहां तो
शायद भगवान् भी आपको कोई न्याय दिला पाने में अपने हाथ खड़ कर देंगे क्योंकि
कुत्ता भगवान् को ही कह देगा कि मुझे आप ही ने तो ऐसा बनाया है। फिर मेरा क्या
कसूर है?
पिता: भगवान् के पास तो
सचमुच ही इसका उत्तर नहीं होगा।
बेटा: यदि कोई कुत्ता किसी पर सिर्फ भौंकता है और
काटता नहीं, वह तो उसकी मेहरबानी है। यदि वह काट खाये तो लोग उल्टे उसे ही दोषी
करार दे देंगे। कहेंगे — जब तुमने कुत्ता देखा तो तुम्हें सावधानी बर्तनी चाहिये
थी न। कोई नहीं, पालतू है। समय-समय पर उसे टीके लगते रहते हैं। चिन्ता मत करो,
कुछ नहीं होगा।
पिता: बेटा, यह तो आधुनिक जीवन का यथार्थ
है। कुत्ता यदि आवारा हो तो भी
लोग बोलते मिलते हैं — कोई नहीं। टीके लगवा लो।
बेटा: पर पिताजी, यह सारी सहानुभूति लोग तब तक ही ज़ाहिर करते हैं
जब तक कि आपने उसपर जवाबी वार नहीं किया। आपने उसे डंडा नहीं मारा। उस पर पत्थर
नहीं फैंका। कुत्ता तो गुस्से में आकर आपको काट सकता है। पर आप तो मानव हैं।
आपको गुस्सा नहीं आना चाहिये। यदि आपने पीड़ा से कराहते हुये गुस्सा खा लिया और
अपने पर आक्रमणकारी कुत्ते को लाठी या किसी और चीज़ से पीट दिया, तो सभी आपको ही
कोसेंगे — वह तो जानवर है पर आप तो मानव हैं। आपको तो अपने आप में रहना चाहिये और
इस बेज़ुबान पर अत्याचार नहीं करना चाहिये था।
पिता: पर बेटा, इतना याद रखना, तुम उस पर प्रतिकार नहीं कर सकते।
यदि तुमने कुत्ते को डण्डे से पीट डाला या पत्थर मार कर घायल कर दिया तो यह एक
अपराध है। तुम्हें सज़ा हो सकती है।
बेटा: पर पिताजी, हमारे भी तो कई मानवाधिकार हैं। संविधान में हर
व्यक्ति की जान व माल की सुरक्षा का अधिकार दिया है। यदि कोई व्यक्ति मुझे गाली दे या मेरी गाल
पर एक चपत जड़ दे तो यह भी तो एक अपराध है। मुझे किसी से अपनी जान को खतरा हो तो यह
मेरा अधिकार है कि मैं पुलिस को शिकायत कर दूं। पुलिस उसके विरूद्ध कार्रवाई
करेगी।
पिता: अवश्य करेगी।
बेटा: पर पिताजी, यदि कोई कुत्ता मुझे रोज़ डराता हो और मुझे डर हो
जाये कि वह कहीं मुझे काट न ले, तो मैं पुलिस को शिकायत तो कर सकता हूं न।
पिता: बेटा, शिकायत तो तू अवश्य कर सकता है
पर पुलिस तुम्हारा मज़ाक ही उड़ायेगी। यदि कुत्ता काट भी ले तो भी सुलह-सफाई की
ही बात होगी क्योंकि भारतीय दण्ड संहिता में यह कोई अपराध नहीं है।
बेटा: वैसे पिताजी, यदि कुत्ता भैंकेगा नहीं, काटेगा नहीं, तो
करेगा क्या? यही दो तो उसकी
नियति है और मौलिक अधिकार।
पिता: बेटा, भारत में अभिव्यक्ति की पूरी स्वतन्त्रता है। हम
तो देश का बुरा सोचने वालों और उसकी बर्बादी के नारे लगाने वालों की स्वतन्त्रता
का भी सम्मान करते हैं। तो भला कुत्तों को भौंकने से इस देश में कौन रोकेगा? बह तो बेज़ुबान
हैं।
बेटा: पर पिताजी, कुत्ता
काट भी तो लेता है।
पिता: उसकी इस उच्छृंखलता पर कोई लगाम नहीं कस पाया है। हर कुत्ता चाहे वह पालतू
हो या आवारा वह प्रतिदिन अपनी मर्जी के अनुसार जिसको चाहे काट लेता है। वह तो कई
बार उसको भी नहीं बख्श्ता जिसको उसके मालिक ने सादर आमन्त्रित किया हो।
बेटा: तो पिताजी, यह अपराध नहीं है?
पिता: बेटा, अपने अधिकार
का उपभोग करना अपराध नहीं होता।
बेटा: तो उसका क्या
जिसे कुत्ते ने काट खाया?
पिता: उसे तो बेटा यही सलाह दी जाती है कि घबराओ मत, जैकी को टीके लगे हैं।
बेटा: जैकी कौन?
पिता: बेटा, उनका कुत्ता। उसे कुत्ता न कह बैठना। उसका मालिक व तुम्हारा दोस्त–रिश्तेदार
तुम से नाराज़ हो उठेगा। उसे कुत्ता कहना उन्हें ऐसे लगता है जैसे कि किसी
ने उन्हें ही गाली दे दी हो।
बेटा: जब गली का आवारा कुत्ता काट जाता है तो?
पिता: तो भी डाक्टर कहता है कि पेट में तीन टीके लगवा लो और कुत्ते का ध्यान रखना
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दिन-एक मास में मरना नहीं चाहिये।
बेटा: मतलब एक ओर तो कुत्ते से कटे और ऊपर से उसकी सुरक्षा के लिये गली में पहरा
दे।
पिता: बेटा, अपनी जि़न्दगी प्यारी है तो उसे यह सब कुछ तो करना पड़ेगा। लोग तो
नहीं करेंगे।
बेटा: पिताजी, कुत्ता चाहे पालतू हो या आवारा, वह सड़क पर, गली में या हमारे घर में
भी
जहां उसका दिल करेगा बैठ जायेगा, सो जायेगा। यह उसका अधिकार है। वह कोई मानव
तो है नहीं कि आप उसे टोक देंगे, डांट देंगे कि कहां सो गये हो? यह कोई तेरे बाप की
जगह है जो तुमने लोगों के आनेजाने का रास्ता ही रोक रखा है।
पिता: हां, लोग ऐसा डायलॉग तो आम मार देते हैं।
बेटा: पर पिताजी, कोई
बेचारा पैदल यार-दोस्त से गप्प लड़ाता जा रहा हो या मोबाईल पर अपनी दोस्त से
मीठी-मीठी बातें करता जा रहा हो और अनजाने में कुत्ते की पूंछ या टांग पर उसका
पांव आ जाये तो कुत्ता एक दम उसे काट खाता है।
पिता: बेटा, यह तो कुत्ते की प्रकृति है। इसका ध्यान तो व्यक्ति को ही करना
पड़ेगा। जब
उसके इस मौलिक अधिकार पर अतिक्रमण करोगे तो वह ऐसा तो करेगा ही। वह इनसान तो
है नहीं जो मानव की तरह पुलिस और अदालत के चक्कर का काटता फिरे। अन्त में यह भी
गारंटी नहीं कि उसे न्याय मिल ही जायेगा। कुत्ता तो न्याय व सज़ा तुरन्त उसी
समय दे देता है।
बेटा: हां पिताजी, याद आया। आजकल पशु के प्रति महान् अत्याचार का मामला मीडिया की
सुर्खियों में है। आपने देखा है?
पिता: हां बेटा। मैंने भी देखा है। बताया जा रहा है कि एक विरोध प्रदर्शन के दौरान
एक विधायक ने पुलिस के घोड़े की टांग पर लाठी मार दी जिससे घोड़े की टांग बुरी तरह
ज़ख्मी हो गई। वह गिर गया। उसकी टांग को पट्टी करनी पड़ी। बाद में तो टांग ही काटनी
पड़ी। घोड़े की जान भी खतरे में बताई जा रही है।
बेटा: विधायक को गिरफतार कर 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। यह अभी
स्पष्ट नहीं हो पाया है कि यदि घोड़े की मृत्यु हो गई तो क्या आरोपी के
विरूद्ध धारा 302 के अन्तर्गत मुकद्दमा चलाया जायेगा।
पिता: बेटा, उसका जुर्म इतना संगीन है कि देशद्रोह के आरोप में गिरफतार
विद्यार्थियों को तो लगभग 14 दिन में ज़मानत मिल गई पर उन्हें तो विधान सभा में
अपने मत के वैधानिक अधिकार के उपयोग से भी वंचित कर दिया गया। विधायक के विरूद्ध
मामला तो ठीक ही चलाया जा रहा लगता है।
बेटा: कई महानुभाव इस कठोर पग के पक्ष में खड़े हो गये हैं।
पिता: ठीक भी है। आखिर
विरोध प्रदर्शन के समय लाठी बरसाने का अधिकार तो पुलिस का ही होता है। उसमें कोई
भी ज़ख्मी हो सकता है। पुलिस के हाथों प्रदर्शन के दौरान किसी विधायक महोदय की
टांग भी टूट सकती है। पर प्रदर्शनकारी कैसे लाठी उठा सकते हैं और किसी को मार सकते
हैं और वह भी पुलिस के घोड़े को?
बेटा: बात तो आपकी ठीक है। घोड़ की दुलत्ती से तो किसी का हाथ-पांव या जबड़ा टूट
सकता है। इसीलिये कहते हैं न कि घोड़े की पिछाड़ी से बचो। पर विधायक महोदय ने तो
कानून ही अपने हाथ में ले लिया।
पिता: यह तो उन्होंने
गलत किया।
बेटा: पिताजी, आज आपने
टीवी पर समाचार देखा। पश्चिमी बंगाल के एक शहर में कुछ हाथी रास्ता भटक कर आ गये।
वह इतने आग-बबूला हो गये कि उन्होंने चार निर्दोष लोगों को ही पटक-पटक कर मार डाला।
इन हत्याओं के लिये किस को सूली पर चढ़ाया जायेगा?
पिता: बेटा, कानून मानव के लिये है पशु के लिये नहीं।
बेटा: यह तो कोई न्याय
न हुआ कि यदि मानव करे तो दोषी और पशु करे तो निर्दोष।।
पिता: बेटा, याद रखना। मानव दयालू-कृपालू है। वह सदा दूसरों की चिन्ता पहले करता
है। पशु तो बेजान हैं। उन पर दया करना मानव का पहला कर्तव्य है। मानव को पहले
अपना कर्तव्य निभाना चाहिये। अपनी चिन्ता बाद में करनी चाहिये। इसीलिये हमने
अपने अधिकार गौण कर दिये हैं और पशु अधिकार सर्वोपरि बना दिये हैं। ***