Friday, September 28, 2012

व्यंग -- कोयले की दलाली में धन भी काला?


व्यंग 
कोयले की दलाली में धन भी काला?
  
बेटा:     पिताजी।
पिता:    हाँ बेटा।
बेटा:     पिताजी, हमारे प्रधान मंत्री डॉ0 मनमोहन सिंह ने
        कहा है कि पैसा पेड़ों पर नहीं उगता।
पिता:    यह तो बेटा उन्होने ठीक ही कहा है। हमारे सभी         विद्वान भी यही कहते आए हैं।
बेटा:     हाँ पिताजी। मैंने भी पैसा कहीं पेड़ पर लगा नहीं
        देखा।
पिता:    यह तो बेटा सच्चाई है। मनमोहन सिंह जी तो           जाने-माने विश्वविख्यात अर्थशास्त्री हैं। उनसे ज़्यादा       कोई नहीं जानता।
बेटा:     पर पिताजी, पी चिदम्बरम और मोंटेक सिंह             अहलूवालिया भी तो हैं?
पिता:    बेटा, अगुआ तो हमारे प्रधान मंत्री ही हैं। वह तो          मात्र उनके सहयोगी हैं।
बेटा:     पर पिताजी, अभी हाल ही में कोयला खदानों में एक      घोटाला हुआ जिसमें बड़ा शोर हुआ कि लोगों ने            बहुत पैसा कमाया।
पिता:    बेटा, इसीलिए तो कहते हैं कि कोयले की दलाली में      मुंह काला।
बेटा:     पर पिताजी, वह कोयले की खदाने हैं या पैसे का         खजाना?
पिता:    बेटा, जब वहाँ से कोयला निकाला जाता है और          बेचा जाता है तो उसमें पैसा ही कमाया जाता है।
बेटा:     तो इसका मतलब तो यह हुआ कि वह तो पैसे की        खान निकली।
पिता:    बेटा जो लोग रातों-रात पैसा कमाना चाहते हैं वह ही      इस धंधे में पड़ते हैं।
बेटा:     पिताजी, कोले की खदानों में से जो धन निकलता है      वह तो काला ही होता होगा?
पिता:    बेटा, मुझे नहीं मालूम यह तो तू सरकार से ही पूछ       या उनसे जो इस धंधे मैं लगे हुये हैं।       ***



Wednesday, September 19, 2012

हास्‍य-व्‍यंग: कोयला घोटाला नहीं, काला है


हास्‍य-व्‍यंग
कोयला घोटाला नहीं, काला है

बेटा:   पिताजी।
पिता:  हां बेटा।
बेटा:   हमारे प्रधान मन्‍त्री डा0 मनमोहन सिंह कहते हैं कि कोयला घोटाले में कुछ ग़लत नहीं   
हुआ।
पिता:  वह ठीक ही फरमाते हैं, बेटा। हमारे प्रधान मन्‍त्री कुछ ग़लत कर ही नहीं सकते। वह तो  
इतने सज्‍जन व्‍यक्ति हें।
बेटा:   प्रधान मन्‍त्री यह भी कहते हैं कि सीएजी ने इस सम्‍बन्‍ध में जो रिपोर्ट दी है वह
 आधारहीन है।
पिता:  वह यह भी ठीक ही फरमाते हैं। यही नहीं उनके कई मन्त्रिमण्‍डल सहयोगियों ने भी यही
दोहराई है।
बेटा:   पर पिताजी, सीएजी की रिपोर्ट तो उन्‍हीं काग़ज़ात, आंकड़ों व तथ्‍यों पर आधारित है जो
सरकार ने सीएजी को मुहैया करवाये।
पिता:  यह भी ठीक है।
बेटा:   फिर पिताजी, सीबीआई ने इसी घोटाले के सम्‍बन्‍ध में कुछ कांग्रेसी नेताओं के खिलाफ
प्रथम सूचना रिपोर्ट क्‍यों दायर की है?
पिता:  यह तो सोचने की बात है।
बेटा:   साथ ही सरकार ने कुछ आबंटित कोयला ब्‍लाकों को रदद करने का भी निर्णय लिया है।
यदि आबंटन में कुछ गलत नहीं तो फिर सरकार उन का आबंटन रदद कर ग़लत नहीं कर रही?
पिता:  यह तो बेटा उने ही पूछ।                                                ***


Saturday, September 15, 2012

In lighter vein --When a man bites a dog


 In lighter vein
When a man bites a dog


Most politicians in the country envy the lot of the Congress General Secretary Digvijay Singh, popularly known as Diggy Raja. He is always in the news, in the centre of the news, surrounded by news.

He is the person who creates news. He is the cynosure of the media – print, electronic and even the foreign media. They cannot afford to ignore him when he opens his mouth. He is like a pond of water in the dessert of news. Media looks up to him for a shower of news when there is drought of news all around.

He knows the knack of making news, creating news. He seems to have understood the basic principle of news reporters when they look for news. If a dog bites a man, it is no news but if a man bites a dog it is.

Understood the secret of his success?   

Wednesday, September 12, 2012

 हास्य-व्यंग  
नारी अब गृहलक्ष्मी नहीं गृहकर्मी
 
बेटा:   पिताजी।
पिता:   हाँ, बेटा।
बेटा:   पिताजी, अब तक तो मैं बहुत ग़लती करता      आ रहा था। मैं जो कुच्छ भी कमाता था वह सारा का सारा नीला को थमा देता था और अपने पास कुछ भी नहीं रखता था। जब मुझे पैसे की ज़रूरत होती तो मैं नीला से ही मांगता था।
पिता:   इसमें बुरा क्या है? तू ठीक ही तो करता है।        नीला तेरी धर्मपत्नी है, गृहलक्ष्मी, घर 
       की मालिक। वह ही तो सारा घर चलाती है, घर        का प्रबंध करती है। तुझे और मुझे तो कुछ        पता ही नहीं होता। हम मज़े में हैं, निश्चिंत।        हमें और क्या चाहिए?
बेटा:   पर पिताजी, आज मैंने अखबार में पढ़ा कि
       सरकार एक कानून बना रही है कि धर्मपत्नी        को घर के काम के लिए उसे प्रति माह वेतन        देना पड़ेगा। तो मैं नीला को अपनी सारी
       कमाई क्यों दूँ जब मुझे उसे तनख़ाह देनी        है तो?
पिता:   बेटा, तूने ग़लत पढ़ा होगा। सरकार घर
       की मालकिन को घर की नौकरानी बनाने बात        कैसे सोच सकती है? मुझे तो ऐसा नहीं लगता।
बेटा:   पिताजी, मैंने यह समाचार अपनी आँखों से पढ़ा है।
पिता:   बेटा, मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है।        एक ओर तो सरकार   महिला सशक्तिकरण की बात करती है और दूसरी ओर  
       हमारी गृहलक्ष्मी को हमारी नौकरानी बनाना चाहती है जिसको हम उसके काम के लिए दाम             देंगे। बेटा, नीला तो मेरी बहू ही नहीं बेटी        भी है। हमारे घर के लिए जो वह क़ाम करती है वह तो अमूल्य है। उसको पैसे से नहीं तोला जा   सकता।
बेटा:   पर पिताजी, खबर के अनुसार तो सरकार        इस बारे सोच ही रही है न।
पिता:   तो वह ग़लत सोच रही है। यह तो घर को,       घर-गृहस्थी और परिवार को ही तोड़ देने की       साजिश लगती है।  
बेटा:   पिताजी, सरकार कुछ न कुछ नया करने की       सोचती रहती है। फिर विदेशों में भी कई कुछ    होता रहता और सरकार भी उसके अनुरूप ढलती रहती है यह जताने के लिए कि हम भी जमाने के साथ चलते हैं।
पिता:   तो क्या सरकार हमारे को नासमझ नकलची        बनाना चाहती है? क्या हमें आँख पर पट्टी बांध        कर नकल करनी चाहिए चाहे वह हमारे समाज        के अनुकूल हो या न?
बेटा:   पर पिताजी कई परिवारों में महिलाओं का   
      शोषण भी तो होता है। बहू     को नौकऱानी ही बना दिया जाता है और उसे जेब खर्च तक नहीं दिया जाता। वह पैसे पैसे के लिए             तरसती है।
पिता:  पर यह तो समस्या का समाधान नहीं           कि बहू को घर की नौकरानी बना दिया जाए और वह जो घर के लिए अपना कर्तव्य समझ कर काम करती है उसके लिए उसे पग़ार दी जाए।
बेटा:   इसका अभिप्राय तो यह हुआ कि हर गृहिणी      को उसके काम के अनुसार कम या ज़्यादा        दिहाड़ी मिलेगी।
पिता:   यह तो तभी पता चलेगा जब सरकार कानून        बना देगी।
बेटा:   पिताजी, तब तो हर दूसरे दिन हर घर के        सामने  गृहणीयाँ प्रदर्शन करेंगी, ज़िंदाबाद-       मुर्दाबाद के नारे लगाएँगी और मांग करेंगी        कि उनका वेतन बढ़ाया जाए।
पिता:   फिजूल की बकवास बंद कर। मेरा दिमाग़        मत खराब कर। मुझे ग़ुस्सा आ रहा है।
बेटा:   पिताजी, आप मुझ पर फिजूल ही ग़ुस्सा            हो रहे हैं। यह सब मैं थोड़े कह रहा हूँ। यह       तो सरकार की सोच है। मैं तो केवल आप से चर्चा ही कर रहा हूँ। जैसे सरकार सोच रही है उस से तो ऐसा लगता है कि सरकार पति और परिवार को यह अधिकार भी दे देगी कि अगर वह पत्नी के कार्य से संतुष्ट नहीं हैं तो उसे काम से निकाल सकते हैं। उस हालत में तो पत्नी की छुट्टी करनी ही पड़ेगी जब उस का काम संतोषजनक न हो और परिवार उसे घरेलू काम के लिए पघार देती हो।  
पिता:   तू मेरा सिर मत खा। सरकार से ही जाकर       चर्चा कर।   
 
 

Saturday, September 8, 2012

Satire -- My silence is sonorous and sublime



 Satire
My silence is sonorous and sublime

Son:            Father.
Father:       Yes, my son.         
Son:            Opposition is demanding resignation of our PM for his alleged
involvement in Coalgate.
         
Father:       That’s very unfortunate, my son.

Son:            Why father?

Father:       He’s such a nice guy that nobody can dare raise his finger on
his integrity. You know, both past US President Bush and present President Obama take pride in regarding him their best personal friend.

Son:            That is a matter of pride for us all Indians. But, father, he was
the minister in charge of Coal Ministry when all this happened.

Father:       He’s such a simple and innocent gentleman that he didn’t, even for a moment, doubt that persons around him would betray his faith and confidence in them and exploit his innocence and simplicity.

Son:            Father, in spite of all that, as minister incharge he remains responsible for all the acts of omission and commission of his colleagues and subordinates.

Father:       That he has explained on August 27 in one sentence: ”My general attitude has been “Hazaaron Jawabon Se Acchi Hai Meri Khamoshi, Na Jaane Kitne Sawaalon Ki Aabru Rakhe” (My silence is better than a thousand answers. It protects the dignity of innumerable questions).

Son:            What a great quote, father! From today I am his great admirer,
fan and follower.  

Father:       You should be. I am glad.

Son:            In future, when you get angry with me I will also adopt my PM’s
golden principle of silence. I will not answer questions you ask me in anger. That only creates further problems and tension. You know Hazaaron Jawabon Se Acchi Hai Meri Khamoshi, Na
                   Jaane Kitne Sawaalon Ki Aabru Rakhe”.

Father:       No, no. You can’t do that. You will always remain answerable,
accountable to me. You cannot save your skin like that. I will always want my answers.

Son:            No father, I will follow my prime minister. The nation has
accepted his words. I will follow his example even in the
criminal case of dacoity pending in court against me. When the court will ask me whether I plead guilty to the charge, I will neither say ‘yes’ or ‘no’ but just repeat my PM’s words, “Hazaaron Jawabon Se Acchi Hai Meri Khamoshi, Na Jaane Kitne Sawaalon Ki Aabru Rakhe”. Father, will that be sufficient proof of my innocence?
 
Father:       Ask them, my son. 

Wednesday, September 5, 2012

World Champion in Defending Corruption!


WORLD CHAMPION IN DEFENDING CORRUPTION

The way things are moving in dealing with the perennially flowing stream of corruption, be it the scams like 2G spectrum, Commonwealth Games, Adarsh Housing Society and the latest being the coalgate, our country has emerged as the unchallenged world champion in defending the corrupt and wrongdoers. Our cliché: Nobody can be cursed as a culprit till the highest court of the country had given its final verdict. We have one more avenue: submit a mercy petition to the President of India who may declare us innocent or less guilty than what the court had found.
Isn’t it great?

Sunday, September 2, 2012

Satire in Hindi - भ्रष्टाचार का ज़िम्मेवार



हास्य-व्यंग
भ्रष्टाचार का ज़िम्मेवार

बेटा:     पिताजी!
पिता:    हाँ बेटा।
बेटा:     प्रधान मंत्री ने त्यागपत्र देने से इंकार कर दिया
        है।
पिता:    ठीक ही तो फ़रमा रहे हैं वह। उन्हें प्रधान मंत्री
        विपक्ष ने नहीं, सोनियाजी ने बनाया है।
बेटा:     पर विपक्ष तो उनसे कोला ब्लॉक आबंटन घोटाले मैं
        संलिप्त होने की ज़िम्मेवारी लेने को कह रहा है।
पिता:    बेटा, यहाँ तो रोज़ ही कोई न कोई घोटाला होता जा  
        रहा है। तब तो प्रधान मंत्री को रोज़ ही ज़िम्मेवारी
        लेनी पड़ेगी।
बेटा:     हमारे संविधान में तो लिखा है कि मंत्रिपरिषद  
        संयुक्त रूप से लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होगी।
पिता:    देखो, प्रधान मंत्री तो लोक सभा के प्रति उत्तरदायी   
        हो नहीं सकते क्योंकि वह तो लोक सभा के सदस्य
        ही नहीं हैं।
बेटा:     पिताजी संविधान में तो ऐसा लिखा है न।
पिता:    कानून और संविधान में तो बहुत कुछ लिखा होता
        है पर सब कुछ उसके अनुसार ही थोड़े होता है।                
        व्यक्ति की और राजनीति की सहूलियत भी तो कोई         
        चीज़ होती है। पहले प्रधान मंत्री वही बनता था जो        
        लोक सभा के लिए चुन कर आता था या फिर वह       
        6 महीने के अंदर लोक सभा का चुनाव लड़ कर          
        उसका सदस्य बन जाता था। पर अब ऐसा नहीं है।
बेटा:     पर पिताजी, विपक्ष तो प्रधान मंत्री से नैतिकता के        
        आधार पर त्यागपत्र मांग रहा है।
पिता:    बेटा, आजकल राजनीति और नैतिकता एक नदी
        के दो किनारे बन कर रह  गए हैं जो कभी नहीं
        मिल सकते।
बेटा:     पर पिताजी, मैंने तो पढ़ा है कि स्वर्गीय लाल            
        बहादुर शास्त्री ने एक रेल दुर्घटना के उपरांत अपनी         
        नैतिक ज़िम्मावारी लेते हुये रेल मंत्री पद से इस्तीफा         
        दे दिया था जिस में 150 के लगभग रेल यात्री मारे     
        गए थे।
पिता:    बेटा, यह 20वीं सदी की बात है और आज 21वीं     सदी   
        चल रही है।
बेटा;     तब क्या उस रेल को स्वयं शास्त्रीजी चला रहे थे         
        जो उन्होंने उसकी ज़िम्मेवारी ली?
पिता:    मूर्ख, तुझे इतना भी नहीं पता कि रेल गाड़ी को          
        ड्राईवर चलता है, न कि रेल मंत्री।
बेटा:     फिर उन्होंने पद क्यों छोड़ दिया?
पिता:    उनके आदर्श बहुत ऊंचे थे।
बेटा:     आदर्शों की बात तो आजके नेता भी करते हैं। तो         
        क्या उनके आदर्श ऊंचे नहीं हैं?
पिता:    कहते तो आज के नेता भी यही हैं कि उनके आदर्श       
        बहुत ऊंचे हैं?
बेटा:     पर सच्चाई क्या है?
पिता:    यह तो वह भी जानते हैं और जनता भी।
बेटा:     हमारे एक मंत्री ने कहा है कि प्रधान मंत्री तो कभी       
        ग़लती कर ही नहीं सकते।
पिता:    यह भी ठीक है।
बेटा:     यह कैसे हो सकता है? जो व्यक्ति काम करेगा          
        उससे ग़लती तो होगी ही।
पिता:    बेटा, तू एक बात की गांठ बांध ले कि वह कुछ नहीं      
        करते।
बेटा:     हाँ मैं ने यह भी पढ़ा है कि मध्यकालीन युग में         
        कहा जाता था कि बादशाह कभी ग़लत नहीं होते,         
        सदा सही होते हैं।
पिता:    किसी युग की कोई अछी बात हो तो उसे आज भी       
        अपना लेने में कोई बुराई नहीं है।
बेटा:     पर पिताजी डॉक्टर मनमोहन सिंह तो देश के प्रधान      
        मंत्री हैं, बादशाह नहीं।
पिता:    यह तो ठीक है पर वह वही काम कर रहे हैं जनतंत्र       
        में जो कभी राजा-महाराजा किया करते थे।
बेटा:     तब भी तो हर अछे काम का श्रेय राजा-महाराजा को      
        जाता था और बुरे का दोष।      
पिता:    यह ठीक है।
बेटा:     इसी प्रकार जब मनमोहन सरकार मनरेगा, सूचना          
        अधिकार कानून, भारत-अमरीका परमाणू समझौता        
        आदि पर श्रेय पर अपना अधिकार जताती है तो हर       
        दूसरे दिन घटने वाले स्कामो  और भ्रष्टाचार          
        मामलों का श्रेय भी तो इसी सरकार को जाता है न।
पिता:    यह तू उनसे ही पूछ।