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Sunday, November 29, 2015

हास्‍य–व्‍यंग — कानोंकान नारदजी के वधाई हो वधाई — जुग-जुग जिये यह जोड़ी

हास्‍य–व्‍यंग
कानोंकान नारदजी के

वधाई हो वधाई — जुग-जुग जिये यह जोड़ी

बेटा:    पिताजी।
पिता:  हां बेटा।
बेटा:    आपने सुना कांग्रेस के महा सचिव दिगविजय सिंह ने नई शादी रचा ली है?
पिता:  तू भाजपा में तो नहीं शामिल हो गया जो दिग्‍गी राजा के बारे झूठी अफवाहें फैला रहा है?
बेटा:    पिताजी, आपको तो पता है कि मुझे राजनीति में कोई दिलचस्‍पी नहीं है। हां, राजनीति में जो कुछ हो रहा है  उस पर नज़र ज़रूर रखता हूं। और यदि कभी मैंने किसी पार्टी में जाना भी होगा तो आपसे पूछे बिना तो करूंगा नहीं। मैं तो हर काम व निर्णय आपकी सलाह कर और अनुमति से ही करता हूं।
पिता:  बेटा, तेरी इस बात से तो मेरी छाती चौड़ी हो गई है। आजकल के बच्‍चे तो मां-बाप की परवाह ही नहीं करते और सब निर्णय स्‍वयं ही कर डालते हैं। पर तू यह बता कि यह झूठी खबरें कहां से सुन कर आता है?
बेटा:  पिताजी, यह झूठी खबर नहीं है। शत-प्रतिशत सच्‍ची है। लगता है आपने आज रेडियो या टीवी नहीं सुना । अखबारों में भी यह खबर प्रमुखता से छपी है। आखिर दिगविजय सिंह कोई छोटे-मोटे व्‍यक्ति तो हैं नहीं। अपनी रियासत के राजा हैं। दो बार मध्‍य प्रदेश के मुख्‍य मन्‍त्री रह चुके हैं। पिछले 12/13 साल से वह कोंग्रेस के राष्‍ट्रीय महासचिव हैं। वह तो सदा ही खबरों में छाये रहते हैं।
पिता:  बेटा, इसमें तो कोई शक नहीं कि वह कोई आम राजनीतिज्ञ नहीं हैं।       उन्‍होंने राजनीति में कच्‍ची गोलियां नहीं खेली हैं।
बेटा:    आपके कहने का मतलब है कि इस शादी में भी कोई राजनीति है?
पिता:‍  नहीं बेटा। मेरा यह मतलब नहीं है। मेरे कहने का तात्‍पर्य है कि वह एक बड़े आदमी हैं और बड़े आदमियों की बातें तो बड़ी ही होती हैं।
बेटा:  पिताजी, एक बात तो माननी पड़ेगी कि दिग्‍गी राजा हैं तो दमदार व्‍यक्ति। उन्‍होंने जो किया वह और राजनीतिज्ञों की तरह छुपाया नहीं।
पिता: हां। यह तो है। कई तो लुके-छिपे अनैतिक सम्‍बंध बनाये रहते हैं पर साथ ही उससे इनकार भी करते रहते हैं।          
बेटा:  पिताजीक्‍या दिगविजय सिंह कुंवारे थे?
पिता:  नहीं बेटा। कभी कोई इतने बड़े राजा-महाराजा व उसके बेटे को इतनी उम्र तक कुंवारा रहने देता है भला? उनका तो भरा-पूरा परिवार है। बेटे हैं, बेटियां हैं। उनका एक बेटा तो मध्‍य प्रदेश में विधायक भी है।
बेटा:    तो फिर उन्‍हें यह शादी रचाने की क्‍या आवश्‍यकता पड़ी?
पिता:  बेटा, पिछले वर्ष उनकी धर्मपत्नि का देहान्‍त हो गया था।
बेटा:    ओह-हो। अब याद आया यह वही दिग्‍गी राजा हैं जिनके प्‍यार के किस्‍से पिछले  
वर्ष हर ज़ुबान पर थे। हर अखबार की सुर्खियों में थे और हर समाचार चैनल मसाले लगाकर खुद मज़े ले रहा था और दर्शकों का भी मनोरंजन कर रहा था। पर पिताजी ये भाजपा वाले बहुत घटिया आदमी हैं। इस प्रेम कहानी की तारीफ करने की बजाय उन्‍होंने कटाक्ष किया कि ब्‍याह रचाने की घोषण केलिये  दिग्‍गी राजा को अपनी पत्नि की चिता तो ठण्‍डी हो जाने देनी चाहिये थी।
पिता: उन्‍हें ऐसा नहीं कहना चाहिये था। उन्‍होंने उसकी पीड़ा समझने की कोशिश नहीं की जिसने अपना जीवन साथी खो दिया था और जो जीवन में बिल्‍कुल अकेला हो गया था।
बेटा:  पर पिताजी, जहां तक मुझे याद है उन्‍होंने बड़ा विवाद खड़ा होने पर दु:खी होकर कुछ मास बाद ही उन्‍होंने अपने प्‍यार को कुर्बान कर दिया था और शादीके इरादे को रद्द करने की भी घोषणा कर दी थी।
पिता: राजनीति इसी का तो नाम है। इसमें वह हो जाता है जो कहा नहीं जाता और वह नहीं होता जो कहा जाता है।    
बेटा:    पिताजी, यह पता नहीं चल सका कि इस शादी में दिग्‍गी राजा के बच्‍चे भी शामिल हुये या नहीं?
पिता:  बेटा, बड़े परिवारों की बड़ी बातें होती हैं। उनका दिल बड़ा होता है। शायद हो गये होंगे।
बेटा:    इस पर तो पिताजी, मेरे साथ जो घटा मुझे उसकी याद आ गई। मैं बहुत छोटा था। स्‍कूल में ही पढ़ता था। मैं क्‍लास में किसी बात पर बड़ा हंस रहा था। तो एक लड़के ने मुझ पर कटाक्ष कर दिया। तू इतना क्‍यों खुश हो रहा है? क्‍या तेरे बाप की शादी हो रही है? इस पर मैं संजीदा हो गया था और उससे लड़ पड़ा था। मुझे तो डर है कि कहीं यही मज़ाक लोग उनके बच्‍चों के साथ न कर दें।
पिता:  बेटा, तू फिज़ूल में चिन्‍ता कर रहा है। बड़े परिवारों में ऐसे घटिया मज़ाक नहीं चलते। और अगर कोई कर बैठा तो वे लोग उसका सिर फोड़ देंगे।
बेटा:    पिताजी, दिग्‍गी राजा की उम्र तो ज्‍य़ादा नहीं होगी।
पिता:  हां, यही 70 के करीब।
बेटा:    सत्‍तर? फिर भी उन्‍होंने शादी रचा ली? उनके तो पोते-पोतियां भी होंगी। इन बच्‍चों ने तो शादी का बड़ा मज़ा लूटा होगा। अपने दादा की शादी देखने का सौभाग्‍य तो बिरले से बिरले बच्‍चों को ही मिलता है।
पिता:  तू ज्‍य़ादा बातें मत बनाया कर।
बेटा:    पिताजी, कुछ भी है। उन्‍होंने अपने बच्‍चों को अपनी मां की कमी महसूस नहीं होने दे। उन्‍हें एक नई नवेली जवां मां लाकर दे दी।
पिता: बडें आदमी लम्‍बी सोचते हैं। इस उम्र में साथी की बहुत आवश्‍यकता होती है। उन्‍होंने अपने आवश्‍यकता और बच्‍चों की मां की कमी दोनों ही पूरी कर दी।
बेटा:    उनकी नई धर्मपत्नि ने भी एक मिसाल पेश की है। अपने प्‍यार के लिये उन्‍होंने अपने पति को त्‍याग दिया और तलाक ले लिया। उनकी उम्र तो उनकी बेटियों के बराबर लगती है।
पिता: यह तो बेटा और भी अच्‍छा है। मां-बेटियां सहेली बन कर रहेंगी और आपस में प्रेमभाव भी पैदा होगा।
बेटा:  पिताजी, उनकी इस कहानी पर तो मुझे बिहार के उस प्रोफैसर की याद आ गई जिसने अपनी पत्नि को छोड़ अपनी एक श्ष्यिा से ही प्‍यार कर शादी रचा ली थी। वह अपने प्‍यार को एक आध्‍यात्मिक प्रेम की संज्ञा देते थे।
पिता: हां, मुझे याद आ गया। उसकी पत्नि ने झाड़ू से उसकी काफी सेवा भी की थी।
बेटा:  पर दिग्‍गी राजा की ही तरह उस प्रोफैसर का भी प्‍यार सच्‍चा था। वह भी परिणसूत्र में बंध गये थे।
पिता: उन दोनों की उम्र में भी ऐसा ही अन्‍तर था।
बेटा:  जब प्‍यार हो जाये तो आदमी अंधा हो बैठता है। ठीक ही तो कहते हैं कि प्‍यार अंधा होता है। कुर्बानी मांगता है।
बेटा:    पर पिताजी मैं उनसे एक बात पर नाराज़ हूं।
पिता:  किस बात पर?
बेटा:    पिताजीदिग्‍गी राजा अपने आपको राहुल गांधी का राजनीतिक गुरू मानते व बताते है न?
पिता:  हां, मैंने सुना व पढ़ा तो है ।
बेटा:    तो फिर यह बताओ कि उन्‍होंने तो अपनी दूसरी शादी रचा ली पर राहुल की अभी एक भी नहीं करवाई? वह कैसे गुरू हैं?
पिता:  बेटा, वह राजनीतिक गुरू तो हो सकते हैं पर वह राहुल के जीवन के गुरू कभी नहीं हो सकते।
बेटा:  पिताजी, आपको पता है कि आजकल दिग्‍गी राजा कहां हैं?
पिता: नहीं।
बेटा:  वह शादी करवाने के तुरन्‍त बाद विदेश चले गये।
पिता: हनीमून मनाने?
बेटा:  नहीं। अपनी बेटी को देखने जिसका वहां कैंसर का उपचार चल रहा है।
पिता: अच्‍छा किया बेटा। यह तो उनका नैतिक व पारिवारिक फर्ज़ बनता था।
बेटा:  और पिताजी, उनकी बीमार बेटी का मन तो पिता की शादी का समाचार सुनकर बाग़-बाग़ हो गया होगा और उसकी हालत पहले से बेहतर हो गई होगी।
पिता: यह तो स्‍वाभाविक ही है बेटा।
बेटा:  एक फायदा और हो गया।
पिता: क्‍या?
बेटा:    उनकी रियासत तो रानी-महारानी मिल गई।
पिता: यह तो है।




बेटा:    पिताजी सच्‍च ही कहते हैं कि शेर को सामने देख सभी भेड़ें डर के मारे इकट्ठी हो बैठ जाती हैं।
पिता:  यह तो बेटा प्रकृति का विधान है।          
बेटा:    पर पिताजीजनता परिवार के मुखिया मुलायम सिंह तो कहीं नज़र नहीं आते। सब काम तो नितीश-शरद-लालू की तिकड़ी ही करती लगती है।
पिता:  दिख तो ऐसा ही रहा हैबेटा।
बेटा:    फिर मुखिया के बिना परिवार कैसा?
पिता:  बेटा पालिटिक्‍स में सब चलता है।          
बेटा:    पिताजीएक समय था जब नितीश और लालू एक-दूसरे को पता नहीं क्‍या-क्‍या कहते फिरते थे। लालू राज को जंगल राज बताते थे नितीश।
पिता:  वह सब तो यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी यादाश्‍त बहुत कमज़ोर हो गई है। पर क्‍या जनता भी उनकी बातों को भूल गई है?
बेटा:    जब मैं ही नहीं भूला तो मैं कैसे समझूं कि जनता भूल चुकी है?
पिता:  पर नितीश इतनी सावधानी अवश्‍य बर्त रहे हैं कि वह अपने सार्वजनिक भाषणों में लालू की तारीफ नहीं कर रहे।           
बेटा:    ताकि जनता को यह याद न आ जाये कि नितीश लालू से मिलकर फिर वही जंगलराज लाने का प्रयास कर रहे हैं?
पिता:  बिहार के लिये वह तो क्‍या लायेंगे यह तो उनका दिल ही जाने, पर वह सत्‍ता हथियाने के लिये सब कुछ कर रहे हैं। उन्‍हें तो मोदी का 1.25 लाख करोड़ का बिहार के लिये विशेष पैकेज भी नहीं भाया।
बेटा:    पर पिताजी, भाजपा में भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा। उसमें भी कई प्रकार की आवाज़ें उठने लगी हैं।
पिता:  जैसे?
बेटा:    आजकल बिहारी बाबू भी नितीश बाबू से नज़दीकियां बढ़ा रहे हैं। उनकी तारीफ कर रहे हैं। वह भी अब कुछ अलग ही भाषा बोलने लगे हैं।
पिता:  इसमें तो कोई विस्‍मय वाली बात नहीं है। वह तो हर चुनाव में, विशेषकर विधान सभा चुनाव के समय तो अपनी आंखें दिखाते ही हैं।
बेटा:    उसका लाभ या हानि किसे हुई?
पिता: उसका लाभ न बिहारी बाबू को हुआ और न हानि  भाजपा या एनडीए को। दोनों बार भाजपा जीती और एनडीए की सरकार बनी।
बेटा:    तो फिर वह ऐसा करते क्‍यों हैं?
पिता: बेटा, चुनाव के सभी शेर बन जाते हैं और समझते हैं कि पार्टी अपना नुक्‍सान बचाने के लिये उन्‍हें खुश करन्रे की कोशिश अवश्‍य करेगी।
बेटा:    और न करे तो?
पिता: तो उनका क्‍या जाता है? वे जहां हैं वहां तो टिके ही रहेंगे न।
बेटा:    पिताजी, वैसे भी उन्‍हें खलनायक का ही रोल भाता है। फिल्‍मों में उन्‍होंने इसी में नाम कमाया है। जब-जब उन्‍होंने नायक का रोल किया तो फिल्‍म सदा ही पिटी है।
पिता: वैसे बेटा, जो फिल्‍मी लोग होते हैं वह अपना फिल्‍मी स्‍टाइल नहीं छोड़ पाते। वह तो वास्‍तविक जीवन में भी फिल्‍मी तरीके से ही जीते हैं।
बेटा:    पर पिताजी, फिल्‍मों में तो ये लोग जो बोलते हैं वह किसी और ने लिखा होता है। वह अभिनय भी वैसा ही करते हैं जैसा कि उनका निदेशक या निर्माता चाहता है। पर वास्‍तविक जीवन में तो ऐसा नहीं होता न।
पिता: कोई कुछ नहीं कह सकता। तू देखता जा कि जब तक चुनाव होते हैं तब तक क्‍या-क्‍या गुल खिलते हैं।
बेटा:    पिताजी, मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि बिहारी बाबू बिहार के इस चुनाव में नायक की भूमिका निभा रहे हैं या खलनायक की?
पिता: यह बेटा तू उनसे ही पूछ। यह बात मेरी समझ से बाहर है।
Courtesy: UdayIndia (Hindi)

Sunday, July 28, 2013

POVERTY AS DIVERSE AS UPA's VOICES

Speaking My Mind
POVERTY AS DIVERSE AS UPA's VOICES

That every other day the Congress Party has to declare that it "disassociates" itself from what its official party spokesman said during an official briefing and interaction with media explains that the party has fallen short of talent for the purpose. Sometimes it has to declare that it was not the party position but the "individual or personal views" of the official spokesperson of the Party.
The latest was the gaffe the party spokespersons very eruditely said about the cost at which one can have a hearty fulsome nutritious meal. One said it could have had at `5 in Delhi, the other said it could be had at `12 in Mumbai. The Union Minister Farooq Abdullah who had chief minister of Jammu & Kashmir for pretty long went much further. He said one could fill one's stomach with just `1. All these statements and claims were not just ridiculous but these also went to ridicule the poverty and poor people of the country whom Congress claims to be the nearest to its heart. The redeeming feature was that all of them withdrew their words.

TRYING TO PLEASE ALL

It is also a great ploy too. By saying one thing our politicians please one section of society and by later withdrawing or explaining the same, they try to soothe the tempers that may have been ruffled with such words. It acts as a double-edged weapon.

I am reminded of an incident narrated to me by a friend from Punjab. Decades back there was a political tussle between the then Punjab chief minister Partap Singh Kairon and his home Minister (who later became a chief minister himself) Darbara Singh. A signature campaign was launched by the two groups against each other. One MLA Chaudhary Sunder Singh was very close to Darbara Singh but the latter came to know that the former had signed a petition against him. After a day or two when Chaudhary Sunder Singh came to Darbara Singh's room instantly Darbara Singh burst out at him for having signed a petition against him. Very calmly Sunder Singh said: Why are you shouting at me like that? Calm down. I have signed in your favour too.
That exactly is the same the Congress Party seems to be doing. First it allows its spokespersons to say something and later disassociates from it to soothen the frayed tempers of others.

DIVERSITY OF VOICES ON POVERTY

Since Congress-led UPA came to power in the country, there has never been one voice on what constitutes the population that lives below the poverty line. It has failed, so far, to come out with a specific income or expenditure criteria that divides the below and above poverty line, even in the Supreme Court of India. One government committee reports that more than 65 percent of India's population does not spend more than ` 25 per person per day. Only on July 23, 2013 the Planning Commission disclosed that Poverty in India declined to a record 22% in 2011-12

"Over the last decade, poverty has witnessed a consistent decline with the levels dropping from 37.2% in 2004-05 to 29.8% in 2009-10. The number of poor is now estimated at 269.3 million, of which 216.5 million reside in rural India" stated the Commission.

It is worth noting that Prime Minister, Dr. Manmohan Singh, is the Chairman and his close confidant Montek Singh Ahluwalia the Vice-Chairman of the Planning Commission. Yet, Manmohan Singh's own Law & Communitions and IT Minister Kapil Sibal has challenged the method used by the Planning Commission to calculate poverty. "If the Planning Commission said those who live above ` 5,000 a month are not at poverty line, obviously there is something wrong with the definition of poverty in this country. How can anybody live at `5,000?" Sibal asked.
On the Congress Party side too, there are diverse voices. The Congress General Secretary Digvijay Singh, otherwise considered close both to Congress President Sonia Gandhi and Vice-President Rahul Gandh, tweeted on July 27, "I have always failed to understand the Planning Commission's criteria for fixing the poverty line. It is too abstract. It can't be same for all areas". (http://indiatoday.intoday.in/story/kapil-sibal-digvijaya-singh-planning-commission-poverty-line-criteria/1/296623.html)


It is time the UPA government and the Congress put their house in order, have an open discussion between themselves and come to a uniform and one voice on the issue. Otherwise, it will end up being a laughing stock of the nation and hurting the sentiments of the poor.

Wednesday, May 15, 2013

Are we heading towards a Christian India?


Here is a very interesting article from a well-known writer which may be of interest to our benign readers:
Are we heading towards a Christian India?


Authour:  François Gautier

I am a westerner and a born Christian. I was mainly brought up in catholic schools, my uncle, Father Guy Gautier, a gem of a man, was the parish head of the beautiful Saint Jean de Montmartre church in Paris ; my father, Jacques Gautier, a famous artist in France, and a truly good person if there ever was one, was a fervent catholic all his life, went to church nearly every day and lived by his Christian values. There are certain concepts in Christianity I am proud of : charity for others, the equality of system in many western countries, Christ’s message of love and compassion….
Yet, I am a little uneasy when I see how much Christianity is taking over India under the reign of Sonia Gandhi : according to a 2001 census, there are about 2.34 million Christians in India ; not even 2,5% of the nation, a negligible amountYet there are today five Christian chief ministers in Nagaland, Mizoram, Meghalaya, Kerala and Andhra Pradesh.
One should add that the majority of politicians in Sonia Gandhi’s closed circle are either Christians or Muslims. She seems to have no confidence in Hindus. Ambika Soni, a Christian, is General Secretary of the Congress and a very powerful person, with close access to Sonia Gandhi. Oscar Fernandes is Union Programme Implementation Minister. Margaret Alwa is the eminence grise of Maharasthra.Karnataka is virtually controlled by AK Anthony, whose secretaries are all from the Southern Christian association. Valson Thampu, a Hindu hater, is Chairman NCERT curriculum Review Committee, John Dayal, another known Hindu baiter, has been named by Sonia Gandhi in the National Integration Council ; and Kancha Ilaya, who hates Hindus, is being allowed by the Indian Government to lobby with the UN and US Congress so that caste discrimination in India is taken-up by these bodies. ( One can also add to list Ajit jogi, and Digvijay Singh both christian converts & also Pranoy Roy, his niece Arundhati ‘suzanna’ roy )          …………

Source: http://satyameva-jayate.org

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