हास्य–वयंग
कानोंकान नारदजी के
संसद में शौर्य
पिता: बेटा।
बेटा: हां, पिताजी।
पिता यह तूने टीवी पर क्या शोर लगा रखा है? मैं झपकी लेना चाहता हूं, वह भी नहीं ले
पा
रहा हूंं। फिज़ूल के कार्यक्रम मत देखा कर।
बेटा: पिताजी, मैं कभी कोई फिज़ूल कार्यक्रम
नहीं देखता। मैं तो संसद की कार्रवाई देख कर
देश को चलाने और राष्ट्रोद्धार के गुर
सीख रहा हूं।
पिता: खाक
सीख रहा है। यह तो बस हंगामा हो रहा है, तू-तू, मैं-मैं हो रही है। कोई किसी की
सुन ही नहीं रहा।
बेटा: पिताजी,
मैं आपको कैसे समझाऊं कि यह संसद है। आपने तो संसद की कार्रवाई न कभी
वहां जाकर देखी और न कभी टीवी पर ही देखते हैं। सारे देश को, सरकार को, जनता
को व न्यायपालिका को दिशा यहीं से मिलती है और देश की दशा भी यहीं से निर्धारित
होती है।
पिता: बेटा,
यह ठीक है कि तुम आधुनिक हो गये हो पर इतना तो मैं भी जानता हूं कि
पंचायत में काम कैसे चलता है। ठीक है वहां भी बहस होती है, गर्मागर्मी भी होती
है। कई बार एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप भी लगते हैं, पर ऐसा नहीं होता। सब
एक-दूसरे को सुनते हैं और अन्त में आम राय या बहुमत से निणर्य हो जाता है। और
संसद भी तो राष्ट्रीय स्तर की एक पंचायत ही है न।
बेटा: पिताजी मैं आपको कैसे समझाऊं? यह हमारी राष्ट्रीय संसद
है जिसमें भी बहस ही चल रही
है गर्मागर्म।
पिता: इसे तू बहस कह रहा है? इसमें तो सब एक साथ बोलते
जा रहे हैं। कोई किसी की नहीं
सुन रहा। सब एक-दूसरे पर चिल्ला रहे हैं। अध्यक्ष भी कुछ समय के लिये चुपचाप
सुन रहे हैं और जब कभी बोलते हैं तो न कोई उनकी बात सुनता है न मानता है।
बेटा: पिताजी,
यही तो जनतन्त्र है। इसमें सब को अपनी बात कहने, चिल्लाने और दूसरे की
बात न सुनने का पूरा संविधानिक अधिकार है।
पिता: पर बेटा यह सब कर क्या रहे हैं?
बेटा: ये सब हमारे अधिकारों व हमारे हितों के
लिये लड़ रहे हैं।
पिता: वह हमारे हित हैं क्या?
बेटा: वे मांग रहे हैं श्रीमति सुषमा स्वराज व
श्रीमति वसुन्धरा राजे के त्यागपत्र।
पिता: क्यों?
बेटा: क्योंकि श्रीमति स्वराज ने ललित मोदी
को लंदन से पुर्तगाल जाने में सहायता की जहां
मोदी की धर्मपत्नि का कैंसर आप्रेशन होना था और मोदी उस संवेदनशील घड़ी में
अपनी पत्नि के पास होना चाहते थे।
पिता: यह तो मानवीय कर्तव्य है जो सुषमाजी ने
निभाया। उसमें क्या अपराध है?
बेटा: पर वे इसे अक्षम्य अपराध मानते हैं।
पिता: और
वसुन्धराजी का अपराध?
बेटा: उनका
आरोप है कि उनके व उनके बेटे के ललित मोदी के साथ पारस्परिक व उनके
व्यवसाय में सम्बंध हैं।
पिता: क्या
मोदी कोई अपराधी घोषित हुआ है?
बेटा: मोदी
के वकील तो दावा करते हैं कि वह न तो कोई भगौड़ा है और न ही उसके विरूद्ध किसी प्रकार
का कोई वारंट ही जारी है। मोदी का मानना है कि वह लंदन में इस लिये रह रहा है क्योंकि
भारत में उसकी जान को खतरा है। हां, अभी हाल ही में एन्फोर्समैंट निदेशालय ने
मोदी को पेश होने के वारंट भेजे हैं।
पिता: सारा
हंगामा कौन कर रहे हैं?
बेटा: वही
लोग जो कल तक सत्ता में थे।
पिता: जब
मोदी विदेश भागा और लौट कर नहीं आया तो वर्तमान सरकार ही सत्ता में थी?
बेटा: नहीं
पिताजी, पिछली सरकार।
पिता: बेटा,
यह वही लोग नहीं हैं जिन्होंने ससम्मान वारन एण्डरसन को भारत से बाहर जाने दिया था जो भोपाल गैस त्रासदी में 15000 से
अधिक लोगों के मारे जाने और उससे भी
अधिक के अपंग हो जाने का दोषी था? वही जिन्होंने बोफर घूस काण्ड के
अपराधी क्वात्रोची को भारत से भागने
दिया था? वही जिन्होंने विधान सभा
में एक प्रस्ताव पास किया था कि उस अपराधी को मानवीय आधार पर जेल से रिहा कर दिया
जाये जो एक आतंकी घटना में संलिप्त था जिसमें दर्जनों निर्दोष अपनी जान गंवा बैठे
थे? वही जिनके कुछ लोगा संसद
भवन पर आक्रमण व 26/11 के दोषी व्यक्तियों पर दया की याचना करते थे और उनके 'जीने
के अधिकार' की रक्षा करने की पैरवी करते थे जिन्होंने सैंकड़ों निर्दोष लोगों के
जीने का अधिकार छीना था?
बेटा: हां
पिताजी, यह वही लोग हैं जिन्होंने दिल्ली के एक मन्त्री जिसे लोकायुक्त ने
घूसखोरी के आरोप में अपने पद से हटाने की सिफारिश की थी पर उस सिफारिश को राजनीतिक
भाव से रद्द करवा दिया था। यही हैं जिनके कई मन्त्री और मुख्य मन्त्री भ्रष्टाचार
व अन्य अनियमितताओं के लिये आरोपित हैं पर वह उनके साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर उन्हें
अपना राजनीतिक व नैतिक समर्थन दे रहे हैं।
पिता: फिर
बेटा वह किस चीज़ की लड़ाई लड़ रहे हैं?
बेटा: पिताजी,
कुछ भी हो वह संघर्ष तो हमारे हित के लिये ही कर रहे हैं न जिसके लिये हमने उन्हें
चुन कर भेजा है।
पिता: उसमें
हमारा हित क्या है?
बेटा: उनकी
जीत हमारी जीत होगी क्योंकि वह हमारे चुने हुये प्रतिनिधि हैं।
पिता: बेटा,
इससे देश का अरबों रूपया बर्बाद हो रहा है। यह हमारा ही नुक्सान है। कोई काम
नहीं हो रहा। वह हमारे ही पैसे की आग पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहे हैं।
बेटा: पिताजी,
आजकल राजनीति को ही तो देश व राष्ट्र हित बना दिया गया है। इसी में तो
हमारी भलार्इ है।
पिता: पता
है इससे हमारी जग हंसाई भी हो रही है?
बेटा: पिताजी
आपको पता ही नहीं। अब तो विश्व की कई संसद सभायें हमसे बहुत कुछ सीख
रही हैं और इस मामले में हमसे भी बहुत आगे
निकलने की कोशिश कर रही हैं।
पिता: इस
बात पर तू गर्व महसूस करता है?
बेटा: पिताजी,
आप कुछ कहो। मेरी संवेदना तो उनके साथ है। आखिर वह हमारे प्रतिनिधि हैं।
उन्हें हमने ही चुन कर भेजा है। इसमें उनका कोई कसूर नहीं है। हमें हर हालात
में उनके साथ खड़ा होना चाहिये।
पिता: तो
इसके लिये तू क्या करना चाहता है?
बेटा: पिताजी,
मेरी तो उनके साथ बहुत सहानुभूति है। वह हमारे लिये इतना गला फाड़़-फाड़ क्र लड़
रहे हैं। हाथ-सिर-पांव हिलाते हैं। सड़क से संसद तक हमारी लड़ाई लड़ रहे हैं।
पिताजी, उनकी जगह आप होते तो आकर बिस्तर पर लेट जाते और एक सप्ताह बिस्तर न
छोड़ते। अपने सिर, बाज़ू, टांगों व पांव की मालिश करवा-करवा कर हमारी ऐसी-तैसी फेर
देते। लेकिन वह हैं कि थकते ही नहीं।
पिता: तो जा, मुझे छोड़ और उनकी सेवा कर जो
तेरे लिये इतना कुछ कर रहे हैं।
बेटा: पिताजी,
मैं आपको तो छोड़ नहीं सकता पर घर बैठे ही मैं उनके लिये थोड़ा-कुछ अवश्य करूंगा
जो देश के लिये इतना कुछ कर रहे हैं। मैं अब समझ गया हूं कि संसद में बढि़या
खाना-पीना क्यों इतना सस्ता है कि उस दाम पर घटिया से घटिया व गन्दे से गन्दे
ढाबे पर भी नहीं मिलता। मैं तो अब उन लोगों के दांत तोड़ दूंगा जो इसकी आलोचना व
विरोध करते हैं। संसद में यदि पौष्टिक भोजन सस्ते दाम नहीं मिलेगा तो हमारे हितों
के लिये मलयुद्ध में उन्हें ऊर्जा कहां से मिलेगी?
पिता: पर
बेटा 'काम नहीं तो वेतन नहीं' के सिद्धान्ता का क्या हुआ?
बेटा: पिताजी, कानून कानून बनाने वालों पर लागू
नहीं होते। यह भी ग़लत आरोप है कि काम नहीं हो रहा। सवाल-जवाब, बहस, गर्मागर्मी ही तो
हमारे सदनों की शान हैं। यही सदा से हाता रहा है और आज भी हो रहा है। ण्क--दूसरे
की बात काटना ही तो यहां का विधान है।
मैं तो मांग करता
हूं कि उनका वेतन, भत्ते व अन्य युविधायें दुगनी व और भी सूगम कर दी जायें। फिर
यदि हमारे सदनों में तू-तू, मैा-मैं न हो तो सदनों की कार्रवाई ही नीरस हो जायेगी।
कोई देखेगा ही नही। जनता मनोरंजन से वंचित रह जायेगी।
पिता: बहुत खूब।
बेटा: मैं
तो पिताजी अब यह भी सुझाव देने जा रहा हूं कि जैसे हमारी सीमाओं पर तैनात
रक्षाकर्मियों को देश की रक्षा करने पर शौर्य चक्र प्रदान किये जाते हैंहैं,
उसी तर्ज़ पर संसद में राष्ट्र व देश हित की रक्षा के लिये मर मिटने वाले व्यक्तियों
का भी सम्मान हो और उन को भी 'राष्ट्रहित वीर' जैसे पदक प्रदान किये जायें। यदि
इसकी शुरूआात इसी सत्र से हो जाये तो इससे बढ्रिया मौका शायद फिर हाथ न आये। ***
Courtesy: Hindi UdayIndia