Wednesday, July 11, 2018

हास्य-व्यंग संक्षिप्तीकरण का कमाल

हास्य-व्यंग   
                
                                       संक्षिप्तीकरण का कमाल
बेटा:  पिताजीआपने मेरा नाम छोटू मोहन क्यों रखा था?
पिता: 50  साल बाद आज तेरे को यह प्रश्न कहाँ से खड़ा हो गयाआज तक पहले तो कभी यह प्रश्न नहीं किया?
बेटा:  आप मेरी सुनते कहाँ हैं?
पिता:   तो तेरा मतलब मैं तेरा नाम तेरे को पूछ कर रखताजब हम नामकरण करते हैं तब बच्चे की उम्र केवल 11 /13 दिन की होती है. तेरा मतलब तब मैं तुझसे पूछता कि तेरा नाम क्या रखूँ?
बेटा:  आपने मेरा नाम बाद में बदल देना था.
पिता:  बेटाअपने बच्चे का नाम रखना माता-पिता का ही अधिकार होता है.
बेटा:   मुझे पिताजी स्कूल में मेरे सहपाठी छोटू-मोटू कह कर चिढ़ाते थे.
पिता:   तो क्या हुआ?  स्कूल और कालिज में तो ऐसा चलता ही है. किस के साथ ऐसा नहीं होतामेरे साथ भी हुआ और मेरे पूर्वजों के साथ भी. तेरे बच्चों के साथ भी हुआ. यह होता है और होता ही रहेगा. बचपन में यह सब चलता ही है. इसमें बुरा मानाने की कोई बात नहीं है.
बेटा:  पर पिताजी लोग तो आज भी मुझे मेरा नाम लेकर चिढ़ाते हैं.
पिता:   बेटाइसमें बुरा नहीं मानते. हंसना-खेलना ही तो ज़िंदगी है.
बेटा:    पर आपको तो इसका ध्यान रखना चाहिए था.
पिता:   मेरा समय तो बीत गया पर तू ऐसा करना और अपने बच्चों को भी सलाह देना.
बेटा:    भला हो पिताजी हमारे अँगरेज़ शासकों का. उन्हें हम यूं ही गालियां देते रहते हैं. उन्हों ने हमारे लिए बहुत कुछ किया है.
पिता:   तेरे लिए क्या कर गए अँगरेज़ जो तुम उनके बड़े प्रशंसक बन बैठे हो?
बेटा:    उन्होंने हमारे लिए बहुत कुछ किया. पर मैं अभी केवल नाम की ही बात करता हूँ.
पिता:   मुझे समझा.
बेटा:    उनके हमरी पावन धरती पर कदम रखने से पूर्व हम सदा अपना और दुसरे के पूरा नाम ही लिखते और पुकारते थे. पर उन्होंने हमें सिखाया कि किस प्रकार ऐसी शर्मिंदगी और कटाक्ष से बचा जा सकता है.
पिता:   उन्होंने क्या करिश्मा कर दिखाया?
बेटा:    उन्होंने हमें नामों के संक्षिप्तिकरण की पद्धति से अवगत कराया और उसका तरीका समझाया जो बिलकुल सरल था.
पिता:    कैसे?
बेटा:     आपने तो मेरा नाम रख दिया छोटे मोहन. उन्होंने हमारे को अपनी नाम के साथ अपनी जाति और परिवार का नाम साथ जोड़ने की प्रेरणा दी.
पिता:   तो तूने क्या किया?
बेटा:    मैंने अपने नाम को संक्षिप्त कर सी. एम. बना दिया और उसके साथ अपनी उपजाति जोड़ दी लखपतिया और मेरा नाम बन गया सी एम लखतिया. लोग मुझे पुकारने लगे सी एम लखपतिया. यह मुझे बहुत अच्छा लगने लगा.
पिता:   तू कहाँ से बन बैठा लखपतियायह तो मेरी उपजाति नहीं है.
बेटा:    इससे क्या फर्क पड़ता हैकोई नहीं पूछता या इतराज़ करता. मुझे तो कोई जाति का लाभ तो लेना नहीं है कि कोई मुझ से जाति का प्रमाणपत्र मांगेगा. नाम तो जचता है न. पहले तो मुझे अपना नाम बताने में भी शर्म आती थी.
पिता:   पर कल को तो मुझे भी कोई पूछ बैठेगा कि यह कौनसी उपजाति हैतो मैं क्या जवाब दूंगा?
बेटा:     आपने कह देना कि यह हमारे पूर्वजों की उपजाति है. जो उनकी थी वह ही हमारी है. इसमें तर्क-कुतर्क का कोई स्थान नहीं है.
पिता:   अपनी जाति-उपजाति ग़लत लिखना या बताना भी तो ग़लत है.
बेटा:    यह तो तब होता है जब कोई अपनी ग़लत जाति या उपजाति बता कर अनुचित लाभ उठाना चाहता हो.
पिता:   किसी को किसी की जाति से पुकारना अपराध है और उसे ज़मानत भी नहीं मिलती.
बेटा:    मेरे मामले में ऐसी कोई बात नहीं है. पर आप ठीक कह रहे हैं. कुछ जातियां ऐसी अवश्य हैं जिनका नाम लेकर किसी को पुकारना अपराध है और उसे सीधे जेल जाना पड़ता है.
पिता:   पर यह भी सच है कि जब उन जातियों के लोगों को कोई लाभ लेना होता है तो वह स्वयं गर्व के साथ कहते हैं कि मैं अमुक जाति का हूँ और उस कारण वह लाभ मांगते हैं और उन्हें मिलता भी है.
बेटा:   यह तो पिताजीउनका विशेष अधिकार है. पर यह बताएं कि आजकल तो अनेक जातियां अपने को अनुसूचित जातियों में शामिल करवाना चाहती हैं. वह छाती ठोक कर कहते हैं कि हम अमुक जाति के हैं. यदि उनका नाम भी अनुसूचित जाति में शामिल हो गया तो क्या उनके नाम को भी उनकी जाति से पुकारने पर अपराध बन जायेगा?
पिता:  यह प्रश्न तो तेरा बड़ा सटीक है. हम लोग और वह स्वयं भी अपना नाम न बता कर यही कहते हैं — मैं शर्मा बोल रहा हूँसेठ बोल रहा हूँमेरे पास इसका उत्तर नहीं है.
बेटा:   पर पिताजीपिछले दिनों हमारे भारत रत्न डॉ भीमराव रामजी अम्बेदकर के नाम पर क्या विवाद हो गया?
पिता:   बेटायहाँ भी राजनीति ही की जा रही थी. हमारे संविधान के निर्माता डॉ अम्बेदकर को व्यर्थ ही राजनीती में घसीटा जा रहा है वोट पर नज़र रख कर. जब उनका नाम यही है तो राजनीति के आज के महारथी उनका पूरा नाम लिखने पर क्यों ऐतराज़ कर रहे हैंक्या उनके पूरे नाम को बदलने का किसी व्यक्ति को चाहे वह उनके परिवार से ही क्यों न होअधिकार हैयह फ़िज़ूल की राजनीति है.
बेटा:   ऐसे तो पिताजी राजनीति के कई महारथियों के नाम के साथ देवी-देवताओं के नाम जुड़े हैं. तो क्या वह सब सांप्रदायिक हैंउनको भी अपना नाम बदल लेना चाहिए?
पिता:   यह कैसे हो सकता है?
बेटा:   मैं आपको एक और घटना सुनाऊँ. एक व्यक्ति की धर्मपत्नी का देहांत हो गया. उसने अपने नाम की पट्टिका पर अपने नाम के साथ लिख दिया BA. इसे देखकर उसके एक मित्र ने कहा — तू तो मेट्रिक भी नहीं हैतूने अपने नाम के साथ BA कैसे लिख दियाउसने कहा मेरा BA से मतलब है: "Bachelor Again" . कुछ समय के बाद उसने देखा कि उस के नाम के आगे लिखा है MA . जब मित्र ने दोबारा पूछा तो उसने स्पष्ट किया: "Married Again" .
पिता:  यह तो अजीब उदाहरण है.
बेटा: यही नहीं. अंग्रेज़ो ने तो हम पर बड़ा एहसान किया जिनके नाम उनके माता-पिता ने जाने-अनजाने में ग़लत व अजीबोग़रीब रख दिए थेउनको बड़ी राहत मिली. जैसे बुद्धू राम शर्मा,  छज्जू राम वर्मा,  छांगा राम बोध निखट्टू राम विलायती झाड़ू राम वेदांती आदि रख दिया,  वह भी गर्व से अपना नाम बताने लगे. सब हो गए बी. आर. शर्मा,  सी आर वर्मासी आर बोधएन आर विलायतीजे आर वेदांती आदि. सब छाती तान कर अपना नाम बताने लगे. इस से पूर्व तो उनको अपना नाम बताने में भी झेंप आती थी. 
पिता:  पर इसमें भी तो कठिनाई है. लोग उनका पूरा नाम ही नहीं जानते थे. हम उनके संक्षिप्त नाम को तो जानने लगे पर कोई यह पूछ बैठे कि अमुक का पूरा नाम क्या है तो हम इधर-उधर देखने लगते थे क्योंकि हमारे को उनका पूरा नाम ही पता न होता था.
बेटा: यही नहीं. अंग्रेज़ो तो हम पर बड़ा एहसान किया. जिनके नाम उनके माता-पिता ने जाने-अनजाने में ग़लत व अजीबोग़रीब रख दिए थेउनको बड़ी राहत मिली. जैसे बुद्धू राम शर्मा,  छज्जू  राम वर्मा,  छांगा राम बोध निखट्टू  राम विलायती झाड़ू राम वेदांती आदि रख दिया,  वह भी गर्व से अपना नाम बताने लगे. सब हो गए बी. आर. शर्मा,  सी आर वर्मासी आर बोधएन आर विलायतीजे आर वेदांती आदि. सब छाती तान कर अपने नाम बताने लगे. इस से पूर्व तो उनको अपना नाम बताने में भी झेंप आती थी.     
पिता:  पर इसमें भी तो कठिनाई है. लोग उनका पूरा नाम हे नहीं जानते थे. हम उनके संक्षिप्त नाम को तो जानने लगे पर कोई यह पूछ बैठे कि अमुक का पूरा नाम क्या है तो हम इधर-उधर देखने लगते थे क्योंकि हमारे को उनका पूरा नाम ही पता न होता था. कई बार तो हम अपने ही नज़दीकी रिश्तेदारों के पूरे नाम न जानने लगे. सीएमकेकेवी आर बन कर रह गए.
बेटा:   यह तो आपकी बात ठीक है. मैं ही कई अपने दोस्तों के पूरे नाम नहीं जानता.
पिता:  इस संक्षिप्तीकरण का ही कमाल है कि कई शहरों के नाम ही बदल गए. असली नाम क्या हैबहुतों को पता ही नहीं रहता.
बेटा:   जैसे?
पिता:   तुम्हारे को पता है कि नोयडा का असली नाम क्या है?
बेटा:   नहीं.
पिता:  न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी. पर अब तो यह शहर का नाम बन गया है.
बेटा:   और भी है कोई ऐसा स्थान?
पिता: कई हैं पर केवल एक और का ही बताता हूँ. वह है एस ए एस नगर. यह नाम पंजाब सरकार ने मोहाली का बदल कर रखा था. इसका असली नाम है साहिबज़ादा अजीत सिंह नगर. पर लोग या तो इसे मोहाली ही कहते रहते हैं या फिर एस ए एस नगर. और भी कई उदहारण हैं.
बेटा:   बताओ न.


पिता:  हमारे राष्ट्रपिता का नाम मोहनदास करमचंद गांधी है. पर 100 में से एक-दो ही यह बता पाएंगे. नयी पीढ़ी तो बहुत कम. वह भी अब महात्मा गांधी बन कर रह गए हैं.   ***
Courtesy: Udayindia Hindi weekly