हास्य-व्यंग
अल्लाह के नाम
देदे भीख भ्रष्टाचार की
मैं हूँ एक राजनेता सही मायनों में. मैंने आज तक और कुछ
नहीं किया जिसका सम्बन्ध राजनीति से न हो. मैं कुछ और कर भी नहीं सकता था. मैं तो
इसके साथ शुरू से ही चिपका रहा. मुझे पक्का विश्वास था कि मेरी मेंहनत व तप-तपस्या
एक दिन ज़रूर रंग लाएगी. जीवन का मेरा एक ही लक्ष्य था: जनसेवा. इसमें कोई कमी या
लापरवाही नहीं होनी चाहिए. इसके लिए मैं कुछ भी, कोई भी कुर्बानी
दे सकता हूँ. मेरा पूरा विश्वास था कि सेवा में ही प्रसाद छुपा है. सेवा का मज़ा
लूटो इसका फल जल्दी या देर से अवश्य मिलेगा. मुझे भगवान् श्री कृष्ण के उपदेशों पर
पूरा विश्वास है. उन्हों ने कहा था कि तू कर्म कर, फल का ध्यान मैं रखूंगा. वैसे मैंने अपने जीवन
में कभी फल की आशा रखी ही नहीं. मेवा मुझे जग के पालनहार अपने आप देंगे. मुझे तो
फल अपने आप बिना उसकी कामना करने के मिला है. मुझे पता था कि मेरे परम भक्त व
समर्थक इसका ध्यान अपने आप ही रखेंगे. मैं तो जन सेवा पूरी ईमानदारी से करता था
बिना किसी फल की चिंता किये बग़ैर. मैं तो फल की चिंता अपने ईश्वर पर ही छोड़ देता
हूँ. यह ईश्वर की चिंता है;
मेरी नहीं. मैं
तो इस बात में भी विश्वास रखता हूँ कि यदि मेरे पास सेवा की पूँजी है तो फल तो
अपने आप ही मेरी झोली में गिरते जाएंगे.
मुझे तो यह भी पूरा विश्वास है कि आप सरीखे मेरे समर्थक, मेरी चिंता करने
वाले लोग मुझ से ज़्यादा चिंता करते हैं. मैं तो जनता हूँ कि भूखे पेट तो व्यक्ति
कुछ भी नहीं कर सकता, ईश्वर का नाम भी नहीं ले सकता. भूखे पेट तो मैं
पॉलिटिक्स भी नहीं कर सकता. भूखे पेट तो आदमी किसी के पक्ष में या विरोध में भी
अपने हाथ खड़ा करने की शक्ति नहीं रखता. खाली पेट तो उसे अपनी भूख ही याद रहती है.
वह तो ईश्वर को भी भूल जाता है. भूखी-प्यासी जनता की भूख-प्यास दूर करने का कोई
कैसे असीम आनंद प्राप्त कर सकता है जब उसके पास अपने और अपने बच्चों की ही भूख
मिटाने का साधन नहीं हो तो. मुझे हमारे बुज़ुर्ग बताते थे कि यदि भूखे को पूछा जाये
कि दो और दो कितने होते हैं तो वह बताता है कि चार रोटी. भूखे पेट तो व्यक्ति
ईश्वर को भी भूल जाता है. जब उसके पेट के अंदर कुछ जाता है तो अंदर से डकार निकलता
है और तब उसके मुंह से अनानास ही निकल जाता है: हे ईश्वर!
मैंने अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया और जनता की सेवा करने
की कसम खाई. इसलिए मैंने हर चुनाव लड़ा — पंचायत का, विधान सभा और लोक
सभा का. पर मैं कभी भी,कहीं भी सफल नहीं हुआ. मैं तो राष्ट्रपति और
उपराष्ट्रपति का भी चुनाव लड़ना चाहता था पर सरकार ने मेरे जैसे देश व जनता की भक्त की लिए ऐसा कर
पाना असंभव बना दिया है.
इसके बावजूद जनसेवा का मेरा प्रण कमज़ोर न हो पाया. मुझे एक
ईश्वरीय प्रेरणा मिली है. मुझ में एक नयी शक्ति का संचार हुआ है. मुझे एक नयी
रौशनी दिखी है. इसी प्रेरणा के कारण मैं
अपने उदार भाई-बहनों, बुद्धिजीविओं, अग्रणी नागरिकों, माताओं, भाई-बहनों और
हमारे नन्हें-मुन्ने बच्चों तक से विनम्र प्रार्थना कर रहा हूँ कि मुझे खुले दिल से घूंस देने की कृपा करें.
अब आप मुझ से प्रश्न करेंगे कि वह मुझे रिश्वत क्यों दें. तुम तो कोई मंत्री या
उसके चमचे तो हो नहीं जो कभी मेरे काम आओगे और मेरा उल्टा-सीधा काम भी कर दोगे. न
तो तुम किसी बड़े अफसर या मंत्री के अर्दली हो नहीं जो मुझे पिछले दरवाज़े से मिला
दोगे.
पर तुम तो कुछ नहीं हो. तुम मेरे क्या काम आओगे जो मैं
तुम्हें रिश्वत दूँ?
मैं मानता हूँ कि मैं आज तो कुछ भी नहीं हूँ. मैं किसी के
काम नहीं आ सकता, किसी का कोई काम नहीं करवा सकता हूँ. पर आपको
यह भी नहीं भूलना चाहिए कि मैं कम से कम लोगों का नेता तो हूँ. और यही मेरे जैसे
जनता के सेवक जो कल को मंत्री और मुख्य मंत्री बन जाते हैं उनके समर्थकों और चाहने
वालों के आशीर्वाद से. जनता आज मेरे साथ
है और कल को वे ही मेरी सब से बड़ी ताकत
होंगे. यहाँ तक तो यह बात सच्ची है.
इतनी गारंटी तो मैं निश्चित तौर पर दे सकता हूँ. आप लोगों को इतना याद रखना
चाहिए कि आज जिस पत्थर को आप पांव से ठोकर मार देते हैं, वही कल को आपके
बहुत बड़े काम आ सकता है; आपकी जान तक बचा सकता. आप भली भांति मानते
होंगे कि मैं तो किसी पत्थर से कहीं बड़ा मानव हूँ और उससे भी बड़ी बात कि मैं एक
नेता हूँ. यह ठीक है कि आज मैं कुछ नहीं हूँ, आपके किसी काम का
नहीं. पर कल किसने देखा है? मैं कल को आपके लिए आसमान से तारे तोड़ कर लाने
का वादा तो कर ही सकता हूँ. आज का समय
वादों का है. आज तो सरकारें बन जाती हैं
या बदल दी जाती हैं मात्र जनता को बड़े बड़े वादों की शक्ति पर. यह भी तो सच्चाई है
कि यदि नेता और दल जनता को वादे न करें तो कोई उनको वोट नहीं डालेगा. यही नहीं.
लड़के-लड़की में प्यार भी वादों के आधार पर ही उपजता है. वादे न होंगे तो प्यार भी
नहीं होगा. प्यार नहीं होगा तो प्रेम विवाह भी नहीं होगा. अगर विवाह नहीं होगा तो
समाज कैसे निर्मित होगा? तब तो न परिवार होगा, न समाज, न गाँव और न देश
न प्रदेश. न सरकार होगी और न विपक्ष. संसार में सब कुछ बिखर कर रह जायेगा. चारों
तरफ अव्यवस्था का माहौल होगा. हम धातु और पत्थर युग की ओर पीछे मुड़ते
दिखेंगे.
आप कहेंगे तुम तो कुछ भी नहीं हो. तुम्हारी हैसियत ही क्या
है, औकात ही क्या हैं? तुम कैसे कोई एक
भी वादा कर सकते हो? पर लगता है कि आप
पॉलिटिक्स, विशेषकर जो भारत में है, उसे जानते ही
नहीं, पहचानते ही नहीं. यहाँ तो सब कुछ हो सकता है. असंभव नाम की
तो कोई चीज़ ही नहीं है. जिस व्यक्ति को आप जैसे महानुभाव और बड़े-बड़े बुद्धिजीवी
कहते फिरते हैं कि अमुक व्यक्ति या पार्टी कभी जीत ही नहीं सकती, इस जन्म में तो
क्या अगले सात जन्मों में भी नहीं, वही जीत जाते हैं, सरकार बनाते हैं, मंत्री और मुख्य
मंत्री बनते हैं. साथ ही आप जैसे लोग जो कहते हैं कि इस व्यक्ति को या पार्टी को
हराने वाला अभी तक पैदा नहीं हुआ, वही हार की धूल चाटता है. क्या किसी ने सोचा था
या बड़े-बड़े ज्योतिषिओं ने भविष्यवाणी की थी कि एक दिन राबड़ी देवी जी मुख्यमंत्री
बनेंगी और वह भी अपने पति के स्थान पर.
बाद में तो उनके पिता भी ग्राम प्रधान चुने गए. वहां नारा लगा — "हमारे नेता आप
हैं क्योंकि आप मुख्य मंत्री के बाप हैं".
जब तक कि ओबामा अमरीका के राष्ट्रपति पद के लिए नहीं उतरे
थे तब तक दुनिया में कौन उन्हें जानता था? आज सारी दुनिया
उन्हें जानती है. अमरीका के वर्तमान राष्ट्रपति की भी वही बात है. सब वादों के ज़ोर
पर ही जीते थे.
मैं आप से रिश्वत की भीख ही नहीं मांग रहा हूँ. मैं साथ ही
यह चाहता हूँ कि आप मुझे रिश्वत मांगने और लेने का अपराध में फंसा दो. मुझे जेल
भिजवा दो. मैं यही चाहता हूँ. आप देखना मैं जेल से ही चुनाव लडूंगा और जीत कर दिखा
दूंगा. मैं जेल से ही जनता का प्रतिनिधि बन कर दिखाऊंगा. आपको पता है कि हमारी आम
साधारण अदालतों से भी ऊपर, सब से ऊपर होती है जनता की अदालत. वह बड़े से
बड़े गुनाह माफ़ कर देती है. जेल से छूट कर कई व्यक्ति मंत्री-मुख्य मंत्री बने हैं.
मुझ से भी यही होगा. आज रिश्वत कोई अपराध नहीं है.
मैं जब जेल से निकलूंगा तो जेल के छोटे से बड़े सभी अधिकारी
मुझ से माफ़ी मांगेंगे. कुछ उनको दी गयी सेवाओं को याद रखने की बात करेंगे. कहेंगे
कि उनको मत भूल जाना.
इसी लिए मैं कहता हूँ कि आज मुझे रिश्वत देने का ईश्वरीय
मौका मत गंवाओ. हो सकता है कि कल पॉलिटिक्स करवट बदले और मैं मंत्री-मुख्य मंत्री
बन जाऊं. तब आप अपने को और अपनी किस्मत को कोसेंगे कि तुमने मेरे जैसी महान आत्मा
को रिश्वत देने का सुनहरी मौका हाथ से गँवा दिया. मेरे से कोई वादा भी नहीं लिया.
कल को तो तुम मेरे दर्शन तो क्या, मेरी एक झलक के लिए भी तरसोगे. तब मेरे पास आकर
मेरी वाणी से बरसते फूलों की महक से भी वंचित रह जाओगे .इस लिए मैं आप से आज हाथ
जोड़ कर प्रार्थना कर रहा हूँ कि मुझे रिश्वत देने और वह भी मुझे केवल रिश्वत देने
का ही नहीं बल्कि मुझे फंसा देने और सजा दिलवाने के भी सुनहरी मौके को हाथ से मत
जाने दीजिये. बहती नदी में हाथ धो लो. कल शायद आपको इस मौके को गँवा देने पर
ग्लानि हो और आप अपने आपको कभी माफ़ न कर पाएं. ***
Courtesy: Udayindia Weekly (Hindi)