विचारणीय
पिताजी, टोकरी मत फैंको, कल को मुझे चाहिये
एक व्यक्ति का पिता बड़ा बूढ़ा हो गया था। लगातार
बीमार भी रह रहा था। बस बिस्तर पर ही सिमट कर रह गया था। बेटा तंग आ गया। उसने
अपने पिता को एक टोकरी में डाला और उसे नदी में फेंकने के लिये रवाना हो गया। आगे
उसे उसका अपना पुत्र मिल गया जो साथ जाने की जि़द्द करने लगा। वह व्यक्ति उसे भी
साथ ले गया। वह नदी में काफी गहराई तक घुस गया ताकि पिता बच न जाये और उसकी मुसीबत
पुन: लौट न आये।
ज्योंहि वह व्यक्ति उस टोकरी को फैंकने लगा जिसमें उसका पिता था तो नदी किनारे खड़े बच्चा चिल्लाया, ''पिताजी, टोकरी मत फैंको।''
व्यक्ति ने मुड़ कर अपने बच्चे से पूछा, ''क्यों\''
बच्चे ने सहज भाव से उस व्यक्ति को
समझाया, ''पिताजी, कल को मुझे भी तो आपको ऐसे ही फैंकना होगा। तब मैं टोकरी कहां
से ढू़ंढूंगा\''
वह व्यक्ति उल्टे पांव बापस आ गया। उसने
अपने पिता को नदी में नहीं फैंका।
(यह
कहानी आम सुनाई जाती है)
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