Saturday, October 3, 2020

िज्ञान एवं अध्यात्म में समन्वय अति आवश्यक

प्रेरक-प्रसंगिज्ञान एवं अध्यात्म में समन्वय अति आवश्यक एक सुप्रासिद्ध वैज्ञानिक विदेश से भारत पधारे| उन्होंने किसी भारतीय सन्त से भेंट की हार्दिक इच्छा प्रकट की| दर्शनार्थ प्रबन्ध किया गया| वैज्ञानिक महोदयने सन्तसे पूछा — ‘आधुनिक विज्ञानं के बारे में आपकी क्या राय है?’ सन्त ने कहा — ‘मेरी राय में इसका कोई मूल्य नहीं है’| चकित एवं व्यथित वैज्ञानिक ने कहा — ‘जिस विज्ञान ने मनुष्य को इतनी सुख-सुविधाएं प्रदान कीं उसे आप निरर्थक बता रहे हैं?’ महात्मा ने कहा — ‘आपकी इस वर्णित उपलब्धि से मैं सह्मत हूँ, परन्तु विज्ञान की सब से बड़ी हार है कि वह मानव को मानव की भान्ति जीना न सिखा सका, परस्पर प्रेम करना, दूसरों के काम आना. उन्हें सुख बांटना न सिखा सका| मानव में मानवता प्रकट करने की योग्यता सांसारिक विद्याओं में नहीं है, यह महान कार्य परा-विद्या ही कर सकती है|’ चूंकि हमें इनसान की भान्ति, एक नेक इनसान की भान्ति, एक नेक इनसान की भान्ति रहकर जीवन-यापन की उत्कट इच्छा है, अतैव दोनों विद्याओं का समन्वय अति आवश्यक है| प्रायः कहते सुना जाता है, ‘अमुक व्यक्ति डाक्टर तो बहुत अच्छा है, पर इनसान किसी काम का नहीं, चरित्रहीन है, क्रोधी है, लोभी है| गुणवान बनना तथा दुर्गुणहीन मनुष्य बनना परा-विद्या ही सिखाती है| मानवता अनमोल है| — डा० विश्वामित्रजी (हिंदी कल्याण मासिक से साभार)

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