Monday, July 13, 2015

*चर्चा में * *फिर मैगी*

चर्चा में
फिर मैगी
मैगी एक बार फिर खबरों में है। मैगी के निर्माता नैस्‍ले ने दावा किया है कि इसकी गुणवत्‍ता की जांच मान्‍यता प्राप्‍त व अधिकृत लेबोरेटरीज से नहीं की गई से है। यह तो एक बहुत गम्‍भीर आरोप है। सरकार मैगी की जांच ग़ैरजि़म्‍मेदाराना ढंग से अनाधिकृत एजेंसियो से जांच करवाती, यह आरोप तो गले नहीं उतरता। मैगी  जांच एक नहीं करवाई, अनेक लेबोरेटरीज अनेक स्‍थानों व संस्‍थानों पर लगाई गई थी। सरकार सदा इन्‍ही सरकारी व गैरसरकारी संस्‍थानों से जांच करवाती है। यही सदैव होता आ रहा है।
पर साथ ही यह भी समझ नहीं आ रहा कि यदि बात ऐसी है तो नैस्‍ले ने मैगी पर प्रतिबन्‍ध के खिलाफ जो अपनी याचिका दायर की थी उसे वापस क्‍यों ले लिया गया?
उधर यह भी समाचार छपे थे कि नैस्‍ले ने 320 करोड़ रूपये की मैगी स्‍वयं ही नष्‍ट कर दी।
फिर समाचार यह भी आ रहे है कि मैगी को लंदन आदि में खाने योग्‍य पाया गया है। इसमें तो कोई हैरानी की बात नहीं। हर देश के इस बारे अपने-अपने मानदण्‍ड हैं। पिछले वर्ष अमेरिका ने भारत से निर्यात आम को लौटा दिया था यह कह कर कि उनके मानदण्‍ड के अनुसार यह आम खाने लायक नहीं है, जबकि भारत में उसी आम को जनता ने खूब मज़ा लिया।

हम और हमारे बच्‍चे रोज़ रोटी, चावल, दाल, सब्‍ज़ी खाते हैं। वह बढि़या से बढि़या होती है। हम सब बड़े चटकारे लगा कर खाते हैं। पर बढि़या से बढि़या, स्‍वाद से स्‍वाद पकवान को भी हम रोज़ सुबह श्‍याम  सुबी-शाम नहीं खाते और न खा ही सकते हैं, पर यह तो अनुसंधान का विषय है कि मैगी में ऐसी क्‍या चीज़ है कि हमारे बच्‍चे चाहते हैं कि वह बस मैगी ही खायें और कुछ नहीं। मैगी खाने से, उनमें इसे खाने की लत क्‍यों पड़ जाती है?