हास्य–व्यंग
कानों-कान नारदजी के
क्रिकेट व पालिटिक्स
में अन्तर कितना?
विश्व में सब से पहले अण्डा आया या मुर्गी? यह एक ऐसी पहेली है
जिसे विश्व के बड़े-बड़े विचारक अभी तक ठीक से सुलझा न पाये हैं। इसी प्रकार एक
और पहेली उभर कर आई है — विश्व में पहले
पालिटिक्स आई या क्रिकेट। वैसे कहने को तो पालिटिक्स भी सब से पहले ब्रिटेन में
ही पनपी और क्रिकेट का तो जन्म भी इस देश में हुआ। भारत में राजनीति तो हज़ारों
साल पुरानी है। पर उसमें नीति थी, नियम थे, आदर्श थे परवर्तमान राजनीति विदेशी
पालटिक्स का ही एक आधुनिक संस्करण बन कर रह गई है।
क्रिकेट तो अंग्रेज़ लाटसाहिबों का प्रिय खेल है जिनके पास दोलत भी थी,
शोहरत भी और मनोरंजन के लिये अपार समय भी। इन हालात में क्रिकेट का उदय हुआ जिस
में वह पांच-पांच दिन इस मैच का आनन्द लेते हैं सुबह से शाम। पर समय के साथ इसका
सामाजीकरण हो गया है। रेडियो और टीवी के चलन के बाद तो अब क्रिकेट भी आम आदमी का
खेल बन गया है। स्टेडियम में बैठे लोग तो अब अपने मुंह ही चित्रा लेते हैं। कई
प्रकार के परिधान पहन कर कई प्रकार की हरकते करते हैं। जब कैमरा उनकी ओर देखता है तो
दर्शक अजीब हरकतें करने लगते, डांस करने
लगते हैं, खुशी में चीख-पुकार करने लगते हैं। उन्हें तब इस बात की कोई परवाह नहीं
कि उनका चहेता बल्लेबाज़ या टीम ही आउट क्यों न हो गई हो। उन्हें तो कैमरे के
सामन खुशी का प्रदर्शन करना है, बस।
पालिटिक्स में सब चलता है। कहते हैं कि प्यार व चुनाव की बहार में सब
चलता है। सब मान्य है। पर क्रिकेट के कुछ नियम अवश्य हैं पर वह भी समय के अनुसार
बदलते रहते हैं, ढलते रहते हैं।
पर जो सब से अधिक नज़र आती है वह है दोनों में कई प्रकार की
समानतायें। ऐसा लगता है कि ये दोनों सगी बहने हैं जिनका आचार-विचार-व्यवहार एक
समान है। फर्क केवल इतना नज़र आता है मानों वह दो अलग-अलग घरों में ब्याही गई
हैं। यही कारण लगता है कि बड़े-बड़े महानुभाव तो कई बार खेल में भी स्पोट्सर्मैनशिप
दर्शाये जाने की वकालत करते हैं। पर अब तो हालत यह है कि स्पोर्टस में पालिटिक्स
और पालिटिक्स में र्स्पोट्स के दर्शन होने लगे हैं।
क्रिकेट में क्या होता है? यहां दो टीमें होती हैं — एक बैटिंग करती हैं और दूसरी फील्डिंग। ठीक
इसी तरह पालिटिक्स में भी दो पक्ष् होते हैं — एक सत्ता पक्ष और दूसरा विरोधी पक्ष। क्रिकेट व पालिटिक्स
दोनों ही विरोधी दलों व टीमों का एक ही लक्ष्य होता है — सत्ता पक्ष के पांव न जमने पायें और
बल्लेबाज़ टीम कोई बड़ा स्कोर न खड़ा कर पाये। बल्ल्ेबाज़ गेद को हिट तो अवश्य
करे पर अव्वल तो वह आऊट ही हो जाये या फिर रन न बना सके। यदि एक-आधी रन बना भी ले
तो कोई बात नहीं पर चौका और छक्का तो बिलकुल ही लगाने नहीं देना है किसी भी हालत
में। पालिटिक्स में विरोधी पक्ष का यही
प्रयास रहता है कि सत्ताधारी दल कोई ऐसा काम करने में सफल न हो जाये कि उसकी बल्ले-बल्ले
हो जाये और वह अगला चुनाव फिर जीत जाये। और फील्डिंग कर रही टीम का भी यही चेष्ठा
रहती है कि उसकी विरोधी टीम का बल्ला इतना न चल जाये कि उनको करारी हार का सामना करना
पड़ जाये।
बल्लेबाज़ी कर रही टीम एक एक प्रकार से सत्ता
पक्ष ही होता है और फील्डिंग कर रही टीम विपक्ष। बल्लेबाज़ बहुत बढि़या खेल रहा
होता है। चौके पे चौका, छक्के पे छक्का मारता जा रहा है। उसने रनों का अम्बार
खड़ा कर दिया है। वह रनों की एक शताब्दी बनाने की ओर तेज़ी से बढ़ रहा होता है।
वह एक बड़ा स्कोर बनाना चाहता है। पर उसकी विपक्षी टीम इस इस रणनीति को अपनाने
में पूरा ज़ोर लगा देती है कि वह कोई अच्छा स्कोर न बना सके, कोई इतिहास न रच
बैठे, सैंचुरी न जड़ दे। यदि वह कोई बड़ा स्कोर खड़ा कर देगा, सैंचुरी बना देगा,
कोई इतिहास रच देगा तो खेल का कोई बुरा हो जायेगा भला? इसमें तो योगदान तो
दोनों ही टीमों का होगा ना। एक का इतिहास रचने में और दूसरे का उसमें सहयोग देकर
सम्भव कर दिखाने का।
एक बल्लेबाज़ सैन्चुरी बनाने के कगार पर खड़ा है। उसे केवल दो या तीन रन
चाहियें। उसका प्रयास है कि गेंद ऐसा आये कि वह बड़ी आसानी से एक चौका या छक्का
जड़ कर एक शान्दार सैन्चुरी बना दे और सब की वाह-वाह लूटे। यदि वह कामयाब हो
जाये तो परम्परा के अनुसार विरोधी टीम को भी खड़े होकर तालियां बजाने की रस्म तो
निभानी पड़ती है पर तालियों के नीचे दिल की टीस को भी छुपाना ही पड़ता है। यह अलग
बात है कि जब किसी बात या उपलब्धी पर सत्ता पक्ष अपने डैस्क थप-थपा कर स्वागत
करता है तो विरोधी दल अपने हाथ मलते रह जाते हैं और मन मसोस कर बैठे रहने पर मजबूर
हो जाते हैं।
दूसरी ओर, फील्डिंग कर रही टीम जब उसके चौके या छक्के के प्रयास को आऊट
में बदल देते हैं तो बल्लेबाज़ तो अपना हैट उतारकर सिर लटका कर अपनी झुनझुनाहट का
प्रदर्शन करते हुये अपने खेमे की ओर प्रस्थान करता है तो दूसरी ओर विरोधी टीम
उछल-उछल कर उस बाउलर को उठाकर हाथ से हाथ ताली बजकर उसका अभिवादन करते हैं। तब वह
उस क्षण का हीरो बन कर उभरता है।
दूसरी ओर, किराये के चीयरलीडर्ज अपनी अपनी कमर मटकाते हैं, मसनूही फूल हाथ
में लेकर एक किराये की मुस्कान बिखेरते फिरते हैं। कोई रन बनाये या आउट हो जाये,
कोई सैंचुरी बनाने में सफल रहा हो या असफल, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्हें
तो जीत और हार दोनों का ही जश्न मनाना है।
यही कहानी पालिटिक्स की है। यहां भी विपक्षी दल कभी नहीं चाहता कि सत्ताधारी
दल या सरकार कुछ कर दिखाये। सरकार यदि कुछ करने में सफल हो जाती है तो यह तो
विपक्षी दल की हार है। इसी लिये क्रिकेट की तरह विपक्षी दल भी यही चाहते हैं कि
सरकार कोई चौका-छक्का या सैंचुरी न बना बैठे। जिस प्रकार फील्डिंग कर रही टीम के
सामने लक्ष्य होता है कि बैटिंग कर रही टीम कोई बड़ा स्कोर न खड़ा कर दे तो यह
उसकी विफलता और कमज़़ोरी की द्योतक है उसी तरह पालिटिक्स में विपक्षी दल समझते
हैं कि यदि उनके होते हुये सरकार कुछ उपलब्धि हासिल करने में कामयाब हो जाती है तो
वह किस काम के? इसे तो वह अपनी नाकामी
ही गिनते हैं।
देखा जाये तो पालिटिक्स व क्रिकेट दोनों ही इतिहास रचने के बाधक होते हैं।
दोनों में से कई नहीं चाहता कि उनका विरोधी कोई इतिहास रचने में सफल हो जाये। पर
विडम्बना यह है कि इतिहास फिर भी रचा जाता है किसी के लाख रोड़ा अटकाने के बावजूद
भी।
क्रिकेट में यदि कोई बल्लेबाज़ लगातार तीन गेन्दों पर लगातार तीन चौके या
छक्के मार दे तो कहते हैं कि उसने हैटट्रिक मार दिया। इसी प्रकार जब कोई गेन्दबाज़
लगातार तीन विकट लेले यानी उनको बिना कोई रन बनाये आउट कर दे तो उसे भी हैट्रिक के
इतिहास में शामिल कर लिये जाता है।
इसी प्रकार जब पालिटिक्स में कोई नेता लगातार तीसरी बार विधान सभा या लोक
सभा चुनाव जीत जाता या हार जाता है तो उसका नाम भी हैटट्रिक की श्रेणी में दर्ज कर
दिया जाता है।
तालियां तब भी बजाई जाती हैं जब कोई सैंचुरी बनाता है, चौका-छिक्का जड़
देता है और तब भी जब कोई आउट हो जाता है। पालिब्क्सि में भी सिवाय कुछ नज़दीकी
लोगों को छोड़ कर सभी जीत का नगाड़ा बजाते हैं दूसरों की हार का सदमा भूल कर।
आज समय है स्वतन्त्रता का, उच्छृंखला का, पुरानी परम्पराओं को तोड़ने,
नई बनाने व उन्हें जल्द तोड़ने व बनाने का। पालिटिक्स में नैतिकता ढूंढना तो
हिमाचल की एक कहावत के अनुसार पेशाब कर उसमें मच्छलियां पकड़ने के व्यर्थ प्रयास
समान है। पालिटिक्स की दूसरी बहन क्रिकेट में भी नैतिकता कितनी है, यह तो इस खेल
के प्रेमी ही बता सकते हैं। ***
Courtesy: UdayIndia weekly (Hindi)