जीवन ऐसा भी
वह पाठ कर रहे हैं
मेरे एक वरिष्ठ सहयोगी ने सुनाया एक किस्सा।
स्वतन्त्रता से पूर्व राजे-महाराजे जब किसी पर मेहरबान हो जाते थे तो वह खुश
होकर किसी को भी या उसके बेटे को कोई भी पद दे देते थे। ऐसी ही एक कहानी है पंजाब
की रियासत की। एक रियासत में राजा की मेहरबानी से बनाये गये ऐसे ही एक पुलिस
अधीक्षक (ऐसपी) थे। उन्हें अंग्रेज़ी का तो एक शब्द भी नहीं आता था। इस लिये वह
अपने साथ एक अंग्रेज़ी पढ़ा-लिखा सहायक साथ रखते थे।
एक बार रेल से प्रथम
श्रेणी के डिब्बे में वह दिल्ली जा रहे थे कि उसी डिब्बे में पंजाब राज्य का
एक ऐसपी भी जा रहा था। उसने अंग्रेज़ी में पूछा कि वह कहां के ऐसपी हैं तो उसके
सहायक ने बता दिया। अंग्रेज़ ने कहा कि मैं उनसे कुछ आपसी बातचीत करना चाहता हूं।
रियासत के उस ऐसपी को उसके सहायक ने अपनी भाषा में बताया। अब वह क्या बात करता\
उसने तुरन्त अपने धर्म की एक पुस्तक निकाली और उसका पाठ करना शुरू कर दिया।
अपने सहायक को कह दिया कि वह अंग्रेज़ को बता दे कि मैं पाठ कर रहा हूं। सहायक ने
ऐसा ही किया।
अंग्रेज़ अफसर थोड़ी-थोड़ी देर बात पूछे कि पाठ खत्म हुआ\ सहायक उसे बताये कि नहीं, अभी तो समय लगेगा। गाड़ी दिल्ली
पहुंच गई पर उस रियासती ऐसपी का पाठ खत्म न हुआ। स्टेशन आने पर अंग्रेज़ अफसर
उसका अभिवादन करते हुये गाड़ी से उतर गया तो उस रियासती ऐसपी की जान में जान आई।
27-02-2013
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