Thursday, July 19, 2012

हास्‍य-व्‍यंग : 'हाय' – किसी की कराहट, किसी की मुस्‍काहट




हास्‍य-व्‍यंग
हाय – किसी की कराहट, किसी की मुस्‍काहट

बेटा:   पिताजी, हाय।
पिता:  बेटा, क्‍या तकलीफ है?
बेटा:   नहीं पिताजी। मुझे कोई तकलीफ नहीं। मैं तो बस आपका अभिवादन कर रहा हूं।
पिता:  अभिवादन, कराह कर, हाय–हाय कर?
बेटा:   पिताजी, आजकल नमस्‍ते, नमस्‍कार , प्रणाम का चलन नहीं रहा। अब तो हाय-हाय ही       ससम्‍मान अभिवादन है।
पिता:  ओह। अब मैं समझा कि उस दिन सड़क पर एक घायल क्‍यों परेशान था? मुझे बताया कि एक पैदल चल रहे व्‍यक्ति को एक गाड़ी ने टक्‍कर मारी और वह भाग गया। घायल अवस्‍था में वह व्‍यक्ति फुटपाथ पर लेटा-लेटा कराहता रहा। वह पास से गुज़रते पैदल या स्‍कूटर सवार को कराहते हुये 'हाय' कर सहायता की आशा करता तो सब उसकी 'हाय-हाय' के जवाब में हाथ हिला कर मुस्‍कराते हुये 'हाय-हाय' कर आगे निकल जायें। वह काफी समय पीड़ा में 'हाय-हाय' करता रह गया।
बेटा:   तब पिताजी यह तो एक समस्‍या है। आदमी जब आहत होता है तो उसके मुंह से तो 'हाय' अपने-आप ही निकल जाती है।
पिता:  यह तो है।
बेटा:   फिर ऐसे आपात समय में व्‍यक्ति 'हाय' न करे तो क्‍या करे?
पिता:  यह तो बेटा शिष्‍टाचार का पाठ पढ़ाने वाले उन आधुनिक सम्‍भ्रान्‍त महानुभावों से ही पूछ। 

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