हास्य-व्यंग
कानोंकान नारदजी के
हाये, यह कैसे हो गया पेशाब
मुझे बड़े ज़ोर से पेशाब आ गया। पर नज़दीक कोई पेशाबघर दिखाई नहीं दे रहा था। मैं बड़ी देर इधर-उधर ढूंढता रहा। कुछ पी भी रखी थी जिस कारण मेरे पांव भी लड़खड़ा रहे थे। शराब की बोतल खरीदी और उससे जेब भी खाली हो गई थी। अब चारा केवल लोकल बस लेने का ही रह गया था। आये पेशाब के कारण मैं इतना परेशान था कि मुझे लग रहा था कि अब तो कहीं मेरा ब्लैडर ही न फट जायेगा। हार कर मैं सड़क के एक कोने पर गया जहां अंधेरा था। मैंने वहीं पेशाब करना शुरू कर दिया। शुरू तो हो गया पर अब बन्द होने में ही नहीं आ रहा था।अभी मैं अपनी पैंट की जि़प्प बन्द ही कर रहा था कि मुझे किसी ने पीछे से धक्का दे दिया। मैं मुंह के बल गिर गया। उसने पांव से मेरी पैंट खींच ली। मैं नंगा हो गया। ग़लती से उस दिन मैंने अंडरवीयर भी नहीं पहन रखा था। ऊपर से उसने और साथियों ने मुझे जूतों से पीटना शुरू कर दिया। यह पेशाब करने की जगह है? वह चिल्ला रहे थे। तू तो शहर को गन्दा कर रहा है।
इतने में राह चलते कुछ लोग इकठ्ठा हो गये और पूछने लगे कि क्या हुआ? मैं इन हितैषियों की बातें व सहानुभूति को दरकिनार कर उन लोगों के पीछे नंगा ही भागने लगा जो मेरी पैंट को लेकर भाग रहे थे। मैं उनसे माफी मांग रहा था और पैंट देने केलिये गिड़गिड़ा रहा था। बहुत दूर भागने के बाद वह मेरी पैंट फेंक कर भाग गये। मैंने पैंट पहनी और थोड़ी देर सुस्ताने बैठ गया। इस बीच मेरा नशा भी उतर गया।
लोग इकट्ठा हो गये। मुझ से मेरी दास्तान पूछने लगे। मैंने सब कुछ बता दिया। उन्हें मेरे साथ सहानुभूति हो गई। कुछ नारे लगाने लगे – यह गुण्डागर्दी नहीं चलेगी, नहीं चलेगी। उन्होने मुझे घर छोड़ दिया।
पिताजी ने जब मेरी हालत देखी तो मुझे पूछा कि हुआ क्या? जब मैंने सब कुछ बता दिया तो उल्टा वह मुझ पर ही नाराज़ होने लगे। शराब पियेगा, सार्वजनिक स्थानों पर कुत्तों की तरह पेशाब करेगा तो ऐसा ही होगा।
थोड़ी देर बाद मैंने देखा कि मेरे घर को पुलिस वालों ने घेर लिया है। मैं और मेरा परिवार घबरा गये। मैंने सोचा पुलिस मुझे पकड़ने आ गई। उधर मैंने नारे सुने – लल्लू को इन्साफ दो। गुण्डों को पकड़ो। जेल में डालो। गुण्डागर्दी नहीं चलेगी, नहीं चलेगी।
फिर क्या था। धड़ाधड़ लोग मेरे घर आने लगे। सहानुभूति प्रकट करने लगे। मुझे ढारस बंधाने लगे कि तुझे न्याय दिला कर रहेंगे। तुम मत घबराओ। तुम्हारी लड़ाई हम लड़ेंगे। तुम अकेले नहीं हो। हम तुम्हारे साथ हैं। मुझे समझ न आये कि गलती मुझ से हुई थी या किसी और से। खैर, मेरे पास तो अब समय न था सोच पाने का जब घर में इतने लोग आ गये हों। इतने लोग तो मेरी शादी में भी नहीं आये थे। मैंने अपनी बीवी को सब को चाय पिलाने केलिये कहा। चार जायें तो छ: आयें। यह सिलसिला चलता रहा। घर में बैठने की जगह कम हो गई। लोगों को खाट पर बिठाना पड़ा। जनता इतनी हो गई कि दो तो मेरी खाटें ही टूट गईं। मेरी परेशानी देख एक नेता ने ढारस बंधाई। घबराओ नहीं। एक राजनीतिक रैली से मैं चार खाटें उठा लाया था। दो तुम्हें भेज देता हूं।
हर राजनीतिक पार्टी के लोग अपने नेताओं और वर्करों के साथ आने लगे। सभी इस घृणित घटना में अपने विरोधियों का हाथ बताने लगे।
मैंने उन महानुभावों को बताया कि ग़लती मुझ से ही हुई थी। मैाने शराब भी पी थी और खुले में पेशाब भी कर दिया था। वह मेरी पीठ थपथपा कर कहते – तो क्या हो गया? आजकल कौन शरीफ आदमा शराब नहीं पीता? खुले में पेशाब कर दिया तो क्या? किसे पेशाब नहीं आता? फिर सरकार ने कौनसे चप्पे-चप्पे पर पेशाबघर बना रखे हैं?
दूसरा बोला – यदि कोई कुत्ता खुले में शौच कर दे तो कोई जुर्म नहीं। किसी की गाड़ी, दीवार पर पेशाब कर दे तो कोई बात नहीं। यही काम मानव कर दे तो अपराध। उसे जूतों से पीट डालो। कहां का इन्साफ है यह?
यह तो सरासर मानवों द्वारा ही मानवों के विरूद्ध भेदभाव की मिसाल है – तीसरा बोला।
भाई साहब, चौथा बोला – आप घबराओ मत। मानव के प्रति इस भेदभाव के मामले को तो मैं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के समक्ष उठाऊंगा।
अभी बात चल ही रही थी कि पुलिसवाले आ धमके। सबको कहने लगे कि उठो, हो गया। जगह खाली करो। सीएम साहब, आ रहे हैं।
मुझे विश्वास नहीं हुआ। मैंने कहा – आप क्यों मज़ाक कर रहे हैं? मैं जब परेशान था और उन्हें मिलने गया था। तब तो उन्होंने मुझे मिलने से इनकार कर दिया था। अब वह मेरे घर खुद ही कैसे आयेंगे?
इसलिये कि तुम्हारे साथ अन्याय हुआ है। हमारे सीएम साहब अन्याय कभी बर्दाश्त नहीं करते।
सीएम साहब पहुंचे। मैं उनके अभिवादन के लिये उठने ही लगा कि उन्होंने मुझे कंधे से पकड़ कर बिठा दिया – बैठे रहिये। आपको उठने की ज़रूरत नहीं। आप औपचारिकता में मत पडि़ये। आपको तो बहुत चोट आई है। आपको आराम की ज़रूरत है।
अपने एक अधिकारी को इशारा कर उससे एक चैक लिया और मेरे हाथ थमा दिया। बड़ी विनम्रता से बोले – यह हमारी ओर से थोड़ी सी सहायता। वैसे वह आदमी कौन थे?
मैं उनके विनम्र व्यवहार से भावुक हो उठा। रूंधे गले से कहा – सरकार, मैं तो उनकी शक्ल भी न देख सका। वह भाग गये।
वह कड़क होकर बोले – देखो यह प्रधान मन्त्री मोदी की साजि़श है। वह आम आदमी विरोधी हैं। सब पर अत्याचार करवा रहे हैं। हम आम आदमी हैं। उन अपराधियों को पाताल से भी ढूंढ कर लायेंगे।
फिर साथ खड़े एक व्यक्ति को बोले जो शायद कोई अधिकारी था या मन्त्री – इनके बेटे को नौकरी भी दे दो। उसने उत्तर में कहा – जैसा आपका आदेश, सरकार।
मैं बीच में ही बोल बैठा – सरकार, वह तो छोटा है और पढ़ा भी कम।
जिस व्यक्ति को उन्होंने आदेश दिया था उसने बड़े प्यार से मुझे डांटते हुये समझाया – चुप, सरकार के आगे नहीं बोलते। सरकार के लिये कुछ मुश्किल नहीं है। वह सब कुछ कर सकते हैं।
इतनी देर में एक और दल आ गया। वह नारे लगा रहे थे कि दलितों का शोषण नहीं होने देंगे, नहीं सहेंगे। मैंने उनके नेता को बताया कि मैं और मेरा परिवार दलित वर्ग से नहीं हैं। उसे गुस्सा आ गया। उसने कहा यही तो कारण है कि हम दलितों का शोषण रूक नही पा रहा। हम दलित तो हैं पर मानने को तैय्यार नहीं। हमें शर्म आती है। यही कारण है कि उच्च जाति के लोग हम पर ज़ुल्म भी ढाते हैं पर हम उफ नहीं करते। चुप रहते हैं और हमारा बराबर शोषण होता जा रहा है। तुम दलित थे इसीलिये तो तुम सड़क पर चल रहे थे और तुमने एक किनारे पेशाब किया। तुम भी बड़ी जाति के होते तो न तुम पैदल चलते और न सार्वजनिक स्थल पर मूत्र ही करते। हम तुम्हारे साथ हुये अन्याय के विरूद्ध ऊंची आवाज़ उठायेंगे।
इतने में कुछ लोग मेरे कमरे में आ धमके। ज़्यादातर युवक थे। बोले – देश के महान् नेता जो प्रधान मन्त्री होते यदि जनता ने विश्वासघात न किया होता। लोग उनके चुकटले बहुत सुनाते हैं। यही उनकी लोकप्रियता की निशानी है। जिन्हें अभी तक उनके दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ, वह भी उन्हें जानते और पहचानते हैं क्योंकि वह सब के दिल में बस्ते हैं। इतनी देर में वह आ ही गये। मुस्कराते हुये बोले – भैय्या, मैं अब आ गया हूं। तुम्हें घबराने की कोई बात नहीं है। अब समझो कि तुम्हें न्याय मिल ही गया। सरकार को जब पता चलेगा कि मैं आपका हालचाल पूछने गया था, वह तो यह सुनकर ही डर जायेंगे और तुम्हें इन्साफ मिल जायेगा। उनके साथ आये सभी ने अपना सिर हिलाकर अनुमोदन किया और ज़ोर से तालियां बजा दीं।
वह एकदम उठ खड़े हुये और जाने लगे। फिर मुड़े और एक साथी की ओर इशारा करते हुये मुझे कहा – ये कल आपको सहायता का एक चैक पहुंचा देंगे। और ज़रूरत होगी तो बता देना। हम पूरी सहायता करेंगे।
कुछ पार्टी के नेता तो मुझे कह गये कि हम तुम्हें अपनी पार्टी के टिकट पर विधान सभा या लोक सभा का चुनाव लड़ायेंगे। तुम डटे रहना।
मैंने पिताजी का कहा कि मकान की बत्तियां बुझा दो ताकि कोई और न आये। मैं बहुत थक गया हूं। मार भी बहुत खाई है।
पिताजी ने सहानुभूति तो क्या दिखानी, मुझे एक ज़ोर का झापड़ मार दिया। मैं रो पड़ा। बोला – मैं पहले ही मार खा कर आया हूं। अब आपसे मार खानी बाकी थी।
पिताजी बोले – पाजी, तूने कोई काम समय पर नहीं किया। जो जूते व मार आज खाई अगर पहले खाई होती तो हमारी ग़रीबी तो बहुत पहले खत्म हो हो गई होती और आज तक रोटी के लिये न तरसते।
ओह, यह क्या हुआ? मेरी तो पैंट गीली हो गई है। मैंने हाथ लगाया तो गीला हो गया। सूंघा तो पेशाब की बदबू आ रही थी। बिस्तर से भी दुर्गन्ध आ रही थी। हाय, हाय यह क्या हुआ? मुझसे पेशाब हो गया? मैं दहाड़-दहाड़ कर रोने लगा। तो क्या यह सब सपना था?
घर के सब इकट्ठे हो गये। बच्चे ताली बजा कर हंसने लगे – बापू ने बिस्तर में ही पेशाब कर दिया।
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Courtesy: Uday India Weekly (Hindi)
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