Sunday, June 2, 2013

किस्‍से कंजूस के


किस्‍से कंजूस के

कंजूस को हम हीन भावना से देखते हैं। उसका मज़ाक उड़ाते हैं। पर यह भी तो सत्‍य है कि पैसा उसी के पास संरक्षित महसूस करता है जो कंजूस हैं और उसकी कदर करता है। जो पैसे को उड़ाना जानता है, जो पैसे को बचाने में नहीं खर्च करने में विश्‍वास रखता है, जो धन को बांध लगा कर रखने में नहीं, उसे नदी की तरह बेरोकटोक वहने देता है और उसके बहाव पर कोई बांध नहीं बनाना चाहता, उसका पैसा वैसे ही व्‍यर्थ हो जाता है जैसे कि नदी का मीठा जल अन्‍त में समुद्र में मिल कर खारा बन जाता है।
कंजूसों के किस्‍से-कहानियां सुनाने के लिये लोग कई मुहावरों व लोकोक्तियों का सहारा लेते हैं।

किसी की कंजूसी की व्‍याख्‍या करने के लिये लोग कहते हैं कि यह व्‍यक्ति तो इतना कंजूस है कि प्रात: वह जब पाखाना करता है तो नीचे देख कर तसल्‍ली कर लेता है कि कहीं ज्‍यादा तो नहीं हो गया।

दूसरा समझायेगा कि वह तो इतना कंजूस है कि वह अपना ताप (बुखार) भी किसी को देकर राज़ी नहीं है।

तीन कंजूस अपनी कहानी सुना रहे थे। ''भई, मेरा तो एक किलो देशी घी एक साल चल जाता है। हम एक बून्‍द घी से छ: फुल्‍के चुपड़ देते हैं''।

दूसरा बोला, ''यह तो कुछ नहीं। हम तो फुल्‍के को घी के मटके के बाहर ही रगड़ देते हैं, उससे ही घी की खुश्‍बू व स्‍वाद आ जाता है''।
तीसरे ने बताया कि वह दिन अब हवा हुये जब हम घी गर्म कर चरखे की तकली के साथ बांट कर लुटा देते थे। अब तो हम मात्र उसके दर्शन ही करवाते हैं।

एक कंजूस को उसके रिश्‍तेदार ने ताना मारा, ''क्‍या है\ तुम्‍हें शर्म नहीं आती कि तुम ऐस कपड़े पहनते हो जिसमें छ:-छ: छेद है''।
उसे गुस्‍सा आ गया। वह उस रिश्‍तेदार के पिता के पास शिकायत ले कर गया। ''आपका बेटा मुझे यूं ही बदनाम करता फिरता है कि मैं ऐसे कपड़े पहनता हूं जिसमें छ:-छ: छेद होते हैं''। उसने अपनी कमीज़ आगे कर कहा, ''बताओ, कहां हैं छ: छेद\ गिन लो। केवल चार हैं''।

यह भी किसी महान् कुजूस के ही चिरस्‍मर्णीय शब्‍द है कि मेरे पास पार्टी देने के लिये तो दूर, ज़हर खाने के लिये भी पैसे नहीं हैं
।  

और यह कहावत भी तो आपने सुनी ही होगी: कंजूस, मक्‍खी चूस।

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