Sunday, September 2, 2012

Satire in Hindi - भ्रष्टाचार का ज़िम्मेवार



हास्य-व्यंग
भ्रष्टाचार का ज़िम्मेवार

बेटा:     पिताजी!
पिता:    हाँ बेटा।
बेटा:     प्रधान मंत्री ने त्यागपत्र देने से इंकार कर दिया
        है।
पिता:    ठीक ही तो फ़रमा रहे हैं वह। उन्हें प्रधान मंत्री
        विपक्ष ने नहीं, सोनियाजी ने बनाया है।
बेटा:     पर विपक्ष तो उनसे कोला ब्लॉक आबंटन घोटाले मैं
        संलिप्त होने की ज़िम्मेवारी लेने को कह रहा है।
पिता:    बेटा, यहाँ तो रोज़ ही कोई न कोई घोटाला होता जा  
        रहा है। तब तो प्रधान मंत्री को रोज़ ही ज़िम्मेवारी
        लेनी पड़ेगी।
बेटा:     हमारे संविधान में तो लिखा है कि मंत्रिपरिषद  
        संयुक्त रूप से लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होगी।
पिता:    देखो, प्रधान मंत्री तो लोक सभा के प्रति उत्तरदायी   
        हो नहीं सकते क्योंकि वह तो लोक सभा के सदस्य
        ही नहीं हैं।
बेटा:     पिताजी संविधान में तो ऐसा लिखा है न।
पिता:    कानून और संविधान में तो बहुत कुछ लिखा होता
        है पर सब कुछ उसके अनुसार ही थोड़े होता है।                
        व्यक्ति की और राजनीति की सहूलियत भी तो कोई         
        चीज़ होती है। पहले प्रधान मंत्री वही बनता था जो        
        लोक सभा के लिए चुन कर आता था या फिर वह       
        6 महीने के अंदर लोक सभा का चुनाव लड़ कर          
        उसका सदस्य बन जाता था। पर अब ऐसा नहीं है।
बेटा:     पर पिताजी, विपक्ष तो प्रधान मंत्री से नैतिकता के        
        आधार पर त्यागपत्र मांग रहा है।
पिता:    बेटा, आजकल राजनीति और नैतिकता एक नदी
        के दो किनारे बन कर रह  गए हैं जो कभी नहीं
        मिल सकते।
बेटा:     पर पिताजी, मैंने तो पढ़ा है कि स्वर्गीय लाल            
        बहादुर शास्त्री ने एक रेल दुर्घटना के उपरांत अपनी         
        नैतिक ज़िम्मावारी लेते हुये रेल मंत्री पद से इस्तीफा         
        दे दिया था जिस में 150 के लगभग रेल यात्री मारे     
        गए थे।
पिता:    बेटा, यह 20वीं सदी की बात है और आज 21वीं     सदी   
        चल रही है।
बेटा;     तब क्या उस रेल को स्वयं शास्त्रीजी चला रहे थे         
        जो उन्होंने उसकी ज़िम्मेवारी ली?
पिता:    मूर्ख, तुझे इतना भी नहीं पता कि रेल गाड़ी को          
        ड्राईवर चलता है, न कि रेल मंत्री।
बेटा:     फिर उन्होंने पद क्यों छोड़ दिया?
पिता:    उनके आदर्श बहुत ऊंचे थे।
बेटा:     आदर्शों की बात तो आजके नेता भी करते हैं। तो         
        क्या उनके आदर्श ऊंचे नहीं हैं?
पिता:    कहते तो आज के नेता भी यही हैं कि उनके आदर्श       
        बहुत ऊंचे हैं?
बेटा:     पर सच्चाई क्या है?
पिता:    यह तो वह भी जानते हैं और जनता भी।
बेटा:     हमारे एक मंत्री ने कहा है कि प्रधान मंत्री तो कभी       
        ग़लती कर ही नहीं सकते।
पिता:    यह भी ठीक है।
बेटा:     यह कैसे हो सकता है? जो व्यक्ति काम करेगा          
        उससे ग़लती तो होगी ही।
पिता:    बेटा, तू एक बात की गांठ बांध ले कि वह कुछ नहीं      
        करते।
बेटा:     हाँ मैं ने यह भी पढ़ा है कि मध्यकालीन युग में         
        कहा जाता था कि बादशाह कभी ग़लत नहीं होते,         
        सदा सही होते हैं।
पिता:    किसी युग की कोई अछी बात हो तो उसे आज भी       
        अपना लेने में कोई बुराई नहीं है।
बेटा:     पर पिताजी डॉक्टर मनमोहन सिंह तो देश के प्रधान      
        मंत्री हैं, बादशाह नहीं।
पिता:    यह तो ठीक है पर वह वही काम कर रहे हैं जनतंत्र       
        में जो कभी राजा-महाराजा किया करते थे।
बेटा:     तब भी तो हर अछे काम का श्रेय राजा-महाराजा को      
        जाता था और बुरे का दोष।      
पिता:    यह ठीक है।
बेटा:     इसी प्रकार जब मनमोहन सरकार मनरेगा, सूचना          
        अधिकार कानून, भारत-अमरीका परमाणू समझौता        
        आदि पर श्रेय पर अपना अधिकार जताती है तो हर       
        दूसरे दिन घटने वाले स्कामो  और भ्रष्टाचार          
        मामलों का श्रेय भी तो इसी सरकार को जाता है न।
पिता:    यह तू उनसे ही पूछ।  

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