हास्य-व्यंग
करिश्में अपराध
में राजनीती के
बेटा: पिताजी.
पिता: हाँ बेटा.
बेटा: पिताजी, यह आम धारणा है
कि हमारे देश में क़ानून सब केलिए बराबर है. इस में कोई छोटे-बड़े का भेद नहीं रखा
जाता है.
पिता: इसमें तो
बेटा कोई शक नहीं है.
बेटा: फिर यह कैसे
है कि कुछ बड़े लोगों को तो अंतरिम ज़मानत एक दम मिल जाती है और कुछ को नहीं?
पिता: जैसे?
बेटा: पूर्व वित्त
मंत्री पी चिदम्बरम जी को अदालत ने तीन जुलाई तक गिरफ्तार करने से मना कर दिया है.
इसी प्रकार सामाजिक कार्यकरता तीस्ता सीतलवाद व उनके सहयोगियों को भी अदालत ने
गिरफ्तार करने से मना कर रखा है. पर दूसरी ओर दक्कन हेराल्ड के मालिक व संपादक को
पुलिस ने तुरंत गिरफ्तार कर लिया था हालांकि उन पर भी लगभग वही आपराधिक आरोप थे जो
तीस्ता पर थे. ऐसे और कई उदहारण बताये जा सकते हैं.
पिता: बेटा, ऐसे तो कई उदाहरण हैं जहाँ अदालत तो उनको ज़मानत देने को
तैयार हैं पर उनके पास इतने रुपये या दोस्त-रिश्तेदार नहीं हैं जो उनकी ज़मानत दे
सकें. इसी कारण वह आज कई सालों से जेल में सड़ रहे हैं.
बेटा:
मामले ऐसे भी हैं जहां लोगों के पास धन और साधन नहीं हैं अपनी अपील उच्च या
सर्वोच्च न्यायलय तक पहुंचाने के लिए.
पिता: बेटा,
यह तो जीवन का यथार्थ है। समानता तो जीवन में न कभी हुई है और न हो ही सकती है।
किसी मां और बाप के बेटे व बेटियां न
समान हुई हैं और न हो ही सकती हैं। माता-पिता अपने बच्चों में भेदभाव नहीं रखते
पर फिर भी समानता रह नहीं पाती। असमानता ही तो जीवन का एक यथार्थ है। फिर कानून की धारा तो एक हो सकती है पर हालात
एक नहीं होते। इसी कारण एक मामले में तो सज़ा हो जाती है और दूसरे में अपराधी बरी
हो जाता है।
बेटा: यह कैसे?
पिता: यही तो कानून की पेचीदगियां हैं जो आम आदमी की समझ समझ से बाहर हैं। इसी कारण तो बड़े से बड़े, अमीर से अमीर, ग़रीब से ग़रीब
और पढ़े या अनपढ़ को भी अदालत में जाने केलिये वकील की सहायता अवश्य लेनी पड़ती
है।
बेटा: और मुंह मांगी फीस भी देनी
पड़ती है।
पिता: बेटा, कई लोग तो अपराध
करने के लिए इस कारण भी प्रोत्साहित रहते हैं कि उनको अपने वकीलों की योग्यत पर
विश्वास रहता है कि अंत में उनके वकील कोर्ट में उन्हें दोषमुक्त साबित कर देंगे
और वह ससम्मान बरी हो जायेंगे.
बेटा: हाँ, तब ऐसे वकीलों को
फीस भी मोटी देनी पड़ती है.
पिता: अब
तो एक और प्रचलन शुरू हो गया है. पहले तो किसी के घर पर कोई वर्दी धारक पुलिसवाला
यदि आ जाता था तो अडोसी-पडोसी शक करने लगते थे कि उसने क्या किया होगा जो पुलिस
उसके घर आ गयी. पर अब तो लोग जब थाने बुलाये जाते हैं, या उन्हें हथकड़ी
लगा दी जाती है तो वह ऐसे बर्ताव करते हैं मानो बड़ा भारी कोई काम कर आये हैं जिसका
उन्हें इनाम मिलने वाला है. मीडिया कर्मियों के सामने वह दो उँगलियाँ दिखते हैं
अपनी जीत की. जो लोग पॉलिटिक्स करते हैं उन्हें जब पुलिस पकड़ कर ले जाती है तो वह
तो जनता को ऐसा आभास देते हैं कि उनके राजनीतिक सफर में उनके सिर पर कोई और नया
मुकुट सज गया है. अब तो यह भी धारणा बनने लगी है कि जो गिरफ्तार नहीं हुआ उसका तो
राजनीतिक जीवन ही व्यर्थ है.
बेटा: बात
तो आपकी ठीक है. जो राजनेता पकड़ा जाता है. अदालत जिसे सज़ा
देकर जेल भेज देती है वह तो पॉलिटिक्स में हीरो बन जाता है.
पिता:
हमारे अनेक विधायक और सांसद जेल से ही चुनाव लड़ते हैं और जीत जाते हैं. वह
वहीं जेल से ही जनता की सेवा करते हैं. वहीं से अपनी राजनीती चलाते हैं. बड़े-बड़े
दिग्गज नेता तो उन्हें जेल में मिलने आते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
राजनीती और चुनाव की रणनीति और गठजोड़ तय करते हैं. उन्हें तो महसूस ही नहीं होता
कि वह जेल में हैं. वह तो समझते हैं
कि वह अपने ही घर में हैं.
बेटा: यह
तो ठीक है. राजनितिक लोग तो चुनाव को जनता की अदालत मानते हैं, अगर वह जीत गए तो
इसे जनता का उनके उनके निर्दोष होने का फतवा मानते हैं.
पिता:
बेटा, कानून में तो कई
और पेचीदगियां भी हैं. मन और कर्म से अपराध में संलिप्त दिग्गज्जो को तो कानून की भी
बड़ी जानकारी होती है. अपराध के एक पुराने खिलाड़ी को पता था कि जिस अपराध में उस पर
मुकदद्मा चल रहा है उस में ज़्यादा से ज़्यादा सजा छ: मास की ही हो सकती है. जब
न्यायाधीश ने उसे छ: मास की सजा सुनायी तो उसने न्यायाधीश पर ही चुटकी ले मारी.
बोलै - सर, बस आपकी इतनी ही शक्ति है, उससे ज़्यादा कुछ
नहीं?
बेटा: ऐसी
तो एक और घटना है. एक लड़का नया-नया वकील बना था. मैजिस्ट्रेट पर अपने ज्ञान की धाक
जमाने के लिए वह बच्चों की तरह फुदक-फुदक कर बात-बात पर खड़ा हो कर बोलता जा रहा
था. अंततः मैजिस्ट्रेट ने उसे कहा: बेटा, धैर्य रखो. You are just a child in law. ( तुम अभी कानून
में बच्चे ही हो). जवान वकील ने नतमस्तक होकर कहा: Yes, my father
in law.
पिता: इसी तरह एक अनपढ़ गाँव का आदमी अपने गवाही दे
रहा था. वकील ने पूछा - आपका नाम? उसने बता दिया. फिर पूछा: पिता का नाम? बोला मेरे पिता
का? मजिस्ट्रेट बोला - अपने बाप का नहीं तो क्या मेरे
बाप का नाम बताएगा?
बेटा: ऐसे
ही एक पुरानी सुनाते हैं,
पता नहीं सच्च है
कि झूठ. कहते हैं कि एक नौजवान नया-नया मजिस्ट्रेट बन गया. पर वह बड़ा परेशान था कि
जो भी मुकदद्मा उसके पास आये उसे अंत में रिहा करना पड़े और वह सजा न दे पाए. एक
दिन उसे गुस्सा आ गया. उसने कहा कि अपराधी निर्दोष है और उसे रिहा किया जाये और
थानेदार को छ: मास की कैद. थानेदार हाथ जोड़ कर बोला: सरकार, मैंने तो कोई
अपराध नहीं किया. मजिस्ट्रेट ने फरमाया - अगर तुम अपराध न करो तो इसका क्या मतलब
कि मैं अपनी पावर का इस्तेमाल ही न करूँ? ***
Courtesy: UdayIndia (Hindi)
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