हास्य-व्यंग
व्यथा एक नेता की
मैं एक नेता हूँ। लोग समझते हैं कि मैं बड़ी मौज में हूँ| ऐश करता हूँ| सरकारी मकान है जिसके लिए मुझ कुछ देना नहीं पड़ता — न किराया, न बिजली-पानी का बिल। इस घर में हर सुविधा की वस्तुयें मौजूद हैं मेरे पास — टीवी, टेलीफोन, मोबाइल फ़ोन, फ्रिज, गीज़र, और क्या नहीं — सब सरकार के खर्चे पर, मतलब जनता के खर्चे पर। आखिर मुझे वोट भी तो जनता ने ही दिए हैं । मैं सेवक भी तो उनका ही हूँ। जनता मेरे लिए सब कुछ करती है और उनके लिए सब कुछ।
आखिर मैं हूँ तो जनता मेरे पास आती है बड़ी उम्मीदें लेकर। मुझे उनसे बड़ी आशाएं हैं। हम सब एक दूसरे से उम्मीदें लेकर जीते हैं। वह मेरा ख्याल रखते हैं, मैं उनका। मैं दिन-रात काम भी तो उनके लिए ही करता हूँ। मैं जब जनता के पास जाता हूँ, तो जनता मेरी बहुत सेवा करती है। मेरे सम्मान में बढ़िया पकवान बनाते हैं। उन्हें पता है कि खाने में मुझे क्या चीज़ बहुत पसंद है। वह वही पकवान बनाती/बनवाती है। पीने के लिए भी वह मेरा बड़ा ध्यान रखती है। सारा मेरी पसंद का ही आता है। सामान लोकल न मिले तो वह दूसरे स्थान से मंगवा लेती है।
जब वह किसी काम के लिए मेरे पास आते हैं तो वह भी मुझ पर बड़ा हक़ जमाते हैं। यह उनका अधिकार भी है। वह मेरे पास ही रुकेंगे और खाये-पिएंगे भी मेरे घर पर । मैं भी उनका ख्याल करता हूँ। कई तो बहुत समझदार होते हैं। वह राशन-पानी भी साथ लेकर आते हैं। वह इतने तो समझदार ही होते हैं कि मेरे घर में जो लंगर-पानी चलता है, उसके लिए वह भी कुछ योगदान कर देते हैं । एक फायदा उनको भी होता है । वह अपनी पसंद का खाना बनवा लेते हैं । वह भी उसका मज़ा लेते हैं और हम सब भी।
मुझे खाना बनाने के लिए, बर्तन साफ़ करने के लिए और घर की सफाई के लिए आदमी रखने पड़े । अगर यह न करता तो मेरी पत्नी तो एक नौकर बन कर ही रह जाती । आखिर वह भी तो एक जन प्रतिनिधी की पत्नी है। हाँ कभी-कभी जब जनता मेरी पत्नी के हाथों से कुछ बढ़िया खाने की फर्याद करते हैं तो हम उनके मन को भी रख लेते हैं। उन्हें आहत नहीं करते और न करना ही चाहिए। फिर दिन रात में 14घंटे के करीब लगातार लंगर चलाये रखने के लिए बहुत इंतज़ाम करना पड़ता है|उसके लिए व्यक्ति भी चाहिए और साधन व कैश भी| ईश्वर सब इंतज़ाम स्वयं भी प्रबंध कर देता है नियत साफ़ होनी चाहिए| वह सब हो जाती है| जब बड़े लोग मेरे घर आएंगे और यह सब देखते हैं और लंगर चखते हैं तो उनको अपने आप ही प्रेरणा स्वयं मिल जाती है कि हम भी उसके लिए अपना योगदान करते रहें|
मेरे लिए तो एक और परेशानी खड़ी हो जाती है| मेरे इन हितैषियों के सामने यदि कभी ग़लती से छींक भी आ जाए तो वह इतने परेशान हो जाते हैं कि भाग कर मेरे लिए दवाई लेकर खड़े हो जाते हैं और ज़ोर डालते हैं कि मैं उनके द्वारा इतने प्यार और चिंता से लाई गयी दवाई का सेवन अवश्य करें| न खाऊं तो वह बुरा मना जाते हैं कि उन्हों ने इतने स्नेह से मेरा ध्यान किया पर मैंने उनकी इज़्ज़त न की| उनके मन को ठेस पहुँच जाती है| उनका मन मैं भी नहीं टालता| खाता जाता हूँ चाहे उससे उल्टे मुझे ही कोई और बीमारी खड़ी न हो जाये|
पर असल मुसीबत तो तब खड़ी हो जाती है जब मैं गांव और शहर की गलियों में जन संपर्क के लिए घूमता हूँ| तब तो सब चाहते हैं कि मैं सब के घर को अपने चरणों से पवित्र कर दूँ और जो रूखा-सूखा मैं दूँ मैं सहर्ष कबूल करता जाऊं चाहे अगले दिन मैं बीमार ही क्यों न पड़ जाऊं| सब चाहते हैं कि वह जो भी ठंडा-गर्म पेश करें मैं पीता जाऊं| यह अलग बात है कि मैं उस कारण सचमुच बीमार ही क्यों न पड़ जाऊं| अगर मैंने किसी का मन नहीं रखा तो समझो वह नाराज़ और चुनाव में मुझे वोट नहीं देंगे| इसलिए मैं सब कुछ सहर्ष करता जाता हूँ|
यही कारण है कि मैं पदयात्रा के स्थान पर गाँव में जनसभा कर निकल जाता हूँ| पर एक मुसीबत खड़ी हो जाती है| आखिर भाषण के बाद समय अनुसार मुझे कुछ तो खाना-पीना होता है| जिस के घर मैंने खाना खा लिया या ठंडा-गर्म पी लिया तो अन्य मेरे भक्त नाराज़ हो जाते हैं| तब मुझे उनको आश्वासन देना पड़ता है कि अगली बार केवल आपके घर ही आऊंगा|
ऐसा नहीं कि जो लोग मुझे मिलना चाहते है मैं उन से मिल लेता हूँ| कई बार समय की कमी के कारण मुझे दोनों हाथ जोड़ कर क्षमा मांगनी पड़ती है| आखिर मतदाता ही तो सब कुछ है| वह मुझे कुर्सी भी दिला सकता है और खो भी सकता है| इसलिए मैं मतदाता को तो ईश्वर से भी ऊपर समझता हूँ|
ऐसा ही संकट मेरे लिए तब भी खड़ा हो जाता है जब मैं अपने स्वार्थ के लिए किसी बड़े को मिलने जाता हूँ| मेरे विरुद्ध किसी ने चुनाव याचिका दर्ज कर दी थी| उसकी पैरवी केलिए मैंने एक बड़े वकील को कर रखा था| अपने केस की प्रगति का पता करने मुझे अपने वकील के पास जाना पड़ता था| मुझे देखते ही वह वकील कह देता था कि मैं अभी व्यस्त हूँ, फिर आना| मैंने भी कच्ची गोलियां नहीं खेल रखीं थीं| मैं वकील को कह देता था कि मेरे मामले की ओर तो आपका पूरा ध्यान है पर मैं कुछ फीस की और रकम लेकर आया था| तब वकील के पास एक दम समय निकल जाता|कहता दो मिनट रुको मैं अभी आप से बात करता हूँ|
मेरी तबीयत खराब थी| मैं अस्पताल में भर्ती था| कुछ मेरे प्रशंसक और चिंता करने वाले आये और कहने लगे कि उनके काम के लिए मंत्री के पास चलो| मैंने कहा मैं तो बीमार हूँ| कल ही मुख्य मंत्री व मंत्री मेरे स्वास्थय का हाल चाल पूछने आये थे|इसलिए मैं नहीं जा पाऊँगा वरन वह समझेंगे कि मैं बीमार नहीं कोई ढोंग ही कर रहा हूँ| दूसरे मैंने कहा कि यह तो देखो कि मैं बीमार हूँ| वह कहने लगे कि तेरे को कुछ नहीं होगा| हमारी दुआएं आपके साथ हैं| ईश्वर भी जानता है कि तुम परोपकार के लिए जा रहे हो| वह आपकी रक्षा करेगा| मरता क्या न करता| चला गया| हुआ वही जिसका मुझे डर था| मंत्री ने कहा कि तुम तो बीमार थे इस हालत में कैसे आ गए?मैंने सब बता दिया| वह हंसने लगे और मेरा काम कर दिया| तब मेरे हितैषी खुश होकर कहने लगे — हम कहते थे न आपको कुछ नहीं होगा? और मेरा धन्यवाद भी किया कि इस हालत में भी आप चले गए उसके काम के लिए| उन्होंने ने ईश्वर से प्रार्थना की कि मैं शीघ्र ही स्वस्थ हो जाऊं और जनता की सेवा करें|
जब मैं अस्पताल से घर आ गया और डाक्टरों ने मुझे पूरे आराम के सलाह दी तब मेरा हाल-चाल पूछने वालों का तांता मेरे घर पर लगने लगा| पहले तो ऐसे आते कि जैसे उन्हें बहुत चिंता हो गयी थी| पर जब चाय-नाश्ता हो जाता तो कहते कि मेरे से अपने काम के लिए इस वक्त कहना तो अच्छा नहीं लगता पर फिर देरी हो जाएगी और आप ही कहेंगे कि तूने पहले क्यों नहीं बताया| मेरा वह काम अभी नहीं हुआ है|यदि आप एक बार और कह देंगे तो हो जाएगा| हम आपके जल्दी स्वस्थ हो जाने की दुआ करेंगे|
जनता की दुआओं से जीने का अभ्यास तो मुझे हो ही चूका है| अब तो मैं समझता हूँ कि जब मैं ईश्वर को प्यारा हो जाऊँगा तो लोग प्रशंसा में यही कहेंगे कि मुझ जैसे अच्छे आदमी की तो ईश्वर को भी ज़रुरत होती है| मेरी शवयात्रा में शामिल हो कर एक ओर तो राम नाम सत है का नारा लगाएंगे और दूसरी ओर नेता हो तो मुझ जैसा हो के नारे लगाएंगे| साथ ही कुछ यह भी कहने से न चूकेंगे कि मैं मर गया और उसका काम रह गया| मैंने कई बार याद कराया पर आज और कल ही करता रहा| दो दिन बाद मरता तो मेरा काम भी हो जाता| दूसरा कहता कि राम नाम तो सात है पर मैं ने सोचा कि यह ठीक हो जायेगा तो मैं अपने बेटे की नौकरी लगवा लूँगा| पर मुझे क्या पता था कि साला इतनी जल्दी मर जायेगा| राम नाम तो सात है पर इसको तो भी ध्यान रखने चाहिए था कि हम जैसे उसके भक्तों का काम तो करवा जाता| अगर दो दिन बाद मरता तो कौनसा आसमान गिर जाता? इतना ही बहुत है| और क्या सुनाऊँ?
Courtesy: UdayIndia (Hindi) weekly
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