हास्य-व्यंग
पत्नियों के किस्से मर्दां की ज़ुबानी
सच्चाई तो यह है कि जब मर्द अपनी घरवालियों की ग़ैरहाज़िरी में हलके-फुल्के माहौल में बैठते हैं तो बीवियों के चटकारे लेते हैं और जब बीवियां मिल-बैठती हैं तो मर्दों के गुलछर्रे उड़ाती हैं. इसी से निकलती हैं हास्य की फुहारें. यह बातें होती हैं कुछ घडी-घड़ाई, कुछ सुनी-सुनाई और कुछ पत्र-पत्रिकाओं से.
सुनते हैं कि एक पति थका-हरा अपने कार्यालय से आया. उसे बहुत भूख लगी थी. आते ही उसने अपने जूते उतारे और अपनी बीवी से कहा, "मुझे बहुत भूख लगी है. खाना तैयार है?"
कपड़ों को तैह लगते हुए बीवी ने सहज भाव से उत्तर दिया, "हाँ, गली पार के रेस्त्रां में".
कुछ स्त्रियां बड़ी भावुक होती हैं. वह यह नहीं सह सकतीं कि उनके पति को किसी प्रकार की पीड़ा हो, दुःख लगे. ऐसी ही एक पत्नी ने देखा कि उसका पति प्रातः उठते ही बड़ा उदास है. उसने पति से पूछा, "क्या बात है? आप सुबह से ही बुझे-बुझे उदास क्यों हैं?
पति ने उसे टालते हुए कहा, "कुछ नहीं, यूं ही".
पत्नी ने कहा, "बात तो कुछ है. आप तो आम तौर बड़े हँसते-खेलते मूड में होते हैं. आप मुझ से कुछ छिपा रहे हैं."
पति ने उसे टालते हुए कहा, "नहीं, ऐसे ही".
पत्नी कहाँ छोड़ने वाली थी. उसने ज़िद्द कर कहा, 'नहीं, कुछ बात तो ज़रूर है. मैं आपके बामांगनी हूँ. मुझ से कुछ मत छिपाओ."
"नहीं, मैंने कहा न कि कुछ बात नहीं है"
"नहीं. कुछ बात तो अवश्य है. तुम मुझ से कुछ छुपा रहे हो. तुम्हें मेरी कसम. बताओ, क्या बात है?"
अब पति क्या करता. उसे हथियार डालने पड़े. बोले. "मैं ने एक बड़ा बुरा सपना देखा रात को'.
"क्या देखा उसमे तुमने?"
पति ने कहा, "कह तो दिया कि बुरा सपना था. अब छोडो बता को."
"मैंने बता दिया", पति बोलै.
"नहीं, मुझे बताओ कि तुमने देखा क्या". पत्नी हठ पर उतर आयी.
आखिर पति को झुकना ही पड़ा. बताया. "मैंने सपने में देखा कि मैं रँडुआ हो गया हूँ".
यह सुन पत्नी को बड़ा दुःख हुआ. उसके पति को क्यों आंच भी आये. एक दम बोल पड़ी, "हाय-हाय, आप क्यों रँडुआ होएं. मैं ही रंडी (विधवा) हो जाऊं".
ऐसे ही कुच्छ पत्नियां होती हैं जो बड़ी भावक होती हैं और अपने पति का न बुरा सुन सकती हैं और न बोल सकती हैं। ऐसी ही एक महिला का पति बड़ा मायूस था। कहने लगा कि मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि मैं ही अपना सब से बड़ा दुश्मन हूं। इस पर उसकी पतिब्रता वामांगनी तुरन्त कह उठी – ‘’देखोजी, मेरे होते यह बात कभी न सोचना और न ही ज़ुबान पर लाना।
कई महिलायें ऐसी होती हैं जो अपने घरवाले पर पूरा अधिकार जमाती हैं। ऐसी ही एक महिला ने अदालत में तलाक लेने केलिये मुकद्दमा दायर कर रखा था। जज ने उससे पूछा – तुम उससे तलाक क्यों लेना चाहती हो’’?
महिला ने अपने पति पर पूरा अधिकार जमाते हुये उल्टे जज पर ही स्वाल कर दिया। पूछा – ‘’क्यों वह मेरा पति नहीं है?
इसी प्रकार एक महिला पर मुकद्दमा चल रहा था। जज ने पूछा – ‘’तुमने अपने पति पर कुर्सी क्यो मार दी?
रूंधी हुई आवाज़ में उसने उत्तर दिया – ’’मैं क्या करती जनाब? मैं अबला हूं इसलिये। मैं मेज़ नहीं उठा सकती हूं।‘’
एक बार पति को अपनी अर्धांगिनी पर बड़ा प्यार आ गया। उसने उसे कहा कि तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो। पत्नि ने कड़क जवाब दिया ‘’ठीक से सुन लो। मैं तुम्हारी पत्नि हूं, प्रेयसी नहीं। तुम सीधे मेरे लिये एक बढि़या सी साड़ी ला दो। वरन् देख लेना।“
यह उस समय की बात है जब गांव में लकड़ी के चूल्हे पर खाने-पकाने का सारा काम होता था। चूल्हे के पास बैठकर गर्म-गर्म दाल-भाजी व चूल्हे से निकलता फुल्के का आनन्द ही कुछ और होता था। पत्नि अपने घरवाले को बड़े प्यार से खाना खिला रही थी। पति ने प्रसन्न होकर कहा – ‘’जब तुम 25 साल की थी तो बड़ी सुन्दर थी।‘’
इस पर पत्नि को ग़ुस्सा आ गया। चूल्हे में जलती एक लकड़ी उसके बाज़ू पर मारते हुये बोली – क्यों? मैं आज भी 25 साल की नहीं हूं क्या?’’
सच्चाई तो भैय्या यह है कि रोते सभी हैं। कुछ शादी करवा कर और कुछ न करवा कर।
एक अपनी बीवी की तारीफ करने लगा। कहता कि वह तो इतनी अच्छी है कि में रात को 11-12 बजे भी घर लौटूं तो भी वह मुझे पानी गर्म कर के देती है।
‘’तुम रात को आकर नहाते हो?’’ मित्र ने पूछा।
‘’नहीं।‘’ उसने बताया। ‘’मैं ठण्डे पानी से बर्तन नहीं मांज सकता, इसलिये।‘’
पति ने फोन पर पूछा, ‘’मैं आ रहा हूं। खाना तैय्यार है न?’’
’’बिल्कुल तैय्यार।‘’ पत्नि बोली। ‘’मैं तो तुम्हारा ही इन्तज़ार कर रही हूं कि तुम आओ तो खाऊं।‘’
दहेज़ के विरूद्ध आन्दोलन में जगह-जगह लिखा मिलता है – पत्नि ही दहेज़ है। दहे़ज़ न लेने वालों के यही तो अभिशाप बनकर रह जाता है कि उसने पत्नि ली, दहेज़ नहीं। यह उसके लिये सारी उम्र की मुसीबत बन जाती है।
एक आदमी भागा-भागा अदालत पहुंचा और रो-रो कर दुहाई देने लगा – सॉब, मेरे दोस्त को बचाओ। उसकी जि़न्दगी तबाह हो जायेगी। वह बर्बाद हो जायेगा।‘’
जज ने भी बड़ी संजीदगी से पूछा – ‘’क्या बात है?’’
‘’जज सॉब, वह मेरी बीवी से शादी करने जा रहा है।
यह आम धारणा है कि दूल्हा दुल्हन से उम्र में बड़ा और कद में लम्बा होना चाहिये। इस परम्परा का लाभ महिलायें ही उठाती हैं। एक ने स्पष्ट कर दिया। उम्र छोटी इसलिये कि दुल्हन दूल्हे से सदा जवान लगे और कद छोटा इसलिये कि जब औरत अपने पति से बात करे तो सिर उठा कर और मर्द उस से जब बात करे तो सिर झुका कर। यह परम्परा कायम करनेवाली लम्बी सोच वाली कोई महिला ही लगती है।
पत्नि पूरी सजी-संवरी थी। हाथ में पूजा सामग्री थी। थाली में मीठे पकवान भी थे। उसने एक बड़ी प्यारी मुस्कान देकर पति के पांव छुये। पति ने आशीर्वाद दिया। बोली – ‘’आज मैंने तुम्हारे लिये ब्रत रखा है। सुबह से मैंने कुछ नहीं खाया है। पानी तक नहीं पिया है। ईश्वर से तुम्हारी दीर्घ आयु, वैभव और समृद्धि-सम्पन्नता केलिये प्रार्थना की है।‘’
पति बोला --’’अच्छा? मैं तो आज तक यही समझता था कि यह काम तुम रोज़ ही करती हो।‘’
सारी गप्प-शप्प का समापन तो तब हुआ जब एक ने गृहलक्षमी की परिभाषा सुना डाली। उसने कहा कि उसने एक साप्ताहिक पढ़ी थी। उसमें लिखा था कि गृहलक्षमी वह जो घर को स्वर्ग और घरवालों को स्वर्गवासी बना दे। सभी ठहाका मार कर हंस पड़े। उन सबका हल्का-फुल्का मूड भी संजीदगी में बदल गया। सब की घर की मालकिनें जो आ धमकी थी इसी बीच। ***
Courtesy: UdayIndia Hindi weekly.
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