Thursday, January 28, 2016

बचाओ मुझे मेरे घर में घुस गर्इ असहिष्‍णुता से

हास्‍यव्‍यंग
कानोंकान नारदजी के
बचाओ मुझे मेरे घर में घुस गर्इ असहिष्‍णुता से
बेटा:   पिताजी।
पिता:   हां बेटा।
बेटा:     पता है अखबारें और समाचार चैनल बता रहे हैं कि देश में अशहिष्‍णुता का ही राज हो
गया है?            
पिता:   सुन तो मैं भी रहा हूं।
बेटा:     मुझे तो लगता है कि वह कुछ ठीक ही कह रहे हैं।
पिता:   तू भी कोई पुरूस्‍कार लौटाने वाला है क्‍या?
बेटा:     पिताजीलौटा तो मैं अवश्‍य देता पर मैं क्‍या करूं सरकार ने अभी तक मुझे कोई
पुरूस्‍कार ही नहीं दिया। यदि सरकार मुझ पर एहसान करे और कोई पुरूस्‍कार दे दे तो मैं साथ ही वचन देता हूं कि मैं उसे विरोध स्‍वरूप तुरन्‍त वापस लौटा दूंगा। इससे सरकार का कुछ नहीं जायेगा पर मुझे प्रसिद्धि अवश्‍य मिल जायेगी। मेरा नाम व फोटो समाचापत्रों व चैनलों में कम से कम एक दिन तो छाया रहेगा।
पिता:   तू कौन सा पुरूस्‍कार चाहता है?
बेटा:     पिताजीमैं तो स्‍वतन्‍त्र हूं। मैं न कोई कलाकार हूंन कवि-लेखकन सामाजिक कार्यकर्ता
और न व्‍यवसाय से कोई आन्‍दोलनकारी ही।  सरकार तो मुझे बड़े से बड़ा कोई भी पुरूस्‍कार दे सकती है।
पिता:   हांतुझे एक पुरूस्‍कार अवश्‍य मिल सकता है और वह है हर क्षेत्र में असफल रहने का।  
बेटा:    पिताजीआप मेरा मज़ाक मत उड़ाओ। मैं आपको बता दूं कि जो कहीं सफल नहीं रहता
वह राजनीति में अपने झण्‍डे अवश्‍य गाड़ देता है।
पिता:   चल कुछ कर तो सही।
बेटा:     पिताजीसच्‍चाई तो यह है कि जीवन में सब कुछ सम्‍भव है। मांझी या राबड़ी के पिता
ने कभी सोचा था कि उनके बच्‍चे कल को इतने बड़े प्रदेश के मुख्‍य मन्‍त्री बनेंगे?  
पिता:‍   तू मुझे भी यह सौभाग्‍य दे दे ना।
बेटा:     पिताजी, मैं यह सौभाग्‍य तो अवश्‍य दे दूं पर आप सहयोग ही नहीं देते। मैं आपको एक
और बात बता दूं। जो लोग आज असहिष्‍णुता की बात कर रहे हैं मैं तो उन सब से सहमत हूंआप हों या न हों।
पिता:   क्‍यों तेरे साथ क्‍या हो गया?
बेटा:     पिताजीकल मैं बाज़ार गया। मैंने अपनी साईकल एक दुकान के सामने खड़ी कर दी
और उससे कुछ सामान लेने गया। बजाय इससे कि वह मुझसे पूछता कि भाई साहबमैं आपकी क्‍या सेवा करूंउसने मुझे बड़ी बदतमीज़ी से कहा कि तू पहले अपनी साईकल मेरी दुकान के सामने से हटा। जब मैंने पूछा — क्‍योंतो वह बोला मेरे ग्राहकों को असुविधा होगी। जब मैंने कहा कि मैं भी तो एक ग्राहक ही हूं तो बोला — तू पहले अपनी साईकल हटाकार वाले मेरी दुकान के सामने कार खड़ी करने की जगह न पाकर दूसरी दुकान चले जायेंगे। यह असहिष्‍णुता नहीं तो और क्‍या हैमैं भी तो उसका ग्राहक ही था। फिर दुकान के सामने की ज़मीन उसकी तो नहीं, सरकार की है।
पिता:  चल बेटा, छोटी-छोटी बातों को इतना तूल नहीं देते। तूने साईकल हटा ली। बात खत्‍म
हुई। फिर झगड़ा क्‍या रह गया?
बेटा:     पिताजीआम जनता से तो यह रोज़ होता है। परसों मैं अपने दोस्‍त का स्‍कूटर लेकर
कहीं जा रहा था तो पुलिस वाले ने मुझे रोक लिया। मेरा चालान काट दिया कि मैंने हैलमैट नहीं पहन रखी । मैंने उसे समझाया कि मेरे पास स्‍कूटर नहीं है और इसे तो मैं अपने दोस्‍त से मांग कर चला रहा हूं। पर वह न माना। पिताजी हैलमैट मैंने नहीं पहन रखी उससे सरकार या पुलिसवाले को क्‍याअगर सिर फूटेगा तो मेरासरकार या पुलिस का नहीं।
पिता:   बेटाकानून मानना हर नागरिक का कर्तव्‍य है। इसमें पुलिस वाले की कोई ग़लती नहीं।
बेटा:     एक और। कुछ दिन पहले मेरा एक दोस्‍त जा रहा था। रास्‍ते में उसे एक सुन्‍दर-सी
लड़की दिख गई। उसक मन मचल गया। उसने उसे बड़े प्‍यार से कहा, ''आई लव यू''। कहना ही था कि लड़की ने अपनी चप्‍पल उतारी और उसके सिर इतनी ज़ोर से मारी कि कुछ देर के लिये तो उसका सिर ही चकरा गया।
पिता:   ठीक किया उस लड़की ने। ऐसे दिलफैंक आशिकों के साथ यही होना चाहिये।
बेटा:     पिताजीआप भी असहिष्‍णु लोगों की तरह बात कर रहे हैं। मेरे दोस्‍त ने तो उसकी
सुन्‍दरता की कदर करते हुये उसकी प्रशंसा ही की थी, उसकी बुराई तो नहीं। चप्‍पल मारने की बजाय वह भी तो मेरे दोस्‍त को शान्‍त भाव से कह सकती थी, ''नो, आई डोंट लव यू।'' उसे हिंसा पर नहीं उतरना चाहिये था। उसे यह भी समझ नहीं कि हम अहिंसा के पुजारी बापू गांधी के देश के नागरिक हैं।
पिता:   ऐसे समय बेटा गुस्‍सा आ ही जाता है। हिंसा-अहिंसा सब भूल जाती है।
बेटा:     पिताजीमुझे तो आप भी असहिष्‍णुता के हामी बन गये लगते हैं।
पिता: अच्‍छा। तेरा मतलब है कि उस लड़की को प्रतिकार नहीं  करना चाहिये था। बेटाशरीफ
घराने की बहुतसी लड़कियां चुप रहती हैं और कोई प्रतिकार नहीं करतीं जिस कारण राह चलते मजनुओं के हौंसले बढ़ जाते हैं। मैं तो कहता हूं कि हर लड़की को ईंट का जवाब पत्‍थर से देना चाहिये।          
बेटा:     पिताजीआप तो अहिंसा के पुजारी देश में हिंसा भड़का रहे हैं। इसे असहिष्‍णुता भी कहते
हैं।
पिता:   मैं तो बेटा इसका स्‍वागत करता हूं।
बेटा:     पिताजीआप भी कमाल कर रहे हैं। ऐसा कह कर तो आप देश में व्‍याप्‍त असहिष्‍णुता
के वातावरण को ही हवा दे रहे हैं।
पिता: अच्‍छा तो तेरा मतलब है कि तुम जैसे लोग ग़लत बात करते रहें और पीडि़त कुच्‍छ न
बोलें, चुपचाप सहते रहें। बेटा, यही तो कारण है कि आज उग्रता बढ़ती जा रही है।
बेटा:   पिताजी, कहानी यहीं समाप्‍त नहीं हो जाती। आप और भी सुनो ना। आपको याद है दो
मास पूर्व मैं बिजली का बिल जमा नहीं कर पाया था। बिजली वाले हमारे घर की बिजली ही काट गये थे जिस कारण इस भीषण गर्मी में हमें दो दिन बिना बिजली काटने पड़े थे।
पिता:   ग़लती तेरी थी या बिजली वालों की?
बेटा:     पिताजीउनमें इतनी तो मानवता होनी चाहिये थी यदि हम बिल का भुगतान नहीं कर
सके तो हमारी कोई मजबूरी रही होगी। उन्‍होंने विलकुल असहिष्‍णु व्‍यवहार किया और बिजली काट दी। यह कोई बात है?
पिता:   पर उन्‍हें क्‍या पता था कि तू इतना लायक है कि घर से पैसे तो बिल चुकाने  के लिये ले
गया था पर बिल का भुगतान करने की बजाये कई दिन तुम उसकी शराब ही पीते रहे और झूठ बोलते रहे कि बिल दे दिया है।
बेटा:     पिताजीशराब तो बहुत सारे बिजली वाले भी पीते हैं। उन्‍हें तो मेरी तरह मानवीय व
सहिष्‍णु होना चाहिये था।
पिता:   हांशराब पीना ज़रूरी है बिजली का बिल चुकताना ग़ैरज़रूरी।
बेटा:     पिताजीउनमें इतनी तो समझ व मानवीयता होनी चाहिये कि शराब की तलब तो तुरन्‍त
पूरी होनी चाहियेबिजली का बिल तो इन्‍तज़ार कर सकता है।
पिता:   हांकल को तू हमें भी भूखा मारेगा और राशन के पैसे से शराब पी लेगा।
बेटा:     पिताजीबुरा न मानना। पर सच तो यह है कि हमारे परिवार में भी असहिष्‍णुता का ही
राज है।
पिता:   परिवार में क्‍या हो गया?
बेटा:     पिताजीआपको याद है कि मैं अपना प्रेमविवाह रचना चाहता था पर आपने बीच में टांग
अड़ा दी और मुझे अपनी मर्जी से उसके साथ विवाह नहीं करने दिया जिसको मैं अपना दिल दे बैठा था। यदि आप असहिष्‍णुता न दर्शाते तो उसीके साथ मेरा विवाह हो गया होता।
पिता: तूने अपना दिल वापस ले लिया था या अभी उसके पास ही पड़ा है?
बेटा:   पिताजी, दिल तो अब मेरे पास ही है।
पिता: उसको तो दे दिया था पर अपनी पत्नि को नहीं दिया। पर ख़ैरतू खुशकिस्‍मत है कि मैंने
वहां तेरी शादी नहीं होने दी। वरन् तेरा भी वही हाल होता जो उसके साथ हुआ जिसने उस लड़की के साथ शादी की।
बेटा:     मेरे साथ तो पिताजी आपने हर कदम पर असहिष्‍णुता ही की है।
पिता:  और क्‍या किया मैंने?  
बेटा:     पिताजीमैं एक बड़ा अफसर बनना चाहता थापर आपने मुझे आगे पढ़ने ही नहीं दिया
और मुझे एक छोटे से दफतर में चपड़ासी बना दिया।
पिता: वाहवाह। मैट्रिक में तू छ: बार फेल हुआ। यदि आगे पढ़ाता तो बी0ए-एम0ए करते-करते
तू बूढ़ा हो जाता। शुक्र कर कि मैंने तुझे चपड़ासी तो बनवा दिया। वरन् आज तुझे यह नौकरी भी न मिलती। शायद पड़ोसियों या किसी ढाबे पर बर्तन साफ करता होता।             
बेटा:     इसे छोड़ो पिताजी। आगे सुनो। जब आप रिटायर हुये तो आपको 20 लाख रूपये मिले
थे। मैंने सोचा मेरे भी भाग्‍य खुल जायेंगे। मैं दस लाख लगा कर एक बड़ा व्‍यवसाय कर  चपड़ासी की शर्मनाक नौकरी से छुटकारा पा लूंगा। मैं आपका नाम रौशन कर दूंगा। पर यहां भी मुझे आपके असहिष्‍णु रूप के ही दर्शन हुये।
पिता:   अच्‍छा तो मैं तुझे दस लाख देकर स्‍वयं खाली हो जाता।   तूने तो मेरे यह रूपये भी डुबो
देने थे।
पिता:  मेरी मुसीबत भी तो यही है कि आपने मुझ पर कभी विश्‍वास नहीं किया। इसी का दूसरा
नाम तो असहिष्‍णुता है।
पिता:  बेटातूने भी तो मुझे हर स्‍थान पर निराश ही किया है। इस कारण मैं कैसे तेरे पर
विश्‍वास करने का जोखम उठा लेता?
बेटा:     चलोइसे भी छोड़ो। आपने कहां असहिष्‍णुता नहीं दिखाई?   
पिता:   आज तेरे को मेरी हर बात में असहिष्‍णुता ही दिखाई दे रही है। क्‍या हो गया है आज?
बेटा:   देश के अनेक महान् कलाकारोंलेखकोंइतिहासकारों ने इस मुद्दे को उठाकर मेरी आंखें
खोल दी हैं। उन्‍होंने मुझ में अपनी दु:खी भावनाओं को उजागर करने की हिम्‍मत पैदा कर दी है। आपके सामने आपकी इस असहिष्‍णुता के विरूद्ध झण्‍डा खड़ा करने की प्रेरणा मुझे उनसे ही मिली है।
पिता: अब समझ आया कि मेरे इतने वफादार बेटे के तौर-तरीके कैसे बदल गयेआज तो तू मेरे
साथ बड़ी ज़ुबान चला रहा।
बेटा:     पिताजी, असहिष्‍णु लोग देश की तरक्‍की में वाधा डाल रहे हैंदेश का माहौल बिगाड़ रहे
हैं और समाज में भाईचारा समाप्‍त कर रहे हैं। उसी प्रकार आपने भी हर जगह असहिष्‍णुता दिखा कर मेरी जि़ंदगी खराब कर रख दी है। पिताजीआखिर मेरी भी तो कोई आशायें व आकांक्षायें हैं। मैं भी तो इन्‍सान हूं। मेरे भी तो मानवाधिकार हैं।
पिता: मैं जानवर हूं? मेरे कोई अधिकार नहीं हैं? मेरे केवल कर्तव्‍य हैं तुझ जैसे नालायक को
पाल-पोस कर बड़ा करने के, तुझे पढ़ाने के, नौकरी लगवाने के।
बेटा:     पिताजी , वह तो हर माता-पिता का कर्तव्‍य होता है। मुझ पर कोई एहसान नहीं किया
आपने।
पिता:  पर तेरा भी अपने माता-पिता, भाई-बहन के प्रति कोई कर्तव्‍य है या नहीं? क्‍या तुमने
कोई एक भी कर्तव्‍य निभाया है?
बेटा:     पिताजी, यह देश अधिकारों का देश है, कर्तव्‍यों का नहीं। यहां तो अधिकारों केलिये ही
लड़ाई लड़ी जाती है, कर्तव्‍यों के पालन केलिये कभी नहीं। इस लिये आप पहले हमें हमारे  अधिकार दें। हमारे कर्तव्‍यों के पालन की बात तो आप फिलहाल भूल ही जायें।
पिता:  अच्‍छा माता-पिता के केवल कर्तव्‍य ही हैं और तुम्‍हारे केवल अधिकार।
बेटा:    पिताजी, मुझे तो दु:ख है कि यह आपकी असहिष्‍णुता ही है कि मेरे जैसे सुशील और
सीधे-साधे पुत्र पर भी आज तक आप कभी न सन्‍तुष्‍ट रहे और न कभी आपने गर्व ही महसूस किया। आपको पता है कि मैं इतना सुशील व भोला-भाला हूं जो कभी लहसुन-प्‍याज़ तक नहीं खाता। यदि कभी खाता हूं तो तब जब मीट-मुर्गा बनता है। मैं वह भी तब ही खाता हूं जब बोतल खुलती है। मैं बोतल भी ओंठों से तब लगाता हूं जब कोई हसीन भी संग होती है। पर आप हैं कि मुझे सदा बुरा-भला ही कहते रहते हैं।
पिता:   तू तो इतना मूर्ख है कि तुझे समझ नहीं आ रहा है कि इस प्रकार मिंयां मिट्ठू बन कर उल्‍टे अपनी ही टांग नंगी कर रहा है।
बेटा:      यही तो कारण है पिताजी कि आप जैसे लोग देश में सहिष्‍णुता का माहौल बिगाड़ रहे
हैं।
पिता:   मेरे जैसे?
बेटा:    हां, आप जैसे। आपने अपने परिवार का माहौल खराब कर रखा है। किसी को आप
अपनी मर्जी करने ही नहीं देते। जब आप परिवार में असहिष्‍णुता का माहौल पैदा कर रहे हैं तो देश इससे कैसे अछूता रह सकता हैआखिर देश भी तो लाखों-करोड़ों परिवारों का एक समूह ही तो है।  
पिता:   अब मैंने और क्‍या कर दिया?
बेटा:     पिताजीसिगरेट व शराब पीना तो व्‍यक्ति का स्‍वतन्‍त्र मानवाधिकार है। आपने दिया यह
अधिकार अपने परिवार में किसी को?
पिता:   यदि ऐसे अधिकार देना ही सहिष्‍णुता है तो इस सहिष्‍णुता की ऐसी-तैसी। मैं इसके
बिल्‍कुल विरूद्ध हूं।
बेटा:   तो मैं सहिष्‍णुता के विरूद्ध आपके इस हठ के खिलाफ मैं वैसा ही आन्‍दोलन खड़ा कर
दूंगा जैसा कि और महानुभावों ने किया है।
पिता:   मैं सरकार नहीं हूं जो तेरी गीदड़ भवकियों से परेशान हो जाऊंगा। मेरे घर का दरवाज़ा
खुला है। तू जब चाहे बाहर जा सकता है।
बेटा:    पिताजी, इतनी कठोर तो सरकार भी नहीं हुई जितना कि आप हो रहे हैं। अब तो मुझे
पुनर्विचार करना ही पड़ेगा।
पिता:  कर ले। जल्‍दी कर। मुझे दरवाज़ा बन्‍द करना है। आगे ही काफी रात हो चुकी है।  ***
  

 Courtesy: UdayIndia Hindi

No comments: