Friday, December 4, 2015

हास्‍य-व्‍यंग — कानों-कान नारदजी के : विफलताओं की बाढ़ में उम्‍मीद के तिनके पर राजपरिवार

हास्‍य-व्‍यंग
कानों-कान नारदजी के
विफलताओं की बाढ़ में उम्‍मीद के तिनके पर राजपरिवार

बेटा:   पिताजी1
पिता:  हां बेटा।
बेटा:   पिताजी, राहुल गांधी किसी राज परिवार से हैं
पिता:  बेटा, वह किसी राज परिवार से नहीं हैं। वह तो एक ऐसे महान् परिवार से हैं जिसने देश की आज़ादी की लड़ाई में बहुत कुर्बानियां दी हैं।
बेटा:   तो क्‍या वह महात्‍मा गांधी के वंशज हैं?
पिता:  नहीं बेटा, वह तो स्‍वर्गीय फिरोज़ गांधी के सुपौत्र हैं।
बेटा:   तो क्‍या फिरोज़ गांधी महात्‍मा गांधी के परिवार से थे?
पिता:  नहीं बेटा, वह तो एक सम्‍भ्रान्‍त पार्सी परिवार से थे।
बेटा:   फिर वह गांधी कैसे हो गये?
पिता:  उनका पारिवारिक कुलनाम (सरनेम) Ghandhy था। जब श्रीमति इन्दिरा ने उनसे शादी
की मनशा बना ली तो बापू बीच में पड़े और पंडित नेहरू को उन्‍होंने मना लिया। साथ ही फिरोज़ जी को अपने कुलनाम के स्‍पैलिंग बदलने को कहा। इस प्रकार वह गांधी
(Gandhi)बन गये।
बेटा:   तो फिर राहुल को युवराज क्‍यों कहते हैं?
पिता: बेटा, राहुल का परिवार देश को आज़ादी मिलने के बाद से बहुत लम्‍बे समय से सरकार व
कांग्रेस संगठन में लगातार सत्‍ता में रहा है। श्रीमति सोनिया गांधी के बाद कांग्रेस भी उन्‍हें ही अपना सर्वेसर्वा बनाने पर तुला है । इस लिये गीडिया ने राहुल को कांग्रेस का युवराज बना दिया है।
बेटा:   पिताजी, पर भारत में तो प्रजातन्‍त्र है, राजशाही नहीं। तो यहां शाही परिवार तन्‍त्र कैसे
      चल सकता है?
पिता: तेरी बात तो ठीक है पर यह अब कांग्रेस पार्टी में एक अटूट परम्‍परा बन चुकी है। इसे अब कोई नहीं तोड़ सकता। कांग्रेसी स्‍वयं भी इस राजवंशी परम्‍परा को चालू रखना चाहते   हैं। यदि इक्‍का-दूक्‍का कोई व्‍यक्ति उसका विरोध करता है तो उसे पार्टी गद्दार करार   देकर राजवंशी प्रथा के आधार पर पार्टी उसे गद्दार मानकर देशा-निकाले की तर्ज़ पर पार्टी-निकाला देती है।

बेटा:   पिताजी, राजवंश में तो उत्‍तराधिकार अनुक्रमण बना होता है जैसे बरतानिया आदि में। पर क्‍या यह कांग्रेस परिवार में भी है?
पिता:  बिलकुल है। जब कभी लोग राहुल के विकल्‍प की बात सोचले हैं तो उनकी नज़र      किसी और पर न पड़ कर केवल उनकी बहन प्रियंका पर ही जाती है।
बेटा:   पर पिताजी, वंशीय परम्‍परा में तो अनुक्रमण में राहुल के बाद नम्‍बर तो उनके बच्‍चों का होना चाहिये।
पिता:  वह इसलिये कि राहुल अभी अविविहित हैं और उनके कोई सन्‍तान नहीं है।
बेटा:   पर पिताजी राहुल शादी क्‍यों नहीं करते?
पिता:  बेटा, यह तो व्‍यक्ति व परिवार का अपना मामला है, इसमें हम क्‍या कह सकते हैं?
बेटा:   फिर भी पिताजी, राहुल देश के नेता हैं, भविष्‍य। उनके हितैषियों को तो अपनों की चिन्‍ता सताती ही रहती ही है। याद है जब मेरी शादी नहीं हो रही थी तो आप कितनी चिन्‍ता करते थे?आपको रात को नीन्‍द नहीं आती थी? मेरी बहनें तो इस मामले में मेरे पीछे ही पड़ी रहती थीं।
पिता:  बेटा, वह बड़े आदमी हैं। अपना मुकाबला उनसे मत कर।
बेटा:   पर पिताजी, सोनियाजी भी तो एक भारतीय मां हैं। उन्‍हें और राहुल की बहन को उनकी शादी की चिन्‍ता क्‍यों नहीं होती?
पिता:  बेटा, सोनियाजी तो एक महान् नारी हैं। उन्‍हें चिन्‍ता केवल राहुल की नहीं, वह तो पूरे देश की चिन्‍ता करती हैं। देश की चिन्‍ता के आगे उनके मन में राहुल की चिन्‍ता नगन्‍य हो जाती है।
बेटा:   पिताजी कुच्‍छ भी हो। सोनियाजी को राहुल की चिन्‍ता करनी चाहिये। प्रियंका उनसे छोटी है। उसकी शादी हुये कई साल हो गये और उसके दो बच्‍चे भी हो चुके हैं। पिताजी, राहुल की उम्र कितनी है?
पिता:  यही कोई 45-46।
बेटा:   पिताजी, आप तो सहज भाव से ऐसे बोल रहे हैं मानों राहुल अभी बच्‍चे हैं और उनकी अभी शादी की उम्र नहीं हुई है।
पिता:  ऐसी बात नहीं, पर जब वह ही चिन्‍ता नहीं करते तो हमें भी अपना मग़ज़ खपाने की क्‍या आवश्‍यकता है?
बेटा:   पिताजी, ऐसा नहीं। जब राहुल और सोनियाजी हमारी और देश की इतनी चिन्‍ता करते हैं तो हमारा भी कर्तव्‍य है कि हम भी उनकी चिन्‍ता करें।
पिता:  तू तो ऐसे बात कर रहा है जैसे कि तू बिचौला बनना चाहता है और तेरी नज़र में उनके योग्‍य कोई लड़की है।
बेटा:   पिताजी, मेरे पास तो उनके लायक लड़की कहां हो सकती है, पर चिन्‍ता मुझे ज़रूर है क्‍योंकि उनकी पार्टी के लोग ही कहते हैं कि वह पार्टी और देश का भविष्‍य हैं। मैं उनके आगे के भविष्‍य की सोच रहा हूं और चिन्‍ता कर रहा हूं।
पिता:  बेटा, काम चिन्‍ता से नहीं बनता, कुछ करने से बनता है।
बेटा:   पिताजी, राहुल बाबा कई बार अचानक गुम हो जाते हैं। किसी को पता नहीं होता कि वह देश में हैं, विदेश में। उनके साथ उनकी माताजी व बहन भी नहीं होते। वह कहां जाते हैं?
पिता:  बेटा, यह हम जैसे आम आदमियों की समझ के बाहर की बाते हैं। हर बड़ा आदमी काम कर कर थक जाता है और उसे एकान्‍त और आराम की आवश्‍यकता होती है। उस फुर्सत के समय ही तो उन्‍हें ठण्‍डे दिमाग से देश के बारे सोचने का समय मिलता हैं। राहुल भी कहीं जाकर सकून पाते होंगे।
बेटा:   पिताजी, कहीं ऐसा तो नहीं कि राहुल प्रधान मन्‍त्री बनने के बाद ही विवाह करना चाहते हों।
पिता:  यह तो मैं नहीं कह सकता पर इतना सच्‍च अवश्‍य है कि अभी चार साल तो उनके प्रधान मन्‍त्री बन पाने की कोई सम्‍भावना नहीं है। ऐसे तो वह बूढ़े हो जायेंगे।
बेटा:   पर यह तो अवश्‍य लगता है कि वह पहले कांग्रेस अध्‍यक्ष बनना चाहते हैं और शादी बाद में करना चाहते हैं।
पिता:  उनके कांग्रेस अध्‍यक्ष बनने की सम्‍भावना के समाचार तो तब से आ रहे हैं जब वह पिछले संसद सत्र के दौरान दो मास केलिये अज्ञातवास पर चले गये थे। तब तो समाचार आ रहे थे कि वह इस बात से नाराज़ हैं कि उन्‍हें अध्‍यक्ष नहीं बनाया जा रहा। फिर मीडिया में तो यह भी अटकलें लगाई जाने लगी थीं कि कांग्रेस अध्‍यक्ष के रूप में उनकी ताजपोशी अप्रैल में हो जायेगी। उसके बाद तो अफवाहें कई प्रकार की छपती रहीं।
बेटा:   पर पिताजी, यह समझ नहीं आता कि उन्‍हें अध्‍यक्ष क्‍यों नहीं बनाया जा रहा है। यह तो घर का ही मामला है। पद और कुर्सी तो घर में ही रहेगी चाहे उस पर मां बैठे या बेटा।
पिता:  यह तो बेटा सोनियाजी ही जानें कि वह क्‍यों राहुल के लिये गद्दी खाली नहीं कर रहीं। उसके पीछे भी कोई कारण होगा, कोई राज़ होगा, उनकी कोई सोच होगी। इसके विपरीत तत्‍कालीन प्रधान मन्‍त्री डा0 मनमोहन सिंह तो राहुल में एक अच्‍छा व सफल प्रधान मन्‍त्री होने के सभी गुण व लक्षण देखते थे और कहते थे कि पार्टी जब भी कहे मैं उनके लिये कुर्सी खाली करने के लिये तैय्यार हूं। इस ताजपोशी में तों मुझे ब्रिटेन की महारानी और यहां भारत में सोनिया जी में एक समानता दीखती है। ब्रिटेन की महारानी की आयु अब 90 वर्ष के लगभग हो चुकी है। गद्दी के प्रथम हकदार युवराज चार्ल्‍स स्‍वयं बूढ़े हो गये हैं पर उन्‍हें गद्दी तो तभी मिलेगी जब महारानी स्‍वयं ही राजपाट छोड़ दें। पर वह ऐसा नहीं कर रहीं। उसके पीछे भी कोई कारण होगा, कोई सोच होगी। वह सब कुछ अपने राष्‍ट्र के हित में ही कर रही हैं। यही समानता मुझे यहां भारत में कांग्रेस पार्टी में दिख रही है। ब्रिटेन में राजकुमार चार्ल्‍स बड़े धैर्य से प्रतीक्षा का रहे हैं। उन के चेहरे पर इस बात पर कोई रोष या चिन्‍ता नज़र नहीं आती। न ही वह किसी प्रकार का कोई ऐसा आभास देते हैं जैसा राहुल कर रहे हैं।
बेटा:   पर पिताजी, कौन माता-पिता अपनी आंखों के सामने ही अपने बेटे की ताजपोशी नहीं देखना चाहते?
पिता:  बेटा, बहुत ही कम राज परिवार ऐसे हुये हैं जिन्‍होंने अपने जीवनकाल में ही अपने युवराज की स्‍वयं ताजपोशी कर दी हो। पर कांग्रेस में शायद यह भी हो जाये।
बेटा:   पर पिताजी, कांग्रेस संगठन को सत्‍ता-परिवर्तन की आवश्‍यकता क्‍या है?
पिता:  यह तो हमारे कांग्रेसी भाई ही जाने पर इतना अवश्‍य माना जाता है कि बदलाव सदा स्‍वागत योग्‍य होता है।
बेटा:   पिताजी, अज्ञातवास के बाद तो अब राहुल गांधी बहुत ही आक्रमणकारी हो गये हैं। वह तो रोज़ प्रधान मन्‍त्री नरेन्‍द्र मोदी पर ताबड़तोड़ हमने बोलते जा रहे हैं।
पिता:  इसका बेटा कांगेस को कोई फायदा तो अभी तक हुआ नज़र नहीं आता। बिहार के विधान परिषद व मघ्‍य प्रदेश व राजस्‍थान के नगर निकाय चुनाव में तो कांगेस को इन आक्रमणों से हार का मुंह ही देचाना पड़ा।
बेटा:   अब तो सोनियाजी के भी तेवर सख्‍त हो गये हैं। उन्‍होंने भी कमान सीधे अपने हाथ में ले जी है। वह भी अब अपनी बात दूसरों से न बुलवाकर वाणी के तीर स्‍वयं साध रही हैं। अब तो ऐसा लग रहा है कि उनकी बढ़ती उम्र उनकी राजनीति को कमज़ार नहीं कर रही है।
पिता:  यह तो है।
बेटा:   आखिर पिताजी, राहुल के पास युवा का उबलता हुआ खून है। कुच्‍छ कर बैठने का जनून है।
पिता:  और सोनियाजी के पास तो इतना लम्‍बा अनुभव है। 125 वर्ष से अधिक कांग्रेस के इतने लम्‍बे इतिहास में इतने लम्‍बे समय तक लगातार कोई एक व्‍यक्ति, विशेषकर कोई महिला कांग्रेस अध्‍यक्ष नहीं रहीं। यह सौभाग्‍य व गौरव तो न पंडित नेहरू, न उनकी सास इन्दिराजी और न उनके पति राजीव प्राप्‍त कर सके।
बेटा:   साथ ही यह भी ठीक है  कि अब तक के चुनावों में कांग्रेस की इतनी बड़ी हार भी कभी नहीं हुई जितनी कि राहुल के युवा व सोनियाजी के इतने लम्‍बे अनुभव के अन्‍तर्गत हुई।  
पिता:  मुझे तो लगता है कि कांग्रेस की यह बुरी हार इस दोहरे नेतृत्‍व के कारण हुई। चुनाव तो एक संग्राम होता है जब इसकी बागडोर एक हाथ में होनी चाहिये।
बेटा:   मुझे तो लगता है कि सोनियाजी भी सचिन की तरह राजनीति में इतनी लम्‍बी पारी खेलना चाहती हैं कि लिट्टल मास्‍टर की तरह उनके रिकार्ड भी कोई तोड़ न सके।
पिता:  तेरी इस बात में दम लगता है। वह प्रधान मन्‍त्री न बन पाईं तो इतिहास में यही मील पत्‍थर ही सही।
बेटा:   फिर यह भी तो एक मील पत्‍थर ही है कि नेहरू-गांधी परिवार ने इतना लम्‍बे समय आज़ादी की लड़ाई नहीं लड़ी जितना लम्‍बा समय वह प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष रूप में सत्‍ता का सुख प्राप्‍त कर सके हैं।
पिता:  जो भी हो बेटा, सोनियाजी राहुल को प्रधान मन्‍त्री अवश्‍य देखना चाहती हैं।
पिता:  उम्‍मीद पर ही तो दुनिया खड़ी है। एक यह उम्‍मीद भी सही। विफलताओं की बाढ़ में उम्‍मीद के तिनके के सहारे परिवार।                                       ***  
Courtesy: UdayIndia (Hindi)

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