हास्य-व्यंग
भ्रष्टाचार के विरूद्ध संग्राम लड़ते-लड़ते तो बहादुर
केजरीवाल चांद व मंगल तक जा सकते हैं
बेटा: पिताजी।
पिता: हां बेटा।
बेटा: हिम्मत हो तो बहादुर केजरीवाल जैसी। मैं तो
उनका
कायल हो गया हूं, उनका एक आंखमून्द समर्थक।
पिता: तुम ठीक कह रहे हो बेटा। वह तो इस दशक के महान् व्यक्ति
हैं अदम्य साहसी, निर्भय।
बेटा: पिताजी, आप तो जानते ही हैं कि उन्होंने दिल्ली की अजेय
मुख्य मन्त्री शीला दीक्षित को धूल चटा दी थी जिन्होंने पिछले चुनाव में
हैटट्रिक मारा था।
पिता: वह तो बेटा सचमुच ही अजूबा था, एक करिश्मा। इसने उनकी
प्रतिष्ठा को चार चांद लगा दिये थे और उनका हौसला सातवें आसमान छू गया था।
बेटा: और शायद यही कारण लगता है कि उनमें इतनी हिम्मत पैदा हो गई
कि उन्होंने चुनौति दे दी कि भाजपा के प्रधान मन्त्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र
मोदी जहां से भी लोक सभा चुनाव लड़ेंगे वह वहीं से उनसे लोहा लेंगे।
पिता: उन में यह हौसला सारे देश का भ्रमण करने के बाद ही मिला है।
बेटा: पर पिताजी, मुझे यह समझ नहीं आता कि केजरीवाल
कांग्रेस में
हैं या कि विपक्ष में\
पिता: बेटा, वह तो निस्सन्देह ही विपक्ष के एक बहुत बड़े सशक्त
स्तम्भ हैं। वह तो अनेकों बार कह चुके हैं, दोहरा चुके हैं कि भ्रष्टाचार के
विरूद्ध संग्राम में वह सब से बड़े योद्धा हैं और भ्रष्ट कांग्रेस के विरूद्ध।
बेटा: तब तो पिताजी इस चुनाव में हमें उनको कांग्रेस के विरूद्ध
देखना चाहिये था। पर ऐसा नहीं दिख रहा। यदि वह सचमुच ही कांग्रेस के विरूद्ध होते
तो वह अब तक के अजेय राहुल और सोनियाजी के विरूद्ध चुनाव क्यों नहीं लड़ते\ क्या वह उनसे डरते हैं\
पिता: नहीं बेटा, यह केजरीवाल की प्रकृति नहीं है। वह तो किसी से
नहीं डरते।
बेटा: तो फिर\
पिता: बेटा, समझने की कोशिश करो। यह ठीक है कि केजरीवाल एक
राजनेता हैं। पर साथ में यह भी सच है कि वह एक इन्सान हैं जिनके दिल में दया व
धर्म भी है। उन्हें पता है कि यह केवल मां-बेटे की जोड़ी ही थी जिसने उन्हें
दिल्ली का मुख्य मन्त्री बनाया। अन्यथा उनके समर्थन के बिना तो यह सम्भव ही न
था। बेटा, एहसान भी कोई चीज़ होती है और केजरीवाल इतने घटिया इन्सान नहीं कि वह
किसी का एहसान ही भूल जायें।
बेटा: पिताजी, इसका तो मतलब यह हुआ कि वह कांग्रेस के ही दाहिना
हाथ हैं।
पिता: नहीं बेटा। राजनीति एक टेढ़ी-मेढ़ी खीर है जो हम जैसे आम
आदमी की समझ के बाहर की चीज़ है। राजनीति में सब कुछ वह नहीं होता जैसा कि दिखता
है।
बेटा- पिताजी, मोदी तो उत्तर प्रदेश में वाराणसी से व गुजरात में
वडोदरा दोनों स्थानों से चुनाव लड़ने जा रहे हैं।
पिता: बेटा, केजरीवाल अपनी बात के पक्के हैं। वह मोदी के खिलाफ
दोनों ही स्थानों से लड़ सकते हैं।
बेटा: इससे तो ऐसा लगता है कि केजरीवाल में आत्मविश्वास बहुत
बढ़ गया है। ऐसे तो वह कल को दुनिया के उन पहलवानों को भी चुनौति दे सकते हैं जिन्हें
हम प्रतिदिन इलैक्ट्रानिक चैनलों पर रोज़ बुरी तरह भिड़ते देखते हैं।
पिता: नहीं बेटा, वह इतने नासमझ नहीं हैं। वह अपनी शक्ति व
दाव-पेच की क्षमता से अवगत हैं। वह ऐसा कुछ नहीं करेंगे।
बेटा: क्या वह मोदी के विरूद्ध दोनों स्थानों से विजयी रहेंगे\
पिता: बेटा, उनका आत्मविश्वास तो आस्मान छू रहा है। उन्होंने
अपने जीवन का पहला ही चुनाव एक कांग्रेसी महारथी के विरूद्ध लड़़ा और उसे धराशायी
किया। इसलिये उन में विश्वास लबालब भरा पड़ा है। और फिर वह चुनाव हारने के लिये
थोड़े लड़ेंगे।
बेटा: इस प्रकार तो वह कल को राष्ट्रपति ओबामा को भी चुनौति खड़ी
कर सकते हैं।
पिता: कोई हैरानी की बात नहीं, बेटा। अमरीका भी तो हमारी ही तरह
एक बड़ा पुराना जनतन्त्र है। फिर उनकी पार्टी तो अमरीका में भी बहुत लोकप्रिय
होकर उभर रही है। वहां भी पार्टी के कार्यकर्ता व समर्थक बैठकें व प्रदर्शन कर रहे
हैं।
बेटा: फिर आगे क्या होगा\ क्या केजरीवाल यहीं
रूक जायेंगे\
पिता: नहीं बेटा। वह तो रूकने वाले व्यक्ति नहीं हैं। वह तो आगे
से आगे ही जायेंगे। चुनाव के माध्यम से भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फैंकने की
अपनी कसम को पूरा करने केलिये दुनिया के किसी भी कोने केलिये कूच कर सकते हैं।
बेटा: तब तो पिताजी यदि चांद और मंगल पर भी भ्रष्टाचार हुआ तो वह
वहां भी चुनाव मैदान में उतर सकते हैं\
पिता: यह तो बेटा तू उनसे ही पूछ।
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