हास्य-व्यंग
कानोंकान नारदजी के
नाम में रखा क्या है?
बेटा: पिताजी।
पिता: हां, बेटा।
बेटा: पिताजी, नाम में क्या है?
पिता: बेटा, नाम में कुछ भी नहीं है और बहुत कुछ है भी।
बेटा: कैसे?
पिता: यह इसलिये कि मेरा नाम ऊंकार है, तेरा ओमप्रकाश और तेरी बहन का ओमवती। यही हम सब की
पहचान है।
बेटा: पर पिताजी, यही तो परेशानी खड़ी कर दी आपने। आपका नाम तो हमारे दादाजी ने रखा होगा, पर आपने हम दोनों भाई-बहन का नाम भी ओम से शु्रू कर तो ठीक नहीं किया।
पिता: तेरा मतलब कि मुझे तेरा नाम तुझसे पूछ कर रखना चाहिये था क्या? अब मां-बाप उनका नाम भी बच्चों से पूछ कर रखेंगे और वह भी तब जब न उनकी ज़ुबान खुली होती है और न अक्ल?
बेटा: नहीं पिताजी, मेरा यह मतलब नहीं है। आप फि़ज़ूल ही मुझपर नाराज़ हो रहे हैं। मैं एक और परेशानी की बात कर रहा हूं। मुझे इसपर कोई इतराज़ नहीं है कि आपने हमारा यह नाम रखा है।
पिता: तो फिर क्या है?
बेटा: पिताजी, आपको पता है ना कि 21 जून को भारत समेत सारे विश्व में योग दिवस मनाया जा रहा है?
पिता: हां, मुझे पता है।
बेटा: पर उसमें तो एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है।
पिता: क्या?
बेटा: कुछ लोग कहते हैं कि योगाभ्यास के समय ओम् का उच्चारण उनके धर्म की मान्यताओं के विरूद्ध है।
पिता: यह तर्क तो बेतुका लगता है। वैसे सरकार ने तो स्पष्ट कर दिया है कि योगाभ्यास के समय ओम् का उच्चारण अनिवार्य नहीं, ऐच्छिक है।
बेटा: वैसे पिताजी, हमारे महामहिम उपराष्ट्रपति महोदय की धर्मपन्ति श्रीमती अंसारी इस दकियानूसी तर्क से सहमत नहीं हैं। उन्होंने कहा है कि ओम् के उच्चारण में कोई बुराई नहीं है।
पिता: बेटा, उन्होंने बड़ी समझदारी की बात की है। उससे सौहार्द ही बढ़ेगा।
बेटा: पिताजी, कुछ लोगों के इस हठधर्मी तर्क से तो कई समस्यायें ही पैदा हो जायेंगी।
पिता: कैसे?
बेटा: पिताजी, तब तो हमारे को अपना नाम भी बदलना पड़ेगा।
पिता: क्यों?
बेटा: इसलिये कि आपके नाम के साथ ओम् है, मेरे नाम के साथ भी और मेरी बहिन के साथ भी। जब कुछ कट्टरवादियों को ओम् के उच्चारण में धर्म आड़े आ जाता है तो वह हमारा नाम भी वह कैसे लेंगे? फिर वह हमें कैसे पुकारेंगे?
पिता: तेरा मतलब हम उनके लिये अपना नाम ही बदल लें? यह कैसे सम्भव है?
बेटा: पिताजी, यदि वह योगाभ्यास के समय ओम् शब्द का उच्चारण नहीं कर सकते तो वह हमारा नाम कैसे लेंगे?
पिता: इस समस्या का हल तो मेरे पास नहीं है और न मैं उनके कारण अपना या तुम्हारा नाम ही बदलने वाला हूं।
बेटा: पिताजी, हमारे प्रधान व उपप्रधान मन्त्री उन देशों के दौरे पर भी जाते रहे हैं जहां शरिया कानून लागू है। ऐसी सूरत में वहां के राष्ट्रपति व प्रधान मन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी, नरासिम्हा राव व लाल कृष्ण आडवानी जी के नाम कैसे लेते होंगे क्योंकि उनके नाम भी तो हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं के ही नाम हैं।
पिता: बेटा, वह तो मुझे पता नहीं कि वह कैसे ले पाते थे पर मैं इतना अवश्य जानता हूं कि वह लेते अवश्य थे।
बेटा: पर इस समस्या का हल क्या है?
पिता: यह तो वह ही जानें।
बेटा: पर पिताजी, आप कुछ भी बोलो नाम से समस्या तो पैदा हो ही जाती है।
पिता: कैसे?
बेटा: एक बार किसी कार्यक्रम में कोई विवाद खड़ा हो गया। सभागृह में बड़ी गर्मागर्मी हो गई। एक आयोजक ने हाथ जोड़कर उपस्थित जनसमूह को सम्बोधित करना शुरू किया — ''शान्ति, शान्ति''। एक महिला खड़ी होकर बोली — ''हांजी, हांजी''। आयोजक बोला, ''महोदया, मुआफ करना मैंने आपको नहीं पुकारा।''
पिता: फिर क्या हुआ?
बेटा: हंगामा फिर भी न थमा। बड़ा हो-हल्ला होता जा रहा था। तब आयोजक फिर उठा और पुन: हाथ जोड़कर बोला, ''मैं आपसे विनम्र प्रार्थना करता हूं कि आप शान्ति के साथ बैठें और कार्यक्रम को सुचारू ढंग से आगे बढ़ने दें।'' उसका यह बोलना ही था कि दर्शकों में से एक आदमी गुस्से से आग-बबूला होकर उठकर बोला, ''आप कौन होते हैं लोगों को मेरी बीवी के साथ बिठाने वाले?'' आयोजक ने फिर विनम्र होकर कहा, ''महोदय, आपको गलतफहमी हो रही है। मैंने आपकी बीवी के साथ नहीं, शान्ति के साथ बैठने का आग्रह किया है''। उत्तेजित व्यक्ति बोला, ''शान्ति ही तो मेरी बीवी है''। इस पर सब ठहाका मारकर हंस पड़े और माहौल शान्त हो गया।
पिता: बेटा, ऐसा तो कई बार हो जाता है।
बेटा: आपके साथ भी हुआ कभी ऐसा?
पिता: हां। एक बार ऐसा हुआ कि मेरा एक दोस्त था जिसका नाम कमलेश था। वह मुझे बाज़ार में दिखाई दे गया। मैंने उसे ज़ोर से आवाज़ दी, ''कमलेश, कमलेश''। इसपर एक महिला मेरे पास आ गई, ''आप मुझे क्यों बुला रहे हैं? मैं तो आपकी जानती नहीं।'' मैंने बड़े विनम्रभाव से मुआफी मांगते हुये कहा, ''मैडम, मैंने आपको नहीं, अपने मित्र 'कमलेश' को पुकारा है जो देखो सामने आ रहा है।'' महिला शर्मिन्दा होकर चलती बनी।
बेटा: पिताजी, ऐसी घटनायें कई बार हो जाती हैं। एक बार ऐसा हुआ कि एक व्यक्ति को उसका अपना पुराना दोस्त मिल गया। औपचारिक नमस्कार-नमस्ते के बाद दोस्त ने कहा, ''आपकी दया हो जाये तो मेरी तो जि़न्दगी ही सफल हो जायेगी। साथ में खड़ा व्यक्ति गुस्से से बोल उठा, ''दया इनकी कैसे हो सकती है? उसका तो विवाह मेरे साथ हो चुका है।'' संयोग से उसकी बीवी का नाम दया था।
पिता: नाम केलिये तो बेटा, लोग कई कुछ करते हैं। मेरे एक सहपाठी था। माता-पिता ने उसका नाम रूल्दू राम रख दिया था। जब वह बड़ा हो गया तो उसे अपना नाम बतलाने में भी झेंप होती थी। कई बार तो उसने अपना नाम ही बदलने की सोची। अन्त में अंग्रेज़ी भाषाने उसकी मदद की। उसने अपना नाम आर0 आर0 शर्मा बना दिया। सब उसे रूल्दू राम की जगह आरआर के नाम से पुकारने लगे और वह आरआर बनकर ही रह गया।
बेटा: कई लागों का संयोगवश एक ही नाम हो जाता है। ऐसे ही मेरे एक दोस्त की तो किस्मत ही खराब हो गई। उसके पिताजी के एक दोस्त अफसर थे। उनके पास मेरे दोस्त का एक नौकरी केलिये साक्षात्कार आ गया। पिताजी ने कहा, बेटा अब तेरी किस्मत खुल गई। मैं उन्हें कह दूंगा और तेरा चयन पक्का। उसने कह भी दिया। जब चयनित व्यक्तियों की सूची निकली तो उसका नाम तो था पर पिता का नाम कोई और था। वह उस अफसर को मिलने गया तो अफसर ने उसे वधाई दी। उसने कहा सर, चयन जिसका हुआ है नाम तो उसका मेरा है पर उसके पिताजी का नाम कोई और है। उसने कहा सॉरी, अब तो मैं कुछ नहीं कर सकता। मैंने तो अपनी ओर से तुझे ही पास किया था। मुझे क्या पता कि इस नाम के दो प्रार्थी हैं। मैंने पिताके नाम की ओर ध्यान नहीं किया।
पिता: कई व्यक्ति अजीब ही निकलते हैं। एक बार एक व्यक्ति पर पांच-छ: आदमी टूट पड़े। वह कहते जा रहे थे, ''लखन, तेरी ऐसी-तैसी''। वह उसका नाम लेकर उसकी मां और बहन को गालियां निकालते हुये उसकी पिटाई करते जा रहे थे। उन्होंने उसे वहीं पर ढेर कर दिया। पर पिटने वाले की हास्य प्रतिभा जि़न्दा रही। वह जब उसे अधमरा छोड़ कर जा रहे थे तो उसने उनका मज़ाक उड़ाते हुये कहा, ''देखा, मैंने बना दिया ना तुम्हारा बेवकूफ। मेरा नाम तो लखन है ही नहीं।
बेटा: यह बात पंजाब की है पिताजी। वहां एक आदमी सड़क पर जा रहा था कि सामने से आते व्यक्ति ने उसके साथ तपाक से हाथ मिलाया और बहुत खुश होकर उसे गले लगाते हुये बोला, ''सोहनया तू बहुत दिनों बाद मिला। मेरे को तो तेरी बहुत याद आती थी। तू ठीक तो है ना। आज तेरे को मिलकर बहुत खुशी हुई। आ चाये पीते हैं इस ढाबे पर।'' दूसरा व्यक्ति बड़ा हैरान था। उसने कहा, ''महाशय, मैं तो आपको जानता ही नहीं। मेरा नाम सोहना नहीं है।'' दूसरे व्यक्ति ने अपना बड़ा दिल दिखाते हुये तपाक से कहा, ''ओये सुन, तू सोहना है या मोहना। इसमें कोई फर्क नहीं पड़ता। है तो तू इनसान ही ना। आ, चाय पीते हैं।'' वह उसका बाज़ू पकड़ कर पास के ढाबे पर ले गया। ***
Courtesy: UdayIndia (Hindi)
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