हास्य-व्यंग
कानोंकान
नारदजी के
राजनीति तेरे रंग अनेक
बेटा: पिताजी।
पिता: हां, बेटा।
बेटा: आपको पता है महाराष्ट्र के कुछ जि़लों में पीने
के पानी का भ्यंकर संकट पैदा हो गया है?
पिता: हां, बेटा। बहुत दु:खदपूर्ण स्थिति है।
बेटा: और हमारे दिल्ली के मुख्य
मन्त्री श्री केजरीवाल तो बहुत ही दयावान निकले।
पिता: कैसे?
बेटा: उन्होंने निर्णय ले लिया है
कि वह महाराष्ट्र केलिये प्रतिदिन 10 लाख लीटर पानी दिल्ली से भेजेंगे।
पिता: लेकिन इतनी दूर पानी पहुचेगा
कैसे?
बेटा: उसके
लिये उन्होंने केन्द्र सरकार से अनुरोध कर दिया है कि वह यह पानी वहां पहुंचाने
के लिये माल गाडि़यों का प्रबन्ध कर दे।
पिता: रेल का भाड़ा कौन देगा?
बेटा: यह तो साफ नहीं है पर लगता है
इसका बोझ तो केन्द्र को ही सहना पड़ेगा।
पिता: पर बेटा, क्या दिल्ली
सरकार के पास इतना फालतू पानी है कि वह महाराष्ट्र केलिय
जलदान कर सके?
बेटा: पिताजी होगा तभी तो उन्होंने यह प्रस्ताव किया है।
पिता: पर
बेटा, सरकार और मीडिया कि रिपोर्ट तो यह कहती है कि दिल्ली में स्वयं पानी की 35
प्रतशित की कमी है और सरकार दिल्ली की जनता को ही पानी की पूर्ति नहीं कर पा रही
है।
बेटा: और पिताजी उलटे अपनी पानी की
पूर्ति के लिये हरियाण पर आश्रित है।
पिता: यह तो बेटा है।
बेटा: ऊपर
से पिताजी सूर्य देवता भी कुछ ज़्यादा ही गर्म होते दिख रहे हैं। इससे तो दिल्ली
में पानी की अपनी ही मांग बहुत बढ़ जायेगी।
पिता: बेटा,
केजरीवाल मुख्य मन्त्री कम और राजनेता अधिक हैं और राजनेताओं की बातों को ज़्यादा
संजीदगी से नहीं लेना चाहिये।
बेटा: फिर भी पिताजी, आदमी की ज़ुबान की भी तो कोई कीमत होती है।
पिता: बेटा राजनीति में ज़ुबान तो छोड़ आदमी की कीमत नहीं होती। पर केजरीवाल
हैं पक्के राजनेता। वह जानते हैं कि आवश्यकता पड़ी तो कोई बहाना भी घड़ लेंगे।
नहीं होगा तो केन्द्र पर दोष मढ़ देंगे कि उसने गाडि़यों का प्रबन्ध नहीं किया।
बेटा: तब
तो पिताजी केजरीवालजी के दोनों होथों में लड्डू हैं। वह जो राजनीतिक लाभ अर्जित
करना चाहते हैं वह तो मिल गया।
पिता: इसे ही बेटा राजनीति कहते
हैं।
बेटा: मैं तो पिताजी उनकी राजनीति का कायल हो गया हूं।
पिता: इस बात के लिये तो केजरीवाल
की जितनी तारीफ की जाये उतनी ही कम है।
बेटा: पिताजी,
आजकल की राजनीति को देखते हुये मुझे तो लग रहा है कि मैंने अपने जीवन का बहुमूल्य
समय यूंहि बर्बाद कर दिया।
पिता: तू कौनसे झण्डे गाड़ देना
चाहता था?
बेटा: मैंने सूझबूझ से काम लिया
होता तो आज मैं भी अपने प्रदेश का मुख्य मन्त्री होता।
पिता: आज
तू फिर लगा वही पुरानी बकवास करने। आज तक कुछ कर तो पाया नहीं, हवाई किले अवश्य
बनाता रहता है।
बेटा: पिताजी,
आपका बेटा इस बार सब सच कर दिखायेगा। तब आप मेरी पीठ भी थपथपायेंगे और गर्व से
अपना सीना भी फुलायेंगे।
पिता: मैं तेरी फिज़ूल बकवास से आगे
ही तंग हूं। चुप हो जा अब।
बेटा: पिताजी,
ऐसा आप इसलिये कह रहे हैं क्योंकि आपको पता नहीं कि विदेशों की तर्ज़ पर अब हमारे
देश में भी ऐसे व्यक्ति व कम्पनियां आ गई हैं जो किसी भी व्यक्ति को प्रधान मन्त्री
व मुख्य मन्त्री बना सकती हैं।
पिता: तेरा मतलब बन्दे में स्वयं
कोई योग्यता हो या न हो, तब भी?
बेटा: पिताजी,
कहते हैं भारत में एक ऐसा करिश्माई व्यक्ति आ गया है जो किसी पार्टी को भी जिता
सकता है और मुख्य मन्त्री बना सकता है। ऐसी कुछ कम्पनियां भी आ गई हैं। उनका
चालू असम, पश्चिमी बंगाल व आने वाले पंजाब व उत्तराखण्ड चुनावों के लिये अनुबंध कर
लिया गया है।
पिता: अच्छा?
बेटा: आपको
पता है पिछले लोक सभा चुनाव में मुख्य मन्त्री होते हुये भी नितीश कुमार की
पार्टी बिहार में बुरी तरह हार गई थी और तब तय लगता था कि नितीश कुमार के भी दिन लद
गये हैं।
पिता: फिर क्या हुआ?
बेटा: पहले
हार केलिये नैतिक जि़म्मेदारी कबूल करते हुये नितीश जी ने मुख्य मन्त्री पद से
इस्तीफा दे दिया। पर जिसके मुंह में सत्ता का खून लग जाये वह उसके बिना रह नहीं सकता।
चुनाव से कुछ मास पूर्व उन्होंने फिर मुख्य मन्त्री की गद्दी सम्भाल ली। चुनाव
रणनीति के माहिर को काम पर लगाया और वह देखो, उसने सभी को झूठा साबित कर दिया और नितीशजी
को पुन: सत्ता में ला खड़ा कर दिया।
पिता: तो बेटा, उसने मुंह मांगी फीस
ली होगी।
बेटा: पिताजी, जब नथ पहननी है तो नाक भी बिंध्वानी पड़ेगी और जेब भी ढीली रखनी
पड़ेगी ही।
पिता: अब तो सरकार में भी उसकी तूती बोलती होगी?
बेटा: पिताजी, जब काम किया है तो उसका फल भी तो मिलेगा ही।
पिता: तेरा मतलब ये चुनाव के महारथी
किसी को भी चुनाव जिता सकते हैं? तेरे जैसे को भी?
बेटा: बिलकुल।
पिता: मैं तो विश्वास नहीं कर सकता
कि वह तेरे जैसे को भी जीत दिला सकते हैं।
बेटा: पिताजी,
नितीश कुमारजी लगभग 14 मास पूर्व ही बुरी तरह लोक सभा चूनाव हार गये थे। तब तो ऐसा
लग रहा था कि विधान सभा चुनाव में भी उसकी लुटिया डूबी ही समझो। पर उस रणनीतिकार
ने कर दिखाया न करिश्मा?
पिता: पर तू कहां से लायेगा करोड़ों रूपये? मेरे पास तो तुझे देने केलिये लाखों भी नहीं हैं।
बेटा: करोड़ों नहीं, पिताजी अरबों।
पिता: तो तू यह सारे लायेगा कहां से?
बेटा: पिताजी,
जनता और अपने समर्थकों से। आपको शायद पता नहीं कि चुनाव कोई अपने पैसे से नहीं
लड़ता। इस देश में खुले दिल से दान देने वाले दानवीरों की कमी नहीं है।
पिता: वह क्यों लुटायेंगे तुझ पर लाखों-करोड़ों?
बेटा: पिताजी,
ये व्यक्ति व संस्थायें किसी को भी जिताने व मुख्य मन्त्री बनाने में इतनी
मशहूर हैं कि ज्योंहि लोगों को पता चलेगा कि मैंने उनकी सेवायें प्राप्त कर ली
हैं तो सभी को तसल्ली हो जायेगी कि मेरा मुख्य मन्त्री बनना तो अब तय है। तब
सभी काली कोठरियों में बेकार पड़ी अपनी गठरियों को निकालकर मेरे घर लाइन लगा कर
खड़े हो जायेंगे अपना पहला नम्बर लगवाने के लिये। मुझे अपनी तुच्छ सी भेंट स्वीकार
करने के लिये प्राथर्ना करेंगे। कहेंगे कि फिर हाजि़र होते रहेंगे। उन्हें पता है
कि यदि वह बार-बार आकर अपनी शक्ल नहीं दिखाते रहेंगे तो मैं उन्हें पहचान नहीं
पाऊंगा क्योंकि सत्ता प्राप्ति पर व्यक्ति की अपनी यादाश्त क्षीण हो जाती है
और कई बार तो वह अपनों को भी पहचानने से इनकार कर देता है।
पिता: तब तू कहीं मेरे साथ भी ऐसा तो
नहीं करेगा?
बेटा: नहीं पिताजी, मैं कभी इतना
नहीं गिर सकूंगा।
पिता: चलो,
ईश्वर सब कुछ करे। मेरी शुभकामनायें तेरे साथ हैं। किसे बुरा लगेगा जब उसका पुत्र
मुख्य मन्त्री बन जाये चाहे वह कितना भी निकम्मा या नालायक क्यों न हो।
बेटा: पिताजी,
सच्चाई यह है कि सत्ता मिल जाने पर व्यक्ति के अवगुण अपने आप ही छुप जाते हैं।
पिता: ऐसा तो है बेटा।
बेटा: पर पिताजी, मुझे एक ही बात से
डर लगता है।
पिता: किस से?
बेटा: राजनीति में जब विरोधी विरोध
केलिये किसी भी हद तक गिर जाते हैं।
पिता: क्या हुआ?
बेटा: आपने
मीडिया में नहीं देखा कि कश्मीर के एक गांव में किस प्रकार सेना के विरूद्ध घोर
प्रदर्शन व हिंसा हुई जिसमें पांच-छ: निर्दोष जाने भी चली गईं?
पिता: यह तो बेटा बहुत बुरा हुआ। पर लोग भी तो इस बात पर उत्तेजित हो उठे
थे कि सेना के कुछ जवानों ने वहां की स्थानीय किसी छात्रा से बदसलूकी की थी।
बेटा: पिताजी,
दु:ख की बात तो यह है कि लोग अफवाहों पर विश्वास कर अपना आप खो बैठते हैं और कोई
सच्चाई जानने की कोशिश नहीं करता।
पिता: तो सच्चाई क्या है?
बेटा: अब
देखो सच्चाई आपको भी पता नहीं। सारा दिन तो आप टीवी से चिपके रहते हैं और अखबार
में छपी खबरों को भी पूरी तरह चाट जाते हैं पर इस मामले की सच्चाई आपको भी पता
नहीं।
पिता: बेटा हम वही पढ़ते हैं, सुनते हैं जो अखबार में छपता है या टीवी में
दिखाया जाता है। सच्चाई जानने केलिये हमारे पास क्या साधन है?
बेटा: यही
तो पिताजी हमारे जनतन्त्र की ट्रैजडी है। हर नेता, हर अखबार व टीवी चैनल सच्चाई
पर रंग चढ़ा कर अपने हिसाब से इस प्रकार प्रस्तुत करता है कि इस स्वार्थ की बाढ़
में सच्चाई जानने वाला डूब कर मर जाता है।
पिता: पर हुआ क्या? तू तो अपने बाप को बता।
बेटा: हिंसा
के अंधेरे में कोई सच्चाई के उजाले तक पहुंच ही न सका। अब पुलिस उस लड़की से सम्पर्क
साध पाई है और उसने पुलिस व अदालत में अपना ब्यान दर्ज करवाया है कि सेना के किसी
अधिकारी या जवान ने उसके साथ कोई बदसलूकी नहीं की। उल्टे हुआ यह कि वह जब शौचालय
से निकली तो उसके ही गांव के दो लड़कों ने उसे घेर लिया और दुर्व्यवहार किया।
उसने उनके नाम भी बताये हैं और पुलिस ने एक को पकड़ भी लिया है। दूसरे को पकड़ने
की कोशिश की जा रही है।
पिता: तो
तेरा मतलब उन दो अपराधी लड़कों को बचाने केलिये दोष सेना के माथे मढ़ दिया गया जिस
कारण हिंसा भड़क उठी और निर्दोष जाने भी चली गईं।
बेटा: बिलकुल।
भीढ़ ने पहले तो जांच होने ही नहीं दी। सच्चाई तक किसी को पहुंचने ही नहीं दिया
गया। असमाजिक तत्व अपने षड़यन्त्र में सफल हो गये।
पिता: यह तो राजनीति का बड़ा भ्यावह
चेहरा सामने आ रहा है।
बेटा: पर
पिताजी, राजनेताओं को जनता की भावनाओं से इस हद तक खिलवाड़ नहीं करना चाहिये कि
हिंसा हो, सरकारी व निजि सम्पत्ति का नुक्सान पहुंचे और निर्दोष लोगों की जान
चली जाये।
पिता: इससे
तो बेटा हमारे गणतन्त्र व अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का ही कुरूप चेहरा सामने
आ रहा है। यदि ऐसा होता रहा और उसपर अंकुश न लगाया गया तो हमारा गणतन्त्र, अभिव्यक्ति
की स्वतन्त्रता और कानून व्यव्स्था ही खतरे में पड़ जायेगी। ***
Courtesy: Uday India (Hindi)
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