हास्य-व्यंग
कानोंकान नारदजी के
दिल की बातें दिल ही जाने
ईश्वर महान् है।
उसका दिल भी उतना ही महान् है। वह सब पर कृपा करता है, सब का ध्यान रखता है। उसी
ने इस संसार की रचना की। उसी ने यह मानव शरीर बनाया। उसी ने मानव के शरीर में दिल
भी बसाया। ईश्वर की महिमा अपरम्पार है। उसकी वह ही जानता है। पर यह समझ नहीं आता
कि जब उसने मानव को दिल दिया तो उसने उसे इतना जटिल और रहस्यमयी क्यों बना दिया।
ऐसा लगता है कि ईश्वर को जान लेना व उसे पहचान लेना आसान है पर दिल की थाह लेना
लगभग सम्भव नहीं है।
आज विज्ञान बहुत
तरक्की कर चुका है। अब तो दिल का आप्रेशन हो जाता है। उसका इलाज हो जाता है। व्यक्ति
में नया दिल डाल दिया जाता है। पर विज्ञान भी अभी तक यह थाह नहीं लगा पाया कि आखिर
दिल है क्या। किस चीज़ का बना है।
वह कब क्या कर बैठे
इसका भी कोई अनुमान नहीं लगा सकता। इसकी भविष्यवाणी नहीं कर सकता। आज विज्ञान यह
तो भविष्यवाणी कर देता है, चेतावनी दे देता है कि देश-प्रदेश के किस भाग में
वर्षा होने वाली है, तापमान घटेगा या बढ़ेगा, सुनामी या तूफान आयेगा या नहीं। पर
कोई वैज्ञानिक इस बात की भविष्यवाणी करने में असफल रहा है कि किसी के दिल में कब
तूफान आ जायेगा, कब शान्त हो जायेगा, कब उसका तापमान बढ़ या घट जायेगा। दिल में
दौरा कब पड़ जायेगा, यह भी कोई नहीं बता सकता।
वास्तव में अभी तक
यह कहना भी मुश्किल है कि दिल आखिर है किस वस्तु या धातू का बना। यही कारण है कि
कोई कहता है कि उसका दिल शीशे का बना है जो बहुत जल्दी टूट जाता है। आपने फिल्म
का गाना तो सुना ही होगा कि शीशा हो या दिल आखिर टूट जाता है। यह भी कहते हैं कि
इस दिल के टुकड़े हज़ार हुये, कोई इधर गिरा, कोई उधर गिरा। यह अलग बात है कि हमें
कहीं गली या सड़क में दिल का टुकड़ा पड़ा नहीं मिला। आपको मिला हो तो मुझे ज़रूर
बताना। मैं ज़रूर देखना चाहता हूं।
हमने यह भी सुना है
कि दिल कमज़ोर भी होता है और ठोस भी। कहते हैं कि उसका दिल पत्थर का बना है। कई
तो कहते हैं कि यह लोहे व स्टील का है। यही कारण है कि किसी को चाहे कुछ हो जाये
पर इन पत्थर दिल इन्सानों को कुछ नहीं होता।
कईयों का दिल नर्म
भी होता है। वह जल्दी ही छोटी सी बात पर भी पिघल जाता है। तभी तो आपको कई कहते
मिलेंगे कि उसका दिल मोम से बना है। यही कारण है कि वह थोड़ी सी तपस से भी पिघल
जाता है।
फिर दिल है भी बड़ी नाज़ुक
चीज़। वह जल्दी ही फिसल जाता है। जल्दी ही प्यार हो जाता है और बाद में जल्दी
ही पछताना भी पड़ जाता है। बात रोने-धोने तक पहुंच जाती है।
दिल पर लोग चोट भी
जल्दी कर देते हैं। उसके लिये चाकू या खंजर की आवश्यकता नहीं होती। दिल बातों से
भी घायल हो जाता है। यह ज़ख्म ऐसा गहरा होता है कि वह कई बार तो कभी भर ही नहीं
पाता।
कई लोग तो ऐसे होते
हैं जो दिल हथेली में रखकर घूमते फिरते हैं। ज्योंहि कोई हसीन मिला वह उसे दिल दे
बैठते हैं। इस काम में माहीगिरी भी होती है। दूसरे को पता ही नहीं चलता कि किसी ने
उसे दिल दे दिया है। वे लोग दिलफैंक आशिक के रूप में भी जाने जाते हैं।
सैंकड़ों साल पहले
सिक्कों का चलन नहीं था। तब व्यापार को बटांदरा कहते थे — एक वस्तु के बदले में
दूसरी चीज़ ले ली जाती थी। उसी पद्धति पर दिलों के बटांदरे का चलन आज भी है। एक व्यक्ति
अपना दिल अपनी प्रेमिका को और प्रेमिका अपने प्रेमी को दे देता है। दोनों को बड़ा
सकून मिलता है पर बेचैनी भी रहती है। कई बार शक हो जाता है कि कोई उस दिल का
दुरूपयोगा न कर ले। यह दिल की अदला-बदली दो व्यक्ति स्वयं ही कर लेते हैं या अपने-आप ही हो जाती है। इसमें
न तो किसी डाक्टर की आवश्यकता पड़ती है और न ही किसी आप्रेशन की।
कई बार तो अनायास ही
अनजाने में दिल गुम भी हो जाता है। किसी को पता ही नहीं चलता कि कहां गया, किसके
पास चला गया।
दो दिल मिल कर एक भी
हो जाते हैं। कई बार शरीर तो दो होते हैं पर दोनों में दिल एक होता है। दो दिलों
में दिल एक साथ भी धड़कता है।
दिल तो चाहे छोटा हो
या बड़ा, पर इतनी बात तय है कि उसमें इतनी खुली जगह होती है कि व्यक्ति के सारे
प्यारे लोग उसमें समा सकते हैं, उसमें बड़े आराम से रह सकते हैं। यही तो कारण है
कि कई प्रेमी एक दूसरे को कहते फिरते हैं कि तुम तो मेरे दिल में रहते हो।
हनुमानजी भगवान् राम
के अनन्य भक्त थे। एक बार तो उन्होंने सब को अपना दिल चीर कर दिखा दिया था कि
भगवान् राम उनके दिल में बसते हैं। इसी की नकल कर कई प्रेमी व अन्य आपको कहते मिल
जायेंगे कि हमारा दिल चीर कर देख लो, उसमें तुम्हीं दिखोगे।
दिल के टुकड़े तो
अवश्य होते हैं। जब कोई व्यक्ति दूसरे को बहुत प्यार करता है तो वह उसे समझाता
है कि तू तो मेरे दिल का टुकड़ा है। माता-पिता भी अपने बच्चों को यही कहते हैं।
वैसे तो दिल ऐसी
चीज़ है कि जब तक वह जि़न्दा है तब तक ही जान होती है और तब तक व्यक्ति में सांस
रहती है। जब दिल काम करना बन्द कर देता है तो व्यक्ति जीवित नहीं रहता। कई महानुभाव
अपने आपको जि़न्दा दिल इन्सान बताते फिरते हैं।
दिल छोटा भी होता है
और बड़ा भी। हम ने प्राय: देखा है कि लोग कह देते हैं कि उसका दिल बहुत छोटा है।
या उसका दिल बड़ा है। यदि व्यक्ति आपकी मदद कर दे तो उसका दिल बड़ा, न करे तो
छोटा।
इसी प्रकार कई लोग
शेखी बघारते हैं कि वह शेर दिल इन्सान है। पर एक चैनल के प्रोग्राम में बताया गया
था कि शेर दहाड़ता तो बहुत है पर उसका दिल आकार में बहुत छोटा होता है। इस लिये उस
प्रोग्राम वाले ने कहा कि यदि आगे के लिये कोई अपने आपको शेरदिल होने का दावा करे
तो समझ लो कि उसका दिल छोटा है। उसने यह भी सलाह दी कि आगे के लिये अपना शेरदिल
होने का दावा भी न करना।
अपने दिल को सम्भाल
कर भी रखना चाहिये क्योंकि दिल की चोरी भी हो जाती है। ऐसी घटनायें आपने
कहानी-उपन्यास, कविताओं और फिल्मों में पढ़ी और देखी होंगी। पर यह समझ नहीं आता
कि अब तक बैंकों को क्यों नहीं सूझी कि वह बैंकों में दिल केलिये लॉकर रखने का
प्रावधान कर दें। इससे बैंकों को आमदनी भी होगी और लोगों के दिल सुरक्षित रहेंगे।
दिल के चोरी होने की घटनायें भी कम हो जायेंगी।
अभी तक किसी डाक्टर
ने यह तो नहीं बताया कि दिल कितना गहरा होता है पर अक्सर आपको लोग दिल की
गहराइयों से धन्यवाद देते ज़रूर मिलेंगे।
विज्ञान ने प्रगति
तो बहुत की है। मानव चांद व मंगल तक पहुंच गया है। उसने किसी का दिल दूसरे के दिल
में ट्रांस्पलांट करने की क्षमता हासिल कर ली है पर अभी तक टूटे दिल को जोड़ने की
कोई गोंद ईजाद नहीं कर सका। दिल के घाव भरना तो दूर विज्ञान अभी तक उस पर लगाने के
लिये कोई मरहम ही नहीं बना पाया है जिससे कि घायल दिल की पीड़ा कम हो सके।
हैरानी की बात तो यह
है कि एक ओर तो हम मानवाधिकार संरक्षण की बात बहुत करते हैं पर हमारी सरकारें अभी
तक दिल को सुरक्षित रखने के लिये कोई ठोस उपाय करने में विफल रही हैं। अंग्रेज़ों
ने हमें भारतीय दंड संहिता दी पर उन्होंने दिल तोड़ने पर कोई सज़ा का प्रावधान नहीं
रखा। दिल की चोरी को कोई अपराध नहीं माना। पर अब तो भारत स्वतन्त्र है। हमारी
सरकार दंड संहिता में दिल की चोरी को अक्षम्य अपराध क्यों घोषित नहीं करती? यदि हम ऐसे व्यक्तियों
को सख्त से सख्त सज़ा देने की बात करते हैं जिनके कारण कोई आत्महत्या करने पर
मजबूर हो बैठता है तो दिल तोड़ने वालों के विरूद्ध पुलिस कार्रवाई क्यों नहीं करते? कई बार तो व्यक्ति
इसी कारण आत्महत्या कर बैठता है कि किसी ने उसका दिल तोड़ दिया। अंग्रेज़ तो
चाहते थे कि हम भारतीयों के दिल टूटें पर अब तो हमारी अपनी सरकार है। उसे तो हमारे
दिलों को टूटने से बचाना चाहिये और अपराधियों को कड़ी से कड़ी सज़ा देनी चाहिये। ***
सौजन्य हिन्दी साप्ताहिक ''उदय इण्डिया''
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