Sunday, December 28, 2014

व्‍यंग-विनोद आह-हा। मज़ा ही आ गया ''किस्‍स ऑफ लव'' का

व्‍यंग-विनोद
आह-हा। मज़ा ही आ गया ''किस्‍स ऑफ लव'' का

यह व्यंग तब लिखा गया था जब बजरंग दल आदि के कुछ लोगों ने कुछ  स्थानों पर खुले तौर पर प्यार जताने की हरकत का विरोध किया था. कुछ उदारवादी सेकुलर बंधुओं व संस्थाओं ने इसे मोरल पुलिसिंग की संज्ञा देकर इसकी भर्त्सना की थी. उन्होने इस के विरोध में प्रदर्शन निकले और संघ के कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया जिसमें खुले तौर पर चूमा-चूमी की गयी. संयोग से जिस महानुभाव ने केरल में ऐसे प्रदर्शनों का बीड़ा उठाया था बाद में वही पति-पत्नी वैश्यबाज़ी के धंदे में संलिप्त पाए गए और पुलिस ने उनपर मुकद्दमा चला दिया.




   अम्‍बा चरण वशिष्‍ठ

आज तो बस मज़ा ही आ गया। जीवन में ऐसा सुनैहरी मौका मिला जो बिरले भाग्‍यवानों को ही मिल पाता है। उनमें आज मैं और मेरा एक दोस्‍त भी शामिल हो गये। मैं आज अपने एक दोस्त को उसके घर मिलने गया। उसने कहा — चल, कहीं बाहर चाय पीते हैं। ज्‍यों ही हम बाहर निकले तो कुछ लड़के—लड़कियां, पुरूष—महिलायें ''किस्‍स ऑफ लव' जि़न्‍दाबाद'' और ''मौरल पुलिसिंग मुर्दाबाद'' के नारे लगाते आगे बढ़ रहे थे। जब मैंने उनसे पूछा तो उन्‍होंने बताया कि कुछ गुंडा तत्‍वों द्वारा ''मौरल पुलिसिंग'' किये जाने के विरोध में वह एक संस्‍था के सामने एक-दूसरे को चूम कर विरोध प्रदर्शन करने जा रहे हैं। मैंने पूछा कि क्‍या हम दोनों भी इस में शामिल हो सकता हूं\ उसने बड़े प्‍यार से कहा — क्‍यों नहीं\ आपका हार्दिक स्‍वागत है। फिर मैंने उसे बताया कि हमारे साथ तो कोई लड़की या महिला है नहीं। उसने हमारी समस्‍या दूर कर दी। कहा — कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारे साथ जो हैं।
मैंने उस समूह में कुछ लड़कियों व महिलाओं पर नज़र दौड़ाई जो बड़े ज़ोर-ज़ोर से नारे लगा रही थी़। उन्‍हें देख कर तो हमारे मुंह में भी पानी आ गया। हमने एक दूसरें को कहा — बेटा, ऐसा सुनैहरी मौका पता नहीं तुम्‍हारे जीवन में फिर कभी हाथ आयेगा भी या नहीं। बस फिर क्‍या था, हम भी ज़ोर-ज़ोर से नारे लगाने लगे। जब गन्‍तव्‍य स्‍थान पर पहुंचे और हमें विरोध प्रदर्शन का आदेश मिला, तो हमने भी अपनी मर्जी़ की युवतियों को गले लगाया और चूमना शुरू कर दिया। एक को छोड़ा तो दूसरी को दबोच लिया। कुछ साथी साथ-साथ नारे भी लगाये जा रहे थे। उनके नारों ने हमें एक-दूसरे को चूमने के लिये और भी उत्‍साहित कर दिया। हमने जी भर कर चूमा-चुमाई की। सब आनंदित थे।
नैतिकता की जिस ठेकेदार संस्‍था के समक्ष हम प्रदर्शन कर रहे थे वह तो इतनी भीरू निकली कि उसने अपने किवाड़ ही बन्‍द कर लिये। पुलिस को अपनी ढाल बना लिया। हमें तो देख पाने की वह हिम्‍मत भी न जुटा पाये, हमारा सामना करना तो दूर। कुछ तो अपने कमरों में छिप गये जैसे कि उन्‍होंने अपनी हार मान ली है। इस दृष्‍य से तो हमें ऐसा लगा जैसे कि उन्‍हें अपने कर्मों पर शर्म आ रही हो। अपने उद्देश्‍य की प्राप्ति के लिये हम और भी प्रेरित हुये। हम और भी तत्‍परता व तनमयता से एक दूसरे को चूमते रहे।
पुलिस भी मज़ा लेती रही। वह हंसते रहे, मुस्‍कराते रहे। ऐसा लगता था कि वह अपनी किस्‍मत को कोस रहे थे — काश, हमने भी वर्दी न पहन रखी होती तो हम भी इस प्रदर्शन में अपना पूरा सहयोग व योगदान देते।
अन्‍तत: एक पुलिस अफसर आ धमका मनहूस। वह हमारे सौभाग्‍य पर जल रहा लगता था। उसने अपने पुलिस कर्मियों को कहा कि तुम क्‍यों तमाशा देख रहे हो। इन लोगों को भगाओ। उधर हम भी तो थक चुके थे। इस प्रदर्शन को आगे बढ़ाना भी मुश्किल लग रहा था। हमने अपने आप ही अपने जोड़ों को छोड़ दिया और ऐसी ही विरोध प्रदर्शन में और भी ज़ोर-शोर से शामिल होने के वादा देकर विदा हुये।
पर मेरा दोस्‍त भी कम डरपोक न निकला। बोला — बेटा, मज़ा तो लूट लिया, अब जूतों के लिये तैयार हो जा। इन नासपिटे फोटोग्राफरों और चैन्‍नल वालों ने सब के फोटो खेंच लिये हैं। जब इन महिलाओं-लड़कियों के पति-पिता और भाई देखेंगे तो हमें जूते मार-मार कर गंजा कर देंगे।
मुझे उसकी नासमझी पर हंसी आ गई। मैंने कहा — मूर्ख, तुझे पता नहीं कि वह सब सभ्रान्‍त व सुशिक्षित परिवारों से हैं जो हमारी तरह तंग-दिल व दकियानूस नहीं हैं। वह उदार व प्रगतिशील हैं। फिर, तुझ मूर्ख को तो यह भी पता नहीं कि हमारे कानून के अनुसार कोई भी व्‍यस्‍क पुरूष व महिला अपनी मर्जी़ से ऐसा करने के लिये स्‍वतन्‍त्र है और तब कोई अपराध नहीं बनता।
मेरे दोस्‍त ने ज़ोर से अपना माथा पीटा और कहा — यार तू तो बड़ा समझदार हो गया लगता है।
मैंने भी इतराते हुये कहा — बेटा, हमारे साथ रहोगे तो ऐसे ही मुफत में स्‍वर्ग के मज़े इसी जन्‍म में लूटोगे।
मैंने तो एक चीज़ और नोट की। यह विरोध प्रदर्शन पूरी तरह सकारात्‍मक, शान्तिपूर्ण, सभ्‍य व शालीन था। न कोई गाली-गलोच हुआ, न अंडे-टमाटर व पत्‍थर फैंके गये और हुड़दम ही मचा। न लाठी चली, न गोली ही। मैं तो समझता हूं कि यह एक अच्‍छी पहल है। हम नौजवानों ने देश को एक नया रास्‍ता दिखाया है, एक नया सन्‍देश दिया है कि कैसे एक सच्‍चा-सुच्‍चा विरोध प्रदर्शन आयोजित किया जा सकता है और अपनी मांगे भी मनवाई जा सकती हैं।
मैं तो समझता हूं कि अब हमारे राजनीतिक दलों को भी इस उत्‍कृष्‍ठ उदाहरण से सीख लेनी चाहिये। उन्‍हें भी इसी ठीक रास्‍ते पर चलना चाहिये और अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिये बंध, धरने व अन्‍य हिंसक प्रदर्शन का रास्‍ता छोड़ जनतन्‍त्र में ''किस्‍स फॉर लव'' विरोध प्रदर्शनों को अपना हथियार बनाना चाहिये। इससे हमारी संस्‍कृति को भी बल मिलेगा। जनता में भाईचारे व प्रेमभाव का संचार होगा। सरकार को भी चाहिये कि वह ''किस्‍स फॉर लव'' विरोध प्रदर्शनों को छोड़ सभी प्रकार के अन्‍य विरोध प्रदर्शनों पर प्रतिबन्‍ध लगा दे। इसी में देश, शासन व जनता का भला है।      ***

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