Wednesday, April 23, 2014

हास्य-परिहास --- चुटकले चुनाव के

 हास्य-परिहास
चुटकले चुनाव के

चुनाव भी एक बड़ा सुहाना मौसम होता है. एक प्रकार का उत्सव ही. वास्तव में देखा जाये तो असल जनतंत्र भी उसी समय होता है. इस समय व्यक्ति को खुली छूट होती है कुछ भी बोल देने की. इस समय तो सच-झूठ सब चलता है. इतना कुछ एक-दूसरे के पक्ष व विरोध में बोला जाता है कि उसका समर्थन या खंडन करना संभव ही नहीं हो पाता. वास्तव में तब यह बात सच होती दिखती है कि यदि कोई एक झूठ को सौ बार दोहरा दे तो वह सच लगने लगता है. इस में जो कोई कामयाब हो गया समझो चुनाव में भी जीत का हार उसकी प्रतीक्षा कर रहा है.
उस समय अनेक चुटकले भी प्रचलित हो जाते हैं.

बाप का नाम क्या है?

सुनते हैं कि एक अवैध बच्चा इस बात से परेशान था कि उसकी माँ उसे उसके बाप का नाम नहीं बताती थी. उसने अपनी यह पीड़ा अपने एक दोस्त के सामने रखी. उसने कहा यह तो बड़ा आसान है. तू आने वाले चुनाव में खड़े हो जाना. तेरे विरोधी अपने आप ही तेरे बाप का नाम बता देंगे.

मीटर ही उठा ले जायेंगे

बहुत पुरानी बात है. इंदिरा गांधी द्वारा लगाये गए आपातकाल में लोगों की ज़बरदस्ती नसबंदी कर देना आम बात थी. लोग उसकी तुलना बिजली के कुनैक्षण से करते थे. लोग कटाक्ष करते हुए कहते थे कि अभी तो सरकार ने तार ही काटी है, चुनाव के बाद तो मीटर भी उठा ले जायेंगे.

ऐसे को तैसा

वोट मांगने के समय तो हमारे नेता इतने विनम्र हो जाते हैं कि हाथ जोड-जोड़ कर और झुक-झुक कर उनके हाथ और कमर दर्द करने लगते हैं. पर जब जीत जाते हैं या मंत्री बन जाते हैं तो उनकी गर्दन अकड़ जाती है. वह झुकना तो भूल ही जाते हैं. उन्हें जब स्वयं वोट मांगने होते हैं तो कभी भी, किसी समय भी आपके घर आ धमकते हैं. पर जब आपको उनसे काम हो तो कहते हैं समय ले कर आना. बाहर जनता से मिलने का समय निश्चित कर घर और आफिस के बाहर एक बोर्ड टांग देते हैं. इसी बात से क्रुद्ध हो कर एक मतदाता ने अपने घर के बाहर एक बोर्ड टांग दिया जिस पर मुझ से वोट मांगने का समय केवल ११ और १ के बीच.

वोट मांग कर शर्मिंदा न करें

एक वोटर तो और भी आगे निकल गया. उसने अपने घर के दरवाज़े पर एक बोर्ड टांग दिया: मेरा कीमती वोट मांग कर मुझे शर्मिंदा न करें.

छोड़ मेरे साथ चल

चुनाव में हर प्रत्याशी को सच्चे-सुच्चे कार्यकर्ताओं की बहुत ज़रुरत रहती है. एक दूसरे नेता के साथ काम कर रहे दोस्त जब मिलते हैं तो आजकल अपनी मौज-मस्ती के किस्से सुनाते हैं. एक ने कहा, यार बड़ी मौज है. सारा दिन घोडा-गाडी मिलती है. भोजन भी बढ़िया मिलता है. कभी पनीर, कभी राजमाश, कभी मशरूम और कभी कुछ और बढ़िया. चाय और ठंडा तो जितना मर्जी.
दूसरे ने उसका हाथ पकड़ा और कहा तू चल मेरे साथ. मेरे यहाँ तो इस से भी बढ़िया है. वहां तो शाम को मुर्गे की एक टांग और एक पौवा भी मिलता है.   



1 comment:

विकास सैनी said...

केजरीलाल का भाण्‍डा फूट गया है और उसकी असलियत जनता के सामने आ गई है। किसी ने सही कहा है कि काठ की हाण्‍डी एक बार ही चढ़ती है, बार-बार नहीं। इसकी हाण्‍डी भी अब फूट चुकी है....

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