एक अजूबा ही हो सकता है आप का सत्ता में आना
--- अम्बा चरण वशिष्ठ
मीडिया में आम आदमी पार्टी (आप) की बहुत
चर्चा है। पर मीडिया किसी भी पार्टी की विजय या हार का प्रतिबिम्ब नहीं हो सकता। दो वर्ष पूर्व पंजाब में हुये चुनाव में भी
अकाली दल से विद्रोह कर पंजाब पीपल्ज़ पार्टी (पीपीपी) बनाने वाले मनप्रीत
बादल का भी यही हाल था। कुछ लोग कहते थे कि यह नया दल ही सरकार बना लेगा। कुछ कहते
थे कि इस दल के मैदान में होने के कारण पंजाब में त्रिशंकु विधान सभा उभरेगी और सत्ता
की कूंजी पीपीपी के हाथ आ जायेगी। पीपीपी जिसके साथ खड़ी हो जायेगी
सरकार उसी की बनेगी। लोग कहते थे कि युवा मनप्रीत के पीछे दीवाने हैं और वह उसे ही
समर्थन देंगे। पर अन्तत: हुआ क्या\ मनप्रीत तीन सीटों पर खड़े हुये। तीनों पर हार गये। किसी भी
चुनावक्षेत्र में वह दूसरे स्थान पर नहीं रहे।
यही हाल आप का होने की सम्भावना
है। उसके पास जनता को देने के लिये है क्या\
अरविन्द केजरीवाल अन्ना हज़ारे के कंधों
पर सवार रहे। उनकी गोदी में खेल कर बड़े हुये। पहले तो केजरीवाल को राजनीति से
इतनी नफरत थी कि वह लोकपाल आन्दोलन को इस से प्रदूषित नहीं होने देना चाहते थे।
यह केजरीवाल व उनके सहयोगी ही थे जिन्होंने जन्तर-मन्तर नई दिल्ली में उनके
आन्दोलन को समर्थन व सहयोग देने पहुंचे राजनेताओं को उल्टे पांव वापस कर दिया
था। पर बाद में यही केजरीवाल अपना ही दल बनाने के लिये लालायित हो गये हालांकि अन्ना
इसके विरूद्ध थे।
पार्टी के बारे उनकी परिकल्पना कितना
पाखण्ड था यह तो इस बात से ही पता चल जाता है कि उन्होंने घोषणा की कि इस दल का
कोई सर्वेसर्वा या अध्यक्ष नहीं होगा। नेता जनता तय करेगी। पर स्वयं इस पार्टी
के संयोजक बन बैठे जिसको वही अधिकार व शक्तियां प्राप्त हैं जो किसी अध्यक्ष या
महामन्त्री को होती हैं। साम्यवादी दलों आदि में अध्यक्ष नहीं होता। वहां
महामत्री होता है जिसका स्थान वही होता है जो किसी अध्यक्ष का होता है। तो फिर
इस दल व अन्य में फर्क क्या है\
केजरीवाल ने कहा कि उसकी नीतियां व
योजनायें जनता तय करेगी। यही तो सब दल कहते हैं। कौन कहता है कि उसकी नीतियां या
योजनायें जनता द्वारा प्रेरित नहीं होंगी या जनहित में नहीं होंगी और उनका जनता से
कोई वास्ता नहीं होगा\
केजरीवाल दावा करते हैं कि यदि उन्हें
पैसा ही इकट्ठा करना होता तो वह आयकर विभाग में अपने बड़े पद को न त्यागते। पर
इसका मतलब क्या यह है कि इस विभाग में सभी भ्रष्ट हैं\
इससे बड़ा ढकोंसला और कोई नहीं हो सकता। किसी भी दल या विभाग
में न सारे देवता होते हैं और न सारे भ्रष्ट। फिर लोग तो यह भी तर्क देते हैं कि
ऐसा ही है तो केजरीवाल की पत्नि अभी भी इसी विभाग में अधिकारी क्यों बनी बैठी हैं\
जनता में अपने
आपको ईमानदार प्रदर्शित करने के लिये केजरीवाल का तौर-तरीका है हर अन्य पार्टी व
नेता पर उंगली उठाना और उसे भ्रष्ट बताना। पर यह भी तो सत्य है कि व्यक्ति अपने
विरोधियों को भ्रष्ट बता कर स्वयं ईमानदार नहीं बन जाता। उसे तो अपने आपको
ईमानदार साबित करना होता है। अभी तक केजरीवाल व उनके सहयोगी राजनीति में नये हैं।
उन्हें न सरकार चलाने का मौका मिला न अपने आपको ईमानदार साबित करने का। सच्चाई
तो यह है कि जिसे रिश्वत खाने का मौका ही नहीं मिला वह भ्रष्ट कैसे बन सकता है\ ईमानदारी की कसौटी
तो तब होगी जब सत्ताप्राप्ति के बाद घूंस मिले और व्यक्ति इनकार कर दे।
जब केजरीवाल दूसरे दलों व राजनेताओं पर
भ्रष्टाचार के आरोप लगाते थे तो वह उन आरोपों को झूठा, बेहूदा, बेबुनियाद व
चरित्रहनन को घटिया प्रयास बताकर खारिज कर देते थे। अन्याथ मानहानि का मुकद्दमा
दायर करने की धमकी दे देते थे या दायर कर देते थे। यही हथकण्डा अब आप ने
अपनाया है जब उस पर व केजरीवाल पर वैसे ही भ्रष्टाचार के आरोप लगे। अभी तो आप सत्ता
में नहीं आई है। तो आप और अन्य दलों में अन्तर ही क्या रह गया है\
अभी जबकि आप सत्ता के समीप भी नहीं
है तभी उसे 19 करोड़ रूपये का चन्दा प्राप्त हो गया है। जब सत्ता में आयेगी तब
तो इस पार्टी के पास दान देने वाले दानवीरों की तो झड़ी ही लग जायेगी।
केजरीवाल की पार्टी का सत्ता में आ जाना
तो इस व पिछली बीसवीं सदी का एक अजूबा ही होगा क्योंकि कुछ मास का बच्चा
राजनीतिक दल अभी तक सत्ता की वैयस्कता प्राप्त नहीं कर पाया है। कांग्रेस ने
70-80 वर्ष घोर संघर्ष किया तब कहीं जा कर उसे सत्ता का सुख भोगने का अवसर मिला।
1977 में नये दल जनता पार्टी ने कांग्रेस
से सत्ता छीन कर केन्द्र व कई प्रदेशों में सरकार अवश्य बनाई थी पर इस में सभी
पुराने ही दल व नेता शामिल थे जिन्होंने दशकों संघर्ष किया था और कई यातनायें सही
थीं। जन आन्दोलनों में भाग लिया था। पर केजरीवाली व उसके सहयोगियों ने किस
जनसंघर्ष में लाठियां व गोलियां खाई हैं। कौनसे जन आन्दोलन द्वारा उसने जनता की कोई मांग मनवाई है या कोई सुविधा
दिलवाई है\
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