सामायिकी
मनमोहन सिंह का मुखर मौन
नैतिकता के नए मानदंड
हमारे प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह राजनीतिक आवश्यकतानुसार मौन धारण कर लेते हैं। वह बहुत समझदार महान व्यक्ति हैं। भारत की मौलिक समझ-सूझबूझ उनकी रग-रग में समाई पड़ी है। वह भारतीय ज्ञान के ज्ञाता हैं। देश की लोकोक्तियों का अनुसरण करते हैं और उन पर खरे उतरते हैं। पंजाबी कहावत है कि बूढ़ा सठिया गया है और लोगों के बर्तन उठा कर अपने घर ले आता है (पर इतना समझदार अवश्य है कि वह अपने घर के बर्तन दूसरों के घर नहीं छोड़ आता।) वह मुड़-मुड़ कर खैरात अपनों को ही बांटते हैं, दूसरों को नहीं।
वह यह मानते हैं कि एक चुप और सौ सुख। पंजाबी में कहते हैं कि वह गुजझी (पीछे से छुपी) मार करता है।
पुराने जमाने कि बात सुनाते हैं कि एक व्यक्ति अपने गाँव के मौलवी के पास गया और पूछा कि उसकी गाय यदि मौलवी का खेत चर जाए और बर्बाद कर दे तो? मौलवी तुरंत बोले यह तो बड़ा अपराध है और तुम्हें तो इस पर कड़ी सज़ा मिलनी चाहिए। व्यक्ति ने आगे पूछा कि यदि आपकी गाय मेरे खेत का नुक्सान कर दे तो? अपना न्याय सुनाते हुये मौलवी बोले, तब और बात है। ऐसा ही न्याय हमारे प्रधान मंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी करते हैं।
जब तो किसी ग़ैर-कांग्रेसी नेता पर लोकायुक्त कोई अपना फतवा सुनाता है तो हमारे प्रधान मंत्री व उनकी प्रणेता श्रीमति सोनिया गांधी नैतिकता की दुहाई देकर कहती हैं कि उसे तुरंत त्यागपत्र दे देना चाहिए और उसे जेल भेज देना चाहिए। कर्नाटक मैं तत्कालीन मुख्य मंत्री येदुईरप्पा के लिए उन्होंने यही नैतिक मानदंड रखा। पर जब कर्नाटक के उसी लोकायुक्त ने उनके विदेश मंत्री एस एम कृष्णा के विरुद्ध उसी प्रकार का मुक़द्दमा दायर कर देने का आदेश दिया तो डॉक्टर मनमोहन सिंह और श्रीमति गांधी अपनी नैतिकता कि ऊंचाई भूल गए। तब उनके त्यागपत्र की मांग पर मौन हो गये। उन्हों ने समझ लिया कि एक चुप और सौ सुख।
जब दिल्ली के लोकायुक्त ने दिल्ली के एक मंत्री चौहान को दोषी पाया और उसे पदच्युत कर देने के लिए कहा तो ये दोनो महानुभाव लोकायुक्त की ही उस सिफ़ारिश पर बड़े जज बन बैठे और उसके निर्णय पर अपना महान नैतिक निर्णय सुना दिया कि चौहान निर्दोष हैं और उन्हें ससम्मान अपने गौरवशाली पद को सुशोभित करते रहना चाहिए।
जम्मू-कश्मीर के एक कांग्रेसी शिक्षा मंत्री हैं जो प्रदेश में शिक्षार्थियों को शिक्षा के साथ-साथ नैतिकता का पाठ भी पढाते है। हाल ही में उनके विरुद्ध यह साबित हो गया कि उन्हों ने अपने बच्चे को पास करवाने के लिए अपने पद का दुरुपयोग किया। मंत्री महोदय ने अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी कबूल करते हुये पद से त्यागपत्र दे दिया। पर कांग्रेस ने उससे भी ऊंची नैतिकता का परिचय देते हुये उन मंत्री महोदेय का त्यागपत्र ठुकरा दिया और अपने पद पर बने रह कर बच्चों को बराबर नैतिकता का पाठ पढ़ाते रहने का निर्देश दिया। एक मर्यादित-अनुशासित महानुभाव के नाते उन्हों ने भी पार्टी हाई कमान का फरमान सिरमाथे लेते हुये पद पर बने रह कर पहले से भी अधिक ज़ोर-शोर से अपने व पार्टी के महान आदर्शों पर चलते हुये प्रदेश और जनता की निरंतर सेवा करते रहने का पुनः प्रण ले लिया।
उधर केन्द्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने मुसलमानों को आरक्षण का प्रलोभन देकर चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन कर कानून की धज्जियां उड़ाते हुये संविधान की एक सममाननीय संस्था चुनाव आयोग की खूब खिल्ली उड़ाई। उसके अधिकारों चुनौती भी दी। यहाँ तक कह दिया कि यदि चुनाव आयोग उन्हें सूली पर भी लटका दे तो भी वह यह करते हुये खुशी-खुशी शहीदी प्राप्त करने से पीछे नहीं हटेंगे। चुनाव आयोग ने खुर्शीद की शिकायत राष्ट्रपति महोदया से कर दी जिसे उन्हों ने प्रधान मंत्री जी को कार्यवाही के लिए भेज दिया। सलमान खुर्शीद के आचरण पर सारे देश में हो-हँगामा हुआ पर हमारे प्रधान मंत्री थे कि उनके कान पर जूं तक न रींगी। कानून बनाने वाले उनके ही एक वरिष्ठ मंत्री द्वारा कानून की पीठ में छुरा घोंप देने की घटना भी उनकी ज़ुबान का ताला न तोड़ सकी। अंततः चुपचाप उन्हों ने मंत्री महोदय से अपने आचरण पर चुनाव आयोग से क्षमा मँगवा दी। चुनाव आयोग ने भी मामला यहीं समाप्त कर दिया। वैसे भी बात को आगे बढ़ाने का कोई तुक अब बचा नहीं था। सलमान ने और पार्टी ने मुसलमानों तक अपना संदेश पहुंचाना था वह पहुंचा दिया था। उसका उद्देश्य भी पूरा हो चुका था। इस प्रकार कांग्रेस व सरकार ने अपनी खाल बचा ली।
पर प्रश्न तो फिर भी रह गया? क्या इस प्रकार कांग्रेस व मनमोहन सरकार ने न्याय का यह नया मानदंड स्थापित कर दिया है? क्या भविष्य में कोई कितना भी बड़ा अपराध क्यों न कर दे, उसे भी क्षमा मांग लेने पर सलमान खुर्शीद की तरह ही सूली पर लटकने से बचा लिया जाएगा और उसे मुआफ कर दिया जाया करेगा?
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