Sunday, December 28, 2014

व्‍यंग-विनोद आह-हा। मज़ा ही आ गया ''किस्‍स ऑफ लव'' का

व्‍यंग-विनोद
आह-हा। मज़ा ही आ गया ''किस्‍स ऑफ लव'' का

   अम्‍बा चरण वशिष्‍ठ

आज तो बस मज़ा ही आ गया। जीवन में ऐसा सुनैहरी मौका मिला जो बिरले भाग्‍यवानों को ही मिल पाता है। उनमें आज मैं और मेरा एक दोस्‍त भी शामिल हो गये। मैं आज अपने एक दोस्त को उसके घर मिलने गया। उसने कहा — चल, कहीं बाहर चाय पीते हैं। ज्‍यों ही हम बाहर निकले तो कुछ लड़के—लड़कियां, पुरूष—महिलायें ''किस्‍स ऑफ लव' जि़न्‍दाबाद'' और ''मौरल पुलिसिंग मुर्दाबाद'' के नारे लगाते आगे बढ़ रहे थे। जब मैंने उनसे पूछा तो उन्‍होंने बताया कि कुछ गुंडा तत्‍वों द्वारा ''मौरल पुलिसिंग'' किये जाने के विरोध में वह एक संस्‍था के सामने एक-दूसरे को चूम कर विरोध प्रदर्शन करने जा रहे हैं। मैंने पूछा कि क्‍या हम दोनों भी इस में शामिल हो सकता हूं\ उसने बड़े प्‍यार से कहा — क्‍यों नहीं\ आपका हार्दिक स्‍वागत है। फिर मैंने उसे बताया कि हमारे साथ तो कोई लड़की या महिला है नहीं। उसने हमारी समस्‍या दूर कर दी। कहा — कोई फर्क नहीं पड़ता। हमारे साथ जो हैं।
मैंने उस समूह में कुछ लड़कियों व महिलाओं पर नज़र दौड़ाई जो बड़े ज़ोर-ज़ोर से नारे लगा रही थी़। उन्‍हें देख कर तो हमारे मुंह में भी पानी आ गया। हमने एक दूसरें को कहा — बेटा, ऐसा सुनैहरी मौका पता नहीं तुम्‍हारे जीवन में फिर कभी हाथ आयेगा भी या नहीं। बस फिर क्‍या था, हम भी ज़ोर-ज़ोर से नारे लगाने लगे। जब गन्‍तव्‍य स्‍थान पर पहुंचे और हमें विरोध प्रदर्शन का आदेश मिला, तो हमने भी अपनी मर्जी़ की युवतियों को गले लगाया और चूमना शुरू कर दिया। एक को छोड़ा तो दूसरी को दबोच लिया। कुछ साथी साथ-साथ नारे भी लगाये जा रहे थे। उनके नारों ने हमें एक-दूसरे को चूमने के लिये और भी उत्‍साहित कर दिया। हमने जी भर कर चूमा-चुमाई की। सब आनंदित थे।
नैतिकता की जिस ठेकेदार संस्‍था के समक्ष हम प्रदर्शन कर रहे थे वह तो इतनी भीरू निकली कि उसने अपने किवाड़ ही बन्‍द कर लिये। पुलिस को अपनी ढाल बना लिया। हमें तो देख पाने की वह हिम्‍मत भी न जुटा पाये, हमारा सामना करना तो दूर। कुछ तो अपने कमरों में छिप गये जैसे कि उन्‍होंने अपनी हार मान ली है। इस दृष्‍य से तो हमें ऐसा लगा जैसे कि उन्‍हें अपने कर्मों पर शर्म आ रही हो। अपने उद्देश्‍य की प्राप्ति के लिये हम और भी प्रेरित हुये। हम और भी तत्‍परता व तनमयता से एक दूसरे को चूमते रहे।
पुलिस भी मज़ा लेती रही। वह हंसते रहे, मुस्‍कराते रहे। ऐसा लगता था कि वह अपनी किस्‍मत को कोस रहे थे — काश, हमने भी वर्दी न पहन रखी होती तो हम भी इस प्रदर्शन में अपना पूरा सहयोग व योगदान देते।
अन्‍तत: एक पुलिस अफसर आ धमका मनहूस। वह हमारे सौभाग्‍य पर जल रहा लगता था। उसने अपने पुलिस कर्मियों को कहा कि तुम क्‍यों तमाशा देख रहे हो। इन लोगों को भगाओ। उधर हम भी तो थक चुके थे। इस प्रदर्शन को आगे बढ़ाना भी मुश्किल लग रहा था। हमने अपने आप ही अपने जोड़ों को छोड़ दिया और ऐसी ही विरोध प्रदर्शन में और भी ज़ोर-शोर से शामिल होने के वादा देकर विदा हुये।
पर मेरा दोस्‍त भी कम डरपोक न निकला। बोला — बेटा, मज़ा तो लूट लिया, अब जूतों के लिये तैयार हो जा। इन नासपिटे फोटोग्राफरों और चैन्‍नल वालों ने सब के फोटो खेंच लिये हैं। जब इन महिलाओं-लड़कियों के पति-पिता और भाई देखेंगे तो हमें जूते मार-मार कर गंजा कर देंगे।
मुझे उसकी नासमझी पर हंसी आ गई। मैंने कहा — मूर्ख, तुझे पता नहीं कि वह सब सभ्रान्‍त व सुशिक्षित परिवारों से हैं जो हमारी तरह तंग-दिल व दकियानूस नहीं हैं। वह उदार व प्रगतिशील हैं। फिर, तुझ मूर्ख को तो यह भी पता नहीं कि हमारे कानून के अनुसार कोई भी व्‍यस्‍क पुरूष व महिला अपनी मर्जी़ से ऐसा करने के लिये स्‍वतन्‍त्र है और तब कोई अपराध नहीं बनता।
मेरे दोस्‍त ने ज़ोर से अपना माथा पीटा और कहा — यार तू तो बड़ा समझदार हो गया लगता है।
मैंने भी इतराते हुये कहा — बेटा, हमारे साथ रहोगे तो ऐसे ही मुफत में स्‍वर्ग के मज़े इसी जन्‍म में लूटोगे।
मैंने तो एक चीज़ और नोट की। यह विरोध प्रदर्शन पूरी तरह सकारात्‍मक, शान्तिपूर्ण, सभ्‍य व शालीन था। न कोई गाली-गलोच हुआ, न अंडे-टमाटर व पत्‍थर फैंके गये और हुड़दम ही मचा। न लाठी चली, न गोली ही। मैं तो समझता हूं कि यह एक अच्‍छी पहल है। हम नौजवानों ने देश को एक नया रास्‍ता दिखाया है, एक नया सन्‍देश दिया है कि कैसे एक सच्‍चा-सुच्‍चा विरोध प्रदर्शन आयोजित किया जा सकता है और अपनी मांगे भी मनवाई जा सकती हैं।
मैं तो समझता हूं कि अब हमारे राजनीतिक दलों को भी इस उत्‍कृष्‍ठ उदाहरण से सीख लेनी चाहिये। उन्‍हें भी इसी ठीक रास्‍ते पर चलना चाहिये और अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिये बंध, धरने व अन्‍य हिंसक प्रदर्शन का रास्‍ता छोड़ जनतन्‍त्र में ''किस्‍स फॉर लव'' विरोध प्रदर्शनों को अपना हथियार बनाना चाहिये। इससे हमारी संस्‍कृति को भी बल मिलेगा। जनता में भाईचारे व प्रेमभाव का संचार होगा। सरकार को भी चाहिये कि वह ''किस्‍स फॉर लव'' विरोध प्रदर्शनों को छोड़ सभी प्रकार के अन्‍य विरोध प्रदर्शनों पर प्रतिबन्‍ध लगा दे। इसी में देश, शासन व जनता का भला है।      ***

हास्‍य-व्‍यंग किस्‍से मर्दों के

हास्‍य-व्‍यंग         किस्‍से मर्दों के


मुसीबत छोटी ही अच्‍छी

एक ने देखा कि उसका एक दोस्‍त अपनी नई नवेली पत्नि के साथ जा रहा है। वह हैरान हो गया कि उसका दोस्‍त तो एक लम्‍बा-चौड़ा जवान है पर उसकी बीवी एक दुबली-पतली छोटी सी गुडि़या। दोस्‍त ने पूछा, ''तुमने यह क्‍या किया\''
दोस्‍त बोला, ''यह मैंने सोच समझ कर ही किया है।''
उसने पूछा, ''क्‍या मतलब\''
दोस्‍त ने समझाया, ''मेरे दोस्‍त, मुसीबत जितनी छोटी हो उतनी ही अच्‍छी होती है।''

मेरे दोस्‍त को बचा लो, जज सॉब

एक व्‍यक्ति जज के पास दौड़ा-दौड़ा पहुंचा। हाथ जोड़ कर वह बार-बार यही बोले जा रहा था, ''मेरे दोस्‍त को बचा लो, जज सॉब। वह बर्बाद हो जोयेगा। उसकी जि़न्‍दगी खराब हो जायेगी।'' वह बस चिल्‍लाये जा रहा था।
''बता तो सही हुआ क्‍या\'' जज ने कहा।
''सॉब'', वह रोता ही जा रहा था। ''वह मेरी बीवी से शादी करने जा रहा है।''

पत्निब्रता पति

एक व्‍यक्ति अपने घर के बाहर सर्दी में सिकुड़ रहा था। ऊपर से उसके सिर, बाज़ू, टांग पर पट्टियां बंधी थी। चेहरा सूजा हुआ था और उसपर भी कई स्‍थानों पर रूई के साथ दवाई चिपकी हुई थी। उधर से उसका एक दोस्‍त गुज़रा। उसकी यह हालत देख कर वह आग-बबूला हो गया। उसने कहा, 'जिसने तुम्‍हारा यह हाल किया है उसका बड़ा ग़र्क हो जाये। उसका कुछ न बचे।''
वह व्‍यक्ति इतना सुन न सका। उसको भी ग़ुस्‍सा आ गया। उसने अपना हाथ उठाकर उसे रोकना चाहा पर दर्द से उससे चीख निकल उठी। फिर भी उसे चेतावनी देते हुये बोला, ''देख, चुप हो जा। मैं अपनी पत्नि के विरूद्ध एक भी शब्‍द नहीं सुन सकता।''


मेरी बीवी बहुत अच्‍छी है

एक व्‍यक्ति अपनी बीवी की तारीफों  के पुल बांधे जा रहा था। उसने कहा कि वह इतनी अच्‍छी है कि मैं रात को चाहे जितना मर्जी़ देर से आऊं – रात को ग्‍यारह बजे, बारह बजे या उससे भी देरी से, वह मुझे पानी गर्म कर के देती है।''
दोस्‍त ने कहा, ''बहुत खूब। क्‍या वह तुम्‍हारे पांव धोती है गर्म पानी से\''
''नहीं'', उस व्‍यक्ति ने स्‍पष्‍ट किया। ''मैं ठण्‍डे पानी से बर्तन साफ नहीं कर सकता।''


मैं भी तो उसका इकलौता पति हूं

एक कवि ने अपने एक कवि मित्र से अपना दुखड़ा रोया। बोले, ''मैं अपनी पत्नि से बहुत परेशान हूं।''
मित्र ने पूछा, ''क्‍या हुआ\''
''मैं जब भी अपने बेटे को डांटता हूं तो वह सदा उसका पक्ष लेती है।''
''तुम भी तो उसे ऐसे ही डांटते रहते होगे'', मित्र ने समझाया।
''नहीं''। कवि ने कहा, ''वह तब भी उसका ही साथ देती है जब उसने कोई ग़लती भी की हो''।
मित्र ने उसे समझाया। ''देखो, मां का लाड-प्‍यार है। आखिर वह उसका इकलौता बेटा है न''।
कवि खीझ उठा। बोला, ''मैं भी तो उसका इकलौता ही पति हूं न''।

तब तो एक नोट और दीजिये

एक पति ने अपने नौकर को पांच सौ का नोट थमाया और कहा, ''बीबीजी को मत बताना कि पीछे से कोई महिला आर्इ थी''।
''तब तो पांच सौ का एक नोट और दीजिये, मालिक'', नौकर ने सहज भाव से कहा।
''क्‍यों\'' मालिक ने कड़क होकर पूछा।
''मालिक, मालकिन तो ऐसे मौके पर एक हज़ार देती हैं''।

इसे कोई भी ले जाये

एक व्‍यक्ति की बीवी किसी के साथ भाग गई। उसने उस पर मुकद्दमा कर दिया। सुनावाई के दौरान दु:खी पति ने अदालत में कहा, ''जज सॉब, मेरी बीवी को आरोपी के वकील सॉब ले जायें, मेरे वकील सॉब ले जायें, आप ले जायें पर मैं उसके साथ नहीं जाने दूंगा''।
जज ने डांटते हुये कहा, ''क्‍या बक रहे हो। चुप रहो''।
व्‍यक्ति ने हाथ जोड़ते हुये कहा, ''सॉब, मैं अपने मन की बात कर रहा हूं''।


नज़रिया बदल लिया है मैंने

एक व्‍यक्ति बड़ा दु:खी रहता था। उसकी पत्नि के उसके बॉस से अवैध सम्‍बंध हो गये थे। पर एक दिन जब वह आफिस आया तो बड़ा तरोताज़ा, खुश। उसके सहयोगियों को हैरानी हुई। उन्‍होंने पूछा कि क्‍या सारा मामला सुलझ गया है\
''नहीं'', उसने हंसते हुये बताया। ''मैंने अपना नज़रिया बदल लिया है। अब मैं समझता हूं कि वह मेरे बॉस की पत्नि है जो मेरे पास कभी-कभी आ जाती है''।

(कुच्‍छ सुने-सुनाये व पढ़े)

Wednesday, December 3, 2014

Not 'Hramzade', it's 'Ramzade' that pinches 'secularists'

Not 'Hramzade', it's 'Ramzade' that pinches 'secularists'

By Amba Charan Vashishth

One should be discreet in the use of one's words. Think before you speak, is another good sermon. This is more apt for persons in politics. One's opponents are always prying for the slip of tongue to put one on the mat. They wish to milch the opponent's cow hard enough to squeeze out the blood of political mileage.

This is more true in the recent controversy that has erupted because of the utterings of Union Minister Sadhvi Niranjan Jyoti who while addressing a public meeting in Delhi is reported to have said that the Delhi voter has to make a choice between Ramzadon and Hramzadon. Later, clarifying on her remarks she is reported to have said that in India everyone is the child of Lord Ram and all others are those who changed their mode of worship. This created a great furore and functioning in both houses of Parliament was disrupted by the opposition. For obvious political reasons, her detractors remained unsatisfied even when the Sadhvi clarified in Parliament: "My intention was not to hurt anyone. If my speech outside the House has hurt anyone, I express my deep regrets".

But this didn't close the matter. The Opposition wants the head of the minister; she should resign or be dismissed. They — and the media — have gone to the extent of dubbing it as "hate speech" and against the Constitution of which she had taken oath. They further demanded that a criminal case be registered against her.

The hypocrisy of the opposition is not new. When Congress President Mrs. Sonia Gandhi in an election meeting in 2007 had described the then Gjujarat chief Minister Narendra Modi as maut ka saudagar, for our 'secularists' and 'liberal' media it did not amount to "hate speech" nor did it hurt the 'secular' psyche.
The opposition and the media stand on the same pedestal on the issue. The former wishes to fish political capital in the trouble waters and the latter, to thrive in grabbing a higher TRP by whipping up flames of controversy. In their heart they know they are only flagging a dead horse.

Zade is an Urdu word which has come to be used in Hindi too when one speaks of Shahzade (prince), Sahibzade (offsprings of a great ancestry), and conjoined with other words to give a particularly special meaning, like hramzade and the like. Ramzade means the off-springs of Lord Ram. He is a god to an overwhelming majority of Indians. Every religion, Hindus included, says that all human beings are the children of god, be it the Christians, Muslims and so on. Nobody challenges this claim. India is a land of Hindus where people have the unchallenged liberty to adopt whatever form of worship they like. Within Hindus there are numerous forms of worship, yet all remain one: Hindu. After the invasion by Muslim and Christian raiders, a section of the people adopted Christian and Muslim ways of worship. The Hindus respect it. Why, therefore, should the use of word Ramzade hurt any section of society? All Indians are the children of god whomever they worship or have faith in.

The dictionary meaning of the word hramzade is bastard, rascal, scoundrel, and ill-begotten. This is the word people use in their everyday life to describe certain individuals. Namakhraam is a word in common usage. By using the words Ramzade and hramzade the Sadhvi just tried to draw a distinction between men of god, gentlemen and civilized persons on the one hand and bastards, rascals and scoundrels, on the other. Do the media and opposition wish to make us believe that among we Indians there are no bastards, rascals and scoundrels at all? Is it, then, a crime to call upon people to choose between men of god and scoundrels?
Needless to call the famous quote of Pandit Jawaharlal Nehru: Aaraam hraam hai. Nobody has felt — and should — offended by these words.

Similarly, halaal is a common Urdu word. Everybody knows its meaning and connotation. When in rage, people are usually seen threatening others: Main tujhe halaal kar rakh doonga (Will slaughter you like a goat "in accordance with conventional prescription").

It is a political travesty of the democracy and 'secularism' that in India with a population of more than 80 percent Hindus the very word Ram pinches very hard the delicate heart of our so-called self-styled liberal-secularists. It is a 'crime' to take His name. Whoever does is branded a fundamentalist 'communal'. A Hindu doesn't have the right to proclaim that he is proud of being one while all other non-Hindus have this privilege.


The writer is a Delhi-based political analyst.
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